Asunya Shayan Vrat: पति रखते है पत्नी की लंबी उम्र के लिए अशून्य शयन व्रत जानिए: पूजन विधि, मंत्र, कहानी और महत्व

दोस्तों आज हम इस लेख  के जरिए जानेंगे कि ( अशून्य शयन व्रत 2022 Mein Kab Hai ) इसके क्या-क्या मायने हैं  क्यों मनाया जाता है अशून्य शयन व्रत कब है नीचे लिखे गए इसमें "Asunya shayan vrat kya Hota hain?, इसके बारे में सब कुछ बताया गया है आइए जानते हैं

अशून्य शयन व्रत आज से प्रारंभ

पत्नी की लंबी आयु के नाते पति रखते हैं "अशून्य शयन व्रत"

आज हम एक ऐसे व्रत के बारे में बात करने वाले  हैं, जो केवल पुरुष अपनी पत्नी की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया करते हैं। जब करवा चौथ के व्रत की बात आ जाती है, तो आधुनिकता की होड़ में बहुत लोग कहा करते हैं- केवल नारीया ही क्यों ? शायद उन सभी लोगो को ‘अशून्य शयन व्रत’ के बारे में जानकारी नहीं होगी ! यह व्रत पूजा पांच महीने- सावन, भादों, आश्विन, कार्तिक और अगहन में की जाती है।

इस व्रत में लक्ष्मी और श्री हरि, यानी विष्णु जी का पूजन करने का विधान होता है। दरअसल शास्त्रों की माने चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु का शयनकाल होता है और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव भी मनाया जाता है। बताते हैं जो भी इस व्रत को किया करता है, उसके दाम्पत्य जीवन में कभी भी दूरी नहीं आती। साथ ही घर-परिवार में सुख-शांति तथा सौहार्द्र बनी हुई रहती है। अतः गृहस्थ पति को यह व्रत अवश्य करने की जरूरत होती है। 

‘अशून्य शयन व्रत’ क्या है :

चातुर्मास के चार महीनों के दौरान हर एक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को यह व्रत श्रावण मास से शुरू करके भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह  के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को भी किया जा रहा है। इस व्रत का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया था ।

अशून्य शयन व्रत 2022

अशून्य शयन द्वितीया का अर्थ होता है – बिस्तर में अकेले न सोना पड़े। जिस तरह, स्त्रियां अपने जीवन साथी की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत किया करती हैं, ठीक उसी तरह पुरूष अपने जीवनसाथी की लंबी जीवन के लिये यह व्रत किया करते हैं क्योंकि, जीवन में जितनी अवसक्ता  एक स्त्री को पुरुष की हुआ करती है, उतनी ही जरूरत एक पुरुष को भी स्त्री की हुवा करती है। अशून्य शयन द्वितीया का यह व्रत पति-पत्नी के रिश्तों को बेहतर बनाने के लिये किया जाता है।

अशून्य शयन व्रत 2022

इस व्रत में लक्ष्मी तथा श्री हरि, यानी विष्णु जी का पूजन करने का विधान होता है। बताते हैं जो भी इस व्रत को किया करता है, उसके दाम्पत्य जीवन में कभी दूरी नहीं आया करती और घर-परिवार में सुख-शांति एवं सौहार्द्र हमेशा बना रहता है। वैसे तो पुरुषों कि लिए ही बताया गया हैं, लेकिन दोनों पति-पत्नी साथ में व्रत करें, तो और भी बेहतर रहता हैं। इसमें प्रात:काल उठकर सभी नित्य कर्म कर लें, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर ले, पूजा गृह को साफ सुथरा कर पवित्र कर लें, लक्ष्मी सहित विष्णु भगवान की शय्या का पूजन करें। भगवान से इस तरह प्रार्थना करने की जरूरत होती है ।

अशून्य शयन व्रत मंत्र :

लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथाते शयनं सदा।

शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।

अर्थात्, हे वरद, जैसे आपकी शेषशय्या लक्ष्मी जी से कभी सूनी नहीं हुआ करती, ठीक वैसे ही मेरी शय्या अपनी पत्नी से सूनी न होने पाये, यानी मैं उससे कभी अलग ना सके !

इस तिथि को शाम के समय चन्द्रोदय हो जाने पर फल, अच्छत  और  दही  से चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करना जरूरी होता है। फिर अगले दिन, यानी तृतीया को, किसी ब्राह्मण को भोजन कराना होता है और उनका आशीर्वाद ले करके उन्हें कोई मीठा फल देने की जरूरत होती है।

अशून्य शयन व्रत की पूजा विधि- 

व्रत के दिन स्नान इत्यादि करके साफ कपड़ा पहन लें

जिसके बाद पूजा स्थल पर जाकर भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी को ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लेना होता है ।

उसके बाद शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने की जरूरत होती है। बाद में आरती करते हुए पूजा का समाप्ती करना चाहिए ।

शाम को चंद्रोदय के वक्त चंद्रमा को दही, फल एवं  अक्षत् से अर्घ्य दें।

उसके पश्चात ही व्रत का पारण करना सुरु करे । 

उसके अगले दिन जरूरत मंद ब्राह्मणो को भोजन कराना ना भूले, दक्षिणा दें तथा कोई भी मीठा फल उन्हें दान कर दें।

ऐसा करने से आपकी दांपत्य जीवन में प्रेम भावना एवं माधुर्य बना रहेगा।

अशून्य शयन व्रत की कहानी- 

एक समय राजा रुक्मांगद ने जन रक्षार्थ वन में भ्रमण करते- हुए महर्षि वामदेवजी के आश्रम पर पहुंच गए उन्होंने महर्षि के चरणों में साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया। वामदेव जी ने राजा का विधिवत सत्कार करके कुशलक्षेम पूछी। तब राजा रुक्मांगद ने बोला- ‘भगवन ! मेरे मन में बहुत दिनों से एक प्रश्न है। मुझे किस सत्कर्म के फल से त्रिभुवन सुंदर पत्नी प्राप्त हुई

 है, जो सदा हमें अपनी दृष्टि से कामदेव से भी अधिक सुंदर देखती है। परम सुंदरी देवी संध्यावली जिस-जिस जगह पैर रखती हैं, वहां-वहां पृथ्वी छिपी हुई निधि प्रकाशित कर दिया करती है। वह हमेशा शरद्काल के चंद्रमा की प्रभा के समान सुशोभित रहती है।

विप्रवर! बात यह भी है की बिना आग के भी वह षड्रस भोजन तैयार कर देती है और यदि थोड़ी भी  भोजन बना देती है, तो उसमें करोड़ों ब्यक्ति  भोजन कर लिया करते हैं। वह पतिव्रता, दानशीला और सभी प्राणियों को सुख देने वाली है। उसके गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न हुआ है, वह हमेशा मेरी आज्ञा के पालन में तत्पर रहा करता है। द्विजश्रेष्ठ ! मुझे ऐसा लगता है की, इस भूतल पर केवल मैं ही पुत्रवान हूं, जिनका पुत्र पिता का बहुल भक्त है और गुणों के संग्रह में पिता से भी बढ़ चढ़कर है। किस तरह मैं इन सुखों को भोगता रहूँ अथात मेरी पत्नी और परिवार मेरे से कभी अलग न हो।

तब ऋषि वामदेव ने बोला तुम विष्णु और लक्ष्मी का ध्यान करते रहो, इस व्रत को श्रावण मास से शुरू करके भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को भी यह व्रत करना होता है । जन्मों-जन्मों तक तुम्हें अपनी पत्नी का साथ मिलता ही रहेगा, सभी भोग-ऐश्वर्य पर्याप्त मात्रा में राजन आपको मिलते रहेंगे !

अशून्य व्रत में किये जाने वाले कुछ ख़ास उपाय :

एक सिंदूर की छोटी डिब्बी में पांच गोमती चक्र रख दे उन्हें घर के मन्दिर में या फिर पत्नी के श्रृंगार दानी के सामान के साथ रख दें, पति-पत्नी के बीच में प्यार बढ़ाने के लिये यह कारगर उपाय होता है। इसके साथ ही एक भोजपत्र या फिर सादे सफेद कोरे कागज पर लाल मारकर से “हं हनुमंते नमरु” लिख के मंत्र का जाप करते हुए अपने घर के किसी भी कोने में रख दें।

अगर आपका अपनी पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव चल हो चका है, तो आज के रात को सोते वक्त  अपनी पत्नी के तकिए के नीचे कपूर रख दें और फिर अगले दिन उस कपूर को जला दें। अगर यही स्थिति पति के साथ हो तो पत्नी अपने पति के तकिये के नीचे सिंदूर की पुड़िया रख दिया करे और फिर नहा धोके सुबह अपने पति से बोले कि वह आपकी मांग में उस सिन्दूर को भर दे । इससे आपके रिश्ते में बहुत मजबूती आ जायेगी।

दोनों पति पत्नी के बीच मन-मुटाव को दूर करके प्यार को बढ़ाने के लिये रात को सोते वक्त एक पात्र में पानी भर के अपने बिस्तर के नीचे रख दे | उसके दूसरे दिन सुबह उस पानी को घर के बाहर छिड़क दिया करे । इसके साथ ही हर रोज दो तुलसी की पत्तीओ को पूजा के वक्त मन्दिर में रखें और गायत्री मंत्र का 11 बार जाप करे एक पत्ता खुद खाएं और एक अपनी पत्नी को खिलाये, तो यह आपके रिश्ते के लिये और भी कारगर सिद्ध साबित होगा।

अपनी पत्नी को अपनी और आकर्षित करने के लिये शाबर मन्त्र का जप करे  ‘ऊँ क्षों ह्रीं ह्रीं आं ह्रां स्वाहा’ को आज से ही शुरू करके सात दिन तक लगातार लाल वस्त्र पहन कर और कुमकुम की माला पहन कर एक सौ एक बार जप करे । इस मंत्र के जाप से आपकी पत्नी का प्यार आपके लिये पहले से कहीं ज्यादा बढ़ जायेगा। अगर आप इस मंत्र का जाप करने में आपको कठिनाई महसूस हो रही हैं, तो आप केवल ‘ओम् ह्रीं नमः’ मंत्र का जाप भी कर ले । आज के दिन भगवान लक्ष्मीनारायण के चित्र या फिर  मूर्ति पर अपने हाथों से पीपल के पत्तों की माला धागे से बनाकर अर्पित करें।

माता लक्ष्मी को आज के दिन सौंदर्य प्रसाधन, यानी की श्रृंगार का सामान चढ़ाने की जरूरत होती है । आज के दिन सिक्के पर, चाहें एक रूपये का सिक्का हो, दो का हो या फिर पांच का, उस पर एक अच्छी खुशबू वाला इत्र लगाकर विष्णु एवं लक्ष्मी जी के मंदिर में चढ़ाएं, आपकी मनोकामना बहुत जल्द ही पूरी हो जाएगी। आज पति-पत्नी मिलकर दोनों पक्षियों को बाजरे का दाना अवश्य खिलाएं।

रात्रि के पहले ही पहर में मौन व्रत रहने से नौकरी में पदोन्नति मिल जाती है। मौन व्रत चाहें आप किसी भी वक्त रहें लेकिन 20 मिनट तक अवश्य रहें। अगर आप लगातार 20 मिनट तक न रह सके तो आप दिन में 5-5 मिनट करके चार बार या फिर 10-10 मिनट करके 2 बार मौन व्रत कर  सकते हैं। जिससे आपके वक्त और मकसद दोनों की पूर्ति हो जायेगी ।

अशून्य शयन व्रत का महत्व – 

इस व्रत को रखने से पत्नी की उम्र लंबी होती है। इसके साथ ही दांपत्य जीवन की समस्याएं दूर भाग जाती हैं। वैवाहिक जीवन से नकारात्मकता चीजे दूर हो जाती है। पति और पत्नी के बीच आपसी प्रेम बढ़ने लगता है। इस व्रत को करने से स्त्री वैधव्य तथा पुरुष विधुर होने के पाप से छुटकारा मिल जाता है। यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होती है और  मोक्ष प्रदाता भी माना जाता है। इस व्रत से गृहस्थ जीवन में बड़ी शांति बनी रहती है, और जीवन खुशहाली से भर जाती है।

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