राजा से तंग होकर लोग लोगों ने घर छोड़ा | story of ancient kings

राजा बुद्धिसेन हमेशा हँसता रहता था । वह जब - जब दरबार में हँसता ,राजा अपने बारे में क्या सोचता था (raaja apane baare mein kya sochata tha) तब - तब दरबारियों को भी राजा का साथ देने के लिए हँसना पड़ता था । कभी - कभी हँसा का दौर दरबार में पूरे - पूरे दिन भी चलता रहता । अतः राजा , उसके मंत्री और दरबारियों को राज्य के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं होती थी । राजा का आदमी को क्या प्रस्ताव था (raaja ka aadamee ko kya prastaav tha)

इतना ही नहीं , राजा के सिपाही नगर - नगर , गाँव - गाँव घूमते । उन्हें रास्ते में काम करते हुए , घूमते हुए या बैठे हुए जो लोग मिलते , वे उन्हें जबरन हँसने के लिए कहते । न हँसने पर उन्हें मारते । इससे तंग आकर कुछ लोग राज्य छोड़कर जाने लगे । तब राजा बुद्धिसेन ने उन्हें दरबार में बुलवाया । 

राजा ने उस आदमी के साथ क्या किया था (raaja ne us aadamee ke saath kya kiya tha)

उसने सिपाहियों से उन लोगों को रात - दिन हँसाते रहने के लिए कहा । सिपाही उन लोगों को गुदगुदी करके हँसाते । गुदगुदी बर्दाश्त नहीं कर पाने से लोग बेहाल हो जाते । प्रजा में डर छा गया । लोग सिपाहियों के घोड़े की टाप सुनते ही सारा काम - काज छोड़कर हँसने लगते । 

जबरदस्ती की हँसी के कारण सारे राज्य का काम - काज ठप्प होने लगा । अकाल पड़ने से ताल - तलैया , नदी - पोखर सूखने लगे । किसानों के जानवर मरने लगे । लोग राज्य छोड़कर भागने लगे । इन हालात से राजा को कुछ लेना - देना नहीं था । वह तो ठहारों में ही खोया रहता था । 

रात में राजा से मिलने कौन जा सकता है (raat mein raaja se milane kaun ja sakata hai)

लेकिन राज्य की यह हालत देखकर मंत्री उग्रसेन की आँखों की नींद उड़ गई । उसे हमेशा यही चिंता सताती कि कैसे मेघ बरसे , फसलें उगें । और खेत हरे - भरे हों । एक दिन मंत्री ने राजधानी में किसी सिद्ध बाबा के आने की बात सुनी । मंत्री बाबा के पास गया । वह उनके चरणों में गिर गया । उससे राज्य का सारा हाल बताया । 

फिर पूछा- " बाबा , इस राज्य में कब मेघ बरसेगा और खेत का कब खुशहाल होंगे ? " बाबा ने कहा- " तुम्हारा राजा ठहाके लगाकर बहुत हँस चुका है । इसलिए जब वह रोएगा , तभी पानी बरसेगा । " मंत्री के दिमाग में बार - बार एक ही प्रश्न उठ रहा था - ' राजा कब रोएगा ? ' उसने डरते - डरते साधु की सारी बातें राजा को बताईं । राजा ठहाके लगाकर हँसने लगा ।

 

उसने सिपाहियों से उस बाबा को पकड़कर लाने को कहा । लेकिन बाबा तब तक जा चुके थे । मंत्री ने राजा को बहुत समझाया । उसने कहा- " महाराज , आपके आंसू की कुछ बूंदों से प्यासी धरती पर पानी की फुहारें पड़ने लगेंगी । खेत हरे - भरे हो जायेंगे । " 

लेकिन राजा ने मंत्री को मूर्ख समझकर दरबार से निकाल दिया । मंत्री को अब एक ही चिंता थी कि राजा कब उसकी बात समझेगा । सोचते - सोचते उसकी आँखों के सामने राजकुमारी सरोज का चेहरा घूमने लगा । उसने सोचा - ' यदि राजकुमारी मेरी बात मान ले , तो राजा को समझाया जा सकता है । 

यह सोच वह महल की ओर चल पड़ा । मंत्री महल में पहुँचा । राजकुमारी ने मंत्री से वहाँ आने का कारण पूछा । मंत्री ने उसे सारी बातें बता दीं । फिर उसने राजकुमारी के कान में कुछ कहा । राजकुमारी बोली- " मंत्री जी , मैं आपकी पूरी मदद करूँगी । मैं भी यही चाहती हूँ की मेरे पिता ठीक ढंग से राज - काज करने लगें । " 

राजा अंदर ही अंदर क्यों परेशान था (raaja andar hee andar kyon pareshaan tha)

कुछ दिन बीते । सहसा राजकुमारी का अपहरण हो गया । राजा अपनी बेटी के दुःख में छटपटाने लगा । उसकी हँसी धीरे - धीरे घटने लगी । उसने राज्य में  डुग्गी मुनादी करा दी - ' जो राजकुमारी सरोज को ढूँढ़कर लाएगा , उसे मुँहमाँगा इनाम मिलेगा । ' 

दूसरे दिन घोड़े पर सवार एक सौदागर हँसता हुआ दरबार में आया । उसके साथ एक पालकी थी । पालकी में राजकुमारी सरोज बैठी थी । राजा ने दौड़कर बेटी को गले से लगा लिया । राजा ने कोषाध्यक्ष को आदेश दिया- " सौदागर को उसके मन मुताबिक खजाने से धन दे दो । " 

लेकिन सौदागर ने कोषाध्यक्ष को रोक दिया । सोदागर ने राजा से कहा- " महाराज ! मुझे धन नहीं चाहिए । " यह सुन , राजा अचंभित हुए । उसने पूछा- " फिर तुम्हें क्या चाहिए ? "

राजा ने क्या इनाम देने का वादा किया था (raaja ne kya inaam dene ka vaada kiya tha)

सौदार ने कहा- " महाराज , आप वचन दे चुके हैं कि जो राजकुमारी को खोजकर लाएगा , वह मुँहमाँगा इनाम पाएगा । " राजा ने कहा- " तुम्हें जो माँगना है , माँगो । " सौदागर ने मुसकराते हुए कहा- " मुझे आप अपने आँसू की दो बुदे दे दीजिए । " 

यह सुन राजा का माथा ठनका । उसने सौदागर को ध्यान से देखा । वह ' उग्रसेन - उग्रसेन ' चिल्लाते हुए सौदागर का वेश बनाए मंत्री से लिपट गया । वह फूट - फूटकर रोने लगा । राजा के साथ - साथ सभी दरबारी सिसकियाँ भरने लगे । उसके बाद बड़ी जोर जोर से बारिस होने लगी हरियाली होने लग जाती है 

तभी मंत्री ने कहा- " महाराज , सरोज का अपहरण मैंने ही किया था । " राजकुमारी हँसी । बोली- " पिताजी , यह सब मंत्री जी ने आपको समझाने के लिए किया था । " यह सुन , राजा का चेहरा खिल उठा । उसका बदला व्यवहार देख सब खुश थे ।

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