राजा और चोर की कहानी | world famous folk tales

story of king and thief


एक बार एक राजा वेश बदलकर रात में नगर का भ्रमण कर रहा था । अचानक वर्षा होने लगी । उसने एक मकान का दरवाजा खटखटाया । अंदर जाकर राजा ने गृहस्वामी से कहा- " मैं कई दिनों से भूखा हूँ । भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे हैं । जो कुछ हो , मुझे तुरन्त खाने को दे दो । " वह गृहस्वामी स्वयं अपनी पत्नी व बच्चों सहित तीन दिन से भूखा था । 

घर में अन्न का एक दाना तक न था । वह बड़े धर्म - संकट में पड़ गया कि अपने भूखे अतिथि को कहाँ से भोजन कराएँ ? तभी उसके मन में एक विचार आया । वह घर से बाहर निकला और सामने एक दुकान से दो पुट्ठी चावल चुरा लाया । पत्नी ने उन्हें पकाकर अतिथि को खिलाने के लिए कहा । अगले दिन दुकानदार ने राजा से पड़ोसी की शिकायत की । कहा कि उसने दुकान से चावल चुराए हैं । 

राजा ने तुरंत उस व्यक्ति को बुलवा लिए । जब राजन ने चावल की चोरी के बारे में पूछताछ की । उसने साफ साफ अपना अपराध काबुल करते हुए बीते हुए रात की सारी घटना सुना डाली । दोनों हाथ जोड़कर बोला- " राजन , हमारा खुद का family तीन दिन से भूखा रह रहा है । 

मैंने खुद के लिए चोरी नहीं किया और ना ही जीवन में करता , चाहे जान क्यों ना निकल जाते , लेकिन बीते आधी रात में घर पर आए हुए अतिथि को भूखा पेट नहीं रख सकता था । राजा यह सुनकर बहुत दुखी हुआ । उसने बताया कि अतिथि वह स्वयं था । फिर उसने उस दुकानदार को बुलवाया । पूछा कि क्या उसने अपनी दुकान से पड़ोसी को रात में चावल चुराते हुए देखा था ? 

दुकानदार के हाँ कहने पर राजा ने कहा- " इस घटना के लिए प्रथम दोषी तो मैं स्वयं हूँ । दूसरा दोषी यह दुकानदार है जिसने रात में पड़ोसी को चावल चुराते देख लिया , परन्तु तीन दिन तक पड़ोसी को परिवार सहित भूखा रहते नहीं देखा । इसने अपना पड़ोस धर्म नहीं निभाया । "

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