केसरियानाथ जी मन्दिर की कहानी | Story of Kesaryanathji Temple


 पहला जैन तीर्थंकर ऋषभदेव मंदिर, जिसे केसरियाजी या केसरियानाथ के नाम से भी जाना जाता है, उदयपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर धुलेव गांव में स्थित है।  यह प्राचीन तीर्थ अरावली पर्वतमाला की गुफाओं के बीच कोयल नदी के तट पर स्थित है।  ऋषभदेव मंदिर जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ माना जाता है।  यह स्थान उनके नाम से इतना प्रसिद्ध है कि आसपास के क्षेत्र में लोग इस गांव को उनके नाम से जानने के बजाय केवल ऋषभदेव के नाम से ही जानते हैं।

  इस मंदिर की पूजा न केवल जैन बल्कि वैष्णव हिंदू और मीणा और भील जनजाति और अन्य जातियां भी करती हैं।  केसरियाज को तीर्थयात्रियों द्वारा चढ़ाए जाने वाले केसर की प्रचुरता के वजह से ऋषभदेव को तथाकथित बोला जाता या जाना जाता है।  प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ अथवा ऋषभदेव की मूर्ति काले रंग की यहाँ स्थापित है।

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  केसरियाजी यहां की जनजातियों में कालिया बाबा के नाम से जाने जाते हैं।  मंदिर में खुदे शिलालेख कहते हैं कि यह 1676 में विक्रम संवत में बनाया गया था।  तीर्थंकरों की 22 मूर्तियाँ और देवकुलिकों की 54 मूर्तियाँ यहाँ स्थापित हैं, जिनमें से 62 लेखों से पता चलता है कि ये मूर्तियाँ विक्रम संवत 1611-1863 के दौरान बनाई गई थीं। 

केसरिया जी के बारें में विभिन्न जानकारिया  

केसरिया जी का मेला कहाँ पड़ता है (kesariya jee ka mela kahaan padata hai)

राजस्थान केसरिया जी मेला मुख्य रूप से अजमेर शहर में पड़ता है। यह मेला बुधवार को नवरात्रि के दौरान आयोजित होता है और इसे रामनवमी के बाद की नौवें दिन खत्म किया जाता है। मेले में भगवान केसरिया जी की मूर्ति को सजाया जाता है और लोग उसकी पूजा अर्चना करते हैं। इस मेले को राजस्थान का सबसे बड़ा मेला माना जाता है और लाखों लोग इसे देखने और उसमें भाग लेने के लिए आते हैं।

केसरियाजी कौन से जिले में (kesariyaajee kaun se jile mein)

केसरिया जी मंदिर राजस्थान राज्य के तोंक जिले में स्थित है। यह मंदिर भारत में सबसे ऊँचे शिखर वाले जैन मंदिरों में से एक है और जैन धर्म के लोगों के लिए धार्मिक महत्व रखता है।

भारत में सबसे बड़ा मेला कहाँ लगता है?(bhaarat mein sabase bada mela kahaan lagata hai)

भारत में कई प्रकार के मेले और उत्सव होते हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित होते हैं। इनमें से कुछ बड़े मेले निम्नलिखित हैं:

pic credit: rishabhdev_blog

कुंभ मेला: यह प्रतिवर्ष अलग-अलग तीन स्थानों पर आयोजित होता है - प्रयागराज, हरिद्वार और नशिक। यह मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है और लगभग 120 मिलियन लोगों के आगमन की जानकारी है।

पुष्कर मेला: यह मेला राजस्थान के अजमेर शहर में हर साल अक्टूबर या नवंबर महीने में आयोजित होता है। इस मेले में हिंदू और सिख धर्म के लोग उमड़ते हैं।

गंगा सागर मेला: यह मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में हर बरस आयोजित होता है। इस मेले में लगभग 50 लाख लोगों का आगमन होता है।

सोनपुर मेला: यह मेला बिहार के सोनपुर शहर में हर साल नवंबर महीने में आयोजित होता है। इस मेले में विभिन्न प्रकार के वस्तुओं जैसे कि मोटरसाइकिल, लकड़ी के खिलौने, गायों और भेड़ों की बिक्री की जाती हैं 

विश्व प्रसिद्ध मेला कौन सा है? (vishv prasiddh mela kaun sa hai)

विश्व प्रसिद्ध मेला कई हो सकते हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण मेले निम्नलिखित हैं:

कुंभ मेला - यह भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है जो हर तीन साल में चार शही स्नानों के साथ रोटेशनली होता है।

ओक्टोबरफेस्ट - जर्मनी का सबसे बड़ा फेस्टिवल है जो वर्षावन के अंतिम हफ्ते में म्यूनिख में मनाया जाता है।

ला तोमातिना - यह वेनेजुएला का एक महत्वपूर्ण फेस्टिवल है जो हर साल 29 सितंबर को मनाया जाता है।

रिओ कार्निवल - ब्राजील का सबसे बड़ा मेला है जो रिओ डी जेनेरो में हर साल फरवरी महीने में मनाया जाता है।

टोमाटिना - इसपानिया का एक फेस्टिवल है जो टोमाटो के साथ खेल खेलने के लिए जाना जाता है।

ये कुछ उल्लेखनीय विश्व प्रसिद्ध मेले हैं, लेकिन दुनिया में और भी बहुत से मेले होते हैं जो विभिन्न देशों और आदिवासी समुदायों में मनाए जाते हैं।

कौन से मंदिर में सदा केसर आती थी? (kaun se mandir mein sada kesar aatee thee)

श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा में सदा केसर (kesar) आती थी। इस मंदिर को दुनिया भर में भगवान जगन्नाथ के नाम से जाना जाता है और यह हिंदू धर्म के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

सदा केसर जगन्नाथ मंदिर में दो प्रमुख प्रकार से उपयोग किया जाता है - एक तो प्रतिदिन पूजाओं में उपयोग होने वाला, जबकि दूसरा उत्सवों में उपयोग किया जाता है। इसे "नीलाचल केसर" भी कहते हैं जो कि ओडिशा में उत्पादित होता है। सदा केसर देश के विभिन्न हिस्सों से आता है और उसका मूल्य बहुत ही महंगा होता है।

उदयपुर से केसरियाजी कितना किलोमीटर है (udayapur se kesariyaajee kitana kilomeetar hai)

उदयपुर से केसरियाजी का अंतरण लगभग 282 किलोमीटर (175 मील) है।

ऋषभदेव मंदिर उदयपुर (rshabhadev mandir udayapur)

ऋषभदेव मंदिर उदयपुर, राजस्थान, भारत में स्थित है। यह मंदिर उदयपुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर पाली नामक शहर में स्थित है।

ऋषभदेव मंदिर जैन समुदाय के लोगों के धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर श्री ऋषभदेव जी, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं, को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण रतनशहा नामक एक धनी व्यापारी द्वारा 15वीं सदी में किया गया था।

यह मंदिर जैन शैली में निर्मित है और उसकी विस्तृत स्तंभों और मंडपों का अद्भुत निर्माण है। मंदिर के भीतर श्रद्धालुओं को शांति और आध्यात्मिक सुकून का अनुभव होता है। जबकि इसके आस-पास का प्राकृतिक दृश्य भी इसे एक आकर्षक स्थल बनाता है।

ऋषभदेव जी का मेला (rshabhadev jee ka mela)

ऋषभ देव का मेला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में अलीगढ़ जिले के वाराणसी क्षेत्र में लगता है। इस मेले को "ऋषभ देव मेला" या "जरसाठी मेला" नाम से भी जाना जाता है। यह मेला हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तीसरी शुक्रवार से पूर्व के सोमवार तक लगता है। इसे 2023 में 9 मई से 15 मई तक आयोजित किया जाएगा।

ऋषभदेव का जन्म कब हुआ (rshabhadev ka janm kab hua)

ऋषभदेव हिंदू धर्म के अनुसार तीर्थंकरों में पहले तीर्थंकर हैं। उनका जन्म अनुसंधान के अनुसार लगभग 5 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। यह जन्म भारत के उत्तर प्रदेश में पुरूरवासु क्षेत्र में हुआ था। वैदिक ग्रंथों और जैन धर्म के अनुसार, ऋषभदेव जीवन के दौरान धर्म के सिद्धांतों और अहिंसा के प्रचारक बने थे।

केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर rishabhdev,rajasthaan (kesariyaajee rshabhadev mandir rishabhdaiv)

केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर राजस्थान राज्य के पाली जिले में स्थित है। यह मंदिर जैन धर्म के प्रमुख तीर्थकर्ता भगवान ऋषभदेव को समर्पित है। मंदिर का निर्माण पाली के एक स्थानीय जैन व्यापारी ने कराया था और इसका निर्माण लगभग 300 साल पहले हुआ था।

केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर का मुख्य भवन पत्थर से बना हुआ है और इसमें भगवान ऋषभदेव की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के आस-पास विभिन्न जैन देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

इस मंदिर में हर साल महावीर जयंती के अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है। मेले के दौरान लोग मंदिर में भक्ति भाव से भगवान की पूजा अर्चना करते हैं।

केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर राजस्थान के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और यहाँ के निकटस्थ शहर पाली के इतिहास, संस्कृति और धर्म के विषय में जानने लायक कई दर्शनीय स्थल हैं।

ऋषभदेव चोटी की ऊंचाई कितनी है (rshabhadev chotee kee oonchaee kitanee hai)

ऋषभदेव की चोटी की ऊँचाई को लेकर कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, विभिन्न जैन लेखकों द्वारा उनकी चोटी की ऊँचाई को लेकर भिन्न-भिन्न मत रहे हैं। कुछ लोगों के अनुसार ऋषभदेव की चोटी का ऊंचाई लगभग 9 हजार हाथ (लगभग 27,000 मीटर) था। हालांकि, यह एक अति उच्च संख्या होती है और वास्तविकता के आधार पर सत्यापित नहीं है।

ऋषभदेव जयंती कब मनाई जाती है (rshabhadev jayantee kab manaee jaatee hai)

ऋषभदेव की जयंती को जैन समुदाय में "अक्षय तृतीया" के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू धर्म के विभिन्न भागों में भी मनाया जाता है। अक्षय तृतीया भारतीय हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन ऋषभदेव के जन्मदिन का उत्सव मनाया जाता है और भक्तों द्वारा पूजा अर्चना की जाती है। इस वर्ष (2023) अक्षय तृतीया 23 मई को मनाया जाएगा।

ऋषभ देव का मेला कब लगता है? (rshabh dev ka mela kab lagata hai)

ऋषभ देव के मेला की तारीख भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग हो सकती है। कुछ स्थानों पर यह मेला अक्टूबर-नवंबर में लगता है, जबकि कुछ अन्य स्थानों पर यह मार्च-अप्रैल में आयोजित किया जाता है। ऋषभ देव के मेले के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, आप अपने निकटतम धार्मिक संगठन या स्थानीय प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं।

भगवान ऋषभदेव का जन्म कब हुआ था? (bhagavaan rshabhadev ka janm kab hua tha)

भगवान ऋषभदेव के जन्म के संबंध में कुछ धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न विचार व्यक्त किए गए हैं। हिंदू धर्म के अनुसार, ऋषभदेव सत्ययुग में आए थे और उनका जन्म विवस्वान् मनु की अप्सरा त्रिषा से हुआ था। वे भगवान का आठवां अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म संभवतः लगभग 5 लाख साल पहले हुआ था।

जैन धर्म के अनुसार, ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं और उनका जन्म विषुवती नक्षत्र के अंतर्गत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ था। जैन धर्म के अनुसार, वे लगभग 84 लाख साल पहले जन्मे थे।

इसके अलावा, बौद्ध धर्म के अनुसार भी ऋषभदेव गौतम बुद्ध के पूर्व एक अवतार माने जाते हैं।

बाबा केसरिया का मेला कब है? (baaba kesariya ka mela kab hai)

बाबा केसरिया का मेला भारत के राजस्थान राज्य में जयपुर शहर के पास बसन्तपंचमी के दिन आयोजित किया जाता है। यह मेला वार्षिक रूप से मनाया जाता है और इसे बसन्तपंचमी के दिन यानी फरवरी या मार्च महीने के आस-पास आयोजित किया जाता है। इस मेले में लोगों का जोश और उत्साह देखने लायक होता है, जहां वे खुशी और उत्सव के माहौल में नवीनतम गीत, नृत्य, मेले और खाने-पीने का आनंद लेते हैं।

केसरिया का मेला कब है? (kesariya ka mela kab hai)

केसरिया का मेला बिहार, भारत में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध मेला है। यह मेला चैत्र मास के नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है और इस साल (2023) का आयोजन 24 मार्च से 2 अप्रैल तक होगा।

ऋषभदेव मंदिर कहां है (rshabhadev mandir kahaan hai)

ऋषभदेव मंदिर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ जिले में स्थित है। यह मंदिर जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में भगवान ऋषभदेव, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर की मूर्ति है।

केसरिया जी का मेला कहां लगता है (kesariya jee ka mela kahaan lagta hai)

केसरिया जी का मेला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित केसरिया गाँव में लगता है। यह मेला चैत्र महीने में नवरात्र के अवसर पर मनाया जाता है और इस मेले में लोग भगवान राम के जन्म स्थल अयोध्या से श्रद्धालुओं के समूह भारी संख्या में आते हैं। इस मेले में भक्तों की भीड़ देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं।



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