पाताल की परी की कहानी | fairy tale of Hades

 परियों की रानी का मन ज़ब भी कभी उदास होता था तो वह अपने - आप ही चाँद - सितारों से बातें करने लगती थी । उसे पता था कि परियों का राजा तो देवराज इन्द्र है जिसके दरबार में हजारों परियाँ नृत्य करती हैं । वह तो सब देवों के भी देवराज हैं । उनकी लीला सबसे न्यारी है । वही अन्नदाता भी हैं । वर्षा तो उन्हीं की कृपा से होती है । 

यह मेघ जब मलहार गाते हैं तो देवराज इन्द्र की ही उपासना करते हैं । उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए मलार राग गाते हैं । जब इन्हें क्रोध आता है तो इनमें से गर्जने की आवाजें आती हैं । ठीक ऐसे ही जैसे कोई शेर जंगल में गर्जता है तो लोग डर जाते हैं । 

मेघों के इस मलहार राग को केवल देवराज ही पसंद करते हैं । उन्हें पता होता है कि पहले ये मेघ गरजेंगे फिर बरसेंगे । जब वर्षा की फुहारें पड़ती हैं तो पशु - पक्षी तक झूमने लगते हैं । जंगल में शेर की गर्जना बंद हो जाती है और मोर नाचने लगते हैं । ' 

आनन्द और खुसी " परियों की रानी उस आनन्द के नाम पर खड़ी हो जाया करती थी । उसको भी आनंद मै होना  चाहिए था । परन्तु यहा पाताल लोक में मौज कहाँ से  मिलता है ? इसी आनन्द को प्राप्त करने के लिए तो वह पाताल लोक से निकलकर भूलोक पर आ जाती और घंटों इस जंगल में बैठकर दूर आकाश के चाँद सितारों को देखती रहती थी । अपने आप ही चाँद से बातें करती रहती थी । 

चाँद और देवराज इन्द्र दोनों ही उसके पूज्य देव थे । आज जब वह धरती पर आई तो उसका मन बड़ा ही उदास था । वह बार - बार आकाश की ओर देखकर कह रही थी " हे भगवान ! आपने मुझे दुनियाँ भर की सुन्दरता देकर परियों की रानी तो बना दिया लेकिन मैं अकेली इस सुन्दरता को लेकर क्या करूँ ? 

इस सुन्दरता का लाभ तो तब है जब कोई प्रशंसा करने वाला तो हो । कोई भूले से ही आकर कह दे कि- " हे पाताल परी ! तुम कितनी सुन्दर हो । तुम तो बहुत भाग्यवान हो जिसे प्रभु ने इतनी सुन्दरता दी है । तुम्हारी सुन्दरता को देखकर तो पत्थर भी पिघल जाते हैं । 

पाताल की परी की कहानी


इन्सान तो बेचारा क्या शक्ति रखता है । वह तो है ही सुन्दरता का दिवाना । हे परी ! तुम इतनी सुन्दर होकर इतनी उदास क्यों बैठी हो । तुम्हें तो खुशी के मारे . नाचना चाहिए , गाना चाहिए , झूमना चाहिए क्योंकि तुम सुन्दर ही नहीं अति सुन्दर हो । " ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ । 

वह बेचारी अकेली आकर इस जंगल में घंटो बैठकर चाँद की ओर देखती रहती । चाँद आकाश पर और वह धरती पर फिर उसे राजा इन्द्र की याद आती और सोचने लगती- " हे भाग्य विधाता ! तुमने मेरे साथ यह कैसा अन्याय किया । इस पाताल में फैंक दिया । यहाँ पर तो कोई बुद्धिमान प्राणी नज़र नहीं आता । 

बौनों के उस देश की मुझे रानी तो बना दिया और साथ में इतनी सुन्दरता भी दे दी और मुझे सब कुछ देकर फिर सब कुछ छीन लिया । क्या लाभ है इस सुन्दरता का जिसका कोई प्रशंसक ही नहीं ? इससे तो अच्छा था मुझे काली - कलूटी असुन्दर लड़की बनाकर किसी किसान मजदूर से मेरा विवाह करवा देते । इससे मेरा घर तो बस जाता ।

मेरा भी कोई पति होता , जिससे मैं अपने मन की बात तो कर सकती । मैं उससे प्रेम की दो बातें करके अपने मन को प्रसन्न कर लेती । हम अपनी एक दुनियाँ बसाते । प्यार की दुनियाँ ! भले ही मैं सुन्दर न होती मेरी दुनियाँ तो सुन्दर बन जाती । अब इस सुन्दरता का मुझे क्या लाभ हुआ ? कुछ नहीं । मैं तो रो रही हूँ , अकेली बैठी हूँ । 

कभी राजा इन्द्र को याद करती हूँ तो कभी इस चाँद की सुन्दरता को देखती हूँ । यह चाँद भी कितना भाग्यशाली है , जिसकी सुन्दरतों की प्रशंसा पूरा संसार करता है । जिधर देखो उधर ही उदाहरण के लिए चाँद का ही नाम लिया जाता है । कोई भी तो परियों का नाम नहीं लेता । 

सारे के सारे प्रेमी चाँद को ही याद करते हैं । मैं तो यही सुनती आई हूँ कि चाँद प्रेमियों का राजा है । सारे प्रेम करने वाले इससे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । फिर यह मुझे क्यों आशीर्वाद नहीं देता । सुना है चाँद के द्वार से कभी कोई खाली नहीं जाता । 

हे चाँद ! मेरी भी उ  पासना स्वीकार कर लो । मैं भी आपकी चरणों की दासी हूँ । मैं भी आपकी पुजारिन हूँ । मेरे भी आँसुओं को धोकर मेरा प्रेम संसार बसा दो । गोरा हो या काला पर हो दिलवाला । जो एक बार आकर यह तो कह दे कि - " हे पाताल परी ! तुम बड़ी मस्तानी हो । तुमने मेरा मन जीत लिया है । मैं तो तुम्हारा प्रेम दिवाना बन गया हूँ । मैं तुमसे प्रेम करता हूँ । 

आओ हम विवाह कर लें , प्रेम विवाह । " " हाँ हाँ चन्दा मामा दूर के मेरी फरियाद सुनो । मेरे मन की आवाज़ सुनो । " आज मैं तुम्हारे चरणों की धूल माथे पर लगाकर प्रेम पुजारिन बन गई हूँ । अपनी पुजारिन को प्रेम का आशीर्वाद जब तक आप नहीं दोगे तब तक मैं आपके चरणों से नहीं उठूगी । " 

यह कहते हुए पाताल की परी रानी धरती पर गिर गई । वह अपने मन में तो चाँद की प्रार्थना कर रही थी । चाँद से अपने मन की खुशियाँ माँग रही थी । वह पाताल के सूखे नीरस जीवन से इतनी दुःखी हो गई थी कि वहाँ का राज - पाट छोड़कर धरती के किसी भिखारी से भी शादी करने के लिए तैयार हो गई थी । पाताल वापस जाने का उसका मन नहीं था । उस देश के लोग अच्छे नहीं थे । 

वहाँ के मानव प्रेम नाम की कोई चीज़ नहीं जानते थे । उन्हें चाँद और सितारों से कोई प्रेम नहीं था , न वे चाँद - सितारों के गीत गाते थे । छोटे - छोटे कद , चपटी नाकें , अंदर धंसी हुई आँखे , पुराने जमाने के लंगूरों जैसे इन मानवों में प्रेम - भावना ही कहाँ थी ? वे तो साँपों , कछुओं , मछलियों से खेलते थे । काले साँप उनके विशेष प्रिय साथी थे । हर समय अपने गले में साँप लटकाए रखना । यह उनकी आदत थी । 

हर नर - नारी साँप गले में डालकर चलते थे । “ ऐसे लोगों के बीच में जाकर मैं क्या करूँगी ? उन पर राज करने का क्या लाभ है ? " उनमें और भेड़ बकरियों में क्या अंतर है ? " पाताल - परी यही सोचती हुई उस जंगल में बैठी रही । न जाने कब वह हरी - हरी घास पर लेट गई । ठंडी हवा के झोंके । हरी - हरी घास के पास ही बहती नदिया , क्या आनन्दमय मौसम था ? पाताल परी न जाने कब और किस समय मीठी नींद की गोद में सो गई । ऐसी नींद उसे पहली बार आई थी । 

सहसा , पाताल परी ने सपने में देखा कि कोई राजकुमार उसके पास आया है । उसके सपनों का  राजकुमार जिसके होंठों पर हँसी नाच रही थी । उसे देखते ही पाताल परी गद गद हो गई । इससे पहले कि राजकुमार उसे अपनी बाहों में भर लेता । ठीक उसी समय एक काला देव बीच में आकर खड़ा हो गया और राजकुमार की क्रोध भरी दृष्टि डालते हुए बोला- " रुक जाओ ! रुक जाओ ! खबरदार जो एक कदम मेरी पाताल परी की ओर बढ़ाया । मैं तुम्हें हवा में उड़ाकर सागर में फैंक दूंगा । 

मगर तुम होते कौन हो मेरा रास्ता रोकने वाले ? " राजकुमार अकड़कर बोला । " मैं पाताल देश का राजा हूँ । यह हमारे देश की सुन्दर परी है । यह रास्ता भूलकर भू - लोक आ गई थी । मैं इसकी तलाश में यहाँ तक आया हूँ । अब इसे वापस अपने देश लेकर जाऊँगा । "' नहीं ! तुम ऐसा नहीं कर सकते । 

मुझे रोकने वाला कोई नहीं । " " मैं हूँ न । " “ देखो पाताल के राजा ! यह अब भू लोक में आ चुकी है । भू लोक पर हमारा कब्ज़ा है । अब तुम हमारी आज्ञा के बिना इसे कहीं नहीं ले जा सकते । " " यह परी है राजकुमार तुम्हारी दासी नहीं । यदि अधिक तंग - करोगे तो उड़ जाएगी । " " मैं इसके पंख पहले ही काटकर फैंक दूंगा । फिर यह कैसे उड़ेगी ? " पंख काटने से पहले मैं तुम्हें पाताल देश ले जाऊँगा । फिर वहाँ से कैसे आओगे ? " ' साहस हो तो मुझे हाथ लगाकर दिखाओ । " 

राजकुमार को क्रोध आ गया था । काला देव भी क्रोध से भर गया । उसने पाताल परी को उठाने का जैसे ही प्रयास किया तो राजकुमार ने अपनी तलवार निकाल ली और उसी समय ...। पाताल का राजा भी लड़ने के लिए तैयार हो चुका था । उसके मुँह से तेज़ आग निकली , जिसकी शक्ति से राजकुमार के हाथ में पकड़ी तलवार पानी की भाँति पिघल गई । राजकुमार उस आग को देखकर डर गया । ऐसे में वह करे तो क्या करे ? 

पाताल का राजा तो बहुत बड़ा जादूगर लगता है । पाताल परी ने जैसे ही पाताल राजा के खूनी रूप को देखा तो वह डरकर उठ खड़ी हुई । उसने पाताल के राजा से कहा- " ठहरो । अपनी आग को यहीं बंद कर दो । नहीं तो मैं ... " ' तुम क्या करोगी ? ' मैं इससे विवाह करूँगी । " ' तुम पागल हो गई हो । क्या तुम्हें नहीं पता कि तुम पाताल लोक की परी हो और यह भू - लोक का मानव है । 

तुम दोनों का विवाह कैसे हो सकता है ? " " प्रेम " ' प्रेम और वह भी भू - लोक के मानव से ! हा ... हा ... हा ...। " पाताल का राजा ज़ोर - ज़ोर से पागलों की भाँति हँसने लगा । ' इसमें हँसने की क्या बात है ? प्रेम तो मैंने किया है । मैं ही विवाह करूंगी । ' " नहीं यह शादी नहीं हो सकती । " वह इतनी ज़ोर से चिल्लाया की वृक्षों पर बैठे पक्षी भी डरकर उड़ने लगे । " 

यह शादी होगी । " परी भी ज़ोर से चिल्लाई । ' तुम्हारी शादी मुझसे होगी और किसी से नहीं । मैं तुम्हारा होने वाला पति हूँ । " तुम और मेरे पति ..... वाह वाह ... यह तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुमसे विवाह कर लूँगी ? " " मैं पाताल का राजा हूँ और तुम पाताल की परी रानी हो । " " तुमने कभी अपनी शक्ल देखी है ? तुम एक काले देव और मैं एक परी । हमारा तुम्हारा क्या मेल ? मैं तो इसी राजकुमार की रानी बनूँगी । " " नहीं ... नहीं ... नहीं ... सौ बार भी मैं यही कहूँगा कि यह शादी नहीं होगी । '

 मैं कहती हूँ कि मेरी शादी इसी राजकुमार से होगी । इसे मैंने अपना पति मान लिया है । " और मैंने तुम्हें बहुत पहले अपनी पत्नी मान लिया था ।  ' मैंने तो नहीं माना ।  ' मैं तो इसी राजकुमार की रानी बनूँगी । " " मैं इसे मार डालूँगा । " “ मैं इसे शादी के योग्य नहीं रहने दूंगा । " उस पाताल के देव ने अपने मुँह से फिर आग निकाली । परी समझ गई थी कि यह पापी राजकुमार को जला देगा ।

 राजकुमार को बचाना होगा । " राजकुमार को बचाना ही होगा । " यही सोचकर परी ने अपने देवता इन्द्र से प्रार्थना की- " हे देवराज इन्द्र ! आप ही हम परियों के रक्षक हो । आप ही मेरी लाज रखो । नहीं तो यह खूनी देव मेरे राजकुमार को जलाकर राख कर देगा । " उसी समय आकाश पर काले बादल उमड़ आए बादलों की गर्जना सुनकर धरती भी काँपने लगी । 

देवराज इन्द्र का क्रोध तीनों लोकों को हिलाने लगा । कुछ देर में तेज़ वर्षा होने लगी । इस वर्षा में पाताल के देवराज के मुख से निकलने वाली आग एकदम से ठंडी हो गई । पाताल का राजा आश्चर्य से यह सब दृश्य देख रहा था । उसने जो की आग राजकुमार जादू पर फैंकी थी वह पानी में बुझ गई । देवराज इन्द्र स्वयं वहाँ पर प्रकट हुए उनके प्रकाश को देखकर पाताल का राजा काला देव एकदम डर गया । 

वह देवराज के पैरों में गिरकर बोला- " मुझे क्षमा कर दो देवराज ! मुझसे भूल हो गई । अब आप मुझे मत जलाना । " काला देव देवराज इन्द्र के पैरों में गिर गया । पाताल परी खड़ी हँस रही थी । तभी देवराज इन्द्र ने उससे कहा- “ तुम्हारी तपस्या पूरी हो गई । अल्कनन्दा जाओ , तुम इस राजकुमार से शादी करके अपना घर बसा लो । " बस इतनी बात कहकर देवराज इन्द्र चले गए ।

पाताल परी ने राजकुमार से विवाह करके अपना घर बसा लिया । पाताल की परी अब भू - लोक पर रहने लगी । राजकुमार इस परी को पाकर बड़ा खुश था ।


और नया पुराने