एक ईमानदार लकड़हारे की कहानी क्या है
उसका रोना सुना तो नदी में रहने वाले देवता का हृदय पसीज उठा । वे नदी से बाहर निकल आए , लकड़हारे के पास जा खड़े हुए और उससे पूछने लगे तुम ऐसे क्यों रो रहे हो भाई तब जाकर लकड़हारे ने बोला - हे महाराज ! मै एक गरीब लकड़हारा हूँ । दिन भर वन में लकड़ियाँ काटकर इक्क्ठा करता हु और शहर में ले जाकर बेच दिया करता था।
ईमानदार लकड़हारा कहानी का नैतिक क्या है?
अब कैसे लकड़ियाँ कादूंगा और कैसे अपना तथा अपने बाल - बच्चों का पेट पालूँगा ? यह सुनते ही देवता ने उसे समझाया- तो इस तरह क्यों आँसू बहाते हो ? हम अभी नदी में डुबकी लगाते हैं और तुम्हारा कुल्हाड़ा निकाल लाते हैं । उसके बाद देवता नदी में डुबकी मारकर एक सोने की कुल्हाड़ी निकाल लाए और लकड़हारे को दिखकार पूछने लगे - यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है ।
लकड़हारे ने उत्तर दिया- नहीं महाराज ! देवता दूसरी बार नदी में डुबकी मारकर एक चाँदी की कुल्हाड़ी निकाल लाए और लकड़हारे को दिखाकर पूछने लगे - लो देखो और बताओ ? क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है ? लकड़हारे ने उत्तर दिया- नहीं महाराज ! देवता
ईमानदार लकड़हारा कुल्हाड़ी कौन सा था
तीसरी बार नदी में डुबकी मारकर एक लोहे की कुल्हाड़ी निकाल लाए और लकड़हारे को दिखाकर पूछने लगे - जल देवता ने लकड़हारे से क्या पूछा क्या यह कुल्हाड़ी भी तुम्हारी नहीं है ? आनन्द से लकड़हारे का चेहरा चमक उठा , उसने प्रसन्न मन से उत्तर दिया - जी महाराज ! यही मेरी कुल्हाड़ी है । देवी लकड़हारे से प्रसन्न क्यों हुई लकड़हारे की यह सत्यवादिता देखकर देवता बहुत प्रसन्न हुए और उसे तीनों कुल्हाड़ी देते हुए बोले - तुम बड़े सत्यवादी हो । हम तुम्हारा सम्मान करते हैं और प्रसन्नता से तुम्हें ये तीनों कुल्हाड़ी पुरस्कार में देते हैं
| ईमानदार लकड़हारा |
हमारी दया से अब तुम सदा सुख पाओगे । जब लकड़हारा गाँव में लौटा तो उसने यह कहानी अपने मिलने जुलने वालों को सुनाई । बस , एक आदमी का लोभ जाग उठा । वह दूसरे दिन कुल्हाड़ी लेकर वन में पहुँचा और लकड़ियाँ काटने के लिये उसी वृक्ष पर चढ़ा , परन्तु उसने लकड़ियाँ काटते - काटते कुल्हाड़ी जान - बूझकर नदी में फेंक दी ।
उसके बाद वह वृक्ष से नीचे उतरा और उसके तने से लिपट कर माथा पीट - पीटकर रोने धोने लगा । उस आदमी के रोने - धोने की आवाज को सुनते ही नदी के देवता नदी से निकलकर बाहर आ गए और उससे बोल पड़े की तुम क्यों रो रहे हो भाई तब उसने अपने रोने - धोने का कारन बताने लगा । उतने में , देवता नदी में डुबकी मारकर एक सोने की कुल्हाड़ी निकाल लाते है और उससे बोले देखो तो ! ऐसा जान पड़ता है की यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है ।
उस आदमी ने आनन्द से उछल कर कहा- हाँ महाराज ! यही मेरी कुल्हाड़ी है । लाइए कृपा कर दीजिए देवता ठहाका मारकर हंसे और बोले- बदमाश , चला है हमारी आँखों में धूल झोंकने । झूठा कहीं का जा , अब कभी भी तुझ जैसे पर हमारी दया नहीं होगी । यह बोलकर देवता नदी में समा गए । और फिर कभी निकलकर बाहर की तरफ नहीं आए । वह झूठा ब्यक्ति अपनी करतूत के शर्म से अपना माथा पीटता रह गया ।