खीमज माता-भीनमाल की क्षेमंकरी माई - मंदिर व कथा

 क्षेमकारी-खिमाज माता मंदिर भीनमाल।  राजस्थान के जालोर जिले में भीनमाल नगर के पास क्षेमंकरी पहाड़ी पर क्षेमकारी माता का मंदिर है।  इस क्षेमांकर वलय को अपभ्रंश में खिमाज माता कहा गया है।  दुर्गा सप्तशती के एक अंश के अनुसार, "पंतनाम सुपथारू रक्षामार्ग श्रमकारी" का अर्थ है देवी क्षेमकारी, जो सड़कों की रक्षा करती हैं और मार्ग को सुगम बनाती हैं, देवी दुर्गा का अवतार हैं।


  भीनमाल नगर में श्रीमल समाज की उत्पत्ति हुई।  प्रारंभ में क्षेमकारी पहाड़ी पर महालक्ष्मी जी का मंदिर था।  महालक्ष्मी माता श्रीमलासी की कुलदेवी हैं।  श्रीमाला के सामूहिक पर्व पर महालक्ष्मी की पूजा के लिए एक विशाल अही दीपक जलाया जाता है।

सोनी जी के नसियां दिगंबर अजमेर जैन मंदिर दर्शन

  वही महालक्ष्मी जो ब्राह्मणों की कुलदेवी थीं, भीनमाली के प्रतिहार शासकों की कुलदेवी बन गईं।  ऐसा माना जाता है कि कश्मीर के प्रतिहार शासक जग्ग कुष्ठ रोग से पीड़ित थे।  तीर्थ यात्रा करते हुए उन्हें श्रीमल पाटा लाया गया।  जब वह नागा बाबा के बगीचे में आराम कर रहे थे, जो श्रीमल पाटन के दक्षिण में था, एक कुत्ता, नागा बाबा के बगीचे में नदी की मिट्टी में लोट रहा था, 

राजा के पास गया और कूद गया।  इससे गीली मिट्टी के कुछ कण राजा के पैरों पर गिरे और उन्होंने देखा कि जहां कहीं भी मिट्टी गिरती है, वह स्थान कोढ़ से मुक्त हो जाता है।  उस समय राजा को उस कुएँ की मिट्टी में स्नान कराया गया, तब राजा को कोढ़ से मुक्ति मिली और उसका शरीर बलवान हो गया।  उस समय प्रतिहार के शासक जग को भीनमाल के शासक के रूप में स्वीकार किया गया था।  तभी से क्षेमणकर की माता प्रतिहारों की कुलदेवी बन गईं।


राजा जग ने तालाब की मरम्मत की, एक विशाल और मजबूत नगर की दीवार बनवाई।  बारहवीं शताब्दी में देवड़ा चौहानों ने प्रतिहारों को पराजित कर भगा दिया, जिसके बाद भीनमाल में केवल चौहान शासक ही रह गए।

Khimaj Mata Temple
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  क्षेमंकरी देवी को स्थानीय भाषाओं में पुकारा जाता है और क्षेमाज, खिमाज, खीनवाज आदि नामों से भी जाना जाता है।  राजस्थान के भीनमाल से लगभग तीन किलोमीटर दूर भीनमाल खारा मार्ग पर स्थित 150 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर इस देवी का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर बना हुआ है।

  कहा जाता है कि एक समय उस क्षेत्र में उत्तमौजा नाम का एक राक्षस रहता था।  जिसने रात में काफी आतंक मचा रखा था।  उसकी इस शरारत से क्षेत्र के लोग दहशत में हैं।  उससे छुटकारा पाने के लिए, क्षेत्र के निवासी ब्राह्मणों के साथ मदद के लिए ऋषि गौतमी के साधु के पास पहुँचे और ऋषि गौतमी से उन्हें उस राक्षस के आतंक से बचाने की याचना की।  उनके अनुरोध पर, ऋषि ने सावित्री के मंत्र के साथ एक आग जलाई, जिससे देवी क्षेमंकरी प्रकट हुईं।  

ऋषि गौतम की प्रार्थना पर, देवी ने पहाड़ को उखाड़ दिया और उस क्षेत्र के लोगों को उस राक्षस के आतंक से मुक्त करने के लिए राक्षस उत्तमौजा के ऊपर रख दिया।  कहा जाता है कि दैत्य को यह सौभाग्य प्राप्त था कि वह किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा।  इसलिए देवी ने उसे एक पहाड़ के नीचे दबा दिया।  हालाँकि, क्षेत्र के निवासी इससे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें डर था कि राक्षस पहाड़ के नीचे से निकलेगा, इसलिए क्षेत्र के निवासियों ने देवी से प्रार्थना की कि वे उस पहाड़ पर बैठ जाएँ जहाँ अब देवी का मंदिर है बनाना।  और दुष्टात्मा दबा हुआ उस पहाड़ी के नीचे उतर गया।

देवी की प्राचीन मूर्ति के स्थान पर स्थापित वर्तमान मूर्ति 1935 में स्थापित की गई थी, जिसके चार पंख हैं।  इस गोद में अमर ज्योति, चक्र, त्रिशूल और खंड रखा जाता है।  मंदिर में ड्रम के साथ एक भारी घंटी रखी जाती है।  मध्ययुगीन स्थापत्य कला से सजे मंदिर का प्रवेश द्वार शानदार और सुंदर दिखता है।  मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति के दाहिनी ओर काल भैरव और गणेश की मूर्तियां हैं और बाईं ओर गोरा भैरू और अंबाजी की मूर्तियां हैं।  सूर्य देव आसन के मध्य में विराजमान हैं।  मंदिर के सामने और पीछे एक मनोरंजन विद्यालय है।

  नागौर जिले के डीडवाना से 33 किमी.  की दूरी पर कटोठी गांव में एक खिमज माता का मंदिर भी है और बसंतगढ़ में एक और मंदिर भी स्थित है जिसे खमेल माता के नाम से जाना जाता है

खिमज माता के बारे में और भी जानकारी 

खिमज माता किसकी कुलदेवी है? (Whose Kuldevi is Mother Khimj)

खिमज माता, जो भारतीय हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध देवी मानी जाती है, कुषवाह वंश की कुलदेवी हैं। कुषवाह वंश के लोग खिमज माता को अपनी ग्रामदेवी या कुलदेवी मानते हैं और उन्हें अपने जीवन में महत्वपूर्ण मान्यताएं देते हैं। वे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, गुजरात और महाराष्ट्र आदि राज्यों में बसे हुए हैं और खिमज माता की पूजा उनके उत्सवों और परम्पराओं का एक महत्वपूर्ण अंग है।

खीमज माता कौन है? (Who is Khimj Mata)

राजस्थान में खीमज माता को खीमजी माता के नाम से भी जाना जाता है। खीमजी माता राजस्थान की प्रसिद्ध देवी माता हैं और उन्हें राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में पूजा जाती है। खीमजी माता को मां खीमजी देवी के रूप में भी जाना जाता है और उनकी पूजा का महत्वपूर्ण स्थान राजस्थानी जनता के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में है। खीमजी माता के मंदिर राजस्थान के शहरों और गांवों में पाए जाते हैं और उनकी पूजा विशेष आंगनबाड़ी उत्सवों में की जाती है।

खीमजी माता को राजस्थानी जनता में विशेष आदर और प्रेम के साथ पूजा जाता है और उन्हें धन, सुख, समृद्धि और प्रगति की देवी माना जाता है। खीमजी माता का धार्मिक महत्व राजस्थान की स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं और लोक देवताओं के साथ जुड़ा हुआ है।

जालौर में कौन सी माता का मंदिर है? (Which mother's temple is there in Jalore)

जालौर शहर भारत के राजस्थान राज्य में स्थित है। जालौर में कई माता के मंदिर हैं, लेकिन सबसे प्रमुख मंदिर माता जवालाजी का है। यह मंदिर जालौर के किले के पास स्थित है और जालौर का प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल है। माता जवालाजी को समर्पित यह मंदिर भगवानी जवालाजी की महाशक्तियों का प्रतीक है और इसे श्रद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय माना जाता है।

भीनमाल क्यों प्रसिद्ध है? (Why is Bhinmal famous)

भीनमाल भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां कुछ मुख्य कारण नीचे दिए गए हैं:


ऐतिहासिक महत्व: भीनमाल एक प्राचीन नगर है जिसका इतिहास 6वीं से 7वीं शताब्दी तक जाता है। यह स्थान गुप्त युग में राजस्थान की राजधानी रहा है और विभिन्न राजपूत राजवंशों का गढ़ था।


माता जवालाजी मंदिर: भीनमाल में माता जवालाजी का मंदिर है, जो भारत में अत्यंत प्रसिद्ध है। यह मंदिर माता जवालाजी के मात्र तीन मंदिरों में से एक है, दूसरे दो मंदिर हिमाचल प्रदेश में स्थित हैं। माता जवालाजी को यहां मास्टर देवी के रूप में पूजा जाता है और इसे लाखों श्रद्धालु आने के लिए जानते हैं।


प्राकृतिक सौंदर्य: भीनमाल एक प्राकृतिक आश्रय है और पहाड़ी इलाकों के बीच विस्तृत और प्रशांत वातावरण प्रदान करता है। 

सोलंकी गोत्र की कुलदेवी कौन सी है? (Which is the Kuldevi of Solanki gotra)

सोलंकी गोत्र की कुलदेवी ब्राह्मी माता (Brahmi Mata) मानी जाती है। वह भारतीय हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण देवी मानी जाती है और इस गोत्र के लोग उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। ब्राह्मी माता को ज्ञान, शक्ति, समृद्धि और सुख की देवी माना जाता है। यह विशेष रूप से गुजरात राज्य में सोलंकी गोत्र के लोगों द्वारा पूजी जाती है।

खीमज माता का मंदिर कहां है (khimaj maata ka mandir kahaan hai)

खीमजी माता का मंदिर राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है। यहां कुछ प्रमुख खीमजी माता के मंदिरों का उल्लेख किया जा सकता है:


खीमजी माता मंदिर, जैसलमेर: यह मंदिर राजस्थान के जैसलमेर शहर में स्थित है। यह मंदिर खीमजी माता के भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है और विशेष अवसरों पर यहां धार्मिक आयोजन होते हैं।


खीमजी माता मंदिर, चित्तौड़गढ़: चित्तौड़गढ़ जिले के चित्तौड़गढ़ शहर में भी खीमजी माता का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यहां प्रतिवर्ष खीमजी माता के जन्म दिवस के अवसर पर धार्मिक उत्सव मनाया जाता है।


खीमजी माता मंदिर, बीकानेर: बीकानेर शहर में भी एक खीमजी माता का मंदिर है जो आसपास के क्षेत्रों के लोगों के बीच प्रसिद्ध है। यहां खीमजी माता के जन्म दिवस पर विशेष पूजा और भक्ति कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


यह तीनों स्थान प्रमुख खीमजी माता के मंदिरों के उदाहरण हैं

खिमज माता का इतिहास, खींवज माता(History of Khimj Mata)

यदि आपको खिमज माता के बारे में अधिक जानकारी चाहिए, तो मैं आपको सुझाव दूंगा कि आप स्थानीय राजस्थानी इतिहास और साहित्य से संपर्क करें या स्थानीय आदिवासी समुदायों के विशेषज्ञों से संपर्क करें। वे आपको खिमज माता के बारे में अधिक जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

खीमज माता की आरती (Aarti of Khimj Mata)

खीमज माता की आरती निम्नलिखित रूप में हो सकती है:


आरती खीमज माता की करती जोगनी जाग दुःख दरिद्रता मिटावे देवी शरण लाग॥


जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥


आरती उठे खीमज माता की प्रेम भक्ति सहित जो निश्चय से चरणों में धरे उनका हर कष्ट मिटाता॥


जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥


दीपक जले वीराजे खीमजी का दिल में सुख समाता भक्ति भाव से चढ़ती जाये देवी को विश्राम दिलाता॥


जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥


सोने चांदी की मूरत खीमजी की आरती उठाई जाए भक्ति जनों की मनोकामना पूरी कर दिखलाए॥


जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥


आरती करते जोगनी खीमजी की जग में खुशहाली आए अनन्य भक्ति और निरंतर पूजा जनों को सुख दिलाए॥


जय खीमज माता, जय खीमज माता ||

 नोट:- यदि आप क्षेमणकर/खिमाज को अपना कुलदेव मानकर पूजते हैं तो अपना समाज व गोत्र कमेंट बॉक्स में लिखें।


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