बृहदेश्वर मंदिर, जिसे अक्षरधाम मंदिर भी कहा जाता है, तमिलनाडु राज्य के तिरुवन्नामलाई (Tiruvannamalai) नगर में स्थित है। यह मंदिर विश्व धरोहर स्थल के रूप में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में चोल राजवंश के सम्राट राजराज चोल द्वारा किया गया था।
यह भगवान शिव को समर्पित है और बृहदेश्वर मंदिर को दक्षिण भारत में सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर माना जाता है। मंदिर का मुख्य भव्य गोपुरम सामरिक और वास्तुशास्त्रीय उत्कृष्टता का उदाहरण है। यह शिखर के साथ मणि और कलश के रूप में जाना जाता है, जो कि मंदिर के अलावा दूर से भी दिखाई देता है।
क्या आप जानना चाहते
मंदिर के अंदर, भगवान शिव की मूर्ति के अलावा, पूरे मंदिर क्षेत्र में कई अन्य भव्य मूर्तियां और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर की सुंदर वास्तुकला, अद्वितीय संगठन, और उच्च कलाकृति इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता हैं.
1. बृहदेश्वर मंदिर कहाँ है - भगवान शिव का प्रसिद्ध बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु राज्य के तंजावुर शहर में स्थित है। 1000 साल पुराने बृहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है। यह पूरी तरह से ग्रेनाइट पत्थरों से बना दुनिया का पहला और एकमात्र मंदिर है। बृहदीश्वर मंदिर को बृहदीश्वर मंदिर और राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
2. बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण किसने करवाया था? बृहदेश्वर मंदिर हिंदी में
बृहदीश्वर मंदिर, भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण चोल सम्राट राजराजा चोल प्रथम ने सपने में दिव्य प्रेरणा प्राप्त करने के बाद किया था। इस मंदिर का निर्माण 1003-1010 के बीच हुआ था। इस मंदिर में 13 मंजिल हैं और इसकी ऊंचाई 66 मीटर है। मंदिर 16 फीट ऊंचे ठोस चबूतरे पर बना है।
बृहदेश्वर मंदिर शिलालेख के अनुसार, मंदिर के मुख्य वास्तुकार कुंजर मल्लन राजराजा पेरुनथचन थे, जिनका परिवार अभी भी वास्तुकला का अभ्यास करता है।
3. बृहदेश्वर मंदिर का इतिहास। बृहदेश्वर मंदिर का इतिहास हिंदी में
चोल शासकों ने इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर रखा लेकिन तंजौर पर आक्रमण करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर का नाम बृहदीश्वर रखा।
इस मंदिर के अधिष्ठाता देवता भगवान शिव हैं। मुख्य मंदिर के अंदर 12 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। यह द्रविड़ वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति है। मुख्य मंदिर और गोपुरम निर्माण की शुरुआत यानी 11वीं शताब्दी के हैं। इसके बाद मंदिर का कई बार निर्माण, जीर्णोद्धार और मरम्मत की गई।
मुगल शासकों द्वारा युद्धों और आक्रमणों और बर्बरता के कारण मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। बाद में, जब हिंदू राजाओं ने इस क्षेत्र पर फिर से विजय प्राप्त की, तो उन्होंने मंदिर की मरम्मत की और कुछ अन्य निर्माण किए। बाद में राजाओं ने मंदिर की दीवारों पर पुराने चित्रों को फिर से रंगवाकर मंदिर का सौंदर्यीकरण किया।
भगवान कार्तिकेय का मंदिर (मुरुगन स्वामी), माता पार्वती का मंदिर (अम्मान) और नंदी की मूर्ति का निर्माण नायक राजाओं ने 16वीं-17वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर में संस्कृत और तमिल भाषाओं में कई शिलालेख हैं।
4. बृहदीश्वर मंदिर का रहस्य। बृहदीश्वर मंदिर का रहस्य
बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि इसके शिखर यानी गुंबद की छाया जमीन पर नहीं पड़ती। इसके शिखर पत्थर कुंबम का वजन 80,000 किलोग्राम है, जो एक पत्थर में उकेरा गया है।
80 टन के पत्थर को मंदिर के शीर्ष तक कैसे पहुंचाया गया यह आज तक एक रहस्य बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि 1.6 किमी लंबी रैंप का निर्माण किया गया था, जिस पर इसे इंच दर इंच मंदिर के शीर्ष तक ले जाया गया था।
5. इतनी जल्दी कैसे बन गया मंदिर -
बृहदीश्वर मंदिर के निर्माण में 1,30,000 टन पत्थर का उपयोग किया गया है। इतना बड़ा मंदिर बनने में रिकॉर्ड 7 साल का समय लगा है। आखिर इस काम में कितने लोगों को लगाया गया था और उस समय की तकनीक क्या थी, इतने कम समय में निर्माण किया गया था, जो आज भी संभव नहीं है।
इसका मतलब यह है कि मंदिर के निर्माण में कोई कमी या त्रुटि नहीं थी। इस अद्भुत मंदिर ने 6 बड़े भूकंपों का अनुभव किया है, लेकिन कोई क्षति नहीं हुई है।
6. भगवान नंदी की अद्भुत मूर्ति -
मंदिर के अंदर गोपुरम में स्थापित नंदी की विशाल मूर्ति भी एक अनूठा आश्चर्य है। यह नंदी मूर्ति 16 फीट लंबी, 8.5 फीट चौड़ी और 13 फीट ऊंची है और इसका वजन 20 हजार किलो है। दिलचस्प बात यह है कि इस मूर्ति को एक ही पत्थर में तराशा गया है। यह भारत में नंदी की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है।
7. बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण के लिए पत्थर कहाँ से आए थे?
बृहदीश्वर मंदिर का अधिकांश भाग कठोर ग्रेनाइट पत्थरों से बना है और शेष भाग बलुआ पत्थर से बना है। ग्रेनाइट पत्थर का निकटतम स्रोत मंदिर से 60 किमी दूर है।
इतने बड़े आकार और मात्रा के पत्थर इतनी लंबी दूरी से मंदिर निर्माण स्थल पर कैसे लाए गए, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। मंदिर के पास कोई पहाड़ी नहीं है, जहां से पत्थर निकाले जाने की संभावना हो।
8. ग्रेनाइट जैसे कठोर पत्थर पर कैसे काम किया गया होगा?
ग्रेनाइट की चट्टानें इतनी कठोर होती हैं कि उन्हें काटने और छेदने के लिए विशेष हीरे की नोक वाले औजारों की आवश्यकता होती है। यह आश्चर्य की बात है कि उन दिनों आधुनिक उपकरणों के बिना मंदिर में चट्टानों को तराश कर कितनी सुंदर, कलात्मक मूर्तियां बनाई जा सकती थीं।
9. बृहदेश्वर मंदिर की विस्तृत व्यवस्था। बृहदीश्वर मंदिर हिंदी में
मंदिर के शिलालेखों से पता चलता है कि सम्राट राजा ने बृहदीश्वर मंदिर में रोजाना जलने वाले दीयों के लिए घी की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मंदिर को 4000 गाय, 7000 बकरियां, 30 भैंस और 2500 एकड़ जमीन दान में दी थी। मंदिर व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए 192 कर्मचारियों की नियुक्ति की गई।
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बृहदेश्वर मंदिर की छाया क्यों नहीं होती है? (Why there is no shadow of Brihadeshwar temple)
बृहदेश्वर मंदिर, जो कि तामिलनाडु, भारत में स्थित है, एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है जिसे राजराजेश्वर ने 11वीं शताब्दी में निर्माण किया था। यह मंदिर विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल है और यह भारतीय स्थानीय और प्राचीन वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
आपके प्रश्न के अनुसार, जब आप कह रहे हैं कि "बृहदेश्वर मंदिर की छाया क्यों नहीं होती है," मुझे अनुमान है कि आप इसका अर्थ वही पूछ रहे हैं कि मंदिर में छाया गिरती क्यों नहीं है।
बृहदेश्वर मंदिर की विशेषताओं में से एक यह है कि यह एक खुला स्ट्रक्चर है, जिसमें छत नहीं है। इसका मतलब है कि सीधी धूप मंदिर के ऊपर सीधे पड़ती है और कोई छाया नहीं होती है। इसलिए, आप मंदिर की छाया की अपेक्षा करने की जगह, आप सीधी धूप की अनुभूति करते हैं।
इसके अलावा, यह मान्यता है कि बृहदेश्वर मंदिर विज्ञान और गणित के कुछ अद्भुत सिद्धांतों का प्रदर्शन करता हैं.
बृहदेश्वर मंदिर कितने साल का है? (How old is Brihadeeswarar Temple)
बृहदेश्वर मंदिर, जिसे भीमेश्वर राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, 11वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था। यह मंदिर तामिलनाडु, भारत में स्थित है और इसे चोल राजवंश के महाराजा राजराजेश्वर द्वारा 1010 ईस्वी में बनवाया गया था। इसलिए, बृहदेश्वर मंदिर का आयाम 11वीं शताब्दी का है, जिससे इसे लगभग 1000 साल से अधिक का समय हो गया है।
बृहदेश्वर मंदिर किसने बनवाया (Who built the Brihadeeswarar temple)
बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण राजराजेश्वर नामक चोल राजा द्वारा करवाया गया था। राजराजेश्वर चोल राजवंश का एक प्रमुख सम्राट था और उन्होंने इस मंदिर को 1010 ईस्वी में तामिलनाडु के तिरुवन्नामलाई (Tiruvannamalai) नगर में बनवाया था। यह मंदिर उनकी विजयोत्सव के रूप में निर्मित किया गया था और इसे भगवान शिव को समर्पित किया गया है। बृहदेश्वर मंदिर एक प्रमुख हिंदू मंदिर है और यह तामिलनाडु के महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों में से एक है।
बृहदेश्वर मंदिर कहां स्थित है (Where is Brihadeeswarar Temple located)
बृहदेश्वर मंदिर तामिलनाडु राज्य के तिरुवन्नामलाई (Tiruvannamalai) नगर में स्थित है। यह नगर तामिलनाडु के पूर्वी भाग में स्थित है और चिदंबरम और ताञ्जावुर (Thanjavur) के बीच में स्थित है। बृहदेश्वर मंदिर तिरुवन्नामलाई के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है और इसे विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है।
बृहदेश्वर मंदिर का रहस्य (Mystery of Brihadeeswarar Temple)
बृहदेश्वर मंदिर, जो कि भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुवनंतपुरम शहर में स्थित है, एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है जिसे उन्नत स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में चोल राजवंश के राजा राजराजेश्वर I द्वारा किया गया था।
इस मंदिर का रहस्य उसके माहीशमर्दिनी मुर्ति और शिवलिंग के साथ जुड़ा हुआ है। बृहदेश्वर मंदिर में एक विशेष प्रकार का शिवलिंग है जिसे अग्निचुंडश्वर (Agnichudeshwara) के नाम से जाना जाता है। इस शिवलिंग का एक चमत्कारी गुण है कि यह सूर्य के प्रतिष्ठित नक्षत्र मकर राशि में उभरता है और उसके ऊपर बने एक पानी की तालाब का पानी पूरे वर्ष नहीं गिरता है। तालाब का पानी सिर्फ एक दिन, जो कि मकर संक्रांति के दिन होता है, में ही शिवलिंग पर गिरता है। इस रहस्यमयी घटना को कई वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है, लेकिन इसका वैज्ञानिक उपशमन अभी तक नहीं मिला है।
बृहदीश्वर मंदिर की प्रमुख विशेषता क्या है? (What is the main feature of Brihadeeswarar Temple)
बृहदेश्वर मंदिर की प्रमुख विशेषता उसका विशालकाय शिखर है। यह मंदिर एक विशालकाय गोपुरम और प्यारेंदर मंदिर के शिखर के साथ निर्मित है, जिसे विशेष रूप से "विमानम" के नाम से जाना जाता है। यह शिखर मंदिर के ऊँचाई को और भी बढ़ाता है और मंदिर को आगे से दिखाने में मदद करता है।
बृहदेश्वर मंदिर का शिखर, जिसे विमानम कहा जाता है, १०८ फीट ऊँचा है और यह पूरी इमारत की प्रमुख पहचान है। इसकी निर्माण शैली एवं विस्तृत शिल्पकारी का अद्वितीय उदाहरण मानी जाती है। इस विमानम के शिखर का निर्माण पुराने रेड ग्रेनाइट से किया गया है और उसमें विस्तृत कार्विंग्स, अलंकारिक मोतीफ और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ संगठित हैं। इसके अलावा, मंदिर के भीतर भी भगवान शिव के मूर्ति, मंदप, और देवालयों की विशालता भी अद्वितीय हैं।
बृहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को द्वारा 1987 में "विश्व धरोहर स्थल" के रूप में विकसित हैं.
बृहदेश्वर मंदिर में किसकी मूर्ति है? (Whose idol is there in the Brihadeeswarar temple)
बृहदेश्वर मंदिर में मुख्यतः दो मूर्तियाँ स्थापित हैं। पहली मूर्ति माहीशमर्दिनी (माता पार्वती) की है, जो भगवान शिव की पत्नी हैं। यह मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थित है और इसे प्राथमिकता दी जाती है। माहीशमर्दिनी को भगवान शिव की शक्ति और पार्वती के रूप में पूजा जाता है।
दूसरी मूर्ति मंदिर के गर्भगृह के उत्तरी भाग में स्थित है और यह एक विशेष शिवलिंग है, जिसे अग्निचुंडश्वर (Agnichudeshwara) के नाम से जाना जाता है। इस शिवलिंग का विशेषता है कि यह सूर्य के प्रतिष्ठित नक्षत्र मकर राशि में उभरता है और इसके ऊपर बने एक पानी की तालाब का पानी पूरे वर्ष नहीं गिरता है। तालाब का पानी सिर्फ एक दिन, जो कि मकर संक्रांति के दिन होता है, में ही शिवलिंग पर गिरता है। यह एक रहस्यमयी घटना है जिसे अभी तक वैज्ञानिक रूप से समझा नहीं जा सका है।
बृहदेश्वर मंदिर इतना प्रसिद्ध क्यों है? (Why is Brihadeeswarar Temple so famous)
बृहदेश्वर मंदिर, जो कि भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुवनंतपुरम शहर में स्थित है, प्रमुखतः अपनी विशालता, ऐतिहासिक महत्त्व और वास्तुशास्त्रीय महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भारतीय संस्कृति, धार्मिकता और वास्तुकला की महत्त्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। इसके कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
विशालता: बृहदेश्वर मंदिर एशिया के सबसे बड़े गोपुरम (मंदिर के द्वारपालक मंदिरों) में से एक के साथ एक अत्यधिक विशाल मंदिर है। इसकी विशालता और महिमा का अनुभव करने के लिए लाखों लोग इसे देखने और यात्रा करने आते हैं।
ऐतिहासिक महत्त्व: यह मंदिर 11वीं सदी में चोल राजवंश के सम्राट राजराज चोल द्वारा निर्मित किया गया था। इसे यूनेस्को द्वारा 1987 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुआ है। इसका ऐतिहासिक महत्त्व और मान्यता इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाता है।
भारत में किस मंदिर की छाया नहीं है? (Which temple in India does not have a shadow)
भारत में किसी बृहदेश्वर मंदिर की छाया नहीं होती है, जैसा कि विश्वास किया जाता है। यह एक मिथक है जिसे लोग आमतौर पर सुनते हैं। मंदिरों में छाया उत्पन्न होती है, क्योंकि वे आमतौर पर खुले आसमान के नीचे बनाए जाते हैं और सूर्य की किरणें छात्रों पर पड़ती हैं। इसलिए, छाया के प्रभाव से मंदिर में स्थापित मूर्तियों पर परिवर्तन होता है। यह एक विश्वास का मामला होता है और इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समर्थन नहीं किया जाता है।