हरिद्वार में माया देवी मंदिर सती के अवतार देवी माया को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां मंदिर के अंदर देवी सती की नाभि और हृदय गिरा था। देवी माया, देवी काली और देवी कामाख्या की मूर्तियों को मंदिर के अंदर रखा गया है। नवरात्रि और कुंभ मेले के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आते हैं। इस मंदिर में दर्शन का समय सुबह 6 बजे से 12 बजे तक है इसलिए आप शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक दर्शन कर सकते हैं।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरिद्वार में स्थित है माया देवी शक्तिपीठ। हरिद्वार के केंद्र में स्थित माया देवी मंदिर, जिसे 'धर्मनगरी' कहा जाता है, देवी के 51 शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण है।
मनसा देवी की कथा Mansa Devi Mandir
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग, पहने हुए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बने। इसे अति पवित्र तीर्थ कहा जाता है। यह तीर्थ स्थल सारे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला हुआ हैं। देवी की पुराण में 51 तीर्थों का वर्णन मिलता है।
मान्यता
माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां माता सती की "टेढ़ी" लाश गिरी थी। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ तंत्र साधना भी की जाती है।
मायादेवी की कथा
एक लोक कथा के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार खंघाल में यज्ञ किया था। यज्ञ में शिव शंकर के अपमान से क्रोधित होकर माता सती ने हवन कुंड में अपनी आहुति दे दी। शिव शंकर इससे परेशान थे और अपनी पत्नी को तलाक देने के चक्कर में रास्ता भटक गए। कहा जाता है कि बंटवारे के दौरान भोले शंकर सती के शव को लेकर जगह-जगह भटकने लगे। इस पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से शिव शंकर का एकांतवास समाप्त करने के लिए सती के शव के 51 टुकड़े कर दिए। जहां-जहां ये भाग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ऐसा माना जाता है कि सती का शव 'भी' माया देवी मंदिर में गिरा था और इस स्थान को माया देवी के नाम से जाना जाने लगा। इसीलिए मायादेवी मंदिर को सभी 51 शक्तिपीठों में प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि इसी कारण इस पावन भूमि को 'मायापुरी' कहा गया। ब्रह्मपुराण में सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी बताया गया है। इनमें मायापुरी भी शामिल हैं।
ऐतिहासिकता
माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11वीं शताब्दी से मिलता है। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है। त्योहारों के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर पहुंचते हैं। माया देवी मंदिर में प्राचीन काल से ही देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ तंत्र साधना भी की जाती है। भगवती की नाभि हरिद्वार में गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। हरिद्वार की रक्षा के लिए महात्रिकोण है। इस त्रिकोण के दो बिंदु मां मनसा के रूप में पहाड़ों पर हैं और मां चंडी रक्षा कवची के रूप में हैं, जबकि त्रिकोण का शीर्ष पृथ्वी की ओर है और भगवती माया उसी अधोमुख शीर्ष पर विराजमान हैं।
माया देवी की पूजा-पाठ
मां के इस दरबार में मां माया के अलावा भक्तों को मां काली और देवी कामाख्या के दर्शन का भी सौभाग्य प्राप्त होता है। जहां मां काली देवी माया के बाईं ओर और फिर दाईं ओर मां कामाख्या विराजमान हैं। मां माया की कृपा से बिगड़े काम भी बन जाते हैं और सफलता के मार्ग में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां के चमत्कारों की कहानी लंबी है और उनकी महिमा अनंत है। जब वह माया माता के द्वार पर आया तो और कहीं नहीं गया। मां माया देवी मंदिर के साथ एक भैरव बाबा का मंदिर भी मौजूद है और माना जाता है कि मां की पूजा तब तक पूरी नहीं होती जब तक भक्त भैरव बाबा की पूजा करके उनकी पूजा नहीं करते। जो लोग भगवती की प्रात: और संध्या आरती में सम्मिलित होते हैं, वे अखण्ड पुण्य के भागी होते हैं।
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आरती की ज्योति पर मां की अनंत कृपा होती है और आरती की ज्योति के प्रकाश से जीवन के सभी कष्टों का अंधकार दूर होता है और भक्तों के जीवन में खुशियों का प्रकाश आता है। मां माया देवी के पीछे शाम को हजारों भक्त मां के दर्शन करने, उनकी आरती में शामिल होने का इंतजार करते हैं और जब मां का श्रृंगार और पूजा करने के लिए ढोल, नगाड़े और घंटियों की आवाज आती है तो भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है.
त्रिभुज
माया देवी शक्तिपीठ की विशेषता यह है कि वह मनसा देवी और चंडी देवी को मिलाकर एक अद्भुत त्रिभुज बनाती है। माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों को इस अद्भुत त्रिकोण का दिव्य वरदान प्राप्त होता है।
माया देवी की महत्ता
मां मायादेवी मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। यहां आने वाले श्रद्धालु मां शक्ति की पूजा करते हैं। मान्यता है कि मां मायादेवी मंदिर में की गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती है। नवरात्रों में इस मंदिर में पूजा का विशेष महत्व होता है। यहां आने वाले भक्तों में मां मायादेवी के मंदिर के प्रति गहरा सम्मान होता है और माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से पूजा करता है और मां के दरबार में जाता है, मां कभी भी उसकी पुकार नहीं सुनती हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्त मां को भक्ति पुष्प चढ़ाना नहीं भूलते। यूं तो मोक्ष में असंख्य मंदिर हैं, लेकिन मां माया का यह मंदिर अपने चमत्कारों की वजह से पूरे शहर में अलग पहचान रखता है। यह मां की महिमा है और भक्तों की आस्था है जो न केवल हरिद्वार बल्कि देश के कोने-कोने से भी यहां एकत्रित होकर मां के आगे शीश नवाते हैं।
कैसे पहुँचें
माया देवी शक्तिपीठ हरिद्वार रेलवे स्टेशन से सिर्फ दो किमी दूर है। की दूरी पर स्थित है। यहां ऑटो, रिक्शा, टेम्पो और तांगे से आसानी से पहुंचा जा सकता है
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर क्या है?
माया देवी कौन थी (Who was Maya Devi)
माया देवी भारतीय हिंदू धर्म की देवी हैं। वह हिंदू धर्म की शक्ति देवी हैं और मां दुर्गा, मां काली और मां अम्बे जैसी नामों से भी जानी जाती हैं। माया देवी का महत्व देवी भागवतम् और दुर्गा सप्तशती के अनुसार बताया जाता है। वह शक्ति, सामर्थ्य और संरक्षण की देवी हैं जो समस्त विश्व को उनके भक्तों की संरक्षा में रखती हैं। वह सभी शक्तियों की देवी हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए उनकी उपासना की जाती है।
माया देवी क्या करती है (What does Maya Devi do)
माया देवी को हिंदू धर्म में संसार की माया या मोहिनी का दर्शन कराने वाली देवी माना जाता है। उन्हें सभी प्रकार की शक्तियों का प्रतीक भी माना जाता है और वे समस्त विश्व की संरक्षक भी हैं।
उनके नाम का अर्थ "माया" होता है, जो कि संसार के मोह में फंसे हुए लोगों को उनकी असली पहचान बताने के लिए होता है। माया देवी भक्तों की रक्षा करती हैं, उन्हें संसार से मुक्त कराती हैं और उन्हें शांति और ध्यान के मार्ग पर ले जाती हैं।
उन्हें उपासना करने से मनुष्य को भवसागर से पार करने की शक्ति मिलती है और वह अपने जीवन में सुख, समृद्धि और संतुष्टि प्राप्त करता है।
हरिद्वार में कौन सा शक्तिपीठ है (Which is the Shaktipeeth in Haridwar)
हरिद्वार में कुल मिलाकर तीन शक्तिपीठ हैं। ये हैं:
मां मंसा देवी का शक्तिपीठ
का शक्तिपीठ
मां माया देवी का शक्तिपीठ
माया का असली नाम क्या था (What was Maya's real name)
माया एक शब्द है जो कि अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं में है और इसका अर्थ होता है "भ्रम" या "वेदना का अहंकार।"
हालांकि, अगर आप संदर्भ में किसी व्यक्ति की बात कर रहे हैं, तो यह निर्धारित करना मुश्किल हो सकता है कि आप किस माया की बात कर रहे हैं। क्योंकि इस नाम के कई व्याख्याता और इतिहासकार होते हैं जो अपने अपने क्षेत्र में माया का उल्लेख करते हैं।
यदि आप हिंदू धर्म और पौराणिक कथाओं की बात कर रहे हैं, तो माया एक अलगावचक शक्ति है जो सृष्टि का एक आधार है। उस परमात्मा से अलग होने की अभिव्यक्ति है जो सांसारिक भ्रम और मोह से परे होते हुए सत्यता का अनुभव करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करती है।
कुछ लोग माया को गौतम बुद्ध की जन्म माता के रूप में भी जानते हैं। वे उनकी माता को माया नाम देते थे।
इसलिए, संदर्भ के आधार पर, माया का असली नाम निर्धारित करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
माया की उत्पत्ति कैसे हुई (How did Maya originate)
माया की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग धर्मों और दर्शनों में भिन्न-भिन्न विचार होते हैं। हिंदू दर्शन में, माया एक मूल शक्ति होती है जो सृष्टि का एक आधार है। वेदान्त दर्शन के अनुसार, माया एक अव्यक्त शक्ति है जो ब्रह्म की विकारिता का उत्पादन करती है। माया द्वारा, ब्रह्म सत्यता के विकल्पों का निर्माण करता है, जो हमें इस संसार में जन्म-मरण के चक्र में बंधने के कारण लाता है।
बौद्ध धर्म के अनुसार, माया जन्म माता थी जो गौतम बुद्ध की माता थी। माया बाद में बुद्ध धर्म के एक प्रमुख विषय बन गई जिसे संसार के दुःख की वजह माना जाता है।
इसके अलावा, अन्य धर्मों और दर्शनों में भी माया की उत्पत्ति के विभिन्न विचार हैं। उदाहरण के लिए, जैन धर्म में, माया संसार के भ्रम से संबंधित है जो आत्मा के मोह का कारण बनते हैं।
सम्पूर्ण रूप से कहा जा सकता है कि माया की उत्पत्ति के विभिन्न धार्मिक विचार हैं,
क्या माया और दुर्गा एक ही है (Are Maya and Durga the same)
नहीं, माया और दुर्गा एक ही नहीं हैं। दुर्गा हिंदू धर्म में एक देवी हैं, जो शक्ति की प्रतिनिधि हैं। वह दुर्गा, काली, चमुण्डा, देवी, आदि नामों से भी जानी जाती हैं। दुर्गा पौराणिक कथाओं में देवी सती की रूप रचना से उत्पन्न हुई थी, जो शिव की पत्नी थीं।
वहीं, माया ब्रह्म की शक्ति होती है जो वेदान्त दर्शन में समझी जाती है। माया संसार के विकारिता का कारण होती है जो हमें इस जगत में बंधने के कारण लाती है।
इसलिए, दुर्गा और माया दो अलग-अलग विषय हैं और इनके बीच कोई संबंध नहीं है।
माया माया का अर्थ क्या है (What is the meaning of Maya Maya)
"माया" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ "वेदनीय वस्तु" या "भ्रम" होता है। यह एक दुःख के कारण भ्रमण के सन्दर्भ में उपयोग किया जाता है। अर्थात, माया एक ऐसी शक्ति है जो हमें सत्यता से दूर ले जाती है और हमें दुःख में डाल देती है।
हिंदू धर्म में, माया शब्द का अर्थ विविध होता है। इसे सत्य की असत्य अनुभवों के माध्यम से उपलब्धि करने वाली शक्ति के रूप में भी जाना जाता है। इसे अज्ञान और आवरण शक्ति के रूप में भी जाना जाता है, जो वास्तविकता को छिपाकर रखती है।
सामान्य भाषा में, माया का उपयोग विविध होता है। यह एक भ्रम, दिखावा, भ्रंश, झूठ, चलचित्र, आभास, नकली, असली से अलग और धोखा जैसे शब्दों के साथ उपयोग किया जाता है।
माया देवी का पति कौन है (Who is the husband of Maya Devi)
माया देवी के पति का नाम उनके स्वयंभू सूत्र में उल्लेख नहीं किया गया है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, माया देवी तो शिव जी की अन्य रूपों की तरह दिखाई देती है, जो कि शक्ति के प्रतीक होते हैं। इसलिए कुछ लोग मानते हैं कि माया देवी का पति शिव होता है।
हालांकि, इस सम्बन्ध में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है और यह धार्मिक विश्वास के आधार पर अलग-अलग होता है।
माया की रचना किसने की (Who created Maya)
"माया" शब्द का उल्लेख वेदों में मिलता है, जो लगभग 3000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के बीच लिखे गए थे। वेदों में "माया" शब्द का व्यापक उपयोग किया गया है और इसे दुःख के कारण भ्रमण के सन्दर्भ में उपयोग किया गया है।
"माया" शब्द की रचना किसी व्यक्ति द्वारा नहीं की गई है। इसका उल्लेख भारतीय दर्शन और धर्म के विभिन्न पाठ्यक्रमों में होता है और यह अनुभवों के अध्ययन के आधार पर विकसित हुआ है। वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता, पुराणों और विभिन्न दर्शनों के ग्रंथों में "माया" की चर्चा की गई है।
भारत में कुल कितने शक्तिपीठ है (How many Shaktipeeths are there in India)
भारत में कुल 51 शक्तिपीठ हैं। इनमें से 4 पीठ पश्चिम बंगाल में, 4 पीठ उत्तर प्रदेश में, 3 पीठ तमिलनाडु में, 3 पीठ आसाम में, 2 पीठ उड़ीसा में, 2 पीठ मध्य प्रदेश में, 2 पीठ महाराष्ट्र में, 2 पीठ कर्णाटक में और 1 पीठ हरियाणा, अंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, मेघालय, राजस्थान, त्रिपुरा और वेस्ट बंगाल में हैं।
शक्तिपीठों में देवी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और इन्हें तीर्थ यात्रा के दौरान भ्रमण करने का विशेष महत्व है। शक्तिपीठों के दर्शन से लोग देवी की कृपा के अनुभव करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।