राजकुमारी चित्रलेखा का खोया बहुमूल्य हार की एक कहानी | Hindi kahani

 

story of queen's diamond necklace

नौ रत्नहार राजा वीरदेवसिंह मणिपुर के राजा थे । राजकुमारी चित्रलेखा के जन्मदिन के अवसर पर राजा ने अपनी बेटी को उपहार देने के लिए एक नौरत्न हार बनवाया । नगर के पारखी जौहरियों ने अनेक रत्नों में से कुछ रत्न चुनकर वह हार बनाया था । वह हार न केवल अत्यन्त मूल्यवान था , बल्कि देखने में भी उसकी शोभा निराली थी । 

एक रात राजकुमारी का वह हार चोरी हो गयी । राजकुमारी राजभवन के अंदर के कक्ष में शयन करती थी । बाहर का कोई व्यक्ति उस हार को चुराने का साहस नहीं कर सकता था । यदि राजमहल के सेवक - सेविकाओं से पूछताछ की जाये तो सच्चाई प्रकट नहीं होगी । और अगर एक - एक को बुलाकर उस पर सीधे यह आरोप लगा दिया जाये कि- " तुमने ही चोरी की है " या " तुम ही चोर हो " -तो भी समस्या हल नहीं होगी ।

 राजा वीरदेवसिंह ने अपने मंत्री प्रसेनजित पर इस समस्या को हल करने का भार सौंप दिया । मंत्री प्रसेनजित ने काफी सोच - विचार कर कुछ फैसला कर लिया । उसने दोपहर के पहले अपने तीन विश्वासपात्र अनुचरों को बुलाया और उन्हें क्या करना है , यह अच्छी तरह समझा दिया । अपराह्न का समय हुआ । प्रसेनजित ने राजमहल की एक विशेष कचहरी में सबको एकत्रित कर कहा , " आप सब लोग सुनें ! पिछली रात आपमें से ही किसी ने राजकुमारी का नौरत्नहार चुराया है । 

जिसने यह चोरी की है , अगर वह तत्काल उस हार को लाकर सौंप दे , तो मैं उसे क्षमा कर दूँगा । वरना , उसे असहनीय यातनाएँ देकर मार डाला जायेगा । मैं सबको चेतावनी दे रहा हूँ । " मंत्री की बात का किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया । इसी समय उस स्थान पर एक मांत्रिक ने प्रवेश किया ।

" पधारिये , पधारिये ! मांत्रिक महोदय , ऐसा लगता है कि आप ठीक समय पर आये हैं । हमें आपकी मंत्र शख्ति की निश्चय ही आवश्यकता पड़ सकती है । " यह कहकर मंत्री ने मतंग भैरव नाम के उस मांत्रिक का स्वागत किया । तभी एक व्यापारी दौड़ा हुआ आया और प्रसेनजित से बोला , " मंत्रिवर , मेरा नाम जीवन है । कल रात मेरे घर में चोरी हो गयी है । चोर दस हज़ार रुपये चुरा ले गये हैं । 

मंत्री प्रसेनजित ने मांत्रिक मतंग भैरव से कहा , " मांत्रिक महोदय , राजमहल के चोर के मामले को बाद में देखेंगे । पहले आप जीवन के घर में चोरी करने वाले चोर का पता लगाइये ! "  मतंग भैरव ने अपने कमण्डल से जर्रा - सा पानी लिया और फिर ' ऐं ह्रीं क्लीं ' मंत्र पढ़कर उस पानी को वहाँ एकत्रित लोगों पर छिड़क दिया । दूसरे ही क्षण वहाँ खड़ा एक आदमी चीत्कार करके नीचे गिर पड़ा और असहनीय पीड़ा से छटपटाने लगा । वह चिल्लाकर बोला , " मुझे मत मारो ! मैंने ही चोरी की है । 

मैं माल ला दूँगा । " " मांत्रिक जी , आप इसे तड़पने दीजिए ! अब आप राजकुमारी का नोरत्नहार चुराने वाले के लिए मंत्रशक्ति का प्रयोग कीजिए और उसे पकड़ने के लिए कमण्डल का जल छिड़किये ! ” मंत्री ने कहा । तुरन्त मल्लिका नाम की एक दासी आगे आयी और मंत्री के पैरों पर गिरकर बोली , " महामंत्री जी , मुझे क्षमा कर दीजिए ! मैंने ही लोभ में पड़कर रत्नहार चुराया है । मेरा अपराध क्षमा हो ! मेरी रक्षा कीजिए ! " यह बोलकर वह बिलक बिलक कर रोने लगी । 

ठीक उसी वकत ज़मीन पर पड़ा छटपटा रहा वह ब्यक्ति मुस्करा कर उठ बैठा । मांत्रिक और व्यापारी भी अपने सच्चे रूप में आ गये । वे तीनों व्यक्ति मंत्री प्रसेनजित के नियुक्त किये हुए वे ही अनुचर थे । उन लोगों ने इस नाटक से राजकुमारी चित्रलेखा का खोया हुआ बहुमूल्य हार वापस मिल गया ।

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