शूर्पणखा कौन थी और वह क्या चाहती थी | खर दूषण वध

खर दूषण वध


राम कथा में शूर्पणखा का प्रसंग बड़ा ही मजेदार है । राम के पराक्रम के बारे में तो तुम जानते ही हो । वनवास काल में उन्होंने ऋषि अगस्त्य को वचन दिया था कि वे दुष्ट राक्षसों को मार कर ऋषियों की रक्षा करेंगे । अपने वचन का पालन उन्होंने अंत तक किया । 

एक बार पंचवटी के सुंदर तथा शान्त वन में राम , सीता तथा लक्ष्मण बैठे इतिहास तथा पुराणों की बात कर रहे थे । तीनों बातों में अत्यंत लीन थे , तभी उधर से रावण की बहन शूर्पणखा निकली । राम को देखते ही उनके मनमोहक रूप पर वह बुरी तरह से मुग्ध हो गयी । राम का सौन्दर्य था ही देवताओं जैसा । 

असुर शूर्पणखा का मन काबू में न रहा । प्रेमावेश में पागल सी होकर वह राम के पास आई और बोली" ऋषि के वेष में इस जंगल में आये तुम लोग कौन हो ? यह स्त्री तुम्हारी क्या है ? और ऋषि होते हुए तुम क्षत्रियों की तरह शस्त्र क्यों बाँधे हुए हो ? 

राम ने शिष्टाचार के साथ अपना परिचय दिया , “ मैं महाप्रतापी राजा दशरथ का ज्येष्ठ पुत्र हूँ । हम अपने पिता के आदेश से वन में निवास कर रहे हैं । यह मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है और ये मेरी पत्नी सीता है । " इसके बाद राम ने शूर्पणखा से उसका परिचय माँगा । 

उसने बड़े ही गर्व से कहा , " तुम लोगो ने विश्रवा के पुत्र महाशक्तिशाली रावण के नाम से जरूर परचित होंगे तो । मैं उन्ही की बहन शूर्पणखा हु। मेरे दो महाप्रतापी भाई हैं विभीषण और कुंभकरण इसके अलावा इसी जंगल में रहने वाले खर और दूषण भी हमारे भाई हैं । ”

 फिर उसने राम के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हुए कहा- “ इस वन के सभी प्राणी मुझसे डरते हैं । पर राम ! तुम्हें देखते ही मैं तुम पर मुग्ध हो गयी हूँ । आओ हम दोनों विवाह कर लें । तुम्हारी ये पत्नी तो बिल्कुल चींटी जैसी है । इसे तो मैं यूँ मसल कर तुम्हें इससे छुटकारा दिला दूँगी । 

राम को उसकी बातें सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ । शूर्पणखा बोली , " चलो मेरे साथ चलो । किसी बात की चिंता मत करो । " राम उसकी मूर्खता पर मन ही मन हँसे । उन्हें मजाक सूझी । पर गम्भीर बनते हुए वे बोले , " मुझे पाने की इच्छा तुम्हारे लिए कष्टपूर्ण होगी । तुम तो देख ही रही हो , मेरी स्त्री मेरे साथ है , और दो - दो स्त्रियाँ रखना मेरे बस की बात नहीं । 

पर तुम निराश मत हो । मेरा भाई लक्ष्मण भी मुझसे कम सुंदर नहीं है । बलशाली भी बहुत है । और अकेला भी है । तुम उसे पाने की कोशिश करो तो सुखी रहोगी ।शूर्पणखा को राम की बात ठीक लगी । वह लक्ष्मण के पास जाकर बोली , " हे वीर पुरुष ! चलो मेरे साथ चलो । हम लोग वन में सैर करेंगे आनंद मनायेंगे । " 

वह लक्ष्मण भी कुछ कम नहीं थे । वें बोले , " अरे पागल , तू ठहरी राजकुमारी । मैं तो बस एक सेवक हूँ । मेरे साथ रह कर तुझे क्या मिलेगा ? राम तुझे टाल रहे हैं । उन्हीं के पास जा और विवाह कर ले । राम की दूसरी स्त्री बन जा । फिर कुछ समय बाद वे सीता को भूल जायेंगे , तब तेरा पूरा अधिकार हो जायेगा और तू मौज करेगी । 

शूर्पणखा फिर से राम के पास पहुँची । उनके पास खड़ी सीता से उसे अपार ईर्ष्या हो आई और वह सह न सकी । राम को ललकारकर वह बोली , “ अरे तुमको इस कीड़े - मकौड़े के खानी स्त्री से कैसा डर हो रहा है ? इसे तो मैं पल भर में खा जाऊँगी । 

इसके रहते तुम मेरे नहीं बनोगे । लो इसे मैं अभी खत्म किये देती हूँ । " इतना कहकर वह एकाएक सीता पर झपट पड़ी । राम ने गम्भीर होकर उसे तुरन्त रोका । अब वो जान गये कि मामला हँसी का नहीं है , गम्भीर है । उन्होंने लक्ष्मण को उससे निबटने का इशारा किया । शूर्पणखा पर तो पागलपन सवार था । वह सीता की ओर फिर से लपकी । लक्ष्मण ने तुरन्त उस पर वार कर दिया , और तलवार से उसके नाक - कान काट डाले । 

खून की लहर बह निकली । दर्द और अपमान से आहत वह राक्षसी चीखती चिल्लाती जंगल के भीतर भाग गयी । वहाँ से भागकर घायल शूर्पणखा सीधे अपने भाई खर के पास पहुँची और विलाप करने लगी । उसकी ऐसी दुर्दशा देखकर खर चौंक पड़ा । उसे आश्चर्य हुआ कि उसकी बहन का यह हाल करने वाला कौन आ गया । 

उसने उससे इस बारे में पूरी बात बताने को कहा ।शूर्पणखा ने रो - रो कर सारी बात बताई- " राम और लक्ष्मण नामक दो तपस्वियों के वेष में आये हैं । उनके साथ सीता नामक एक राजकुमारी स्त्री भी है । उसी स्त्री के कारण मेरी यह हालत हुई है । 

अब मैं जब तक उनका लहू नहीं पी लेती चैन नहीं पड़ेगा । " खर को बड़ा गुस्सा आया । उसने तुरन्त चौदह सेनापतियों को बुलाकर उन्हें राम और लक्ष्मण को मार कर और सीता को जीवित ही खींच लाने का आदेश दिया । 

शूर्पणखा के साथ वे सेनापति अपनी सेनाओं के साथ राम की कुटी के पास पहुँचे । उससे उन्हें दिखाते हुए कहा , " यही हैं वे राम और लक्ष्मण जिन्होंने मेरी नाक काटी । इन्हें तुरन्त मार डालो । ' " . पर उल्टे , राम ने ही उन्हें मार गिराया । उनके मरने पर शूर्पणखा फिर से खर के पास जाकर रोने - पीटने लगी । खर ने फिर उसे ढाढस बँधाया , “ हमारे रहते हमारी बहन का कोई क्या बिगाड़ेगा ? "

अबकी बार सेना के साथ वह भी निकल पड़ा । फिर भयंकर युद्ध हुआ । राम के वाणों से हजारों राक्षस मारे गये । खर का भाई दूषण राम पर हमला कर रहा था । राम के वाणों से उसका रथ टूट गया , सारथी मर गया और घोड़े भी हताहत हुए । जैसे ही उसने राम पर प्रहार करने के लिए शस्त्र उठाया , राम ने उसकी दोनों भुजायें काट डालीं । वह भूमि पर गिरकर मर गया । 

इसके बाद खर स्वयं रथ पर बैठकर राम से युद्ध करने आया । दोनों में घनघोर युद्ध शुरू हो गया । खर ने राम का कवच काट डाला । तब राम ने विष्णु धनुष द्वारा प्रहार करना शुरू किया । खर का रथ टूट गया और उसका धनुष भी हाथ से छूटकर दूर जा गिरा । तब वह गदा लेकर भिड़ गया । उनका युद्ध काफी रोमांचक ढंग से काफी देर तक चला ।

अंत में राम ने उसकी छाती को लक्ष्य करके इंद्र वाण चला दिया । खर वहीं गिरकर तुरन्त मर गया । खर के मरते ही आकाश में देवताओं ने जयघोष किया और राम पर फूलों की वर्षा की । इस प्रकार राम ने इतने कम समय में एक से एक भयंकर राक्षसों से युद्ध करके तथा उनका वध करके ' जन - स्थान ' को एक बार फिर से ऋषियों - मुनियों की भूमि बना दिया ।

और नया पुराने