एक औरत के घर दाने दाने खाने के पड़े थे लाले कुछ ही दिनों में हुई मालामाल | How did the days of poverty go away

गरीबी के दिन कैसे हुए दूर,औरत के कैसे हुए बुरे दिन दूर


 यह कहानी उन दिनों की है जब  एक गरीब परिवार के घर चलना ही मुश्किल हो गया था तो घर खाने तक का  कुछ भी नहीं बचा था वह लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे थे  उन लोगों ने जब  राशन वाले से राशन अपनी दुकान पर गए  उनका उधारी देखकर  दुकान वाला उधार देना भी बंद कर दिया


  खाने के लिए उनके घर में जब कुछ नहीं बचा तो उस औरत को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें 1 दिन  वह आत्महत्या करने ही जा रही थी तभी एक बुजुर्ग ने उसको आकर बचा लेता है कुछ मशवरा  देकर वहां से उसको लिया जाता है


  उस बूढ़े  व्यक्ति के बताए अनुसार  वह अपने नहीं ननिहाल चली जाती है पहुंच कर अपने घर की सारी समस्या को उन लोगों से कहती है यह सब सुनकर उसके भाभियों ने नाराज होकर अपने अपने पति को बुलाकर  इधर उधर ले कर चली जाती है  और उस लाचार को फिर देने से मना  करने को सोचती हैं यहां तक मना भी कर देती हैं


  अब बेचारी लाचार कहां जाए  के पति पहले ही एक्सीडेंट में मर चुके थे उसके पास एक छोटी बेटी थी जिसको लेकर वह अपना जीवन यापन किया करती थी  परंतु उसके भाइयों का दिल पसीज गया वह लोग अपनी बीवी का बात ना मानकर थोड़ा थोड़ा करके उसके लिए 50,000  रुपए इकट्ठा करके चुपके से उसको दे दिए 


उन लोगों ने उसे  राय भी दिया कि  पैसे से तुम एक काम करना और इतना खाने के लिए रखना उन लोगों का राय यह था कि जो लोग रोड पर छोटे छोटे दुकानदार  ठेला रेडी  रखने वाले लोग होते हैं उनको तुम शुद पर  पैसा देना  और जो उसका ब्याज आए, उसी से अपना खर्चा चलाना यह बात उसको भी बहुत पसंद आई कि हमारा खर्चा भी चल जाए और दूसरों का काम भी हो जाएगा


  वह पैसा लेकर अपने घर पहुंच जाती है  और छोटे-मोटे दुकानदार ठेला रेडी  वाले व्यक्तियों से संपर्क कर कर उन्हें अपने  स्कीम बताकर राजी कर  लेती थी  और उनको यह बेसिस पर  पैसे  दे देती थी  जो हमारा रोज का ब्याज बनता है उसको तुम रोज का रोज पहुंचा देना  बाकी  मोर को तुम से तुम  अपने पास  रखना धीरे धीरे 3 लोगों को  उसने पैसा दे दिया


कुछ ही दिन बीते  इस बात को लेकर दुकानदारों को  बड़ा फायदा था कि उसने थोड़ा कम सूद लगाकर  पैसे दिया करती थी  इसलिए दुकानदार 2000 से 3000 ले जाया करते थे और उसका सूद उसको दे दिया करते थे  ऐसे ही करते-करते उसको बहुत दिन बीत गए आज उसके  पास बहुत सारे  रुपए हो चुके हैं 


अब उसको किसी की  सहारा की जरूरत नहीं है अब  वह बड़े से बड़े दुकानदारों को  साहूकारों को पैसा दिया करती है  आज  वह लाखों की मालकिन बन चुकी  है  बड़े से बड़े लोग  उसके यहां जरूरत पड़ने पर पैसे की लेनदेन करने आते हैं


अब वह अपने भाइयों का पैसा भी वापिस कर दिया है जो उनकी भाभियों उस पैसे को बहुत हंस कर पकड़ लिया  और  यह भी कहने लगी  कोई बात नहीं दीदी हम मांग थोड़ी ना रहे हैं 


अभी कुछ दिन ही बीते हैं उसने अपनी बिटिया का शादी भी बहुत धूमधाम से किया शादी में आए हुए लोग उसका रहिशो जैसे ठाट बाट रहे थे  उसने अपनी बिटिया को बहुत सारे सामान और जेवर रूपए पैसे देकर विदा किया सभी लोग बहुत खुश थे


तो दोस्तों  आप लोग समझ ही गए होंगे कि बुरे समय में जो अपने होते हैं वह भी सहारा देने से  कितराने नहीं भूलते और जब आपके पास काफी पैसे हो जाते हैं तब  गैर भी अपने होने लगते हैं


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