पहलवान चाचा मुहल्ले के छोर पर रहते थे । उनकी उमर पचास से ऊपर थी , मगर कद - काठी से मजबूत थे । घर में चाची के अलावा कोई था नहीं । दोनों लोगों के लिए उनके बड़े - से आँगन में लगे आम अमरूद के फल और भैंस का दूध काफी था । चाचू को कहि चले जाने के बाद उनके यहां बच्चों की भीड़ उमड़ने लग जाती थी । चाचा की तनी मूछ से डर जाने वाले बच्चे चाची से घुले - मिले गए थे । इस कोने से उस कोने तक सभी आँगन में दौड़ते रहते थे लेकिन बच्चों को चाची कभी कभी आम या अमरूद खाने को देकर भुलवाया करती थीं ।
एक बार चाची मायके गई हुई थीं । चाचा के आंगन में सिंदूरी आम लटक रहे थे । लड़के आमों की ओर लालच भरी निगाह डालकर रह जाते थे । चाचा का स्वभाव कठोर था । लड़के जानते थे , इनसे कुछ मिलने वाला नहीं । कुछ लड़के चाचा के घर गए भी मगर कसरत करते चाचा को देखकर उनकी हिम्मत नहीं पड़ी । उलटे चाचा ने जब पूछा कहो कैसे हो प्यारे बच्चो तो उनको लगा करता था की चाचा जी हम सभी को धमका डरा रहे हैं ।
लड़के भगवान से मगाते थे कि चाची जल्दी लौट आएँ । बरसात के साथ जब गदागद आम गिरने लगे , तब तो राजू का धीरज टूटने लगा । उसने धीरू और रज्जन से सलाह की । दोपहर में चाचा के बाहर जाने पर राजू आम के पेड़ पर चढ़कर आम गिराने लगा । रज्जन ने आम इकट्ठे करके ढेरी लगानी शुरू की । धीरू दरवाजे के बाहर पहरा देने खड़ा हो गया । चौकसी के बावजूद तीनों के दिल धड़क रहे थे ।
धीरू दरवाजे पर खड़ा इधर - उधर बेचैनी से निगाहें डाल रहा था । तभी गली के छोर पर चाचा आते दिखाई दिये । चाचा ने उनकी कड़क आवाज सुनकर धीरू भाग खड़ा हुआ । चाचा की आवाज सुनकर राजू और रज्जन के हाथ - पाँव फूल गए । राजू पेड़ से कूद पड़ा । रज्जन भी आमों को छोड़कर भागा और कमरे में टांड पर जा बैठा । राजू को कुछ न सूझा , तो कमरे के एक कोने में खड़ा हो गया । घर में घुसकर देखा तो पेड़ के नीचे आमों की ढेरी लगी हुई थी और कमरे की कुंडी भी खुली थी ।
वह दहाड़े- " इसका मतलब है किसी ने आमों पर हाथ साफ किया है । अच्छा बच्चू , ठीक है । उस वक्त धीरू दरवाजे के बगल में खड़ा था । फिर हाल मुझसे बचकर जाओगे किधर डाटने के सथो साथ ही वे अपनी लाठीया लाने के खातिर कमरे की ओर गए उसी । कमरे में उनको एक कोने में छिपा हुआ राजू दिखाई दिया । जब उन्होंने राजू को कान को पकड़कर खींचा और बोला - " अच्छा तो यह तुम्हारी शरारत थी ? " तब उसने बोला " नहीं , नहीं चाचू । मैं चोर नहीं हूँ । मैं तो केवल सारे आमो को इकट्ठा करने में लगा था ।
मुझे तो रज्जन जबरदस्ती बुला लाया था । वह देखो , ऊपर टांड पर बैठा है । " - राजू ने पोल खोल दी । चाचा ने राजू को छोड़ दिया । उन्होंने रज्जन को पकड़ा तो राजू भाग गया । रज्जन को नीचे उतारकर उन्होंने एक थप्पड़ जमाया , तो वह फूट -फोटकर रोने लगा । उसने बताया कि यह सब राजू की हीं शरारत थी ।
चाचा उसे पीटने को तैयार हो रहे थे , तभी चाची आ गई । उनके पीछे - पीछे संदूक उठाए धीरू आ रहा था । चाची ने चाचा के हाथ से रज्जन को छुड़ाकर कहा- " तुम तो अजीब आदमी हो । हर फसल पर इन बच्चों को आम - अमरूद खाने को मिलते हैं । तुमने दिए नहीं , उलटे मारने पर उतारू हो । " ' अच्छा तो तुम्हारी यह फौज तुम्हारे इशारे पर ही चोरी करती . है ।
अरे , आम खाने थे तो मुझसे कह भी तो सकते थे । " - चाचा गुराए । " यह भी कोई कहने की बात थी । आप हमारे चाचा हैं । चाचा के आम क्या पराए होते हैं , जो हम पूछते । " -धीरू मुसकराया । चाची के आने के बाद लड़कों को कोई खतरा नहीं था । आमों की दावत का आनंद लिया जा रहा था ।