एक बार नारद मुनि घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुँचे । विष्णुजी शेषशय्या पर आराम कर रहे थे । नारद ने विष्णुजी को प्रणाम किया । विष्णुजी ने उन्हें अपने पास बैठाया । बोले- “ कहो मुनिवर ! यहाँ कैसे आना हुआ ? " नारद मुनि जिद्द करने लगे “ भगवान , आप हमें भ्रमरी महा देवी की कथा की जान जानकारी देने का कष्ट करें । "
यह सुन , विष्णु भगवान् बोले- " अच्छा तो ठीक है मुनिवर ! हम आपको देवी भ्रमरी की कथा सुना देता हूँ - काफी समय पहले अरुण नामक एक दैत्य रहा करता था । वह परम विद्यवान और महा शक्तिशाली हो जाने के बाद देवताओं को जीत कर उन पर राज करना चाहता था । अतः वह हिमालय पर जाकर गायत्री मंत्र का जाप करने लगा । वर्षों तक निराहार रहकर उसने जाप किया । जाप के प्रभाव से उसका शरीर तेजस्वी हो गया । उसका तेज सम्पूर्ण संसार एवं दुनिया में फैलता जा रहा था। उस राछस के परम तेज से देवताओ में डर का माहौल छा सा गया था।
वे आपस में विचार - विमर्श कर ब्रह्माजी के पास पहुँचे । इंद्र ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की ' प्रभो ! हमें दैत्यराज अरुण के तेज से डर लग रहा है । कृपया हमारे भय को दूर करें । ' " ब्रह्माजी ने देवताओं को आश्वासन देकर विदा किया । देवता लौट गए । ब्रह्माजी दैत्यराज अरुण के सम्मुख प्रकट हुए ।
उनकी आहट पाकर दैत्यराज की आँखें खुल गई । अपने सामने ब्रह्माजी को देख , वह हर्ष से झूम उठा । उसने ब्रह्माजी को प्रणाम किया । ब्रह्माजी बोले- " दैत्यराज , मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूँ । बोलो , में तुम्हें क्या वर दूँ ? " यह सुनते ही दैत्यराज ने कहा - ' प्रभो ! मैं कभी भी ना मरा जा सकू , आप हमको ऐसा वर देने की दया करें ।
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भारत की रहस्यमय घटनाएं |
ब्रह्माजी मुसकराकर बोले - ' दैत्यराज ! मैं तुम्हें यह वरदान देने में असमर्थ हूँ । मैं ही नहीं बल्कि विष्णुजी और शंकरजी भी ऐसा वर देने में असमर्थ हैं , क्योंकि जो पैदा होता है , वह मरता अवश्य है । अतः तुम कोई दूसरा वर माँगो । ' दैत्यराज ने कहा - ' प्रभो ! मैं अस्त्र - शस्त्र से न मरूँ । स्त्री - पुरुष और पशु - पक्षी भी मुझे न मार सकें , आप ऐसा वर देने का कष्ट करें ।
ब्रह्माजी ने ' तथास्तु ' कहा और अंतर्ध्यान हो गए । दैत्य खुशी से झूमता हुआ पाताल लोक पहुँचा । उसने ब्रह्माजी से मिले वरदान के बारे में अपने दरबारी दैत्यों को बताया । दैत्यों ने कहा- “ दैत्यराज ! अब आप जल्दी ही देवताओं पर आक्रमण कर दें । देवताओं की हार निश्चित है । "
दैत्यराज को यह सलाह बिलकुल अच्छी लगी । उसने दूतो को बुलावा कर । दूतो को एक पत्र लिख कर दे दिया और बोला - ' दूत , तुम यह पत्र जल्द से जल्द इस पत्र को देवताओं के समच्छ पहुँचा का काम करो। ' दूत पत्र लेकर स्वर्ग में पहुँचा । उसने देवराज इंद्र को दैत्यराज का पत्र दिया । पत्र पढ़कर इंद्र घबरा गये ।
दूत चला गया , तो देवताओं ने पत्र के बारे में पूछा । " इंद्र बोले - ' दैत्यराज , अरुण ने हम पर आक्रमण की धमकी दी है । हम उसके सामने टिक नहीं पायेंगे । क्योंकि ब्रह्माजी के वरदान से वह परम शक्तिशाली हो गया है । हमें तुरंत ब्रह्मा , विष्णु और शंकरजी की शरण में चलना चाहिए । वे ही हम सभी को बचा पाएंगे ।
' यह सोच , सभी देवता भगवान शंकर से मिलने चल दिए । इसी बीच दैत्यराज ने स्वर्गलोक पर हमला कर सूर्य , चंद्र , अग्नि और यम को परास्त कर दिया । अब उसका स्वर्गलोक पर अधिकार हो गया । " उधर देवता भगवान शंकर की शरण में बैठे थे । तभी आकाशमणी हुई - ' यदि दैत्यराज अरुण किसी तरह से गायत्री मंत्र का जाप छोड़ दे और देवता ईशानी की पूजा करना प्ररम्भ करे, तो इससे हमेशा के लिए दैत्यराज से मुक्ति मिल जायेगी
आकाशवाणी सुन शंकरजी बोले- ' देवराज इंद्र , अब आप वैसा ही करें , जैसी आकाशवाणी हुई है । आप सबका कष्ट दूर हो जाएगा । ' देवता प्रसन्न हो गए । देवराज इंद्र ने आचार्य बृहस्पति से मंत्रणा की । बृहस्पति उनकी बात मानकर दैत्यराज अरुण के सम्मुख जा पहुँचे । ' “
दैत्यराज अरुण अपने सामने बृहस्पति को देख हैरान था । वह फिर बोला - ' आचार्य बृहस्पति , मैं आपका शत्रु हूँ , फिर भी आप यहाँ पधारे ! यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ? ' बृहस्पति ने बोला - ' दैत्यराज , जो देवी हमेशा हम देवताओं की सहयता करने में लगी हुयी रहती हैं , तुम सभी उन देवी की पूजा करते रहे भगवान ने चाहा सब ठीक होगा।
ऐसे में तुम हमारे मित्र हो या फिर शत्रु । ' ! यह सुनते ही दैत्यराज का माथा ठनका । उसका गायत्री मंत्र से विश्वास डगमगा गया । इसी बीच माया ने दैत्यराज को अपने वश में कर लिया । उसने गायत्री मंत्र का जाप त्याग दिया । जाप छोड़ते ही दैत्यराज तेज रहित हो गया । । "
उधर देवताओं ने ईशानी का ध्यान किया । देवी प्रसन्न हो गईं । वह देवताओं के सम्मुख प्रकट हुई । देवताओं ने देवी को प्रणाम कर कहा - ' देवी , आप भ्रमरों ( भौरों ) से युक्त हैं । अतः आप संसार में आज से भ्रमरी देवी के नाम से प्रसिद्ध होंगी । आप दैत्यराज अरुण का वध हमें उसके भय से मुक्त करने का कष्ट करें ।
देवी बोलीं- " देवगण ! मैं जल्दी ही आप सबको कष्ट से मुक्त कर दूँगी । आप चिंता न करें । ' इतना कहते ही चमत्कार हो गया । देवी के चमत्कार से चारों तरफ भ्रमर ही भ्रमर दिखाई देने लगे । दैत्यों की सेना खुशी से झूम रही थी । तभी भ्रमरी देवी ने ढेर सारे भ्रमरों के साथ दैत्यों पर हमला कर दिया ।
इस आक्रमण से दैत्यों में खलबली मच गई । दैत्यराज अरुण को कुछ भी सोचने - समझने का समय नहीं मिला । भ्रमर उसके शरीर से चिपट गये और उसे काटने लगे । दैत्यराज चीखने - चिल्लाने लगा और इधर - उधर भागने लगा । भ्रमरों ने काट - काटकर उसे बेदम कर दिया ।
दैत्यराज जमीन पर गिरते ही मर गया । उसकी सेना भी भाग खड़ी हुई । " यह समाचार मिलते ही देवताओं में खुशी की लहर दौड़ गई । " - कहते हुए भगवान विष्णु ने कथा पूरी की । कथा सुनकर नारद गद्गद हो गये ।
भ्रामरी देवी मंत्र (Bhramari Devi Mantra)
भ्रामरी देवी मंत्र या "भ्रामरी प्राणायाम मंत्र" एक प्रकार का प्राणायाम है जो ध्यान और मन को शांत करने में मदद करता है। इस मंत्र का उच्चारण करने से व्यक्ति एक शांत और स्थिर मन के साथ अपने आस-पास की वातावरण से जुड़ सकता है।
भ्रामरी प्राणायाम मंत्र का उच्चारण करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
एक शांत मंदिर में बैठें जहां आपको किसी भी तरह का अफ़सोस नहीं होगा।
अपनी आंखें बंद करें और अपने श्वास को धीरे से बाहर निकालें।
अपने अंदर की ताकत के साथ, गले के अंदर से नीचे की ओर इनहेल करें। और जब आप श्वास छोड़ते हैं, उस समय अपने होठों को मध्यम से बंद करें और भ्रामरी मंत्र (मुँह से भींग कर बजाने वाले की तरह) उच्चारित करें।
भ्रामरी मंत्र है: "ऊं भ्रामरीं नमः।" इस मंत्र को धीरे से बोलते हुए अपने साँस को बाहर निकालें। इसे कुछ समय तक दोहराते रहें।
इस प्रकार के दिनचर्या का अभ्यास करने से आप तनाव, से छुटकारा पा सकते हैं.
भ्रामरी शक्तिपीठ (Bhramari Shaktipeeth)
भ्रामरी शक्तिपीठ भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भ्रामरी देवी को समर्पित है जो कि देवी शक्ति के एक रूप में जानी जाती हैं।
भ्रामरी शक्तिपीठ में भ्रामरी देवी की मूर्ति स्थापित है जो कि स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें भ्रामरी देवी की मूर्ति लगातार गुड़ियों के साथ बदलती रहती है, जिसका मतलब है कि हर गुड़िया एक नया रूप धारण करती है और उसे नए कपड़ों में लपेटा जाता है। इस विशेषता के कारण यह मंदिर देश विदेश से भ्रमण करने वाले श्रद्धालुओं की भी खास पसंद है।
भ्रामरी शक्तिपीठ वादी के निकट रांगमों नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है जो इसे देवी शक्ति का अनमोल खजाना मानते हैं। भ्रामरी देवी मंदिर में विशेष पूजा और भक्ति अनुष्ठान के दौरान अनेक श्रद्धालुओं का भारी भीड़ जमा होती है