त्रिनेत्र गणेश मंदिर की कथा कहानी | what is the name of ganesh ji's sister

 राजस्थान के रणथंभौर किले में त्रिनेत्र गणेश मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां हर साल लाखों पत्र और निमंत्रण भगवान गणेश को भेजे जाते हैं।  इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान हैं, जिनमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।  

भगवान गणेश के आमंत्रण पर रणथंभौर गणेश जी का संबोधन भी लिखा हुआ है।  आस्था।  त्रिनेत्र गणपति के पास रोज आते हैं हजारों पत्र, प्रार्थना करने से पूरी होती है मनोकामना  मान्यता है कि भगवान त्रिनेत्र गणेश का आवाहन करने से हर कार्य बिना रुकावट के पूरा हो जाता है।  यह पूरी दुनिया में एकमात्र गणेश मंदिर है जिसमें तीन आंखों वाले श्री गणेश की मूर्ति है और जहां गणपति बप्पा अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं: दो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि और दो बेटे शुभ और लाभ ।

ऐसे बने त्रिनेत्र गणेश
  इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान हैं, जिनमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।  विनायक की तीसरी आंख का वर्णन गजवंदनम चित्यम पुस्तक में किया गया है।  ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में गणपति को अपना तीसरा नेत्र दिया था और इस प्रकार महादेव की सारी शक्तियाँ गजानन में निहित हो गईं और वे त्रिनेत्र बन गए।

  राजस्थान का रणकपुर जैन मंदिर अपनी भव्यता और शिल्पकार के बारें में फेमस हैं.  

देश में चार स्वयंभू गणेश मंदिर हैं, जिनमें रणथंभौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम हैं।  रणथंभौर त्रिनेत्र गणेश मंदिर प्रसिद्ध रणथंभौर टाइगर रिजर्व में स्थित है, इसे रणभंवर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।  यह मंदिर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में 1579 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।  मंदिर तक पहुंचने के लिए कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

श्री गणेश मंदिर टेकड़ी में पूजा-अर्चना की

  घर में कोई भी शुभ कार्य हो या विवाह, सर्वप्रथम भक्तों द्वारा प्रथम पूज्य गणेश जी महाराज को निमंत्रण पत्र भेजा जाता है।  इतना ही नहीं परेशानी होने पर भक्त यहां पत्र भेजकर उससे निजात पाने की प्रार्थना करते हैं।  हर दिन डाक से हजारों निमंत्रण पत्र और पत्र यहां पहुंचते हैं, जिसे पुजारी बड़ी श्रद्धा से गणेश प्रतिमा के सामने पढ़ते हैं।  मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है।  भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को यहां मेले का आयोजन किया जाता है, जहां हजारों श्रद्धालु अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।  

Trinetra Ganesh Temple photo
pic credit: divyadarshan.live

इस दौरान गजाननजी महाराज के जयकारे से पूरा वातावरण गुंजायमान हो जाता है।  भगवान त्रिनेत्र की यात्रा सात किलोमीटर लंबी है, जो भक्तों द्वारा उल्लासपूर्ण उल्लास में गायन और नृत्य के साथ समाप्त होती है।  यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है, बारिश के मौसम में पहाड़ियों में कई जगहों से झरने बहने लगते हैं, जिससे यहां का वातावरण और भी सुहावना हो जाता है।

ये किंवदंतियाँ दिलचस्प हैं

  रणथंभौर के लोगों के बीच त्रिनेत्र गणेश के बारे में कई किंवदंतियां हैं।  स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि जब भगवान शिव ने बालक के रूप में गणेश का सिर काटा था, तब उनका सिर यहां गिरा था, तभी से यहां भगवान गणेश के बाल रूप की पूजा की जाती है।  एक अन्य मान्यता के अनुसार द्वापर युग में लियाधारी श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मणी से हुआ था, वे गणेश को विवाह में आमंत्रित करना भूल गए थे। 

 गणेश जी का वाहन, कृष्ण के रथ के आगे और पीछे सब जगह चूहों ने खोद डाला है।  श्रीकृष्ण को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने गणेश जी को मना लिया।  रणथंभौर ही वह स्थान था जहां कृष्ण जी गणेश जी को मनाते थे।  इसलिए रणथंभौर के गणेश को भारत का पहला गणेश कहा जाता है।  एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान राम ने अपनी सेना के साथ लंका जाने से पहले गणेश के इस रूप की प्राण प्रतिष्ठा की थी।  यह भी माना जाता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे।

गणेश भगवान् के बारे में और अधिक जानिए 

गणेश मंदिर सवाई माधोपुर राजस्थान address (ganesh mandir savaee maadhopur raajasthaan addraiss)

सवाई माधोपुर राजस्थान में भी कुछ गणेश मंदिर हैं। सवाई माधोपुर जिले के करौली शहर में स्थित श्री माधवेंद्र जी मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है। यह मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो श्रद्धालुओं द्वारा बहुत चाहा जाता है।

इसके अलावा, सवाई माधोपुर में अन्य गणेश मंदिरों में से कुछ हैं:

श्री बद्रीनाथ जी मंदिर, सवाई माधोपुर: यह मंदिर गणेश जी के साथ-साथ बद्रीनाथ जी को भी समर्पित है। यह मंदिर सवाई माधोपुर में स्थित है और श्रद्धालुओं द्वारा बहुत चाहा जाता है।

श्री गणेश जी मंदिर, बघ्रौंदा: यह मंदिर सवाई माधोपुर जिले के बघ्रौंदा में स्थित है और इसमें भगवान गणेश की मूर्ति है। यह भी स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा बहुत चाहा जाता है।

गणेश जी का मंदिर, राजस्थान (ganesh jee ka mandir, raajasthaan)

राजस्थान में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं। कुछ प्रमुख मंदिरों में से कुछ निम्नलिखित हैं:

सदावलपुट गणेश मंदिर, पली: यह मंदिर राजस्थान के पली जिले में स्थित है और इसे सदावलपुट गणेश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति स्वयंभू होती है जो प्रतिदिन अपने आप उत्पन्न होती है।

श्री मोती दूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर: यह मंदिर जयपुर के प्रसिद्ध पहाड़ मोती डूंगरी पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है जो बड़ी ही सुंदर है।

श्री गणेश जी मंदिर, जयपुर: यह मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित है। इस मंदिर में भगवान गणेश की विशाल मूर्ति है जो काफी प्रसिद्ध है।

श्री गणपति तेम्पल, उदयपुर: यह मंदिर उदयपुर के गांधी नगर में स्थित है और इसमें भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है। यह मंदिर राजस्थान में गणेश जी के मंदिरों में से एक है.

त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर कहां है (trinetr ganesh jee ka mandir kahaan hai)


त्रिनेत्र गणेश मंदिर (Trinetra Ganesh Mandir)त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर भारत के राजस्थान राज्य में स्थित है। यह मंदिर जयपुर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है और सांगानेर नगर में है।

स्वयंभू गणेश मंदिर (svayambhoo ganesh mandir)

राजस्थान में स्थित स्वयंभू गणेश मंदिर का नाम सदावलपुट गणेश मंदिर है। यह मंदिर राजस्थान के पली जिले में स्थित है और यहां पर भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है। मंदिर का निर्माण राजा महाराजा श्री गंगा सिंह ने 19वीं सदी में कराया था।

सदावलपुट गणेश मंदिर को उत्तर भारत में सबसे अनोखा मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भगवान गणेश की मूर्ति अपने आप उत्पन्न होती है और प्रतिदिन इस मूर्ति के अलग-अलग रूप देखे जा सकते हैं। इसके अलावा, मंदिर की सुंदर वास्तुशिल्प और ऐतिहासिक महत्त्व इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाते हैं।

गणेश जी का सबसे बड़ा मंदिर कहां है (ganesh jee ka sabase bada mandir kahaan hai)

भगवान गणेश के कई बड़े मंदिर विभिन्न भागों में भारत में हैं, लेकिन उनमें से सबसे बड़ा मंदिर जो गणेश जी को समर्पित है वह भारत के मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर शहर में स्थित है। यह मंदिर "श्री सिद्धीविनायक गणपति मंदिर" के नाम से जाना जाता है और इसकी ऊंचाई 25 मीटर है।

इस मंदिर का निर्माण 2003 में पूरा हुआ था और इसमें भगवान गणेश के अलावा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी स्थान दिया गया है। इस मंदिर की विशेषता इसके वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाई गई बड़ी शिल्प कला है जो इसे एक आकर्षण बनाती है।

शादी में गणेश जी को निमंत्रण (shaadee mein ganesh jee ko nimantran)

शादी में गणेश जी को निमंत्रण भेजना एक बहुत ही प्राचीन और परंपरागत रीति है। यह हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। गणेश जी हमेशा नए कार्यों की शुरुआत में पूजे जाते हैं और शादी जैसे एक महत्वपूर्ण अवसर में उन्हें निमंत्रित करना अच्छा माना जाता है।

शादी के लिए गणेश जी को निमंत्रित करने के लिए आप एक छोटा सा मंदिर या पूजा स्थल तैयार कर सकते हैं, जहां आप उनके चित्र या मूर्ति को स्थापित कर सकते हैं। आप उन्हें दिया और पुष्प अर्पित कर सकते हैं और एक साधारण पूजा विधि का पालन कर सकते हैं। इसके अलावा, आप उन्हें शादी की कार्यक्रम से पहले एक शुभ मुहूर्त में पूजा के लिए निमंत्रित कर सकते हैं।

गणेश जी को शादी में निमंत्रित करना शुभ होता है और यह समस्त कार्यक्रम में समृद्धि और सम्पत्ति के लिए आशीर्वाद प्रदान करता है।

गणेश जी के चूहे का नाम क्या है (ganesh jee ke choohe ka naam kya hai)

गणेश जी के चूहे का नाम "मुशक" होता है। मुशक गणेश जी के वाहन होते हैं और वे उन्हें अपनी पूजा और सेवा में सहायक होते हैं। मुशक को भी गणेश जी के अनुयायी माना जाता है और उन्हें उनकी पूजा में शामिल किया जाता है। गणेश जी की विधि के अनुसार, पूजा के दौरान मुशक के लिए भी चीजें रखी जाती हैं जैसे कि नारियल, लड्डू, मिश्री आदि

गणेश जी की बहन का नाम क्या है (ganesh jee kee bahan ka naam kya hai)

गणेश जी की बहन का नाम "अन्नपूर्णा" है। अन्नपूर्णा देवी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं जो अन्न की देवी के रूप में जानी जाती हैं। उन्हें अन्न की देवी कहा जाता है क्योंकि वे भोजन की देवी हैं जो अपनी कृपा से सभी को पूर्णता और संतुलन वाले भोजन का आनंद देती हैं।

अन्नपूर्णा देवी को भी गणेश जी की तरह बहुत ध्यान दिया जाता है और उनके विधि के अनुसार भोजन के लिए उनकी पूजा की जाती है। अन्नपूर्णा देवी की पूजा का महत्व अधिक होता है जब भोजन के समय कुछ लोग अपने भोजन से वंचित होते हैं या कोई भोजन के लिए उनके पास नहीं होता है।

गणपति पूजा की शुरुआत किसने की थी (ganapati pooja kee shuruaat kisane kee thee)

गणपति पूजा की शुरुआत के बारे में कई तरह के अनुसंधान और कथाओं हैं। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य प्रतिमा माना जाता है और उनकी पूजा को सबसे पहले की जाती है। इसलिए, गणेश पूजा को सबसे पहले की जाने वाली पूजा मानी जाती है।

कुछ कथाओं के अनुसार, गणपति पूजा की शुरुआत शंकराचार्य ने की थी। शंकराचार्य ने एक दिन एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए भगवान शिव की आराधना की थी। वे शिवजी के दर्शन करने चले गए थे और उन्होंने देखा कि वहां एक बालक उनका रास्ता रोक रहा है और उनसे बोलता है कि आप अभी वहां जाने के लिए नहीं जा सकते हैं क्योंकि एक बड़ी उत्सव उस तरफ़ हो रहा है और वहां आपकी जरूरत होगी। इस पर शंकराचार्य ने बालक से पूछा कि वहां कौन सा उत्सव है और कौन सा देवता पूजा की जाती है। बालक ने उत्तर दिया कि वहां गणेश जी की पूजा हो रही है जो सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं

गणेश उत्सव के संस्थापक कौन है (ganesh utsav ke sansthaapak kaun hai)

गणेश उत्सव के संस्थापक को स्थापत्याचार्य लोकमान्य टिळक जी माना जाता हैं। उन्होंने 1893 में पुणे के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के दक्षिण द्वार पर पहली बार गणपति मूर्ति स्थापित की थी और इससे गणेश उत्सव की शुरुआत हुई थी।

भारत में प्रथम गणपति कौन है (bhaarat mein pratham ganapati kaun hai)

भारत में प्रथम गणपति के रूप में श्री सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई का नाम आता है। यह मंदिर महाराष्ट्र के मुंबई शहर में स्थित है और भारत के सबसे प्रसिद्ध और पूज्य मंदिरों में से एक है। मान्यता है कि यह मंदिर प्राचीनकाल से ही मौजूद है और मुंबई की विकास यात्रा में इसका बहुत महत्व है।

रणथंभौर गणेश जी कितना किलोमीटर है (ranathambhaur ganesh jee kitana kilomeetar hai)

रणथंभौर गणेशजी राजस्थान, भारत में स्थित हैं। वे उदयपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित हैं।

रणथंभौर में गणेश जी का मेला कब भरता है (ranathambhaur mein ganesh jee ka mela kab bharata hai)

रणथंभौर में गणेश जी का मेला शुक्ल पक्ष के भद्रपद महीने के चतुर्थी तिथि से लेकर शुक्ल पक्ष के अमावस्या तक लगता है। इस मेले को रणथंभौर के गणेश मंदिर में आयोजित किया जाता है और यह त्यौहार स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय होता है।

गणेश जी का सर कटने से पहले क्या नाम था (ganesh jee ka sar katane se pahale kya naam tha)

गणेश जी का सर कटने से पहले उनका नाम "गणपति" था। गणपति शब्द का अर्थ होता है "गणों के प्रमुख" या "गणों का राजा"। इस नाम से पहले गणेश जी के कुछ और नाम भी थे जैसे कि वक्रतुण्ड (वक्रांगुलि), एकदंत (एकप्रदंत), गजानन (हाथिवाला) आदि।

गणेश जी का गांव कौन सा है (ganesh jee ka gaanv kaun sa hai)

गणेश जी कोई गांव नहीं हैं। वे हिंदू धर्म में देवता हैं जिनकी विशेष पूजा की जाती है। गणेश जी के नाम से कुछ स्थानों का नाम हो सकता है, जैसे कि गणेशपुर, गणेशखिंड, गणेशगिरि, गणेशपट्टनम आदि, लेकिन ये सभी गणेश जी के गांव नहीं होते।

गणेश जी ने दूध कब पिया था (ganesh jee ne doodh kab piya tha)

गणेश जी को प्रथम बार दूध की चाशनी बताई जाती है। इस विषय में कुछ प्रमाण नहीं है कि गणेश जी ने अपने जीवनकाल में दूध पिया था। इसे केवल मान्यताओं और कथाओं के रूप में देखा जाता है।

एक कथा के अनुसार, गणेश जी ने एक बार चांदनी चोर को पकड़ा था जो दूध की चाशनी चुरा रहा था। चांदनी चोर ने दूध की चाशनी चुराने से पहले उसे चंद्रमा में डाल दिया था। जब गणेश जी ने दूध की चाशनी को पीने की कोशिश की तो उसे चंद्रमा से आने वाली सुगंध आई थी। इस कथा के अनुसार, गणेश जी ने दूध की चाशनी को कभी पीना नहीं था, बल्कि उन्होंने उसे चंद्रमा के समान सुगंधित महसूस किया था।

यह एक मान्यता है कि गणेश जी को दूध की बजाय लड्डू बहुत पसंद हैं। उनके भक्तों में दूध और लड्डू को उनके भक्ति के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा गणपति कौन सा है (duniya ka sabase bada ganapati kaun sa hai)

दुनिया का सबसे बड़ा गणपति मूर्ति इंडिया में ही स्थित है। यह मूर्ति मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में स्थापित है और उसकी ऊँचाई 12 फीट है। इस मूर्ति का वजन लगभग 15000 किलोग्राम है।

इसके अलावा, भारत में और दुनिया भर में कई जगह ऐसे मंदिर हैं जहां पर बड़े-बड़े गणपति मूर्तियां स्थापित हैं। ये मूर्तियां अपनी ऊँचाई, वजन और आकार में भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। इसलिए, इस सवाल का जवाब अनुसार बदल सकता है, लेकिन सिद्धिविनायक मंदिर में स्थित गणपति मूर्ति को दुनिया का सबसे बड़ा गणपति मूर्ति माना जाता है।

गणेश उत्सव की शुरुआत कब और कैसे हुई (ganesh utsav kee shuruaat kab aur kaise huee)

गणेश उत्सव का प्रारंभ हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है, जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस उत्सव को दक्षिण भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन अब यह पूरे भारत में मनाया जाता है।

इस उत्सव की शुरुआत आमतौर पर महाराष्ट्र में शिवाजी भोसले के समय (17वीं सदी) से हुई थी। गणपति बाप्पा के मंदिर में शोभायात्रा आयोजित की जाती थी, जिसमें गणेश की मूर्ति बाहर निकालकर सभी लोग देखते थे। इसके बाद, शहर के अलग-अलग हिस्सों से मंडप ले जाए जाते थे, जिनमें गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती थी।

आजकल, गणेश उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और यह आमतौर पर दस दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत गणेश चतुर्थी से होती है और उत्सव के दौरान, गणपति की मूर्ति के साथ पूजा, ध्यान, गाने, नृत्य और विभिन्न रंग-बिरंगी शोभायात्राएं आयोजित की जाती हैं.

नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति कहाँ है (nrty karate hue ganesh jee kee moorti kahaan hai)

गणेश जी की मूर्ति बहुत से स्थानों पर होती है। यह नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति कहाँ है, इसका जवाब स्पष्ट नहीं हो सकता क्योंकि ऐसी कई जगहें होती हैं जहाँ लोग नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति रखते हैं।

वैसे भारत में जगह-जगह गणेश जी की मूर्तियां होती हैं जैसे मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर, उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, जयपुर के मोतीडूंगरी गणेश जी मंदिर आदि। इनमें से कुछ मंदिरों में लोग नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति रखते हैं जो वहाँ परंपरागत रूप से की जाती है।

गणेश का असली नाम क्या था (ganesh ka asalee naam kya tha)

हिंदू धर्म में, भगवान गणेश के असली नाम "गणपति" है, जो संस्कृत भाषा में गणों के स्वामी का अर्थ होता है। उन्हें अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि "विनायक" (विशेष रूप से महाराष्ट्र राज्य में), "गजानन" (जो हाथियों जैसी बड़ी खोपड़ी के कारण है), वक्रतुण्ड (जो एक आम विशेषता के अनुसार विकराल खोपड़ी वाला है) आदि।

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