राम ने किया हनुमान की खूब बड़ाई | learn from hanuman ji

हनुमान जी से सीख


एक दिन हनुमान की प्रशंसा करते हुए श्रीराम ने सीताजी से कहा , " देवी , लंका - विजय में यदि हनुमान का सहयोग न प्राप्त हुआ होता तो आज भी मैं सीता - वियोगी ही बना रहता । "आर्यपुत्री  सीता माता  ने पूछा , " आप हर - बार हनुमान जी की बड़ाई करते नहीं थकते हैं । कबो उनके बलो - शौर्य की , कभी तो उनके ज्ञान विद्या की , कबो उनके चातुर्य की । 

अतः आज आप एक ऐसा प्रसंग सुनाइवे , जिसमें उनका चातुर्य लंका - विजय में विशेष सहायक रहा हो । ” “ ठीक याद दिलाया तुमने । " श्रीराम बोले , " वैसे तो वुद्ध से रावण थक चुके थे । अनेक योद्धा हनुमान द्वारा मारे जा चुके थे । अब युद्ध में विजय प्राप्त करने का उसने अंतिम उपाय सोचा । देवी को प्रसन्न करने के लिए सम्पुटित मंत्र द्वारा चंडी महायज्ञ । यज्ञ प्रारंभ हो गया । चतुरशिरोमणि हनुमान बेचैन हो उठे । 

यदि यह यज्ञ पूर्ण हो जाता तो देवी द्वारा प्रदत्त बल पर रावण की विजय निश्चित थी । बस , तुरन्त हनुमान ने ब्राह्मण का रूप धारण करके रावण के यज्ञ में सम्मिलित ब्राह्मणों का काम करना प्रारम्भ कर दिया । ऐसी निस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने कहा , " विप्रवर ! हम आपकी सेवा से संतुष्ट हैं। । 

आज हम से कोई भी वरदान माँग सकते है । " पहिले तो हनुमान जी ने कुछ भी लेने से मना कर दिया , परन्तु सेवा से खुश हुए ब्राह्मणों का आग्रह मद्दे नजर रखते हुए हनुमान जी ने एक वर माँग लिया | " वरदान में हनुमान ने क्या मांगा ? " सीता मैया के प्रश्न के इच्छुक थी , " जल्दी  बताइये , भगवन । ” " उनकी उसी वर - याचना में ही तो चातुर्य है हनुमान का । 

भगवान् श्रीराम बताने लगे , " जिन मंत्रो से सम्पुटीकरण से हवन हो रहा था , उसी मंत्र में से एक शब्द का परिवर्तन करने को हनुमान जी ने उस वरदान में माँग लेते है और बेचारे भोले-भाले ब्राह्मणों ने ' तथास्तु ' बोल देते है। 

वही वह मंत्र है जिसके कारण ' अर्थ ' का ' अनर्थ ' बन जाता है , जिससे नाते रावण का विनाश हो जाता है " एक ही शब्द में इतना अर्थ - परिवर्तन ? " सीताजी ने कहा , परन्तु कौन से वह मंत्र और शब्द थे ? " तब भगवन श्रीराम ने बताया , " वह मंत्र कुछ इस प्रकार से है 

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि ।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि मनोऽस्तु ते ।। " 

इस श्लोक में ' भूतार्तिहारिणि ' में ' ह ' के स्थान पर ' क ' उच्चारण करने का हनुमान ने वर माँगा । ब्राह्मणों ने वैसा ही किया । ' भूरार्तिहारिणि का अर्थ है - ' सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली । ' इस प्रकार एक अक्षर के परिवर्तन से रावण का सर्वस्व नाश हो गया । 

यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद जब रावण को यह ज्ञात हुआ तो उसने अपने दसों मुखों से हनुमान की प्रशंसा की । " यह प्रसंग सुनकर सीताजी अत्यंत आल्हादित हुई ।

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