सावन माह का संकष्टी चतुर्थी व्रत तिथि | Ganesh Chaturthi Vrat Katha

Ganesh Chaturthi Vrat Katha


 सावन माह का संकष्टी चतुर्थी व्रत आज 


प्रत्येक महीने में दो बार चतुर्थी पड़ जाती  है। एक शुक्ल पक्ष में एवं दूसरी कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाया करता है जबकि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाया करता है। मान्यता यह भी है कि, संकष्टी चतुर्थी के तिथि को भगवान गणेश की पूजा से सभी तरह के विघ्न दूर हुआ करते हैं। जबकि सावन माह की संकष्टी चतुर्थी को गजानन संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाने जाते  है।


गजानन संकष्टी चतुर्थी तिथि


16 जुलाई 2022,

संकष्टी के तिथि को चंद्रोदय का समय 

चंद्रोदय का समय 09:49 PM

चतुर्थी दिन प्रारंभ 

16 जुलाई 2022 को 01:27 PM

चतुर्थी के दिन समाप्त 

17 जुलाई 2022 को 10:49 AM


पूजा विधि


संकष्टी चतुर्थी के तिथि को  व्रती को सुबह पहले उठकर नित्यकर्म एवं स्नान आदि से निवृत्त हो जाने की जरूरत होती है । उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना होता है  और हाथ में जल लेकर गणेश जी के सामने व्रत का संकल्प लेंने की जरूरत होती है 


जिसके बाद आप सूर्यदेव को जल अर्पित करने होते है । पूजास्थल पर  गणेश भगवान की मूर्ति स्थापित करने की जरूरत होती। इसके बाद उनका गंगाजल से अभिषेक करना पड़ता है । उन्हें चंदन लगाएं और गणपति जी को वस्त्र पहनाने का कार्य करे ।


इसके बाद उन्हें फूल-माला, 21 दूर्वा, फल, अक्षत, धूप-दीप, गंध इत्यादि अर्पित करें और मोदक का भोग लगाना ना भूले । अब आपको गणेश चालीसा का पाठ करना होता है और संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा को पढ़ें एवं सुनें। अंत में भगवान गणेश जी की आरती करें। दिनभर फलाहार रहने की जरूरत होती है और रात के वक्त चंद्रमा को जल अर्पित करने की अव्सक्ता होती है । इसके बाद व्रत का पारण कर ले । इसके बाद रात्रि में जागरण कर ले एवं भजन-पूजा करने के बाद प्रसाद बताना सुरु करें।


श्रावण मास की चतुर्थी कथा- 


ऋषिगण कहते हैं कि हे स्कंद कुमार! दरिद्रता, शोक, कुष्ठ आदि से विकलांग, शत्रुओं से संतप्त, राज्य से निष्कासित राज, हमेशा दुखी रहने वाले, धनहीन, समस्त उपद्रवों से दिखहारी, विद्याहीन, संतानहीन, घर से निष्कासित ब्यक्तिओ , रोगियों एवं अपने कल्याण की कामना करने वाले ब्यक्तिओ को क्या उपाय करना चाहिए जिससे उनका कल्याण हो और उनके उपरोक्त कष्टों से उबारो। यदि आप कोई जुगाड़ जानते हो तो उसे बतला दे ।


स्वामी कार्तिकेय जी ने बोला - हे ऋषियों! आपने जो प्रश्न कर दिया हैं, उसके निवारणार्थ मैं आप लोगों को एक शुभदायक फल बतला देता हूं, उसको सुनिए। इस व्रत के करने से पृथ्वी के समस्त प्राणी सभी संकटों से मुक्त हो जायेंगे । यह व्रतराज महापुण्यकारी एवं मानवों को सभी कार्यों में सफलता देने वाला है। विशेषतया यदि इस व्रत को महिलाएं करती तो उन्हें संतान एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।


इस व्रत को धर्मराज युधिष्ठिर ने भी किया था। पूर्वकाल में राजच्युत हो जाने के बाद अपने भाइयों के साथ जब धर्मराज वन को चले गए थे, तो उस वनवास काल में भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे बोला था। युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपने सारी कष्टों के शमनार्थ जो प्रश्न कर दिया  था, उस कहानी को आप ग्रहण कीजिए।


युधिष्ठिर पूछते हैं कि, हे पुरुषोत्तम! ऐसा कौनसा उपाय हैं जिससे हम वर्तमान सारी संकटों से मुक्त हो पाए। हे गदाधर! आप सर्वज्ञ हैं। हम लोगों को आगे अब किसी तरह का कष्ट ना  ही  भुगतना पड़े, ऐसा कोई  उपाय बतला ही दीजिये ।


स्कंदकुमार जी बताते है कि जब धैर्यवान युधिष्ठिर विनम्र भाव से अपने दोनो हाथ जोड़कर, बारंबार अपने कष्टों के निवारण का उपाय पूछने में लगे तो भगवान् श्रीकृष्ण ने बोला कि हे राजन! संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला एक बहुत भारी गुप्त व्रत हैं। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के संबंध में हम आज तक किसी को नहीं बताया हैं।


हे राजन! प्राचीनकाल में सतयुग की यह बात हैं कि पर्वतराज हिमाचल की सुंदर कन्या पार्वती जी ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के नाते गहन वन में जाकर बड़ी कठोर तपस्या की। लेकिन भगवान शिव प्रसन्न होकर भी प्रकट नहीं हुए तब शैलतनया पार्वती जी ने अनादि काल से विधामान गणेश जी का स्मरण कर लिया। गणेश जी को उसी वक्त प्रकट देखकर पार्वती जी ने पूछा कि मैंने कठोर, दुर्लभ एवं लोमहर्षक तपस्या किया , किंतु अपने प्रिय भगवान् भोले को प्राप्त न कर सकी। वह कष्ट विनाशक दिव्य व्रत जिसे नारद ने कहा है और जो आपका ही व्रत माना जाता हैं, उस प्राचीन व्रत के तत्व को आप मुझसे बताइये । पार्वती जी की बात सुनकर तत्कालीन सिद्धि दाता गणेश जी उस कष्टनाशक, शुभदायक व्रत का प्रेम से वर्णन करने में जुड़ गए ।

गणेश जी ने बोला- हे अचलसुते! अत्यंत पुण्यकारी एवं सम्पूर्ण कष्टनाशक व्रत को करिये। इसके करने से आपकी सारी आकांक्षाओं की पूर्ति  होगी और जो इन्शान इस व्रत को कर लेंगे उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। श्रावण के कृष्ण चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय होने पर पूजन करने की जरूरत होती है । उस दिन से मन में संकल्प करें कि जब तक चंद्रोदय नहीं हो जाएगा, तबतक मैं निराहार रहूंगी या रहूंगा । पहले गणेश पूजन कर लेने के बाद ही भोजन करूंगी। मन में ऐसा निश्चय करने की अवसक्ता होती है । इसके बाद सफेद तिल के जल से स्नान कराये। मेरा पूजन करें। यदि सामर्थ्य हो तो प्रतिमास स्वर्ण की मूर्ति का पूजन करा करे । (अभाव में चांदी एवं अष्ट धातु अथवा मिट्टी की मूर्ति की ही पूजा करते रहे ।) अपनी शक्ति के हिसाब से सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के कलश में जल भरकर उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करावे।


मूर्ति कलश पर वस्त्राच्छादन करके अष्टदल कमल की आकृति बना दे और उसी पर मूर्ति की स्थापना कर दे । तत्पश्चात षोडशोपचार विधि से भक्तिपूर्वक पूजन करते रहे ।


मूर्ति का ध्यान निम्न तरह से करें- हे लम्बोदर! चार भुजा वाले! तीन नेत्र वाले! लाल रंग वाले! हे नीलवर्ण वाले! शोभा के भंडार! प्रसन्न मुह वाले गणेश भगवन हम  आपके ध्यान में लीन रहता हु या रहती हूं। शो हे गजानन!  हम आपका आवाहन करता या फिर करती हूं। शो हे विघ्नराज! आपको हम प्रणाम करता हूं या फिर करती हु , यह आसन हुआ करता है।


हे लम्बोदर! यह आपके लिए पाद्य हैं। हे शंकर सुवन! यह आपके लिए अर्घ्य है। हे उमापुत्र! यह आपके स्नानार्थ जल हैं। हे व्रकतुंड! यह आपके लिए आचमनीय पानी हैं। हे शूर्पकर्ण! यह आपके लिए वस्त्र हैं। हे सुशो‍भित! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है। हे गणेश्वर! यह आपके खातिर  रोली चंदन होगा । हे विघ्नविनाशन! यह आपके लिए फूल हैं। हे विकट! यह आपके लिए धूपबत्ती है। हे वामन! यह आपका दीपक है। हे सर्वदेव! यह आपके खातिर लड्डू का नैवेद्य होगा । शो हे देव! यह आपके निमित फल हैं। हे विघ्नहर्ता! यह आपके निमित मेरा प्रणाम बारम्बार है। प्रणाम करने के बाद क्षमा प्रार्थना याचना करें।


इस तरह षोडशोपचार रीति से पूजन करके नाना प्रकार के प्रसादों को बना करके भगवान का भोग लगाये । शो हे देवी! शुद्ध देशी घी में पंद्रह लड्डू बना डाले । सबसे पहले भगवान को लड्डू अर्पित करके उसमें से निकाल कर पांच ब्राह्मणों को दे दें। अपनों सामर्थ्य के हिसाब से दक्षिण देकर चंद्रोदय होने बाद भक्तिभाव से अर्घ्य दे दे । तदनन्तर पांच लड्डू का स्वयं भोजन कर ले ।


फिर हे देवी! तुम सब तिथियों में सर्वोत्तम हो, गणेश भगवान जी के परम प्रियतमा हो। हे चतुर्थी हमारे द्वारा प्रदत अर्ध्य को ग्रहण कर लो, तुम्हें हमारा प्रणाम हैं। निम्न तरह से चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान कर दे - क्षीरसागर से उत्पन्न हुए हे लक्ष्मी के भाई! हे निशाकर! रोहिणी सहित हे शशि! मेरे दिए हुए अर्घ्य को ग्रहण कर लीजिये । गणेश जी को इस तरह से  प्रणाम करें - हे लम्बोदर! आप संपूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं आपको हमारा प्रणाम हैं। हे समस्त विघ्नों के नाशक! आप हमारी अभिलाषाओं को जल्द पूर्ण करें। तत्पश्चात ब्राह्मण की प्रार्थना करें कुछ इस प्रकार से - हे दिव्जराज! आपको हमारा नमस्कार हैं, आप साक्षात देव स्वरूप हो । गणेश जी प्रसन्नता के लिए हम आपको यह लड्डू समर्पित कर रहे हैं। आप हमारे जीवन का उद्धार करने के लिए दक्षिणा सहित इन पांच लड्डुओं को स्वीकार कर ले । हम आपको नमस्कार करते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराकर गणेश जी से प्रार्थना करना सुरु कर दे ।


यदि इन सब कार्यों के करने को काबिल न हो तो अपने भाई-बंधुओं के साथ दही और पूजन में निवेदित पदार्थ का भोजन करा दे । प्रार्थना करके प्रतिमा का विसर्जन कर दे और अपने गुरु को अन्न-वस्त्रादि एवं दक्षिणा के साथ मूर्ति दे दे। इस तरह से विसर्जन करें- हे देवों में श्रेष्ठ! गणेश भगवन ! आप अपने स्थान को प्रस्थान कर लीजिये और इस व्रत पूजा के फल हमें दे दीजिए।


हे सुमुखि! इस तरह जीवन भर गणेश चतुर्थी का व्रत करते रहे। यदि जन्म भर न कर सकें तो 21 वर्ष तक जरूर करें। अगर इतना करना भी आपके लिए संभव न हो तो एक वर्ष तक बारहों महीने के व्रत को कर ले । यदि इतना भी न कर पा रहे तो वर्ष के एक मास को अवश्य ही व्रत रखे  और श्रावण चतुर्थी को व्रत का उद्यापन जरूर  करें। 

तो दोस्तों गणेश चतुर्थी का व्रत पूरी जानकारी आपको मिल चुकी होगी की इस व्रत को क्यों करना जरुरी होता है आगे भी हम ऐसे बहुत सारे लेख आपके बिच लाते रहेंगे अगर आपका सहयोग हमें मिलाता है तो हमें बड़ी ख़ुशी होगी धन्यबाद आज के लिए बस इतना ही ¡



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