सभा के करीब पुंजिकस्थली का यह व्यवहार दुर्वासा ऋषि को अच्छा नहीं लगा ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं पुंजिकस्थली को कई बार समझाया लेकिन उन्होंने नजरअंदाज किया वहीं पर इधर उधर जाना भटकना कम नहीं किया उनके बातों को ना समझते हुए वैसे ही करती रही
ऋषि दुर्वासा ने कहा तुम्हें देव सभा की मर्यादा का ज्ञान नहीं है क्या तुम कैसी देव लोक की अप्सरा हो जो बंदरिया जैसे कृत्य कर रही हो जा अपनी इस आदत के नाते तुम बंदरिया हो जाएगी यह हमारा श्राप अटल है
ऋषि दुर्वासा के श्राप से श्रापित होकर पुंजिकस्थली चकित सी रह गई अपने खुद के आचरण का यह परिणाम हो जाएगा कभी उसने सोचा ही नहीं था फिर क्या हो सकता था चूक तो हो ही चुकी थी जिसके चलते उसको शापग्रस्त होना पड़ा बाद में उसने दोनों हाथ जोड़कर चरणों में गिर पड़ी विनती करने लगी की हे ऋषिवर अपनी हरकतों और मूर्खता के कारण हम श्राप ग्रस्त हुयी हु यह मैं भूल गई थी यह गलती हमसे अनजाने में हो गयी
आपके मन पर ठेश लगाने का मतलव नहीं था पर हम ध्यान ना दे पायी सभा में बाधाएं डालने का हमारा कोई उद्देश्य नहीं था हे ऋषिवर कृपया करके अब हमें बताएं आपके इस श्राप से मुझे मुक्ति कैसे मिलेगा मेरा उद्धार कैसे होगा
पुंजिकस्थली अप्सरा के दिल में तसल्ली हुआ फिर पुनर्जन्म वानर महाराजा विराज की कन्या के रूप में उनका जन्म होता है उनका नाम अंजना रखा गया शादी योग्य हो जाने के बाद उनका स्वयंवर वानर राज केसरी से कर दिया गया अंजना केसरी के साथ सुख पूर्वक प्रभास तीर्थ में रहने लगी थी
यहां पर सब जगह बहुत शांति का स्वभाव हर एक जगह बिखरा हुआ था इस जगह ऋषि मुन्नी अपना आश्रम बनाकर यज्ञ किया करते थे एक बार ऐसा घटना घटित हुआ जब एक शंखबल नामक हाथी किसी कारण से चिड़ गया उस क्षेत्र में भारी उत्पात मचाने लगा उसने आनेको आश्रमों को रौंद डाला और कईयों यज्ञ स्थल को नष्ट नाबूत कर दिया
उसके भय से इधर उधर भागते हुए अनेकों तपस्वी बालक की जान भी गई कई आश्रम उजाड़ उखाड़ गए अनेकों ऋषि हाथी के भय से आश्रम छोड़कर जंगल की ओर भाग गए
इस बात का जब खबर महाराज केसरी को मिला तो आनन-फानन में वहां के आश्रम तथा आश्रम वासियों की रक्षा के लिए तत्काल वहां पर आ गए शंखबल को बड़ी कुशलता से पकड़ लेते हैं उसके दोनों दांतों को पकड़ के उखाड़ लेते हैं जास्ती पीड़ा से वह हाथी चिल्लाता-चिल्लाता वहीं गिर जाता है और वही मर जाता है
आश्रम और वहां के जनों की रक्षा के लिए अचानक केसरी को पहुंचना और हाथी को हवा की तरह तुरंत काबू में कर के मार गिराने के बाद सभी आश्रम वासियों डर मत कर देना वाले केसरी का ऐसा बल देखकर ऋषि मुनि बहुत खुश हो जाते हैं और केसरी के पास आकर आशीर्वाद देते हुए बताया
वानर राज केसरी जिस प्रकार आपने आज हम सब की तथा आश्रम की रक्षा की है ठीक उसी प्रकार भविष्य मैं तुम्हारा होने वाला पुत्र पवन जैसे तेज गति वाला होगा तथा रूद्र जैसा महान बलशाली भी होगा आपके बल तेज के साथ साथ उनमें पवन देव कथा रुद्र का तेज भी व्याप्त होगा
केसरी जी ने कहा ऋषिवरो हमने तो बिना किसी कामना के पागल हाथी को जो किसी प्रकार बस में नहीं आ रही थी हमने उसे मार कर आपकी इस यज्ञ भूमि को निर्भय बनाया है
आता है आपका दिया यह आशीर्वाद हमारे सर आंखों पर रहेगा
श्री केसरी जी ऋषियों का प्रणाम करके चले गए समय आने पर मां अंजना के गर्भ से एक बेटा का जन्म हुआ उनमें बालपन से ही ऋषि और द्वारा दिए गए आशीर्वाद का तेज चमकने लगा आश्रमों में पवन देव की तरह जहां जहां चला जाते आश्रमों के काम में विघ्न डालने वाले बन के जीव जंतु तथा दुष्ट दुराचारीओं मानव को अपने बालपन में ही खदेड़ देते थे
अपने इस पराक्रम से वह गदगद हो जाते थे कथा अपने अनेकों साथियों के साथ आश्रम में नाचने लगते थे और वहीं पर खेलते रहते थे उनको कोई रोकता तो उसी को तंग कर देते थे बालपन में ही थे उनका नाटक से जब ऋषियों को असुविधा होने लगी
उनको पूजा पाठ में वीगन महसूस होने लगा उसके बाद उन्होंने उनके अभाव को बदलने के लिए सर आप जैसे आशीर्वाद दिया कि तुम अपने बालपन को बोलकर जब कोई तुम्हें जरूरत पड़ने पर तुम्हारे बल को याद दिला देगा उसके बाद फिर से तुम्हारा अपार बलो अद्भुत बिद्या की जागृति हो जाएगी
इस घटना के बाद वह एक नॉर्मल बालक के जैसे हो गए और शांत स्वभाव हो गया केसरी नंदन का यह बेटा जो आगे चलकर हनुमान जी के नाम से प्रसिद्ध हुए सीता जी की तलाश में उस समय समुद्र पार करने की किसी हिम्मत नहीं थी श्रीहनुमान जी चुपचाप बिल्कुल शांत होकर बैठे थे उस समय जामवंत जी ने हनुमान को उनकी बल के बारे में याद दिलाया तब जाके उन्होंने एक छलान में समुद्र पार कर सीता मैया का पता लगाया और लंका भी जला दिया
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