मानवता एक बार कन्नड़ देश में क्षय रोग का आक्रमण हुआ । रोगियों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी । वहाँ नगरों में नियुक्त राज्य अधिकारियों ने राजा वेंकप्पन से निवेदन किया । पत्र भी लिखे और स्वयं उपस्थित होकर भी सारी जानकारी दी ।
राजा वेंकप्पन ने उन अधिकारियों की बात सो विशेष महत्व नहीं दिया । अन्त में वही बीमारी राजधानी में भी फैलने लगी । कई नागरिक क्षय रोग के शिकार हो गये । अब राजा वेंकप्पन की आँखें खुलीं और उन्होंने नगर में एक विशाल क्षय रोग अस्पताल बनवाया ।
उसमें अच्छे अच्छे चिकित्सकों की नियुक्ति की गयी । राजा चिकित्सालय का उद्घाटन अपने राज कुलगुरु आत्मानन्द के कर - कमलों से करवाना चाह रहे थे । पर उन दिनों महात्मा आत्मानन्द किसी वन में एकान्तवास कर रहे थे । राजा वेंकप्पन वन में पहुँचे और महात्मा आत्मानन्द से निवेदन किया , "
गुरुदेव , मेरी प्रबल इच्छा है कि क्षय चिकित्सालय का उद्घाटन आपके कर - कमलों द्वारा हो । " इसके उत्तर में कुलगुरु आत्मानन्द ने कहा , " राजन , मैं क्षय चिकित्सालय के उद्घाटन के लिए नहीं , उसे बन्द करने के दिन आना चाहता हूँ । " कहकर महात्मा आँख बन्द कर ध्यान राजा वेंकप्पन समझ गये के महात्मा आत्मानन्द उस दिन में गये
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राजधानी में कदम रखना चाहते हैं , जिस दिन क्षयरोग पूरी तरह नष्ट हो जायेगा और चिकित्सालय की आवश्यकता नहीं रहेगी । राजा ने महात्मा के मानवता के संदेश को हृदये में रखकर रोग के निर्मूलन में अपनी पूरी शक्ति लगा दी और अन्त में सफलता प्राप्त हुयी पुरे देश में शांति का महौल फिर से बन गया तब सब ने चयन की सास ली ।