चूहे और मेंढ़क की भेंट हुई और वह देखते - देखते बड़ी गहरी मित्रता में बदल गई । चूहे ने कहा - चलो भाई ! विदेश चलें , सुख से कमाए खाएं । यहां तो पेट भर भोजन के लाले पड़े हैं । मेंढ़क ने जवाब दिया - बात तो बड़े पते की कहते हो । बस , अभी चलो ?
परन्तु चलने से पहले एक काम करें । हम दोनों एक मजबूत और मोटे धागे से अपनी - अपनी कमर बांध लें । ऐसा होने से हम दोनों सदा एक साथ रहेंगे । कभी हम दोनों नहीं बिछड़ेंगे और सुख दुःख में एक दूसरे के काम में आ सकेंगे ।
चूहे को यह सलाह इतनी पसन्द आई कि वह फौरन कहीं से एक लम्बा और मजबूत धागा ढूँढ लाया । फिर उसके पहले छोर में अपनी और दूसरे छोर से मेंड़क की कमर बांधने के बाद बोला - लो निकल चलो ! अब जरा भी देर न करो ।
मेंढ़क ने फुदकते हुए कहा - हम बढ़ते हैं । तुम हमारे पीछे पीछे दौड़ लगाते चले आओ । इस प्रकार दोनों दोस्त एक - दूसरे से बंधकर विदेश की ओर चल पड़े , रास्ते में एक नाला पड़ा । उसका गहरा नीला पानी देखते ही चूहा घबड़ाकर बोला अरे भाई , मेंढ़क , हम तो इसे पार न कर पाएंगे ।
मेंढ़क एक छलांग मारकर पानी में जा गिरा , उसके साथ चूहा भी खिंचा कर पानी के अंदर चला जा रहा था । मेंढ़क थोड़ा सा बिगड़कर बोला मरे क्यों जाते हो ? तैरते - तैरते चले आओ ! तैरना नहीं जानते हो तो ऐसा करो की, हमारी पीठ पर आकर बैठ जाओ । हम तुम्हें बड़ी सरलता से उस पार पहुँचा सकते है ।
बीच धार में जो शैतानी सूझी तो मेंढ़क गड़ाप से पानी के भीतर चला गया और चूहे को पानी के भीतर खींचने लगा बेचारा चूहा अपने बचाव की कोशिश करने और गिड़गिड़ाने , अरे मेंढक भईया , मुझ पर दया करो , पानी के ऊपर आ जाओ नहीं तो हम डूब मरेंगे
परन्तु मेंढ़क को तो मजा आ रहा था , भला वह चूहे की चीख पुकार क्यों सुनने वाला था । चूहा बेचारा उसी तरह रो - रोकर कहता रहा - मान जाओ ! ऐ मेंढ़क भईया ! मान जाओ । तनिक तो मित्रता निभाओ । यों हमारे प्राणों के ग्राहक न बनो , बूढ़े - पुराने लोग ठीक ही कह गए हैं । समान स्वभाव वाले से ही मित्रता करो , नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है ।
मेंढ़क और चूहे की इस खींचातानी से पानी में बड़ी हलचल मची हुई थी । उसी समय आकाश में एक चील उड़ी जा रही थी । पानी में वह चूहे को देखकर फौरन उस पर टूट पड़ी और उसे अपने पंजों में दबाकर ले उड़ी । मेंढ़क चूहे की कमर एक धागे से तो बंधा ही था वह भी उसके साथ - साथ चील का शिकार हो गया ।