श्रीराम की अंगूठी कहानी | Shriram's ring

 

श्रीराम की अंगूठी कहानी

जब रामलीला समाप्त हो गयी तो अन्य दर्शकों के साथ आठ वर्ष की आयु का नन्हा पिंटू भी अपने स्थान से उठा । घर की ओर प्रस्थान करने से पूर्व उसने नित्य की भाँति मंच के निकट जाकर पर्दे में से अन्दर की ओर झांका तथा यह देखने की कोशिश की कि अन्दर क्या हो रहा है ।

रोजाना की तरह आज भी उसे वहाँ कुछ लोग बतियाते नजर आये । इससे अधिक वहाँ कुछ नहीं था । वह चुपचाप लौटने लगा । अचानक ही उसे मंच के नीचे एक ओर कुछ चमकती सी वस्तु नजर आई । निकट जाकर उसने उत्सुकता से उस वस्तु को उठा लिया । वह एक सोने की अंगूठी थी । 

पिंटू को याद आया कि कुछ ही देर पहले मंच से रामलीला के आयोजकों ने सूचना दी थी कि भगवान राम की सोने की अंगूठी उनकी अंगुली में से निकलकर कहीं गिर गयी है । किसी को मिले तो अवश्य लौटाने की कृपा करें । पिंटू ने सोचा कि हो न हो यह वही अंगूठी है और इसलिए उसे लौटा देनी चाहिए । 

उसके पैर उठे भी , किन्तु अगले ही क्षण उसने अपने को रोक लिया । अंगूठी उसे अच्छी लग रही थी । यद्यपि वह अंगूठी उसकी अंगुली के लिए काफी ढीली थी , फिर भी वह उसे अपने पास तो रख ही सकता था । पिंटू ने यह सोचकर भी अपने मन को दिलासा दिया कि अंगूठी उसने चुरायी तो है नहीं । सो उसे अपने पास रखकर वह कोई अपराध नहीं कर रहा है । 

पिंटू अंगूठी लेकर अपने घर आ गया । अपने माता - पिता से उसने इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा । वह जानता था कि यदि वह अंगूठी के बारे में उनसे कुछ कहेगा तो वे न केवल अंगूठी को सही मालिक को लौटा देंगे , बल्कि इसके लिए उसे डाटेंगे भी । सो उसने चुपचाप अंगूठी को अपनी पुस्तकों के बीच एक ओर छुपा दिया और अपनी चारपाई पर लेट गया । 

पिंटू काफी देर तक इधर - उधर करवटें बदलता रहा । उसका एक मन कहता कि भगवान राम की अंगूठी उठाकर उसने बहुत बड़ा अपराध किया है और तभी उसका दूसरा मन उसे यह कहकर दिलासा देता कि उसने यों ही पड़ी हुई वस्तु को उठाकर कोई अपराध नहीं किया है । 

इसी तरह सोच - विचार दे रहे हैं । उसने उठकर बिजली का बटन दबा दिया । सम्पूर्ण कमरा प्रकाशित हो उठा । फिर भी पिंटू का डर कम नहीं हो पाया । स्वयं उसका अपना - अपराध बोध ही उसे डसे जा रहा था ।

किसी तरह दिन निकलता तो पिंटू ने तय किया कि वह आज ही , बल्कि अभी भगवान राम की अंगूठी को लौटा आएगा । नहा धोकर वह जल्दी से तैयार हुआ और अंगूठी लेकर उस तरफ चल दिया , जहाँ रामलीला पार्टी के लोग ठहरे हुए थे । 

पिंटू ने वहाँ जाकर सरसरी तौर से इधर - उधर देखा । साधारण वेशभूषा में अनेक लोग बैठे थे । उनमें से कोई भी व्यक्ति उसे भगवान राम की आकृति से मिलता - जुलता नजर नहीं आया । आशंका हुई कि अंगूठी कहीं किसी गलत आदमी के हाथों पड़ गयी तो हनुमान जी उस पर और भी अधिक नाराज होंगे । 

सो वह चुपचाप लौट आया । उसने सोचा कि रात्रि को रामलीला के समय जब भगवान राम मंच पर आयेंगे , तभी वह उनकी अंगूठी उन्हें लौटा देगा । दिनभर पिंटू का मन बड़ा बुझा - बुझा सा रहा । माता - पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों ने उससे कारण जानना चाहा तो उसने किसी तरह बात टाल दी । 

रात्रि को पिंटू काफी पहले ही रामलीला के स्थान पर चला गया और उसके शुरू होने की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगा । अंगूठी को उसने कसकर अपनी मुट्ठी में जकड़ा हुआ था कि कहीं गिर न जाए या कोई छीन न ले । रामलीला शुरू हुई और ज्योंही मंच पर भगवान राम आए त्योंही पिंटू आर्तनाद करता हुआ मंच की तरफ लपका और उनके पैरों पर गिरकर माँगने लगा- ' " 

मुझे क्षमा कीजिए भगवन् ! मुझे आपकी अंगूठी मिल गयी थी । फिर भी मैंने उसे लौटाया नहीं । अब आप अपनी अंगूठी संभालिए और अपने हनुमानजी को कह दीजिए कि वे भी मुझे क्षमा कर दें । अब मैं कभी कोई गलत काम नहीं करूँगा । ' 

क्षण भर को तो कोई कुछ समझ ही नहीं पाया । बाद में जब मंच पर खड़े राम ने वस्तुस्थिति को समझा तो उनकी आँखों में सचमुच ही अश्रु उमड़ आए । उन्होंने पिंटू को उठाकर अपने सीने से लगा ` लिया । निकट खड़े हनुमानजी ने भी उसे प्रेम से उठाकर अपने कंधे पर चढ़ा लिया और इधर - उधर उछलकूद करने लगे । 

पिंटू का मन खुशी से झूम उठा । रामलीला के दर्शक प्रारम्भ में तो इन सब बातों को रामलीला का ही हिस्सा मान रहे थे , लेकिन बाद में आयोजकों ने सम्पूर्ण स्थिति को उनके सामने स्पष्ट कर दिया और सभी ने पिंटू की भूरि - भूरि प्रशंसा की ।

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