एक पंडित की जबरदस्त कहानी | inspirational story of priest

पुजारी और शराबी की कहानी

 बहुत पुरानी बात है । अयोध्या नगरी के समीप एक गाँव में पंडित रत्नाकर महाराज नाम के एक सम्पन्न सुशील और सदाचारी ब्राह्मण रहा करते थे । वे भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे । उनके होंठ दिन - रात राम नाम का जाप किया करते थे । उठते - बैठते  सोते जागते  हर समय वे रामजी के आराधना में ही डुबे रहते थे । 

यद्यपि पंडितजी ने वैराग्य नहीं लिया था फिर भी रहन - सहन किसी सन्यासी से कम नहीं था । तन पर भगवा परिधान मुख पर रामजी की आभा बस देखते ही बनती थी । सरल स्वभाव और मृदुल वाणी ने उन्हें और अधिक लोकप्रिय बना दिया था । दीन दुखियों की सहायता और बेसहारों को सहारा देने में उन्हें विशेष आनन्द आता था। पूजा अर्चना से उन्हें जब भी फुर्सत मिलती वे आत्मविश्लेषण और आत्मचिंतन में लीन हो जाते । 

अपनी पूजा और अपनी भक्ति का स्मरण कर वे फूले नहीं समाते । वे सोचने लगते कि इस नश्वर संसार से विदा होकर जब वे स्वर्ग सिधारेंगे तब उन की इस मेहनत और सुकर्म के फलस्वरूप ईश्वर के दरबार में उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जायेगा जिस तरह देवताओं के साथ किया जाता है 

स्वर्ग की अनेक अप्सराएँ उनकी सेवा में उपस्थित रहेंगी । वहाँ उन्हें भी एक विशिष्ट स्थान प्रदान किया जाएगा । यह सोचते सोचते पंडित रत्नाकर जी आत्मविभोर हो उठे । बड़ा गर्व था उन्हें अपनी आराधना पर । उन्हें पूर्ण विश्वास था कि इस कलियुग में उनसे बढ़कर कोई दूसरा तपस्वी हो ही नहीं सकता । उसी गाँव में रूप नारायण नाम का एक बहुत ही धनी व्यापारी रहा करता था । 

सेठ रूप नारायण में वे सारे अवगुण विद्यमान थे जो किसी रईस में आमतौर पर रहा करते हैं । वह व्यभिचारी जुआरी और शराबी व्यक्ति था । जब तक जागता रहता  निरंतर मदिरापान किया करता था । गाँव का हर आदमी उसे देखते ही घृणा से मुँह फेर लेता था । लोग उसे नर्क का कीड़ा कहा करते थे । व्यापारी को अपने परलोक की लेशमात्र भी चिन्ता नहीं थी । 

एक दिन संध्या के समय भगवान श्रीराम अपने एक विशेष देवदूत के साथ उसी गाँव से गुजर रहे थे । अचानक उस देवदूत की दृष्टि उस शराबी व्यापारी पर पड़ गई । देवदूत ने घृणा भरे स्वर में कहा छी - छी  संसार में कैसे - कैसे घृणित लोग भी रहा करते हैं । वह देखिये  उस शराबी को जिसके कुकृत्यों के कारण बस्ती के लोग उसे नर्क का कीड़ा कहते हैं वहीं उससे थोड़ी दूर  मंदिर के पास  आपका एक अनन्य भक्त रहता है  जिसकी भक्ति की मिसाल हमारे देवलोक में भी मिलना कठिन है ।

देवदूत की बातें सुनकर भगवान श्रीराम के होठों पर मुस्कुराहट फैल हई । उन्होंने बड़े मधुर स्वर में कहा तुम गलत सोच रहे हो देवदूत । वह शराबी नर्क का कीड़ा नहीं है । मरणोपरान्त वह स्वर्ग में स्थान पाएगा और जिसे तुम मेरा अनन्य भक्त कह रहे हो वह व्यक्ति  नर्क में जाएगा । इतना सुनते ही देवदूत आश्चर्य में पड़ गया और वह प्रश्न भरी दृष्टि से उनकी ओर देखने लगा । 

भगवान श्रीराम ने उसकी शंका का समाधान करने के उद्देश्य से कहा जाओ तुम स्वयं उन दोनों व्यक्तियों से मिल आओ । मेरे उस तथाकथित भक्त से कहना ईश्वर ने तुम्हारे लिये स्वर्ग में एक स्थान सुरक्षित कर दिया है और उस शराबी से कहना ईश्वर तुम से बहुत नाराज है । उसने उसके लिये नर्क में सबसे खराब स्थान का चयन किया है । 

देवदूत सर्वप्रथम उस तपस्वी के पास पहुँचा और उससे कहने लगा बधाई हो मित्र बधाई हो ! मैं तुम्हारे लिये एक शुभ समाचार लेकर आया हूँ । ईश्वर ने तुम्हारी अराधना से प्रसन्न होकर तुम्हारे लिये अभी से स्वर्ग में एक स्थान सुरक्षित कर दिया है । इतना सुनते ही पंडितजी का चेहरा उतर गया । 

उन्होंने बड़े दुखी स्वर में कहा बस केवल स्वर्ग में एक स्थान ! क्या मेरी इस घोर तपस्या की कीमत केवल स्वर्ग में एक स्थान ही है ? मैं तो समझ रहा था मेरी इस घोर उपासना के फलस्वरूप मुझे देवलोक में कोई विशिष्ट स्थान प्राप्त होगा । मैंने जो कुछ भी पुण्य किया है वह केवल देवलोक में स्थान पाने के लिये ही किया है । 

अगर देवलोक में स्थान नहीं मिला तो मेरी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी । देवदूत को उसकी बातें सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ । वहाँ से उठकर वह सीधा उस शराबी व्यापारी के घर पहुँचा और उसे घृणा भरी निगाहों से घूरते हुए बोला अरे मूर्ख ! तेरा इस संसार में आना व्यर्थ हो गया । ईश्वर तुझसे बहुत नाराज हैं । उसने तुझे नर्क में सबसे खराब स्थान प्रदान किया है ।

इतना सुनते ही वह शराबी खुशी से झूम उठा और प्रसन्नता भरी आवाज में कहने लगा हे देवदूत ! क्या आप सच कह रहे हैं ? क्या ईश्वर को मुझ जैसे अस्तित्वहीन व्यक्ति की भी चिन्ता है ? मैं धन्य हो गया प्रभु ! मैं तो समझता था कि मेरी कोई गिनती ही नहीं है । हे देवदूत ! ईश्वर से कहना उसकी दी हुई हर जगह मेरे लिये स्वर्ग के समान है । 

दोनों व्यक्तियों से मिलकर देवदूत जब भगवान श्रीराम के समक्ष पहुँचा तो उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा क्यों अब तो तुम्हारी समझ में आ गया होगा कि उस भक्त को नर्क और शराबी को स्वर्ग क्यों दिया जा रहा है । याद रखो लालच में की गई उपासना  सेवा अथवा दान का कोई महत्व नहीं होता । वह भक्त केवल देवलोक में स्थान पाने के लालच में तपस्वियों का स्वांग रचाए हुए था । इसीलिये उसकी अराधना उसके उपकार व्यर्थ चले गये ।

देवलोक तो दूर उसे स्वर्ग भी नहीं मिल सका । उधर दूसरी ओर वह शराबी यद्यपि बुरा आदमी है किन्तु वह अपने पापों के लिये निःश्छल मन से लज्जित रहता है । उसका ईश्वर पर अटूट विश्वास है । उसका दिया हुआ नर्क भी उसके लिये स्वर्ग के समान है । वह नर्क पाकर भी संतुष्ट है । उसकी यह आस्था एकदम निःस्वार्थ है । 

उसमें कोई दिखावा या लालच नहीं है । उसकी इसी आस्था ने उसे नर्क से निकालकर स्वर्ग में डाल दिया है । स्वार्थी को कहीं भी शान्ति नहीं मिलती इस बात ठीक  तरीके से समझ लो । इतना बोलकर राम जी वहाँ से आगे चलते चले गए ।

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