एक समय जापान देश का निप्पन शहर मासामू नामक राजा की राजधानी था । मासामू उस क्षेत्र का अत्याचारी राजा था । प्रजा उससे बहुत दुखी थी एक दिन अपने सभासदों के साथ मासामू घूमने निकला । एक पवित्र स्थान देख , वह अपने जूते बाहर छोड़ , अंदर चला गया । द्वारपाल का नाम होईशिरो था ।
उसने सोचा - ' ऐसे बर्फीले मौसम में राजा के जूते भीग जायेंगे । राजा जब उन्हें पहनेगा , तो उसे कष्ट होगा । ' होईशिरो ने राजा के जूते कपड़ों में लपेट , सुरक्षित स्थान पर रख दिये । उस समय हल्की - हल्की वर्षा हो रही थी । राजा लौटकर आया , तो होईशिरो ने जूते राजा के सामने कर दिए । राजा सूखे जूते देख , आश्चर्य चकित हो उठा । उसने सोचा ' सबके जूते भीग गए , किंतु मेरे जूते सूखे ही हैं । जरूर होईशिरो इन पर बैठा होगा । इसे सजा देनी चाहिए । '
यह सोच , राजा मासामू का चेहरा क्रोध से लाल हो गया । उसने उन्हीं जूतों से होईशिरो को पीटना शुरू कर दिया । उसे इतना पीटा कि वह बेहोश हो गया । दूसरे दिन जब होईशिरो को होश आया , तो उसका पूरा बदन दर्द से टूट रहा था । राजा सहित सब लोग जा चुके थे । राजा जूतों को भी वहीं छोड़ गया था । होईशिरो ने अपने अपमान का बदला लेने का विचार किया ।
उसने सोचा - ' साधु - संत बनकर राजा मासामू से बदला लेना चाहिए । राजा लोग साधु - संतों का बहुत आदर करते हैं । बदला लेने का यही मार्ग उत्तम रहेगा । ' होईशिरो एक बौद्धमठ में पहुँचा । वह भिक्षु बन गया । उसने बौद्धभिक्षु बनकर भगवान बुद्ध की आराधना की । एक दिन आराधना के समय भगवान बुद्ध प्रकट हुए । उन्होंने होईशिरो को आशीर्वाद दिया । होईशिरो बहुत प्रसन्न हुआ ।
उन्हीं दिनों जापान का सम्राट मिकाडो बीमार हो गया । उसका सभी छोटे - बड़े वैद्यों ने इलाज किया , मगर वह ठीक नहीं हुआ । एक गुप्तचर भिक्षु होईशिरो को पकड़कर सम्राट के सामने ले गया । प्रधानमंत्री फूको ने कहा- “ भिक्षु होईशिरो जी , हमारे सम्राट की जान खतरे में है । इन्हें आप ठीक कर दें । आपकी प्रार्थना और आशीर्वाद से ही अब महाराज के प्राण बच सकते हैं । "
भिक्षु होईशिरी ने प्रार्थना की । संयोग से सम्राट मिकाडो की हालत में सुधार होने लगा । राजा मासामू के कानों में भिक्षु होईशिरो की कीर्ति का समाचार पहुँचा , तो वह होईशिरो के दर्शन के लिए लालायित हो उठा । राजा मासामू भिक्षु होईशिरो से भेंट करने के लिए चल पड़ा । राजा होईशिरो के आश्रम में पहुँचा । भिक्षु होईशिरो एक आसन पर ध्यानमग्न प्रार्थना कर रहे थे । उसने देखा , भिक्षु होईशिरो के आसन के समीप एक जोड़ी जूते हैं । मासामू को आश्चर्य हुआ - ' भिक्षु तो जूते नहीं धारण करते । फिर ये जूते यहाँ क्यों रखे हैं ? '
राजा मासामू ने भिक्षु होईशिरो को प्रणाम करके पूछा " महाराज , जूते यहाँ कैसे ? ये जूते किसके हैं ? " भिक्षु होईशिरो ने मुस्कराकर कहा- " राजन् , ये जूते सिद्धि का मार्ग दिखाते हैं । इन्हीं के कारण में सारी सिद्धियाँ प्राप्त कर सका । " बस , राजा ने तुरंत उन जूतों को श्रद्धा से स्पर्श किया । होईशिरो ने राजा मासामू को उन जूतों का सारा वृत्तांत सुनाया । फिर कहा- “ ये जूते आपने ही मुझे भेंट किये थे । "
अब राजा मासामू , भिक्षु होईशिरो के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा । भिक्षु होईशिरो ने कहा- " राजन् , भूल किससे नहीं होती ? भूल को क्षमा करना ही क्षिभु का श्रेष्ठ धर्म है । जाओ , और विवेक से राज्य चलाओ । " राजा मासामू प्रसन्न हो गया ।