बालेन्द्र हुए संघ के परिचारक | How did the attendants of Balendra Sangh become

Balendra became the attendant of the Sangh


एक समय ऐसा भी आया जब तथागत जी ने सभी भिक्षु संघ की एक मेटिंग कराई । उन्होंने प्रत्येक से बोला- " अब हम तकरीबन छप्पन साल की उम्र से अधिक हो चली है। अब हमें एक ऐसे ब्यक्ति की जरूरत है जो हमारे कर्तव्य कर सके । यह संघ हमें इसकी अनुमति भेंट करे । " 

यह सुनकर सारिपुत्र तता मौद्गल्यायन आदि भिक्षुओं ने सेवा करने के लिए उत्सुकता प्रकट की । तथागत ने इसे स्पष्ट शब्दों में अस्वीकार करते हुए कहा– “ आप लोग भिक्षु धर्म को निभा सके और संघ तथा तथागत की वह सबसे निक सेवा मानी जाएगी । " 

तथागत की यह राय सुनकर संघ के कई बुजुर्ग सदस्यों ने भिक्षु बालेन्द्र को प्रोत्साहित करते हुए कहा- " बालेन्द्र , तुम्हारे लिए यह अच्छा अवसर है । तुम तथागत से सेवा करने का अवसर माँगो । " मुसकराकर बालेन्द्र ने कहा- " ऐसा कहकर मै अन्य बंधुओं का शुभ अवसर छीनना नहीं चाहता । "

लेकिन बालेन्द्र , तथागत की सेवा करने का अवसर तुम्हें त्यागना नहीं चाहिए । बल्कि दूसरे को मिल रहा हो , तो उसे झपट लेना चाहिए । " -एक ने राय प्रकट की । “ मैं कोई चील - कौआ थोड़ी ना हूँ, जो अवसर पाके झपट्टा मारूँ । " - बालेन्द्र ने कहा । - " सोच लो बालेन्द्र ! तथागत के सेवा करने का यह मौक़ा फिर इतनी सरलता से मिले या फिर ना मिले, क्या पता ? एक ने खुद के  इरादा बोल दिया । 

उसके बाद काफी देर में बालेन्द्र ने कहा- " आप हमारे  well wisher हैं । इस नाते इसका हम बहुत कृपा मानता हूँ । हमारा यह मानना है कि सेवा पर मेवा सहज में नहीं मिल जाती । तथागत मुझे भी संघ कार्य में लीन देख रहे हैं । वह यदि उचित समझकर मुझे स्वयं सेवा का आदेश प्रदान करेंगे , तो हमारे ख़ुशी का धरान नहीं रह जाएगा । " 

संघ के सदस्यों की ये बातें तथागत तक भी पहुँची । वह बोले “ भिक्षुओं , बालेन्द्र को प्रोत्साहित करने की जरा भी जरूरत नहीं है । हमारी वह खुद सेवा करेगा । हम उसके दिल की बात समझता हूँ । वह हमारी सेवा करके हमारा  परिचारक बनेगा। ” 

तथागत की यह बात सुनकर बालेन्द्र प्रसन्न हो उठे । बोले- " मैं आभारी हूँ कि आपने मुझे परिचारक बनने के योग्य समझा । किंतु मेरी चार इच्छाएँ और चार याचनाएँ है । कृपया आप उन्हें स्वीकार करें । " तुम्हारी wishes है वह जो भी है , जरा हम सुन तो ले। उसके बाद  कुछ बताऊंगा। " -तथागत ने बोला । 

बालेन्द्र ने कहा- " मेरी ये चार इच्छाएँ हैं आप अपने पाए हुए चीवर , पात्र आदि मुझे उपहार स्वरूप नहीं दें । भिक्षा में हिस्सा भी नहीं दें । एक गंध कुटी में निवास न दें और अपने निमंत्रण में मुझे लेकर भी नहीं जाएँ । " " तुम्हारी इच्छाओं का पूरा सम्मान है बालेन्द्र । एक जिज्ञासा अवश्य है कि इसमें तुमको दोष क्या दिख रहे है ? मुझे स्पष्ट रूप से बतलाओ । " तथागत ने तभी प्रश्न किया । " 

भगवन् , यदि ये चारों चीजें जारी रखेंगे तो मेरे सहयोगी सोचेंगे , बालेन्द्र स्वार्थ वश कुछ पाने की लालसा में सेवा कर रहा है । " ठीक है । मैं तुम्हारी चारों इच्छाओं को पूरा करूंगा । तथागत ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाकर कहा । " और भगवन , मेरी चार वाचनाएँ भी हैं । इन्हें भी आप सुनकर उचित आदेश प्रदान करें । " -बालेन्द्र ने विनय की । - " बताओ वे क्या - क्या हैं ? " 

भगवन , वे चार याचनाएँ इस तरह हैं -- आप मेरे निमंत्रण में अवश्य ही आएँ । दर्शनार्थ आने वाले व्यक्ति को मैं उचित अवसर पर जब चाहूँ , तभी आपके दर्शन करवा सकूँ । मुझे किसी समय भी आपके पास आने की रोक न हो । कहीं और जो आप प्रवचन दें , वह भी हमको आकर सुना दीजिये । हम आपकी इस कृपा के लिए हमेशा आभारी रहूँगा । " - 

बालेन्द्र ने बोला । "वत्स चंद , तुम्हारी इच्छाओं और याचनाओं को स्वीकार करते हुए मै बहुत आनंदित हूँ । " कहकर तथागत ने आनंद को चरणों में पड़ा देखकर, सिर पर आशीष भरा हाथ रखा । बालेन्द्र संघ के परिचारक हो गए ।

और नया पुराने