सबका मालिक एक: हे साईं नाथ ! जगत् के कारण रूप और सत् स्वरूप आपको नमस्कार है । हे संसार के पालनकर्ता , अन्तर्यामी ,, सर्वेश , ज्ञानस्वरूप आपको नमस्कार है । हे शाश्वत और सर्वव्यापी आपको नमस्कार है । आप ही शरणागत की रक्षा के करने में समर्थ हैं । आप स्व प्रकाश स्वरूप हैं । इस जगत् कर्त्ता , रक्षक और संहारक भी आप ही हैं ।
आप सबसे परे निश्चल और निर्विकल्प तत्व हैं । आप भय को भी भस्म कर देने वाले हैं । भीषणों के लिए भी भीषण रूप हैं । आप पवित्र को भी पवित्र करने वाले हैं । आप सर्वोत्तम पद के नियन्ता , अग जग के पालनहार रक्षकों के रक्षक हैं । हे साईं नाथ ! जब , जहाँ पर , दुःखियों ने आपको पुकारा , तब वही पर पवन वेग से आकर आपने उनके दु : ख दूर कर दिये ।
हे अभयकर्ता ! मुझ दीन - हीन , निर्धन , निर्बल , अबला पर कृपा करें । आपही मेरे बन्धु , गुरु , माता - पिता और विधाता हैं । मेरी रक्षा कीजिए । समस्त पापों की पीड़ा को नाश करने वाले , शिरडी के साईं नाथ , आप अनाथों के नाथ हैं ।
साईं इस संसार में , तू ही एक अधार । मेरी भव- बाधा हरो , जग के पालनहार ।।
हे साईं नाथ ! जैसे रावण ने भरी सभा में विभीषण को लात मारा था , उसी प्रकार मुझे भी इस माया रूपी संसार में मोह मार रहा है । मैं संसार के तीनों तापों से जला जा रहा हूँ । मेरी रक्षा कीजिए नाथ ! हे करुणा निधान ! न तो मेरे कर्म अच्छे हैं , न स्वभाव उत्तम हैं । न समय अच्छा है और न तो मैं शक्तिशाली और सम्पदा - सम्पन्न हूँ । हे प्रभु ! न मेरा कोई मालिक है , न रहने का कोई ठौर - ठिकाना है । न सुन्दर शरीर है न साधन - युक्त हूँ । हे साईं नाथ ! मैं सब प्रकार से निराधार हूँ । मुझे बस एक आपका ही अवलम्बन है । आपका ही सहारा है । प्रभु ! मुझे सत्कर्म करने की प्रेरणा देकर के मेरी रक्षा कीजिए ।
शिरडी के साईं बाबा
हरित नीम के तरु तले , धरि बालक का रूप । प्रगटे साईं नाथ प्रभु , महिमा अगम अनूप ।।
अचानक जल , थल , नभ में सुगन्धित समीर बहने लगी । शिरडी गाँव में बधाई की नौबत बजने लगी । पेड़ों पर पक्षी चहचहाने लगे । मृगों के झुण्ड के झुण्ड उछलने लगे और गायें कलोल करने लगी । पुण्य रूपी प्रकाश ने पाप रूपी कालिमा को समाप्त कर दिया । युग पुरुष साईं बाबा का अवतार यशोभूमि भारत की धरती पर दिव्य स्वरूप के साथ हुआ ।
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जन्म से हीं साईं बाबा अलौकिक शक्ति से सम्पन्न थे । उनके माता - पिता के विषय में आज भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है । वे हिन्दू थे या मुसलमान , इसका निर्णय आज तक नहीं हुआ । वे सबके थे , उन्हें हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई सभी पूजते हैं । सबको वे समान भाव से मानते थे । उन्होंने सबका दुःख दूर किया । सोलह वर्ष की तरुणावस्था में जबसे वे शिरडी में नीम - वृक्ष के तले प्रकट हुए , तबसे जन कल्याण के कार्य में जुट गये । हिन्दू , मुसलमान सबको एक सूत्र में बाँधा , सबके दुःख दूर किये । शिरडी साईं नाथ के दरबार से कोई कभी खाली हाथ , निराश नही लौटा । वे बाल - ब्रह्म ज्ञानी , अलौकिक महात्मा थे । त्याग और वैराग्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति । उनका उपदेश था- ईश्वर एक है । वही खुदा है , वही राम है , वही यीशू है , वही नानक है । पृथ्वी पर जब - जब धर्म की हानि हुई और अधर्म का उत्थान हुआ तब - तब प्रभु ने नाना वेष में नाना रूप में धरती पर अवतार लिया और धरा को अधर्म से मुक्त किया । कृष्ण ने कंस का वध किया , राम ने रावण का विनाश किया , नरसिंह रूप में खम्भे से प्रकट होकर प्रभु ने हिरण्यकश्यप का वध किया , उसी प्रकार भगवान स्वरूप साईंबाबा ने दुष्टों से अपने भक्तों की रक्षा की ।
साईं बाबा के अनेक रूप है । कोई उन्हें राम रूप में , कोई शिव रूप में , कोई कृष्ण रूप में , कोई बुद्ध रूप में और कोई महावीर के रूप में देखता है । जिसकी जैसी भावना होती है , प्रभु उसको उसी रूप में दिखाई देते हैं । जब भी कोई भक्त सच्चे हृदय से उन्हें याद करता है तत्काल प्रभु उसके सामने खड़े हो जाते हैं । भक्तों के दुःख को दूर करते हैं , उनके मनोरथ को पूरा करते हैं । उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते है ।
शिरडी में जबसे साई बाबा ने अवतार लिया , उनके अद्भुत चमत्कारों की कथाएँ चारो ओर फैलने लगी । भक्तों की संख्या बढ़ने लगी । उनकी लीलाएँ जन - जनको चकित करने लगी । भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने लगी । गरीबों को धन मिलने लगा , निःसन्तान स्त्रियों को संतान की प्राप्त हुई । रोगी , निरोग हो गये । कोढ़ी को सुन्दर काया मिल गई । सच्चे मन से साईं की शरण में जो भी गया उसकी मनोकामना पूरी हुई ।
आज साईंबाबा का चमत्कार घर - घर व्याप्त है । निर्मल मन और एकाग्रचित्त से जो भी प्राणी साईं बाबा पर श्रद्धा रखकर निष्ठापूर्वक गुरुवार को प्रभु का व्रत विधिपूर्वक करता है , उसे अवश्य इच्छित फल की प्राप्ति होती है । साईं व्रत का विधान निम्नलिखित है , उसके अनुसार व्रत रखें जिससे वांछित फल की प्राप्ति हो ।
श्री चरण बन्दना से साईं प्रभु को स्मरण करें ।
श्री साईं
तुम्हारे चरण का पुजारी हूँ बाबा । विषय - वासना रत अनारी हूँ बाबा । बड़ा पातकी हूँ , दुःखारी हूँ बाबा , तुम्हारी कृपा का भिखारी हूँ बाबा । न जप है , न तप है , न श्रद्धा सुमति है , अधम हूँ , अविद्या है , मन में कुमति है । न तेरे सिवा कोई जग में हमारा , मेरी लाज रखलो तेरा हीं सहारा । न विद्या न बल , भार- भारी हूँ बाबा । तुम्हारी कृपा का भिखारी हूँ बाबा ।
श्री साईं बाबा व्रत के नियम
निष्ठा , श्रद्धा , भक्ति से , धर साईं का ध्यान । नौ गुरु - वासर व्रत रखे , साईं राखे मान ।।
1 . साईं व्रत कोई भी स्त्री / पुरुष और बच्चे रख सकते हैं ।
2 . साईं व्रत किसी भी जाति - पाँति का व्यक्ति , बिना भेद - भाव के कर सकता है । सांईं व्रत बहुत ही चमत्कारिक हैं ।
3. गुरूवार विधिपूर्वक व्रत करने से निश्चित हीं इच्छित फल की प्राप्ति होती है ।
4 .सांईं व्रत कोई भी गुरूवार को सांईं बाबा का नाम लेकर आरम्भ किया जा सकता है । जिस कार्य के लिए व्रत किया गया हो उसके लिए सांईं बाबा की सच्चे हृदय से प्रार्थना करनी चाहिए । "
5 . सुबह या शाम को सांई बाबा के फोटो की पूजा करना । किसी आसन पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर साईं बाबा की फोटो रखकर स्वच्छ पानी से पोंछकर चंदन या कुंमकुम का तिलक लगाना चाहिए और उस पर पीले फूल या हार चढ़ाना चाहिए और सांईं बाबा का स्मरण कर प्रसाद बाँटना चाहिए ।
6. यह व्रत फलाहार लेकर अथवा एक समय भोजन करके किया जा सकता है । बिल्कुल भूखे रहकर उपवास न किया जाए ।
7. 9 गुरुवार को हो सके तो सांई बाबा के मंदिर जाकर दर्शन किये जाएँ । सांईं बाबा के मंदिर न जा पाएँ तो घर पर ही श्रद्धापूर्वक साईं बाबा की पूजा कर सकते हैं ।
8 . यदि किसी कारणवश कहीं जाना हो तो उस गुरूवार को व्रत चालू रखा जा सकता है ।
9 . व्रत के समय स्त्रियों को मासिक की समस्या आए अथवा किसी कारण से व्रत न हो पाए तो उस गुरूवार को 9 गुरूवार की गिनती में न लिया जाए । और उस गुरूवार के बदले अन्य गुरूवार करके 9 वें गुरूवार को उद्यापन किया जाए ।
10. सांईं व्रत में सांईं व्रतकथा की कोई भी एक कथा पढ़कर पूरे 9 दिन एक - एक कथा सांई चालीसा , सांईं वन्दना व सांईं आरती का गायन सभी करें , हो सके तो प्रतिदिन पूरी कहानियाँ पढ़े व सुनाएँ ।
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उद्यापन की विधि
1. 9 वें गुरूवार को उद्यापन करना चाहिए । इसमें पाँच गरीबों को भोजन कराना चाहिए । भोजन अपनी यथाशक्ति से देना या करवाना चाहिये ।
2. सांईंबाबा की महिमा एवं व्रत का फैलाव करने के लिए अपने नये सम्बन्धी या पड़ोसियों को यह किताबें 5 , 7 , 9 , 11 , 21 , की संख्या में अपनी यथाशक्ति भेंट दें । इस तरह व्रत का उद्यापन किया जाए ।
3. 9 वें गुरूवार को जो किताब भेंट देनी है उसे पूजा में रखें और बाद में ही भेंट दें । जिससे अन्य व्यक्तियों की भी मनोकामना पूर्ण हो । उपरोक्त विधि से व्रत करने से एवं उद्यापन करने से निश्चित ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगीं ऐसा सांई भक्तों का विश्वास है
फलादेश
श्री . सांईबाबा का व्रत रखने से निम्न फल प्राप्त होते हैं
1. पुत्र की प्राप्ति 2. कार्य सिद्धि 3. वर प्राप्ति 4. खोया धन मिले 5. धन मिले 6.शांति
7. वधू प्राप्ति 8. जमीन - जायदाद मिले 9. सांई दर्शन 10. शत्रु शांत हो 11.व्यापार में वृद्धि 12. खोया प्रेम मिले 13. परीक्षा में सफलता 14. बाँझ को भी औलाद हो 15. इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो 16. सफल यात्रा 17. खोया रिश्तेदार मिले 18. रोग निवारण 19. मुकदमें में जीत हो 20. मनोकामना की पूर्ति इत्यादि ।
साईं व्रत कथा आरम्भ
गठिया का दर्द , साईं कृपा से दूर
साईं के नाम में अद्भुत चमत्कार है । जैसे लाखों वर्षों का अँधेरा रोशनी के आते ही क्षणमात्र में गुम हो जाता है उसी प्रकार प्रभु सांईं की कृपा से दरिद्रता और दुःख का नाश हो जाता है । कोई भी व्यक्ति निश्चल होकर प्रभु के पास जाये तो उसके पाप धुल जाते हैं ।
प्रभु सांई की भक्त थी - रागिनी । उसके शरीर के जोड़ - जोड़ में भयानक दर्द था । घुटनों के दर्द से छटपटाती थी । चलना - फिरना कठिन था । अपने मन की पीड़ा किसी से कह भी नहीं पाती थी । डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी । हकीम बैद्यों ने देशी - विदेशी दवाओं के द्वारा उसे खूब ठगा था । किसकी - किसकी हथेली पर बेचारी ने अपने आँसुओं को नहीं ढारा , सब व्यर्थ , सब निष्फल ।
एक दिन उसकी सहेली ने उसे साईंव्रत की महिमा बताई । नौ गुरूवार साईं व्रत रखकर प्रसाद वितरण और सांईं व्रत कथा की पुस्तक देने की बात बताई । रागिनी को जैसे निधि मिल गई । अगले दिन गुरूवार था । उसी दिन से उसने विधि - विधान पूर्वक साईं व्रत रखना आरम्भ किया । प्रभु साईं की कृपा से अनहोनी हो गई । उसी दिन से उसका दुःख दूर हो गया । वह चलने - फिरने लगी । सच है- प्रभु की कृपा से
पंगु चढ़ई गिरिवर गहन , मूँक होईं वाचाल : रागिनी अब ठीक हो गई । शिरडी गई , बाबा का दर्शन पूजन किया । द्वारिका गई अब उसे कोई कष्ट नहीं , कोई दर्द नहीं ।
प्रभु साईं के नामकी , माया अपरम्पार । शरण गये दुःख दूर हो , बिनसै क्लेश - विकार ॥
लड़की की शादी हो गई
दीन दयाल बड़े सम्पन्न घर से थे । सुखी थे । विद्या , विनय विवेक सब कुछ था । परन्तु मन में हमेंशा अशांति रहती थी । उनके एक बेटी थी , एक बेटा था । बेटे की उम्र 40 वर्ष और बेटी की उम्र 35 वर्ष हो गई थी । दोनों की शादी नहीं हुई थी । दीनदयाल बहुत परेशान रहते थे । पत्नी को रात में नींद नहीं आती थी । एक दिन वे राजस्थान से लौट रहे थे । उनके एक मित्र बस में मिले और उनकी समस्याओं को सुनकर , उन्हें विधि - विधान के साथ साईं व्रत रखने का सुझाव दिया । अगले गुरूवार से दीनदयाल ने नियमपूर्वक साईंबाबा का व्रत रखा । पूजन किया । उद्यापन किया । कुछ ही दिनों में उनकी समस्याएँ दूर हो गईं ।
कन्या का विवाह हो गया । बहू भी आई । अब वे पत्नी सहित सुखी जीवन व्यतीत करते हैं । घर - आँगन में चारो ओर प्रसन्नता है ।
रखते सांईं - व्रत सदा , दिव्य दिवस गुरूवार । प्रभु सांई के भक्ति से , बाधा कटै हजार ॥
पुत्र रत्न की प्राप्ति
आज ही विवेक और वंदना जर्मनी से लौटे थे । घर आते ही यह देखकर चकित रह गये कि गाँव के बहुत से लोग इकट्ठे हैं और सभी के हाथों में नारायण प्रकाशन की श्री साईं व्रत कथा की पुस्तक है । उनके मन में इस उल्लास और बँटते प्रसाद के विषय में जानने की जिज्ञासा हुई । लोगों ने उन्हें बताया कि सरस्वती को विवाह के 18 साल बाद पुत्र की प्राप्ति हुई है । वह पति - पत्नी साईं बाबा की सेविका हैं । उसने प्रभु सांईं का व्रत रखा है । आज प्रसाद और पुस्तक वितरण है । यह सुनकर विवेक और वन्दना ने भी संकल्प कर लिया कि वे भी अब नियम पूर्वक सांईं व्रत रखेंगे क्योंकि शादी के 11 साल हो गये अभी तक कोई संतान नहीं हुई । देश - विदेश के सभी डॉक्टरों को दिखाकर त्रस्त हो गये । होनी को कोई टाल नहीं सकता ।
विवेक और वंदना ने भी प्रभु साईं का व्रत आगे आये दिन गुरूवार से विधिपूर्वक आरम्भ कर दिया । सांई की भक्ति से वह शक्ति मिली कि लगा प्रभु स्वयं उनके आँगन में प्रकाश विखेर रहे हैं । समय पाकर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । धूम - धाम से सांईं व्रत का उद्यापन किया । पुस्तकें बांटी , प्रसाद बाँटा जिस मनोकामना को डाक्टरों , हकीमों , वैद्यों और अन्य मनौतियों ने पूरा नहीं किया वह सांईंबाबा की कृपा से पूरा हो गया । धन्य हैं सांई की महिमा धन्य है प्रभु सांईं ।
मन क्रम वचन विचार से , भजे जो सांईं नाम । पूरण हो सब कामना , खुशियाँ मिलै तमाम ॥
सबका मालिक एक
साईं बाबा के विषय में एक कथा प्रचलित है । किसी गाँव में एक पूरणचन्द्र सेठ थे । ईश्वर ने उन्हें सब तरह से सम्पन्न किया था । कुबेर जैसे उनके घर बैठ गये थे । उनकी 60 साल की उम्र थी । अचानक एक दिन उनके आँखों की रोशनी चली गई । अनेक प्रकार की दवाइयाँ की । कोई ऐसी विधि नहीं बची जिसका उपयोग न किया हो पर आँखों की रोशनी नहीं लौटी । एक दिन कोई साईं बाबा का भक्त उधर से गुजरा , उनकी स्थिति देखकर , उसने सांईं उपासना करने की बात की । पूरणचन्द्र अब 105 वर्ष के हो गये थे । वे मन ही मन साईं बाबा का नाम रटते और उन्हीं के चरणों का ध्यान करते ।
एक दिन अचानक चमत्कार हो गया । उन्हें रोशनी मिल गई । अब वे दोनों आँखों से देखने लगे । धन्य हैं सांईं बाबा । भक्तों की पीड़ा कैसे हरते हैं कोई नहीं जानता । बाबा सांईं अपने भक्तों की पीड़ा देखकर रोया करते हैं । भक्तों को भूखा देखकर छटपटाया करते हैं । भक्तों की आँखों में आँसू देखकर उन्हें रात में नींद नहीं आती ।
साईं बाबा की महिमा अपार है । गूंगों को आवाज देना , बहरों को सुनाई पड़ना , अपंगों को गति देना , चोरी हुए धन का मिल जाना , परीक्षा में फेल होने की स्थिति में रहकर भी पास हो जाना । हारा हुआ मुकदमा जीत जाना , व्यापार में हानि होने पर पुनः लाभ की स्थिति में आ जाना , यह सब साईं बाबा के प्रताप का फल है । सांईं चाहें राई से पर्वत बना दें , चाहें तो पर्वत से राई । सांईं बाबा के पास हर रोगों का इलाज है ! प्रेम - भक्ति के साथ जो भी साईं के शरण में गया उसकी मनोकामना पूरी हुई । सांईं ने सबका कल्याण किया ।
इलाज के लिए निर्धन को धन मिला
जब किसी कार्य का शुरूआत ही शुभ हो , तो बिगड़ा हुआ काम भी बन जाता है । सोहन का बड़ा बेटा बीमार था । इलाज के लिए पैसे नहीं थे । सोहन के ठाट - बाट देखकर कोई भी उसे उधार भी देने से हिचकिचाता था , सबकी सोच थी कि सोहन के पास अकूत सम्पत्ति है पर सोहन बहुत उदास रहता था । उसकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी , इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे ।
सुबह का समय था । सोहन खेत की फसल देखकर लौट रहा था । पुत्र आज जाने उसे क्या हो गया था , प्रातः से ही साईं बाबा का रट लगाये जा रहा था । अभी वह घर के पास ही पहुँचा था , कि कपड़े से बँधी एक पोटली देखी । ठिठक कर उठाया और घर के अन्दर आ गया । यह क्या , पोटली में तो लाखों थे ! धन्य हो सांईं । भक्तों का कष्ट आप किस प्रकार से दूर करते हैं । सब कुछ अद्भुत हैं
साईं के प्रेम में रहे सदा लवलीन ॥
कभी नहीं संसार में , होवै वह गमगीन ॥
अपहरण किया गया पति वापस लौटा
मनुष्य को कभी बल , बुद्धि , ज्ञान और विवेक को नहीं छोड़ना चाहिए । धैर्यशाली व्यक्ति की प्रभु सदा सहायता करता है । किशोरी लाल नाम का एक किसान था । वह अपनी पत्नी राधा तथा पुत्र - पुत्री के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करता था । अचानक एक दिन उस पर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा । कुछ लोगों ने उसे बुलाकर जबरदस्ती गाड़ी में बैठाया और चल दिये । जब किशोरीलाल 5 दिन तक नहीं लौटा तो उसकी पत्नी घबड़ा गयी । थाने - कचहरी के चक्कर लगाकर थक गई कोई सुनवाई नहीं हुई ।
उधर किशोरी लाल का भी बुरा हाल था । परिवार से दूर , यातना से पीड़ित , बिना खाये - पिये दिन व्यतीत होना कठिन हो रहा था । विपत्ति की इस घड़ी में कोई मदद को तैयार नहीं । अपहृत करने वाले बड़े थे ।
किशोरी लाल ने एकाएक स्वप्न में देखा कि कोई आकर कह रहा है - हे किशोरी ! सांईं नाथ को याद कर , उन्हें बुला , वे तुम्हारी मदद को अवश्य आवेंगे । किशोरी लाल को मानों मणि मिल गई । वह मन ही मन में सांईं नाथ का स्मरण करने लगा । उसी समय जैसे कोई आँधी आ गई हो । उसे अपहृत करने वालों में एक को सर्प ने डस लिया , उसकी मृत्यु हो गई । एक को डायरिया हो गई , उल्टी दस्त होने लगी । यह देख बाकी बचे सभी घबड़ाकर भाग गये । किशोरी लाल सांई नाथ का नाम जपता हुआ अपने घर आ गया । सच है जो सांईं पर निर्भर रहते हैं , साईं बाबा उसकी मदद अवश्य करते हैं ।
सांई नाम की शक्ति "
सुमिरत नाम मिटै सब शूला " प्रभु साईं बाबा का नाम लेते ही सभी प्रकार के पाप - ताप , संताप गल जाते हैं । साईं नाम में अपार शक्ति है । हिन्दू , मुस्लिम , सिक्ख , ईसाई , बंगाली , सांई बाबा सबके लिए समान रूप से पूजनीय है । सांईं के शरण में जो भी गया उसका उद्धार हो गया । ध्रुव नाम का एक लड़का बार - बार बारहवीं कक्षा में फेल हो रहा था । उसने साईं व्रत रखा , उद्यापन किया , पुस्तकें वितरित की , प्रथम श्रेणी में पास हो गया । शम्भू प्रसाद कई वर्षों से निराश - उदास था । कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी ।
साँई की कृपा से उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई । कहते हैं साईं के प्रताप से सारे मनोरथ पूरे हो जाते हैं । श्रद्धा और सच्ची निष्ठा होनी चाहिए । जैसे सभी प्रकार के गहनों से सजी हुई स्त्री कपड़े के बिना शोभा नहीं पाती उसी प्रकार साईं नाथ के बिना बाणी शोभा नहीं पाती । जिसने भी हृदय रूपी मंदिर से अहंकार रूपी दानव को हटाकर साईं प्रभु का नाम याद रखा उसका सब तरह से कल्याण हो गया । जो सांईं विरोधी होता है उसकी प्रभुता चली जाती है । जिन नदियों का मूल स्रोत नहीं होता वे बरसात के बाद सूख जाती है । इसलिए मन से पीड़ा देने वाले अभिमान को मिटाकर प्रभु साईं के शरण में जाना चाहिए । जिनके उत्तम व्रत से सुख , शांति , यश , सम्पदा की प्राप्ति होती है ।
साईं मोहिं न बिसारिए , जैसे चंद्र - चकोर । चरण - शरण में राखिए , ' मधुकर ' हृदय- किशोर ॥
प्रभो शिरडी वाले
सदा साईं बाबा पुकारा करेंगे ।
मधुर मूर्ति निशिदिन निहारा करेंगे ।
लताकुंज , वन में , घटा टोप घन में ,
सदा साईं पर जान वारा करेंगे ।
मिलेगी जो चरणों में प्रभु के
उसी पर ये जीवन गुजारा
न जीवन भर भूलेगा एहशान सांईं
जो कश्ती किनारे उतारा , करेंगे । ,
कृपा की करो साईं ' मधुकर ' पे बारिस ,
न जीवन में गलती दुबारा करेंगे ।
प्रार्थना
एक अर्ज मेरी सुन लो , सरकार साईं बाबा । नइया फँसी भँवर में , करो पार साईं बाबा । अच्छा हूँ या बुरा हूँ , पर भक्त हूँ तुम्हारा ,
जीवन का मेरे कर दो उद्धार सांईं बाबा ।
अन्धों को दिये आँखें , बधिरों को श्रवण शक्ति , निर्धन को किये धन से धनवान साईंबाबा ।
भव सिन्धु बीच ' मधुकर ' सांईं का इक सहारा , संतान हीन को दिये संतान साईं बाबा ।
श्री साईं चालीसा
पहले साईं के चरणों में अपना शीश नवाऊँ मैं । कैसे शिरडी साईं आए सारा हाल सुनाऊँ मैं |
जैसे जैसे उमर बढ़ी वैसे ही बढ़ती गई शान |
घर - घर नगर - नगर में होने लगा साईं का गुणगान ॥
दिग् - दिगन्त में लगा गूँजने फिर तो साईंजी का नाम ।
दीन - दुखी की रक्षा करना यही रहा बाबा का काम ।।
कोई कहता मंगल मूरति सुमुख गजानन हैं
कोई कहता गोकुल - मोहन देवकी नन्दन हैं शंकर समझ के भक्त कई तो बाबा को भजते कोई कह अवतार ईश का पूजा साईं की करते ॥ कुछ भी मानो उनको तुम पर साईं हैं सच्चे भगवान ।। बड़े दयालू दीनबन्धु वो दिये कई को जीवन दान ।। कई वर्ष पहले की घटना तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात ॥ किसी भाग्यशाली के घर शिरडी में आई थी बारात ।। आया साथ उसी के था बालक एक बहुत सुंदर । आया , आकर वहीं बस गया पावन शिरडी किया नगर । कई दिनों तक रहा भटकता भिक्षा मांगी उसने और दिखाई ऐसी लीला जग में जो हो गई कौन हैं माता पिता दर - दर ।। अमर ।। कौन हैं यह न किसी ने भी जाना । कहाँ जनम साईं कोई कहे के ये रामचन्द्र कोई कहता साईं बाबा पवन पुत्र अयोध्या ने धारा प्रश्न पहेली रहा भगवान हनुमान बना ॥ हैं ।
इंटरनेट शॉर्ट क्वेश्चन क्या है (what is internet short question)
क्या साईं बाबा मुस्लिम थे (Was Sai Baba a Muslim)
साईं बाबा का धर्म:साईं बाबा के धर्म के बारे में कुछ विवाद है। वे एक संन्यासी थे जो अपने जीवन के बड़े हिस्से को शिर्षक देश में बिताया। उनके पिता हिंदू थे और माता मुस्लिम थीं। बचपन में उन्होंने हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों के प्रभाव में रहा होगा।
साईं बाबा के विवादित धर्म के संबंध में, वे अपने जीवन के दौरान धर्म विवादों से दूर रहने का प्रयास करते थे और सभी धर्मों के लोगों के साथ भलाई और समझदारी से बर्ताव करते थे। वे अपने उपदेशों में समस्त धर्मों के मूल सिद्धांतों को समाहित करते थे।
साईं बाबा के धर्म से संबंधित बातों पर अभिवादन करते हुए, यह कहा जा सकता है कि उनका धर्म ज्ञान, प्रेम और समझदारी पर आधारित था, जो सभी धर्मों के मूल तत्वों में से एक हैं।
साईं बाबा का असली नाम क्या है (What is the real name of Sai Baba)
साईं बाबा का असली नाम "शिरदी साईंनाथ" था। वे भारत के महाराष्ट्र राज्य के शिरडी गाँव में रहते थे और उन्हें "साईं बाबा" के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म लगभग 1838 ईसा पूर्व में हुआ था और वे 15 अक्टूबर 1918 को शिरडी में निधन हुए थे। साईं बाबा के जीवन और उपदेशों का असर भारत और विदेशों में दोनों ही था और उन्हें विश्वविख्यात धार्मिक गुरु माना जाता है।
साईं बाबा का इतिहास क्या है (What is the history of Sai Baba)
साईं बाबा का इतिहास बहुत रोचक है। वे भारत के महाराष्ट्र राज्य के शिरडी गाँव में रहते थे और उन्हें "साईं बाबा" के नाम से भी जाना जाता है। साईं बाबा के बारे में ज्यादातर जानकारी उनके भक्तों के लेखों और कथाओं से है, जो उनके जीवन और काम को विस्तार से बताते हैं।
साईं बाबा का जन्म लगभग 1838 ईसा पूर्व में हुआ था। उनके बचपन का समय बहुत अस्पष्ट है, लेकिन यह ज्ञात है कि वे अपनी माँ के साथ हिंदू धर्म के बाहर कुछ समय तक रहते थे। बाद में उन्होंने अपने पिता के साथ शिरडी आने का फैसला किया।
साईं बाबा का जीवन बहुत ही आध्यात्मिक था और वे अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को धार्मिक ज्ञान देने के लिए जाने जाते थे। वे सभी धर्मों के लोगों के साथ भलाई और समझदारी से बर्ताव करते थे और लोग उन्हें एक महान गुरु के रूप में मानते थे।
साईं बाबा के जीवन के बारे में बहुत सी कथाएं हैं, जैसे कि उनकी चमत्कारिक शक्ति को जाना जा सकता हैं.
साईनाथ किसका अवतार है (Whose incarnation is Sainath)
साईं बाबा का भक्तों के बीच यह मान्यता है कि वे श्रीकृष्ण और शिव के समान अवतार हैं। यह धारणा है कि साईं बाबा भगवान की अपेक्षा अधिक दयालु थे और उन्होंने अपने जीवन में लोगों की मदद और उन्हें धार्मिक ज्ञान देने के माध्यम से समाज में अपने सत्कार्य किए। इसलिए, उन्हें "साईं नाथ" के नाम से भी जाना जाता है।
साईं बाबा अल्लाह मलिक क्यों कहते हैं (Why does Sai Baba say Allah Malik)
साईं बाबा अपने जीवन के दौरान धर्म के विभिन्न पहलुओं को अपनाते रहे थे और वे सभी धर्मों के प्रति समान आदर और सम्मान रखते थे। उन्होंने अपनी शिक्षाओं में इस बात को भी स्पष्ट किया था कि सभी धर्मों के ईश्वर एक ही होते हैं।
"अल्लाह मलिक" अरबी भाषा में "ईश्वर ही सर्वोच्च है" का अर्थ होता है। साईं बाबा इस बात को स्पष्ट करते हुए इस उपनाम का उपयोग करते थे कि समस्त धर्मों के ईश्वर एक ही होते हैं और सभी धर्मों के लोग एक ही परमपिता के बच्चे होते हैं।
साईं बाबा का बाप कौन था (Who was Sai Baba's father)
साईं बाबा के बारे में उनके परिवार के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, और इसलिए उनके बाप के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है। उनके जीवन के बारे में ज्यादातर जानकारी उनके अंतिम दिवसों और उनके सत्संग के माध्यम से ही मिलती है।
वैसे, कुछ लोगों के अनुसार साईं बाबा के बाप का नाम आबा जान था और वह फकीर थे। उनकी माता का नाम गुनवंतीबाई था और उन्हें शिरडी के रामलिंग स्वामी के भक्त रामदास ने पाला था।
साईं बाबा की मृत्यु कैसे हुई (How did Sai Baba die)
साईं बाबा की मृत्यु की तारीख 15 अक्टूबर, 1918 है। वे शिरडी में अपने श्रद्धालुओं के बीच थे जब उन्हें बुखार आने लगा। बुखार बढ़ने के बाद, उन्हें एक उत्पादक रोग हो गया जिससे उनकी स्थिति बिगड़ती गई। उनके अंतिम कुछ दिनों में, उन्हें दर्द, तंदुरुस्ती, उल्टी, दस्त आदि लगातार होने लगे थे। अंत में, उनके स्वास्थ्य बहुत ही खराब हो गया था और उन्हें 15 अक्टूबर, 1918 को शिरडी में अपने आश्रम में अंतिम संस्कार दिया गया।
साईं बाबा का अंतिम संस्कार कैसे हुआ था (How was Sai Baba's last rites done)
साईं बाबा का अंतिम संस्कार शिरडी के श्री साईंबाबा मंदिर में हुआ था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शिष्यों और उनके भक्तों ने उनके शव को धूप दी, उसे सजाया और उनके संगीत का पाठ किया। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उपस्थित थे, जो उनके भजन गाते और उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उनकी देखभाल करते थे।
उनके शव को शिरडी के मंदिर में एक स्थायी स्थान पर रखा गया था जिसे 'समाधि' कहा जाता है। आज भी, साईं बाबा की समाधि शिरडी में है और उनके श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है।
साईं बाबा कितने साल तक जीवित रहे (How many years did Sai Baba live)
साईं बाबा 28 सितंबर 1835 को पैदा हुए थे और 15 अक्टूबर 1918 को उनकी मृत्यु हुई थी। इसके अनुसार, साईं बाबा की आयु 83 वर्ष थी। उनके जीवन के इस लम्बे समय में, वे भारत के अनेक भागों में घूमे और अपने भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर ले जाने की कोशिश किया।
साईं बाबा का धर्म कौन सा है (What is Sai Baba's religion)
साईं बाबा अपने जीवन में सभी धर्मों के प्रति समझदार थे और उन्होंने समस्त धर्मों के तत्त्वों का समावेश किया। उनके उपदेशों में अनन्य भगवद् भक्ति, वेदान्त, सूफी तत्त्व, ईसाई धर्म की शिक्षाएं, हिंदू धर्म की शिक्षाएं और इस्लाम के तत्त्व शामिल थे। उन्होंने अन्तर्जातीय धर्मीय समझौते को बढ़ावा दिया और सभी धर्मों को एक समान माना। उन्होंने लोगों को इस बात का संदेश दिया कि धर्म का मतलब सिर्फ ईश्वर के प्रति श्रद्धा होना चाहिए और ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति का जीवन जीना चाहिए।
साईं बाबा ने समाधि कब ली थी (When did Sai Baba take Samadhi)
साईं बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 को शिरडी में समाधि ली थीं।
साईं बाबा को क्या पसंद था (What did Sai Baba like)
साईं बाबा को गरीब लोगों की सेवा करना बहुत पसंद था। उन्हें लोगों की समस्याओं का समाधान करना भी अधिक चाहिए था। उन्हें एक संत के रूप में अपने भक्तों को सीख देना भी बहुत पसंद था। साईं बाबा भोजन में संतुष्टि रखने वाले थे और वे ज्यादातर सात्विक आहार खाते थे। उन्हें मन की शुद्धि और चित्त शांति की भी बहुत प्राथमिकता थी।
क्या साईं बाबा जेल गए थे (Did Sai Baba go to jail)
हाँ, साईं बाबा को तीन दिनों के लिए जेल भेजा गया था। 1886 में, उन्हें शिरडी में एक बार फलसेवक नाम का व्यक्ति ने झूठी शिकायत दर्ज कराई थी जिसके चलते उन्हें जेल भेज दिया गया था। लेकिन बाद में उस व्यक्ति ने अपनी गलती स्वीकार कर दी थी और साईं बाबा को जेल से रिहा कर दिया गया था। इस घटना के बाद साईं बाबा ने अपने भक्तों को सलाह दी कि वे झूठी शिकायत न करें और सत्य का पालन करें।
साईं बाबा का काला सच (Dark Truth of Sai Baba)
"साईं बाबा का काला सच" उनकी एक अनोखी और अद्भुत शक्ति है जिसे उनके भक्तों द्वारा बताया जाता है। इस शक्ति के बारे में कहा जाता है कि जब कोई उनसे कुछ मांगता है तो साईं बाबा उनके मन या विचार की बात समझ जाते हैं और उनकी मनोकामना को पूरा करते हैं। इसलिए, लोग अक्सर उनसे "काला सच" मांग कर रखते हैं।
यह एक आध्यात्मिक मान्यता है और इसके पीछे कोई वैज्ञानिक विवरण नहीं है। हालांकि, भारतीय धार्मिक ग्रंथों में इस तरह की शक्तियों का जिक्र किया गया है और इसे अपनाया जाता है। साईं बाबा के भक्त इसे एक अद्भुत और अलौकिक शक्ति मानते हैं जो अपने दिव्य संदेशों और दयालुता के लिए जाने जाते हैं।
साईं बाबा मांसाहारी थे (Sai Baba was Non-Vegetarian)
साईं बाबा के खाने की आदतों के बारे में कई कहानियां सुनी जाती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वे मांसाहारी थे, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि वे शाकाहारी थे। हालांकि, यह बात सही नहीं है क्योंकि साईं बाबा एक आध्यात्मिक गुरु थे जो शिक्षा, दया और धार्मिकता को प्रचारित करते थे।
साईं बाबा के भक्तों के अनुसार, उन्हें जगतपाल सहित कई संतों ने भोजन के लिए आमंत्रित किया था और वे सभी भोजन को स्वीकार करते थे। साईं बाबा के जीवन से जुड़ी कई कहानियां हैं जो बताती हैं कि उन्होंने अनेक बार उपवास रखा था और धार्मिक तपस्या की थी। उन्होंने अपने भक्तों को धार्मिक जीवन के महत्त्व को समझाया और शिक्षा दी कि शारीरिक आदतों से परे जाकर आध्यात्मिकता प्राप्त की जा सकती है।
साईं बाबा का इतिहास (History of Sai Baba)
साईं बाबा का इतिहास बहुत रोमांचक है। साईं बाबा का जन्म 1838 में महाराष्ट्र के शिरडी में हुआ था। उनके असली नाम समधीराव गायकवाड था और वे एक ब्राह्मण परिवार से थे।
साईं बाबा ने अपना जीवन संगीत, भजन और आध्यात्मिकता को समर्पित कर दिया। उन्हें लोगों के बीच एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में माना जाता है। साईं बाबा ने विविध धर्मों के लोगों के लिए सेवा की और उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास किया।
साईं बाबा ने शिरडी में रहते हुए अपने अनुयायियों की समस्याओं को हल किया और उन्हें उनके आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर ले जाने में मदद की। वे शिरडी के मंदिर में बहुत अधिक भक्तों को अपनी शरण में लेते थे।
साईं बाबा की मृत्यु 15 अक्टूबर 1918 को हुई थी। उनके निधन के बाद, उनके अनुयायी ने उनकी स्मृति को जीवित रखने के लिए एक मंदिर बनाया जो आज भी शिरडी में है। आज भी साईं बाबा के अनुयाय उन्हें अपने आध्यात्म रूप में जानते मानते हैं.
साईं बाबा की मृत्यु कैसे हुई (How Sai Baba Died)
साईं बाबा की मृत्यु के बारे में कुछ निश्चित जानकारी नहीं है। उनके जीवन की कुछ घटनाओं और तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि उनकी मृत्यु 15 अक्टूबर 1918 को हुई थी।
साईं बाबा अपने जीवन के अंतिम दिनों में शिरडी में ही रहते थे और उन्हें बुखार आया था। उनकी सेहत बिगड़ने के बाद वे 15 अक्टूबर 1918 को इस दुनिया को अलविदा कह दें और महासमाधि में चले गए।
साईं बाबा की मृत्यु के बाद से लाखों लोग उनके उपासक बन गए हैं और उन्हें एक आध्यात्मिक गुरु और महापुरुष के रूप में स्मरण किया जाता है। आज भी शिरडी में साईं बाबा की समाधि स्थल है जो लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
शिरडी साईं बाबा मंदिर (Shirdi Sai Baba Temple)
शिरडी साईं बाबा मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु भक्त साईं बाबा की उपासना करने आते हैं।
साईं बाबा के जीवन का संघर्ष और उनकी उपासना को समझने के लिए शिरडी मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर साईं बाबा की तस्वीर के साथ स्थित है जो सभी श्रद्धालुओं को उनके आसपास अपनी कृपा बनाए रखते हैं।
यह मंदिर वास्तव में शिरडी में स्थित है और यहाँ पर बाबा की समाधि स्थल है। श्रद्धालुओं के लिए यहाँ पर कई सुविधाएं उपलब्ध हैं जैसे कि भोजन, आवास, धार्मिक गतिविधियों का आयोजन आदि।
शिरडी साईं बाबा मंदिर में साईं बाबा की भक्ति की जाती है और इसे संचालित करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ आती है। इस मंदिर में न केवल भारत से बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं जो साईं बाबा के भक्त होते हैं।
साईं बाबा हिंदू है या मुस्लिम (Sai Baba is Hindu or Muslim)
साईं बाबा के धर्म के बारे में कुछ निश्चित जानकारी नहीं है। उन्होंने कभी खुलकर अपने धर्म के बारे में बात नहीं की थी और उनकी उपदेशों में सभी धर्मों के लोगों के लिए उपयोगी संदेश होते हैं।
साईं बाबा ने अपने जीवन में अनेक बार देखा गया है कि वे धार्मिक समुदायों के साथ सहजता से रहते थे। उन्होंने हिंदू धर्म के भक्तों के लिए हिंदू धर्म की पूजा भी की थी और उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए भी कुछ कार्य किया था।
इसलिए, साईं बाबा का धर्म उनके उपदेशों के आधार पर सभी धर्मों का समावेशी धर्म था, जो समस्त मानव जाति के लिए उपयोगी था।
साईं बाबा के चमत्कार (Miracles of Sai Baba)
साईं बाबा के जीवन में कई चमत्कारिक घटनाएं घटीं थीं, जो उनके उपदेशों और उनके उपासकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए।
कुछ उनके चमत्कारों में शामिल हैं:
जल प्रसाद: साईं बाबा के दरबार में जल प्रसाद दिया जाता था जो उनकी कृपा से शुद्ध होता था और जिसे पीने से लोगों को आरोग्य मिलता था।
नौकरी मिलना: कई लोगों को साईं बाबा की कृपा से नौकरी मिली थी। वे अपने अधिकारों और संपत्ति के बिना भी सफलता प्राप्त कर सकते थे।
रोग ठीक होना: साईं बाबा ने कई लोगों के रोग ठीक किए थे। वे लोगों के लिए दवाएं प्रदान करते थे और कई बार वहां उपस्थित लोगों की आँखों में ही चोट लगने के बाद वो आराम से ठीक हो जाते थे।
भूत-पिशाच से मुक्ति: साईं बाबा ने कुछ मामलों में भूत-पिशाच से जूझते लोगों को मुक्ति दिलाई थी।
दिव्य दर्शन: कई लोगों को साईं बाबा के चमत्कारिक दिव्य दर्शन हुए थे, जिससे उनकी आँखों में नेत्रव