जो लोग प्राइवेट फैक्ट्री में या फिर सरकारी ऑफिस में नौकरी किया करते हैं या जो लोग स्कूल या कॉलेज में पढ़ते हैं उनको रविवार का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है, क्योंकि रविवार का दिन उनकी छुट्टी रहती है। रविवार यानी संडे की छुट्टी का मजा लेने के लिए और घूमने फिरने निकल जाया करते हैं या अपने किसी परिचित से मिलने के लिए चले जाते हैं। हालांकि आज के दौर में तो कई कंपनियों में शनिवार एवं रविवार दो दिन की छुट्टी मिल जाती है। चलो जानते हैं कि संडे की छुट्टी की शुरुआत कब से हो गयी थी और क्यों हुई ?
रविवार की छुट्टी की शुरुआत कब से हुई?
संडे की छुट्टी कब से स्टार्ट हुई?
1.बताते हैं कि भारत में रविवार की छुट्टी की शुरुआत 1843 में एक अंग्रेज गवर्नर जनरल ने इसकी शुरुआत करवाई थी। उसके बाद में 1844 में स्कूल और कॉलेज साथ में अन्य दफ्तरों में भी रविवार की छुट्टी रखी जाने का रिवाज सुरु हो गई ।
रविवार का दूसरा नाम क्या है?
रविवार (अंग्रेज़ी: Raviwar And Sunday) या इतवार सप्ताह के पहले दिन होते है। रविवार शनिवार के बाद और सोमवार से पहले आया करता है। रविवार 'रवि' से बना हुआ है जिसका अर्थ 'सूर्य' हुआ करता है। इसे उर्दू भाषा और गांव के बोलचाल भाषा में इसे 'इतवार' भी कहा जाता है।
2. रविवार की छुट्टी की कहानी मजदूरों से भी जुड़ी हुई है। साल 1857 में मजदूरों के नेता मेघाजी लोखंडे ने मजदूरों के हक में बोला कि मजदूरों को साप्ताहिक छुट्टी मिलना जरूरत है ताकि वे अपनी थकान मिटा सकें या अपने लिए भी वक्त निकाल पाए । माना ऐसा भी जाता है कि उनके निरंतर कोशिश के चलते 10 जून, 1890 को ब्रिटिश शासन ने सभी लिए रविवार के दिन छुट्टी घोषित कर दिया था ।
3. यह भी बताते हैं कि जिस तारिक को ईसा मसीह ने अपना शरीर त्यागा था उस दिन को लोग गुड फ्राइडे मानते हैं और रविवार के दिन उन्हें जीवित देखा भी गया था। जीवित देखे जाने की इस घटना को ईस्टर संडे के रूप में मनाते है। उसी तिथि से रविवार के दिन चर्च में प्रार्थना किया करते हैं। इसी वजह से अंग्रेजों ने भारत में भी रविवार के दिन छुट्टी घोषित कर दिया ।
4. एक अन्य मंतानुसार ईसाई धर्म के हिसाब से ईश्वर ने दुनिया को छह दिनों में बनाया और रविवार को आराम किया था। यही वजह था कि ईसाई मुल्कों के साथ ही जहां-जहां उन्होंने राज किया हुआ था वहां पर भी उन्होंने रविवार को छुट्टी का आदेश घोसित कर दिया। गुलामी से मुक्त होने के बाद भी अधिकतर देशों ने इसे बदलने का कोई प्रयास नहीं किया।
किस देश में रविवार की छुट्टी नहीं होती
5. एक शोध में यह भी बताते हैं कि भारत में मुगलों के शासन क्षेत्र में शुक्रवार को छुट्टी रहा करती थी, क्योंकि इस्लाम में शुक्रवार यानी जुम्मा का दिन नमाज के लिए महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। भारत में ज़्यदातर मजदूरों की छुट्टी शुक्रवार को ही रहा करती थी । किसी भी मुस्लिम देश में रविवार नहीं होती है बल्कि शुक्रवार को ही छुट्टी रहा करती है।
6. अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संस्था ISO के हिसाब से रविवार का तिथि सप्ताह का अंतिम दिन माना जाता है और सन्डे को छुट्टी रहती है। इसको वर्ष 1986 में मान्यता मिल गयी थी ।
6. भारत में रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में मान्यता भारत सरकार के द्वारा नहीं दी गई है, बल्कि यह अंग्रेजों के वक्त से ही चलता आ रहा अवकाश है।
हफ्ते का पहला दिन
7. हिन्दू मान्यताओं के माने तो रविवार सप्ताह का पहला दिन माना जाता है बल्कि अंतिम नहीं। यह सूर्य देव एवं भगवान विष्णु का वार होता है। इस दिन सभी देवी और देवताओं की पूजा करने का प्रावधान है। इसलिए रविवार का खाशो में खास महत्व होता है। हिन्दू धर्म के अनुशार रविवार के बाद गुरुवार को भी बहुत महत्वपूर्ण तिथि माने जाते है।
रविवार की कहानी
प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहा करती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत किया करती थी। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर, अपने आंगन को गोबर से लीपकर उसे स्वच्छ करती तदोपरांत सूर्य भगवान की पूजा अर्चना किया करती तथा कथा को सुनकर सूर्य भगवान को भोग लगा लिया करती थी दिन में केवल एक बार भोजन किया करती थी । इसी प्रकार रविवार का व्रत अनंत काल से चलती आ रही यह परम्परा है
जो हिन्दू धर्म में इसे बड़े ही खुशहाली से मनाया जाता है । इस दिन को उत्तर प्रदेश में अयोध्या के पूरब के वाशी सारे गांव वाले बुढ़, जवान, लड़का, सेयंन सरजू जी में डुबकियां लगाकर उनके किनारे अगरबत्ती कपूर जलाकर फूल, फल, बताशा, चढ़ाते है और वहा आये साधु सन्यासी गोसाई बाबा को दान दच्छिना देकर सरजू महरानी की पूजा अर्चना किया करते है बड़े ख़ुशी की बात यह भी है सच्चे मन से अगर कोई ब्यक्ति सरयू महारानी से कुछ मागन माग लेता है तो सरयू माता उसकी मनोकामना पूर्ण भी कर देती है
8. ज्योतिष के हिसाब रविवार प्रकृति का ध्रुव होता है। रविवार को सूर्य अपनी बहुत अधिक ऊर्जा लिए होते हैं। सूर्य प्रकाश का सबसे भारी स्रोत है और प्रकाश को सनातन धर्म में सकारात्मक भावों का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकाश में सभी प्रकार के रोग और शोक को नष्ट करने की क्षमता जुडी होती है। प्रतिदिन प्रात:काल सूर्य के समक्ष कुछ समय खड़े रहने से सम्पूर्ण प्रकार के पौषक तत्व और विटामिन की पूर्ति हो जाने की संभावन बढ़ ही जाती है।