दहेज प्रथा क्या है
जायदा तर लोगों का मानना है कि दहेज़ प्रथा एक सामाजिक कार्य है लेकिन तो कुछ ही लोग इस प्रथा को नाकारा और जमकर निंदा भी किया बहुत कम ही लोग इसका निंदा कर पाते हैं इसका फायदा सभी को लगभग लेना ही रहता है
रविंदर दास ऐसी प्रथा को समाज की बुराई बताते हैं और किसी गरीब के लिए यह चिंता का विषय बनता रहा है जोकि पूरा करने में उनको बहुत सारी परेशानियों का सामने पहाड़ सा खड़ा हो जाता है मेरे बगल में गोपीचंद नाम का एक गरीब परिवार रहता है जिसके पास कोई नौकरी और कोई कमाई नहीं है 4 बेटियों का शादी करना उनके सर पर हो गया 200 से ढाई सौ तक वह मजदूरी करके लाते हैं और घर परिवार के खर्चा में चला जाता है
गोपी की बेटी निधि इस समय शादी करने के योग हो गई हैं इस चिंता में फंसे मां बाप बहुत परेशान रहते लगे उन्होंने सोचा कि हम कहीं प्रदेश में चलकर कहीं से कमा के आएंगे उसके बाद अपनी बेटी का बड़ी धूमधाम से शादी करेंगे लेकिन भगवान के मर्जी के आगे सब फेल हो जाता है यही हाल गोपीचंद के साथ हुआ
दहेज प्रथा के भयंकर परिणामलड़की के पिता पैसे कमाने के लिए चेन्नई शहर को चले जाते हैं वहां जाकर उन्होंने किसी ठेकेदार के पास काम करने लग जाते हैं दो-तीन महीना बीता है इतने में गलेंडर से उनका हाथ कट जाता है जख्म ज्यादा हो जाने के कारण डाक्टरों ने कुछ ही दिनों में उनका एक हाथ और दूसरे हाथ की दो अंगुली काट डाली
इस हालत में गोपीचंद क्या करता उसके ठेकेदार ने हाथ कट जाने के बाद उसको लगभग 5 महीने के अंदर ही उसका हिसाब करके वापस घर को भेज देते हैं रास्ते का सही जानकारी ना होने के कारण गोपीचंद को झांसी से ट्रेन बदलना था
लेकिन उन्होंने ना जानकारी होने के कारण रास्ता भटक जाते हैं वह लखनऊ जाने के बजाए वह दिल्ली चले गए तब तक शादी का दिन नजदीक आ चुका था एक ही दिन विवाह होने को बचाता और वह दिल्ली पहुंच कर जब उनको पता चलता बेचारे बड़े घबराये स्टेशन पर पहुंचते ही टी टी से झड़प हो जाता है
और उसने डबल फाइन भी मार दिया और उत्तर प्रदेश को जाने वाली ट्रेन का समय बताकर चला गया फिर बताये टाइम के 10 मिनट बाद गाडी आयी उसमें बैठकर वह शादी के ही दिन ही घर आये सब कार्यक्रम हो ही रहा
दहेज प्रथा से हानि
फिर रशम आया दहेज़ प्रथा अपनी मर्जी भरकर ना पाने से लड़को वालो शादी करने से इंकार कर दिया और बरात से भाग गए इस भयानक दृश्य को देखकर शादी करने वाली लड़की उसी रात गांव के बगल बगीचे में आम के पेड़ पर फसरी लगाकर खुदको मर डालती है
उसके परिजनों जब इस बात का पता चलता है लड़की की माँ गांव के सूखे कुए में कूदकर अपनी जान गावा देती एक ही घर से डबल जनाजे का सगमा गोपीचंद को लग जाता है उनका दीमाक ख़राब हो जाता है करीब 3 दिन बाद घर कही गुम्म हो जाते है बाद में और सभी बहने गांव से लखनऊ आकर कोठिओ में बर्तन साफ करती झाड़ू पोछा करके गुजरा करती है
दहेज के खिलाफ
ऐसे में दहेज प्रथा सामाजिक कार्य कैसे हो सकता है सभी भाइयों को सोचना चाहिए की आप जिसको सामाजिक कार्य मानकर पूरा करने लगते हैं वही कार्य किसी न किसी गरीब को संकट से टकराना पड़ता है और वह अपना खेत घर द्वार बेचकर चुकाना पड़ रहा है कुछ भाई लोग इस प्रथा को हवा देने में लगे हैं जो कि यह समाज के लिए अत्यंत दुःख की बात है
यह सभी भाइयों को ध्यान होना चाहिए कि ऐसे प्रथा को और पेट्रोल झोकने के बराबर है बचे और बचाएं
और भी पढ़े