किसान की कहानी क्या है? | story of honest farmer

किसान के ऊपर कहानी

किसान की सफलता की कहानी कैसे लिखें?

एक गाँव में सुखदेव नामक एक किसान रहता था । वह बहुत मेहनती और ईमानदार था । सभी से प्यार से बोलता तथा कुशल व्यवहार करता था । गाँव वाले उसे बहुत पसन्द करते थे । गरमी की दोपहरी थी , इसलिए खेत में काम करते - करते सुखदेव थककर एक पेड़ के नीचे लेट गया । 

किसान को आखिर क्या एहसास हुआ?

उसी बीच उसकी पत्नी खाना लेकर आ गई सुखदेव खाना खाने लगा । उसकी पत्नी ने बैलों को पास वाले पेड़ से बाँध दिया । बैल जहाँ बँधे थे , वहाँ एक टीला था । बैलों ने सींग से टीले पर गड्ढा कर दिया । थोड़ी देर बाद सुखदेव की पत्नी घास लेकर बैलों के सामने डालने आई । उसने देखा , गड्ढे में लाल कपड़े में कुछ सामान बँधा है । उसने सुखदेव को बताया । वह गड्ढे को देखकर पहले तो आश्चर्य में डूबा रहा । फिर उसने लाल कपड़े को खोदकर निकाला । उसमें एक बक्सा था । 


उसने धीरे-धीरे बक्से को खोल दिया उसमे देखा , तो चकित सा रह गया । वह कीमती आभूषण से भरा हुआ था। राम ने हमारी सुन लिया। अब जिंदगी सुखी-ख़ुशी  कटेगी । " - उसकी पत्नी ने कहा । - " नहीं , मैं अपनी कमाई और ईमानदारी से पेट पालूंगा । ऐसी दौलत से जीवन में शांति नहीं मिलती । यह जिसका है , उसी को दे दूँगा । " - सुखदेव ने कहा । 

परन्तु इसका पता कौन लगाएगा , यह आभूषण किसके  है ? पत्नी ने बोली । " एक डुग्गी मुरादी वाला बोल रहा था , महारानी के कीमती आभूषण चोरी हो चुका है । हो ना हो यह जेवर उन्हीं का हो । पकड़े जाने के डर से वह चोर इस पेड़ के नीचे तोप गये हों । " पति बोला । खेत से लौटने पर किसान ने गाँव के सभी शुभ चिन्तक ब्यक्ति  को जूलरी दिखाते हुए पूरी बात कह दी । 

सभी लोगों की राय थी , ये गहने रानी के ही जान पड़ते हैं , इसलिए वह स्वयं उन्हें राजा को देकर आए । मगर रात्रि अधिक हो चुकी थी । महल भी काफी दूर था । " अभी रात हो चुकी है । राजमहल दूर है । रास्ते में कोई इन्हें छीन भी सकता है । मै इन्हें मुखियाजी को सौंपता हूँ उनके घर में ये सुरक्षित रहेंगे । कहते हुए सुखदेव ने मुखिया को जेवर सौंप दिये । 

नए चमकते जेवरों को देखते ही मुखिया के मन में खोट आ गया । उसने रात्रि में नये - नये जेवरों को छिपा , पुराने जेवर उसी तरह लाल कपड़े में लपेटकर बक्से में रख दिए । सुबह जेवर लेकर किसान राजा के सामने पहुँचा । उसने सारा किस्सा बताया । मंत्री ने जेवर का बक्सा खोलकर देखा , तो जेवर पुराने थे , लेकिन जेवरों पर लिपटा कपड़ा राजमहल का ही था । रानी ने कहा - " कपड़ा तो हमारा है , पर जेवर मेरे नहीं हैं । " नहीं , महाराज । हमने चोरी  नहीं की है । 

सुखदेव मंत्री की बात सुनकर डर सा गया । सुखदेव एक सीधा और अनपढ़ किसान था । घबराहट में काँपने लगा । फिर बोला " मैंने चोरी नहीं की है महाराज ! न जेवर बदले हैं । मैंने इन्हें रात में चोरों के डर से गाँव के मुखिया को सौंप दिए थे । रात भर उन्हीं के घर रखे रहे हैं ये जेवर । " 

मेहनती किसान की कहानी

राजा रानी दोनों को सुखदेव की चलिशा सुनकर दाल में काला सा लगा । राजा कुछ सोच विचार कर बोले -  क्या तुम  सत्य बोल रहे हो ? तुमने ये - गहने नहीं बदले ? " " हाँ , महाराज - किसान सुखदेव ने कहा । राजा ने मंत्री को बुलाया । सिपाहियों को गाँव के मुखिया को पेश करने की आज्ञा दी । कुछ ही देर में मुखिया दरबार में हाजिर हुआ । गाँव वालों को जब यह पता चला कि गहनों की चोरी और हेरा फेरी में सुखदेव को सजा मिलने वाली है , तो सभी चिंतित हुए । 

वे सब राजा के पास पहुँचे ! सारी बात बताई । राजा ने उनकी बातें गौर से सुनीं । विश्वास दिलाया कि दोषी को ही सजा मिलेगी । - राजा ने मुखिया से कहा - " तुम उन चोरों का पता बता दो । उन्हें पकड़वाने के लिए जो हजारों का इनाम रखा गया है , वह तुम्हें दिया जायेगा । असली गहने किसके पास हैं , किसने बदले , यह बता दो । तुम्हें एक हजार सोने की मोहरें और मिलेंगी । " 

एक हजार मोहरों का नाम सुनकर मुखिया के मुँह में पानी भर आया । वह सोचने लगा " उन गहनों से मोहरें कीमती हैं । " मुखिया बोला- " महाराज , मुझे आज की मोहलत दें । मेरे गाँव में दो शातिर चोर हैं । लगता है , उन्हीं का यह काम है । मै पता लगाकर सही बात कल बताऊँगा । " 

राजा ने मुखिया को जाने दिया , मगर उसके पीछे अपने जासूस भी लगा दिये । मुखिया कहीं गया नहीं । दूसरे दिन सुबह अपने घर से जेवर ले आया । राजा से कहा " महाराज , लीजिए असली जेवर । चोरों ने इन्हें छिपाकर घर में रखा था और दूसरे जेवर कपड़े में बाँधकर सुखदेव के खेत में गाड़ दिये थे । " 

मगर तभी जासूसों ने राजा को सारी बात बता दी । अब मुखिया चुप । जब दो कोड़े पीठ पर पड़े , तो अपना अपराध कबूल कर लिया कि जेवर उसी ने बदले थे । चोर कौन थे , यह पता न चल सका , मगर फिर दो कोड़े पड़े , तो मुखिया चिल्लाया- " हुजूर , हमने ही नजदीक के पिंड  से काफी चर्चित चोर से यह चोरी करवाया हुआ था । " तब जाकर चोर भी पकड़ा  गया और चोरी करने वाला  मुखिया भी । उनको जेल की लम्बी सजा मिली । उसके बाद सुखदेव किसान को राजा ने उस गाँव का नया मुखिया बना दिया ।

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