स्थिति
आमेर महल में जलेब चौक के दक्षिणी तरफ शिला माता का एक छोटा लेकिन ऐतिहासिक मंदिर है। शिला माता शाही परिवार की कुल देवी हैं। जलेब चौक से दूसरी मंजिल पर शिला माता मंदिर स्थित है।
चामुंडा देवी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है Chamunda mata ki katha
यहां से कई सीढ़ियां मंदिर की ओर जाती हैं। शीला देवी अंबा माता का ही एक रूप हैं। कहा जाता है कि आमेर का नाम अंबा माता के नाम पर "अंबर" रखा गया था। शिला पर माता की मूर्ति उकेरी जाने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है।
निर्माण
शिला देवी मंदिर का सम्पूर्ण कार्य संगमरमर के पत्थरों से किया गया था, जिसे महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में करवाया था। पहले यह चूना पत्थर से बना था। इस मंदिर की खासियत यह है कि रोजाना बोज चढ़ाने के बाद ही कपाट खुलते हैं। यहां गुजी और नारियल की विशेष रूप से सिफारिश की जाती है।
दंतकथाएं
वर्तमान शिला देवी मंदिर में राजकीय सम्पत्ति के सभी भाग एवं धार्मिक संस्थाओं की प्राचीन स्थापत्य शैली के मूल्य विद्यमान हैं। मूर्ति का टेढ़ा मुख उनकी विशेषता है। 1972 तक मंदिर में पशुबलि दी जाती थी, लेकिन जैन विरोध के कारण इसे रोक दिया गया था। इस मंदिर में शिला देवी की मूर्ति को लेकर कई तरह की कहानियां फैली हुई हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार के पुरातात्विक विवरण के अनुसार यह मूर्ति राजा मानसिंह द्वारा बंगाल से लाई गई थी। कहा जाता है कि केदार राजा को हराने का प्रयास विफल होने के बाद मानसिंह ने युद्ध में अपनी जीत के लिए मूर्ति से आशीर्वाद मांगा। बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से मुक्त करने की मांग की। इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में मदद की और नामसिंह ने देवी की मूर्ति को राजा केदार से मुक्त कराकर आमेर (आमेर) में स्थापित कर दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार, मानसिंह ने राजा केदार की पुत्री से विवाह किया और उपहार के रूप में देवी की मूर्ति प्राप्त की। लेकिन यह निश्चित है कि वर्तमान मूर्ति समुद्र में गिरे एक पत्थर से तराशी गई है और यही कारण है कि मूर्ति को शिला देवी कहा जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माना जाता है कि यह मूर्ति समुद्र में पड़ी हुई थी और राजा मानसिंह ने इसे समुद्र से बाहर निकाला था। मूर्ति एक चट्टान के आकार की और काले रंग की थी। राजा मानसिंह इसे आमेर ले आए और देवता की नक्काशी करके इसका अभिषेक किया।
एक देवी का रूप
पहले माता की मूर्ति का मुख पूर्व की ओर था। जयपुर की नींव पड़ने के बाद इसके निर्माण में अनेक बाधाएँ उत्पन्न होने लगीं। तब राजा जयसिंह ने अनुभवी विशेषज्ञों की सलाह पर मूर्ति को उत्तर की ओर स्थापित किया ताकि जयपुर के निर्माण के दौरान आगे कोई बाधा न हो, क्योंकि मूर्ति के दर्शन तिरछे पढ़े जाते थे। यह मूर्ति वर्तमान गर्भगृह में स्थापित है जिसका मुख उत्तर की ओर है। यह मूर्ति काले चमकीले पत्थर से बनी है और एक पत्थर की शिला पर बनी है।
pic credit: swapnil.1690शीला देवी की यह मूर्ति महिषासुर मंदिनी के रूप में पूजनीय है। मूर्ति को हमेशा कपड़े और लाल गुलाब से ढका जाता है ताकि मूर्ति का केवल चेहरा और हाथ ही दिखाई दे। मूर्ति में, देवी महिषासुर पर अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल से वार करती हैं, उसे एक पैर से पिन करती हैं। इसलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर झुकी हुई है। इस मूर्ति के शीर्ष पर बाएँ से दाएँ, उनके वाहनों पर आरूढ़, गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, शिव और कार्तिकेय की सुंदर लेकिन छोटी-छोटी मूर्तियाँ भी बनी हुई हैं। इस मंदिर के मूर्ति को बहुत चमत्कारी माना गया है। यह मंदिर शिला देवी के बाईं ओर अष्टधातु से बनाई गयी यहां हिंगलाज माता की मूर्ति भी है।
जयपुर के शासकों की शीला देवी में बहुत आस्था है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर दस महाविद्याओं और नवदुर्गा की मूर्तियां उकेरी गई हैं। मंदिर के अंदर कलाकार धीरेंद्र घोष ने महाकाली और महालक्ष्मी के सुंदर चित्र बनाए हैं। मंदिर के जगमोहन खंड में चांदी की घंटी बंधी है। यह देवी की पूजा करने से पहले भक्तों द्वारा बजाया जाता है। मंदिर के कुछ हिस्सों और स्तंभों में बंगाली शैली दिखाई देती है।
शिला देवी से जुडी और भी बातें
आमेर में शिला देवी का मंदिर किसने बनवाया (aamer mein shila devee ka mandir kisane banavaaya)
आमेर में शिला देवी का मंदिर किसने बनवाया इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे आमेर के इतिहास में महाराजा मान सिंह जी को शिला देवी के स्वप्न के आधार पर मंदिर का निर्माण करने का कथानक है। इस कथानक के अनुसार, महाराजा मान सिंह जी ने आमेर के पास एक मंदिर बनवाया जहां शिला देवी की प्रतिमा स्थापित की गई और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
यह मंदिर आज भी आमेर में मौजूद है और यहां शिला देवी की पूजा विधिवत रूप से की जाती है। इस मंदिर को आमेर किले के पास स्थित एक पहाड़ी पर स्थापित किया गया है।
कृपया ध्यान दें कि मेरे पास संपूर्ण और विस्तृत विवरण नहीं हैं, और इसलिए यह जानकारी केवल सामान्य बातों पर आधारित है। यदि आपको अधिक विवरण चाहिए, तो मैं आपको सलाह देता हूं कि आप स्थानीय संस्थानों या प्राधिकारियों से संपर्क करें जो आमेर मंदिर की विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
शिला देवी के मंदिरों की व्यापक रूप से कई स्थानों पर मान्यता है और यहां पर उनमें से कुछ मंदिरों के बारे में मैं आपको बता सकता हूँ:
वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू: यह मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित है और यहां शिला देवी को मां वैष्णो देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर भारत में सबसे प्रसिद्ध और भक्तों के बीच प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।
चीनी शिला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश: यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित है। इस मंदिर में शिला देवी की प्रतिमा पूजा जाती है और इसे स्थानीय लोगों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र माना जाता है।
जैन शिला देवी मंदिर, सीकर, राजस्थान: यह मंदिर राजस्थान के सीकर शहर में स्थित है। यह मंदिर जैन धर्म के प्रमुख स्थलों में से एक है और इसे शिला देवी की प्रतिमा का निवास स्थान माना जाता है।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं और शिला देवी के अन्य मंदिरों की सूची बहुत प्रचलित है.
शीला देवी in (sheela devee in ainglish
राजस्थान में शीला देवी के नाम से कोई विशेष मंदिर नहीं है। हालांकि, यह शीला देवी का नाम किसी स्थानीय देवी या शक्ति पूजा को दर्शाने वाली देवी के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। राजस्थान में शक्ति पूजा के कई मंदिर हैं जहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
कृपया बताएं कि आपको राजस्थान के किस इलाके या शहर में शीला देवी से संबंधित जानकारी चाहिए, ताकि मैं आपको उचित जानकारी प्रदान कर सकूं।
आमेर की शिला देवी की कथा (aamer kee shila devee kee katha)
आमेर शहर राजस्थान, भारत में स्थित है और यहां शिला देवी की महत्वपूर्ण पूजा की जाती है। शिला देवी को आमेर में श्री जगदम्बा माता के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर आमेर किले के पास स्थित है और इसे स्थानीय जनता द्वारा प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है।
शिला देवी की कथा के अनुसार, बहुत समय पहले आमेर में एक सम्राट राजा मान सिंह राज्य कर रहा था। उनके प्रजा और सेवक अपनी सुख-शांति के लिए भगवान जगदम्बा की पूजा करते थे। एक दिन राजा मान सिंह को एक स्वप्न आया, जिसमें भगवान जगदम्बा ने उन्हें बताया कि वे शिला रूप में आमेर में आ रही हैं और उन्हें मंदिर में स्थापित किया जाना चाहिए।
राजा मान सिंह ने भगवान के स्वप्न के अनुसार एक मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। शिला देवी को उचित रूप से स्थापित किया गया और उसकी पूजा-अर्चना की शुरुआत की गई। इसके बाद से, शिला देवी को राजा और उनके प्रजा द्वारा गहरी भक्ति किया करते हैं.
शिला माता का मेला कहां भरता है। (shila maata ka mela kahaan bharata hai.)
शिला माता के मेले का आयोजन भारत के कई राज्यों में किया जाता है। यह मेला अपने आप में एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होता है, जिसमें शिला माता की पूजा की जाती है और भक्तों की भीड़ इस मेले में उपस्थित होती है।
कुछ प्रमुख शिला माता के मेले निम्नलिखित हैं:
चिंतपूर्णी मेला, जम्मू और कश्मीर: यह मेला जम्मू और कश्मीर के राजधानी श्रीनगर के पास स्थित चिंतपूर्णी मंदिर में हर साल आयोजित किया जाता है। शिला माता की प्रतिमा को इस मेले में सार्थक अंकित किया जाता है और भक्तों के द्वारा पूजा जाती है।
वैष्णो देवी मेला, जम्मू और कश्मीर: यह मेला जम्मू और कश्मीर के वैष्णो देवी मंदिर के पास स्थित है। शिला माता को इस मेले में एक प्रमुख स्थान दिया जाता है और यहां उनकी पूजा अवश्य की जाती है।
शीला माता मेला, बीकानेर, राजस्थान: यह मेला राजस्थान के बीकानेर शहर में स्थित शीला माता मंदिर के पास आयोजित किया जाता है.