एक बार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि लोमश ऋषि किसी समय मथुरा आए थे। जब मेरे माता-पिता देवकी और वासुदेव ने उनकी भक्तिपूर्वक सेवा की, तो ऋषि ने उन्हें कंस द्वारा मारे गए पुत्रों के दुःख को दूर करने का आदेश दिया - हे देवकी! कंस ने आपके कई पुत्रों को जन्म लेते ही मार कर आपको शोक पुत्र दिया है। इस दुख से छुटकारा पाने के लिए आपको 'संतान सप्तमी' का व्रत करना चाहिए। राजा नहुष की रानी चंद्रमुखी ने भी यह व्रत रखा था। तब उसके पुत्र भी नहीं मरे। यह व्रत आपको पुत्र के दुख से भी मुक्ति दिलाएगा।
देवकी ने पूछा- हे भगवान! कृपया मुझे उपवास की पूरी विधि बताएं ताकि मैं उपवास को ठीक से पूरा कर सकूं। ऋषि लोमश ने भी उन्हें व्रत की विधि बताकर व्रत की कथा सुनाई।
नहुष अयोध्यापुरी के प्रतापी राजा थे। उनकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। उसके राज्य में विष्णुदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उनकी पत्नी का नाम रूपवती था। रानी चंद्रमुखी और रूपवती को एक-दूसरे से गहरा लगाव था। एक दिन दोनों सरयू में स्नान करने गए। वहां अन्य महिलाएं भी नहा रही थीं। उन महिलाओं ने वहां पार्वती-शिव की मूर्तियाँ बनाईं और विधिपूर्वक उनकी पूजा की। तब रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने उन महिलाओं से नाम और पूजा की विधि पूछी।
उन महिलाओं में से एक ने कहा- हमने पार्वती के साथ शिव की भी पूजा की है। भगवान शिव की डोरी बांधकर हमने संकल्प लिया है कि जब तक हम जीवित रहेंगे, हम इस व्रत को करते रहेंगे। यह 'मुक्ताभरण व्रत' सुख और संतान देने वाला माना जाता है।
उस व्रत के बारे में सुनकर उन दोनों मित्रों ने भी जीवन भर इस व्रत को रखने का संकल्प लिया और शिव के नाम पर परिणय सूत्र में बंधे। लेकिन घर पहुंचकर वह संकल्प भूल गई। परिणामस्वरूप, मृत्यु के बाद रानी वानरी और ब्राह्मणी मुर्गे की योनि में पैदा हुई।
बाद में दोनों जानवर योनि को छोड़कर मानव योनि में वापस आ गए। चंद्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनी और रूपवती का जन्म एक ब्राह्मण के घर में हुआ। इस जन्म में रानी का नाम ईश्वरी और ब्राह्मण का नाम भूषण था। भूषण का विवाह राजपुरोहित अग्निमुखी से हुआ था। इस जन्म में भी दोनों में बड़ा प्यार हुआ।
व्रत को भूल जाने के कारण रानी को इस जन्म में भी संतान सुख से वंचित रखा गया था। वयस्कता में उसने एक बहरे और गूंगे बेटे को जन्म दिया, लेकिन वह भी नौ साल की उम्र में ही मर गया। भूषण ने व्रत कंठस्थ कर लिया था। अत: उसके गर्भ से आठ सुन्दर और स्वस्थ पुत्रों का जन्म हुआ।
एक दिन भूषण रानी ईश्वरी के पुत्र का शोक मनाने के लिए उनसे मिलने गए। उसे देखते ही रानी के मन में ईर्ष्या पैदा हो गई। उसने भूषण को विदा किया और उसके पुत्रों को भोजन और भोजन में विष मिलाने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन भूषण के व्रत के प्रभाव से उनके बाल भी झड़ते नहीं थे।
इससे रानी और भी नाराज हो गई। उसने अपने सेवकों को भूषण के पुत्रों को पूजा के बहाने यमुना के तट पर ले जाने और गहरे पानी में धकेलने का आदेश दिया। लेकिन भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से इस बार भी भूषण के बच्चे व्रत के प्रभाव से बच गए। नतीजतन, रानी ने जल्लादों को बुलाया और आदेश दिया कि ब्राह्मण लड़कों को वध स्थल पर ले जाकर मार दिया जाए, लेकिन जल्लाद के बहुत प्रयास करने के बाद भी बच्चा मर नहीं सका। यह खबर सुनकर रानी हैरान रह गईं। उन्होंने भूषण को बुलाकर सारी बात बताई और फिर माफी मांगकर उनसे पूछा- तुम्हारे बच्चे क्यों नहीं मर सके?
भूषण ने कहा- क्या तुम्हें अपने पूर्व जन्म की कथा याद नहीं है? रानी ने आश्चर्य से कहा- नहीं, मुझे कुछ याद नहीं है?
फिर उसने कहा - सुनो, तुम्हारे पिछले जन्म में तुम राजा नहुश की रानी थी और मैं तुम्हारी सहेली थी। एक बार हम दोनों ने भगवान शिव की डोरी बांधकर यह संकल्प लिया था कि बच्चे जीवन भर सप्तमी का व्रत रखेंगे। लेकिन दुर्भाग्य से हम भूल गए हैं और व्रत की अवज्ञा के कारण, विभिन्न रूपों में जन्म लेते हुए, अब हमें फिर से मानव जन्म मिला है। अब मुझे वह व्रत याद आ गया तो मैंने व्रत किया। उस प्रभाव के कारण, तुम चाहकर भी मेरे पुत्रों को नहीं मार सकते।
यह सब सुनकर रानी ईश्वरी ने भी व्यवस्थित रूप से यह मुक्ताभरण व्रत रखा, जिससे संतान सुख की प्राप्ति होती है। फिर व्रत के प्रभाव से रानी फिर से गर्भवती हुई और उसने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया। तभी से पुत्र प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिए यह व्रत किया जाता है।
संतान सप्तमी का व्रत करें
यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पुत्र प्राप्ति, पुत्रों और पुत्र अभ्युदय की रक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत का विधान दोपहर तक चलता है। इस दिन जाम्बवती के साथ श्यामसुंदर और उनके पुत्र सांबा की भी पूजा की जाती है। माताएं पार्वती की पूजा करती हैं और पुत्र और उसके उत्थान का वरदान मांगती हैं। इस त्यौहार व्रत को 'मुक्ताभरण' भी बोला जाता है।
उपवास कैसे करें
सुबह नहाने धोने के बाद साफ सुथरा कपड़े पहनें।
दोपहर में चौराहा पूरा करने के बाद शिव-पार्वती की चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, सुपारी और नारियल आदि से पूजा करें।
इस दिन नैवेद्य भोग के लिए खीर-पूरी और गुड़ का हलवा रखें।
रक्षा के लिए शिव को डोरा अर्पित करें।
इस धागे को शिवजी का वरदान मानकर धारण करें और व्रत कथा सुनें।
संतान सप्तमी व्रत कब है 2023 (santan saptamee vrat kab hai)
2023 में संतान सप्तमी व्रत 17 अक्टूबर, सोमवार को है।
संतान सप्तमी का व्रत कैसे रखा जाता है (santaan saptamee ka vrat kaise rakha jaata hai)
संतान सप्तमी व्रत हिंदू धर्म में माँ दुर्गा की कृपा से संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस व्रत को विशेष रूप से विवाहित महिलाएं रखती हैं जो संतान की इच्छा रखती हैं।
इस व्रत को सुबह उठकर स्नान करके शुरू किया जाता है। उसके बाद माँ दुर्गा की पूजा की जाती है और उन्हें पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाया जाता है। व्रती महिलाएं एक दिन तक निराहार रहती हैं और उस दिन केवल फल, सब्जी, दूध और दही का सेवन करती हैं।
संतान सप्तमी व्रत के दौरान व्रती महिलाओं को दुर्गा सप्तशती के पाठ करना चाहिए और साथ ही माँ दुर्गा के लिए भक्ति भाव से गीत और आरती गानी चाहिए।
व्रत का पालन सात दिनों तक किया जाता है, जिसमें संतान सप्तमी के दिन को समाप्त किया जाता है। आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि संतान सप्तमी व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है और इसका पालन धार्मिक उद्देश्य के लिए किया जाता है।
संतान सप्तमी का उपवास कब है (santaan saptamee ka upavaas kab hai)
संतान सप्तमी का उपवास हिंदू पंचांग के मुताबिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रखा जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास के महीने में रखा जाता है। 2023 में संतान सप्तमी व्रत 17 अक्टूबर, सोमवार को है।
संतान सप्तमी के व्रत में क्या क्या खा सकते हैं (santaan saptamee ke vrat mein kya kya kha sakate hain)
संतान सप्तमी के व्रत में व्रती महिलाएं एक दिन तक निराहार नहीं होती हैं और इस दिन वे कुछ विशेष आहार ले सकती हैं। वे फल, सब्जी, दूध और दही जैसे सात्विक आहार खा सकती हैं।
इसके अलावा, आप खीर, साबुदाना खीचड़ी, मूंग दाल की खिचड़ी, फल सलाद और समोसे जैसे आहार भी खा सकती हैं। व्रत में आप भोजन में तेल और नमक का उपयोग कम से कम करने की भी सलाह दी जाती है।
आपको याद रखना चाहिए कि संतान सप्तमी का व्रत धार्मिक उद्देश्य के लिए रखा जाता है इसलिए आपको इस व्रत के दौरान अपनी आहार व्यवस्था को सात्विक और पवित्र रखने की सलाह दी जाती है।
संतान सप्तमी में किसकी पूजा होती है (santaan saptamee mein kisakee pooja hotee hai)
संतान सप्तमी में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। इस दिन व्रती महिलाएं सुबह उठकर स्नान करती हैं और उसके बाद मां दुर्गा को समर्पित पूजा करती हैं। उन्हें अखंड दीप जलाना चाहिए और मां दुर्गा का भोग लगाना चाहिए।
अधिकतर लोग इस दिन प्रातः समय मां दुर्गा के मंदिर जाते हैं और वहां उन्हें पूजा-अर्चना की विधियों का पालन करना चाहिए। कुछ लोग घर पर ही मां दुर्गा की पूजा करते हैं।
संतान सप्तमी के व्रत के दौरान मां दुर्गा के मंत्र का जाप भी किया जाता है जो कि संतान की प्राप्ति और संतानों की रक्षा के लिए किया जाता है।
संतान सप्तमी की पूजा कितने बजे करनी चाहिए (santaan saptamee kee pooja kitane baje karanee chaahie)
संतान सप्तमी की पूजा का समय सबह सूर्योदय से लेकर दोपहर तक होता है। यह पूजा संतान प्राप्ति के लिए की जाती है, इसलिए समय का चयन ध्यान में रखा जाना चाहिए।
आमतौर पर, संतान सप्तमी की पूजा को सुबह सूर्योदय के कुछ समय बाद करना उचित माना जाता है। सूर्योदय का समय आपके शहर और वर्तमान समय के अनुसार अलग-अलग होता है, इसलिए सटीक समय के लिए स्थानीय पंचांग देखना उचित होगा।
पूजा का समय समाप्ति का भी ध्यान रखना चाहिए। संतान सप्तमी की पूजा को दोपहर तक करना उचित माना जाता है।
संतान साते का व्रत क्यों रहते हैं (santaan saate ka vrat kyon rahate hain)
संतान सप्तमी व्रत का मुख्य उद्देश्य असंतानता के उपचार के लिए उपयोगी होना है। इस व्रत के द्वारा शिव-पार्वती की कृपा प्राप्ति की अपेक्षा की जाती है और संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश की जाती है।
इस व्रत का धारण करने से संतान वंश का चिरस्थायी उन्नयन होता है और प्रगति की राह पर बढ़ने के लिए परिवार के सदस्यों में एकता का महत्व समझाया जाता है। इस व्रत का धारण करना संतान की विविध समस्याओं जैसे संतानों की असामान्य मृत्यु, शिशु नस्ल की असंतुलन और अन्य ऐसी समस्याओं से रक्षा करने में मदद कर सकता है।
क्या हम सप्तमी का व्रत कर सकते हैं (kya ham saptamee ka vrat kar sakate hain)
हां, संतान सप्तमी व्रत को अगर आप चाहें तो आसानी से कर सकते हैं। यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए धारण किया जाता है और संतान वंश के उन्नयन और बच्चों की सुरक्षा के लिए किया जाता है।
इस व्रत के दौरान आपको संतान सप्तमी की तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नहाना चाहिए और शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए। फिर आपको संतान सप्तमी की व्रत कथा को सुननी चाहिए और पूजन के बाद ध्यान में बैठना चाहिए।
व्रत के दौरान आपको निर्जला व्रत रखना चाहिए, जिसमें आप बिना पानी पीए भोजन कर सकते हैं। आप फल, सब्जियां, दूध और दही जैसे आहार ले सकते हैं, लेकिन अनाज और तेल नहीं ले सकते। व्रत के दौरान शिव जी की पूजा भी की जाती है।
यदि आप संतान सप्तमी का व्रत करना चाहते हैं, तो आपको पूर्व से व्रत के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए और इसे सही ढंग से अपनाने के लिए पूजा पाठ और ध्यान करना चाहिए।
संतान सप्तमी कितने बजे से कितने बजे तक है (santaan saptamee kitane baje se kitane baje tak hai)
संतान सप्तमी तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व काल विशेष में होता है जब भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। व्रत की पूजा सुबह सूर्योदय के समय शुरू की जाती है और संतान सप्तमी के व्रत के अनुसार इसे संपूर्ण दिन निर्जला व्रत रखना होता है।
संतान सप्तमी के व्रत में, दिनभर उपवास रखने के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा भी की जाती है। इस व्रत की पूजा सुबह सूर्योदय के समय शुरू की जाती है और दिनभर चलती है, जब तक कि सूर्यास्त नहीं हो जाता।
इसलिए, संतान सप्तमी के दिन उपवास और पूजा की शुरुआत सूर्योदय के समय होती है और यह पूजा दिनभर चलती है जब तक कि सूर्यास्त नहीं हो जाता।