Rishi Panchami: ऋषि पंचमी की कहानी, जानिये व्रत कथा और पूजा | Rishi Panchami VART story

 

ऋषि पंचमी कब है,ऋषि पंचमी का व्रत क्यों रखा जाता है

Rishi Panchami fasting story:
ऋषि पंचमी कथा- सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नाम का राजा हुए थे। वह ऋषियों के बिलकुल समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र रहा करता था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत पतिव्रता थी। 

 

एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी रहती है, तो वह रजस्वला हो गयी। उसको रजस्वला होने का पता जब लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रहती थी । कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हो गए । जयश्री तो कुतिया बन गई और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के वजह से बैल की योनी मिल गयी, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों ने कोई अपराध नहीं किया था। 

 

इसी वजह इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का सम्पूर्ण  विवरण याद रह रह गया । वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में ठीक उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगते है। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार किया करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर बहुत सारे ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना तरह के भोजन बनवाए। 

 

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जब उसकी पत्नी किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब कुछ देख रही थी। पुत्र की बहू के आने के बाद  उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखना गवारा ना गया और उसने चूल्हे में से जलती हुई लकड़ी निकाल कर कुतिया को दे मारा। 

 

बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगती है । चौके में जो झूठन आदि बच जाया करता था , वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल दिया करती थी, लेकिन क्रोध के वजह उसने वह भी बाहर फिकवा दिया । सब खाने वाले सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा भोजन बना कर ब्राह्मणों को खिलाया। 

बीते काफी रात्रि में भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व जन्म के पति के पास आकर बोल पडी की, हे स्वामी! आज तो हम भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को दे दिया करता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिल पाया है। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेको ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनको न खाने योग्य कर दिया था। इसी वजह उसकी बहू ने मुझे बहुत मार कर भगा दिया  और खाने को कुछ भी नहीं दिया। 

 

तब वह बैल कहा, हे भद्रे! तेरे पापों के वजह से तो मैं भी इस योनी में आ गया हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट रही है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल जोतता  रहा। मेरे अपने पुत्र ने आज मुझे भी अभी तक भोजन नहीं दिया और आज  मुझे  बहुत मारा भी। मुझे इस तरह कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया है । 

 

अपने माता-पिता की उन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी वक्त दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुखो से दुखी होकर वह वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के वजह इन नीची योनियों को प्राप्त हो गए  हैं और अब किस तरह से इनको इससे छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत करो तथा उसका श्रेय अपने माता-पिता को दो। 

 

भाद्रपद माह की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी वस्त्र पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजा अर्चना करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आये और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत उपवास किया। उसके किय हुए पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूटकरा पाए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत किया करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को चली जाती है।

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