जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है | Jagannath In Hindi

 पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक बार उनकी  लाडली बहना सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्‍ण और बलराम से नगर देखने की इच्‍छा जाग उठी थी। तब दोनों भाई अपनी प्‍यारी बहना को रथ में बैठाकर पूरा नगर भ्रमण कराते हुए ले गए थे। रास्‍ते में तीनों ने अपनी मौसी के घर गुंडिचा देवी भी गए और यहां पर उन्होंने तकरीबन 7 दिन तक रुके और जिसके बाद में नगर यात्रा को पूरा करके वापस पुरी को लौट आये। बताते हैं कि तभी से यहां पर हर वर्ष रथ यात्रा निकालने की परंपरा का सुरु हो गया था। रथ से जुड़ी कुछ और भी खास बातें और परंपराएं इस लेख के जरिये आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा जानिए कब से होगी शुरू भगवान जगन्नाथ के स्मरण में निकाली जाने वाली 'जगन्नाथ रथ यात्रा का लोग बहुत बेसब्री से इंतजार किया करते हैं। आपको याद दिला दें कि जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में से एक होता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित किया है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में सदीओ से स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ 'जगत के स्वामी' को कहा जाता है। 

रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है?

इस नाते पुरी नगरी 'जगन्नाथपुरी' कहलाने लगी है। इस रथ यात्रा को देखने के लिए हर वर्ष दस लाख से भी अधिक  तीर्थयात्री आया करते हैं। बताया जाता है कि जो इन्शान  इस रथ यात्रा का हिस्सा होता है वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा जाता है। उनके रथ पर ईश्वर जगन्नाथ की एक झलक बहुत ही बहुत शुभ मानी जाती है। इस त्योहार को ‘दशवतार यात्रा,घोसा यात्रा,नवादिना यात्रा’ एवं ‘गुंडिचा यात्रा’ के नाम से भी जाना समझाजाता है। 

जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा कब है?

श्री जगन्‍नाथ रथ यात्रा शुभ मुहूर्त


श्री जगन्‍नाथ रथ यात्रा की तारिक : 1 जुलाई 2022, शुक्रवार, 

द्वितीय तारिक का आरंभ : 30 जून, सुबह 10:49 

द्वितीय तारिक की समाप्ति : 1 जुलाई, दोपहर 01:09 तक

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व

दस दिन तक के  इस महोत्सव से इन्शान की सारी  परेशानियां खत्म हो जाती हैं। इस रथयात्रा का पुण्य 100 यज्ञों के बराबर माना जाता है। इस वक्त उपासना के दौरान अगर कुछ भी उपाय किये जाएं तो श्री जगन्नाथ अपने भक्तों की सम्पूर्ण समस्या को जड़ से समाप्त कर देते हैं। धार्मिक मान्यताओं को माने तो यह शुभ रथ यात्रा भगवान जगन्‍नाथ जी के मंदिर से निकालकर प्रसिद्ध गुंडिचा माँ के मन्दिर तक पहुंचाया जाया करता है। वहा पर भगवान जगन्‍नाथ जी सात दिनों तक विश्राम किया करते हैं। सात दिनों तक विश्राम करने के बाद में मंदिर में वापीस लाया जाता हैं। इस रथ यात्रा में शम्मिलित होने से व्यक्ति के जीवन से सारी कष्ट दूर भाग जाती हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी



रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई से होंगी


इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव सम्पूर्ण दुनिया में खूब मशहूर है, हर वर्ष आषाढ़ महीने की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा सुरु होती है और शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन समाप्ति होती है। इस वर्ष रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई 2022, दिन शुक्रवार से सुरु हो रही है। ढोल, नगाड़ों, शंखध्वनि और तुरही के बीच भक्तगण लोग इन रथों को खींचते हैं।


रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ हुआ करता है


गौरतलब है कि रथयात्रा में सभी से आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में सुभद्रा देवी का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ हुआ करता है। तीनों जने के रथ को खींचकर मौसी के घर यानी कि गुंडीचा मंदिर को लाया जाता है जो कि यह मंदिर जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर में पड़ता  है।


भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' भी कहा जाता हैं


बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' बताते हैं, जिसका रंग लाल और हरा में हुआ करता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' एवं 'पद्म रथ' भी कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का बना होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' एवं 'गरुड़ध्वज' कहा जाता  हैं। इनका यह रंग लाल और पीला बना होता है।


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