माता पिता की सेवा पर कहानी | parent service

माता पिता की सेवा के लिए आप क्या करते हैं?


 बड़ौदा राज्य में महाराज सियाजीराव का शासन था । सियाजीराव बड़े ही भले और सरल व्यक्ति थे । वासुदेवराव पेंडसे उनकी निजी सचिव थे । पेंडसे बहुत ही मेहनती , ईमानदार , कर्तव्यपरायण और लगनशील व्यक्ति थे । 

एक दिन पेंडसे अपने कार्यालय में बैठे काम कर रहे थे कि उन्हें तार मिला - ' पिताजी बीमार हैं । तुरन्त घर आओ । ' तार पढ़कर बेंडसे विचारों में डूब गए । महाराज ऊटी गए हुए थे । उनसे अवकाश स्वीकार करवाए बिना गाँव कैसे जाया जाए ? 

उनके पास ऊटी जाकर मिलना भी संभव नहीं था । समय कम था । गाँव जाना आवश्यक था । परन्तु बिना अवकाश मंजूर करवाए जाना भी उचित नहीं समझते थे । पेंडसे गहरे विचारों में डूब गए । अंततः उन्होंने पिताजी के पास जाने का निर्णय किया । 

उन्हें उनकी सेवा करने जाना ज्यादा अच्छा लगा । बस , इतना सोचकर उन्होंने अवकाश के लिए एक अर्जी लिखी । अर्जी उन्होंने महाराज की मेज पर रख दी । फिर गाँव जाने की तैयारी करने लगे । पेंडसे को शाम की गाड़ी से घर जाना था । 

वह जाने के लिए सामान इकट्ठा कर रहे थे कि महाराज यकायक कार्यालय में आ गए । पेंडसे की बाहर जाने की तैयार देखकर बोले- “ कहाँ जा रहे हो ? " तार व अर्जी को मेज से उठाकर पेंडसे ने महाराज के सामने रख दिया । कहा- " गाँव जाना आवश्यक है । " बिना अवकाश मंजूर करवाए ही गाँव जा रहे हो ? "

" जी , आप यहाँ न थे । अवकाश कौन स्वीकार करता ? ऊटी पहुँचकर आपसे मिलने का समय ही कहाँ था ? शाम को गाँव .... " पेंडसे की बात को बीच में ही काटते हुए सियाजीराव ने प्रश्न किया- " यदि अवकाश मंजूर न हो तो ? " " मैं गाँव जाऊँगा । "

 पेंडसे ने विनम्रता से कहा- " पिताजी बीमार हैं । उनकी सेवा का मौका फिर शायद न मिले , जबकि नौकरी तो दोबारा भी मिल सकती है । " " ठीक है । " फिर अर्जी को मंजूर करते हुए सियाजीराव ने कहा- " पेंडसे , मैं तुम्हारी बात सुनकर प्रसन्न हुआ । तुम गाँव जाकर पिताजी की सेवा करो ।

मैं तुम्हें अपनी गाड़ी से पहुँचवा दूँगा । " फिर कुछ कागज पेंडसे को देते हुए कहा- " इन कागजों का काम भी पूरा कर लेना और अपने पिताजी की सेवा भी करते रहना । " वासुदेवराव हाराज की बात सुनकर गद्गद् हो गए ।

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