चामुंडा देवी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? | चामुंडा माता कुलदेवी किसकी है?

 हमारी इस पूरी पृथ्वी पर और विशेष रूप से भारत भूमि में आदि काल से माँ जगतजननी के हजारों ही नहीं लाखों सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हुआ करते थे, जिनमें से अब कुछ ही बचे हैं और शेष;  आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था।  उसके बारे में यह भी ज्ञात नहीं है कि उसका मूल स्थान अब कहाँ है।  लेकिन, जो कुछ भी बचा है, वह माँ सती को समर्पित 51 मुख्य शक्तिपीठों में से एक है, जो सनातन संस्कृति, यानी हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है, चामुंडा देवी मंदिर कांगड़ा है, जो आज भी एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। .  हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में मौजूद है।

  जानकारों के अनुसार देवी भगवती पुराण में उल्लेख है कि भगवान विष्णु के चक्र से कटकर माता सती के पैरों का एक हिस्सा इस स्थान पर गिरा था, जिसके बाद यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाने लगा।  हालांकि अधिकांश मान्यताओं और पुराणों में माता चामुंडा देवी के इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता नहीं दी गई है लेकिन स्थानीय और क्षेत्रीय रूप से इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है।  हालांकि जानकार मानते हैं कि यह सिद्ध पीठ मंदिर है, इसलिए किसी भी सिद्धपीठ की मान्यता शक्तिपीठ स्थलों की मान्यता से कम नहीं है।

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  चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले (चामुंडा देवी मंदिर कांगड़ा-हिमाचल प्रदेश) में बाण गंगा नदी के तट पर पडार नामक गाँव में स्थित है।  स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है।  स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि देवी चामुंडा का यह मंदिर 'भगवा शिव और मां शक्ति' का निवास स्थान है जहां वे अपने विश्व भ्रमण के दौरान विश्राम करते हैं।

यहां माता चामुंडा को 'हिमानी देवी मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है।  इसके अलावा भगवान शिव के मुखिया नंदी के नाम पर बने 'चामुंडा नंदिकेश्वर धाम' के रूप में भी इस स्थान का विशेष महत्व है।  पुराणों की कथाओं के अनुसार, "चामुंडा नंदिकेश्वर धाम" भगवान शिव और माता शक्ति का निवास स्थान है।  इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार 'चंड' और 'मुंड' नाम के राक्षसों का वध करने के बाद देवी मां के उस उग्र रूप को यहां के सभी देवताओं से 'रुद्र चामुंडा' की उपाधि और मान्यता मिली।  इसलिए यह महत्वपूर्ण है।  जगह और भी बढ़ रही है।

चामुंडा देवी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? (chaamunda devee mandir kyon prasiddh hai)

चामुंडा देवी मंदिर प्रसिद्धता का कारण हिमाचल प्रदेश, भारत में स्थित होने वाले एक प्रमुख शक्ति पीठों में से एक होने के बाद है। यह मंदिर माता चामुंडा को समर्पित है, जो हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवी के रूप में पूजी जाती है। चामुंडा देवी मंदिर का स्थान हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है, जो प्रसिद्ध शिमला हिल्स के पास हिमाचल के प्रमुख शहर धर्मशाला से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

chaamunda maata ka photo
pic credit: devdarshanapp

चामुंडा देवी मंदिर को उसकी प्राचीनता, मांगलिक स्थान, और श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्धता के लिए मान्यता है। इस मंदिर को स्थापित करने का कारण चामुंडा माता की पौराणिक कथा से जुड़ा है। संग्रहीत जानकारी के अनुसार, देवी चामुंडा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया और अपने भक्तों की सुरक्षा के लिए यहां विराजमान हुईं। वहां स्थित मंदिर को बनाया गया और उसे चामुंडा देवी के नाम से पुकारा जाने लगा।

चामुंडा माता का गांव कौन सा है? (chaamunda maata ka gaanv kaun sa hai)

चामुंडा माता का मंदिर और माता के प्रतीक स्थल कई जगहों पर भारत में स्थित हैं। इनमें से एक मशहूर स्थान चामुंडा माता के श्रीनगर क्षेत्र में स्थित है जो जम्मू और कश्मीर राज्य के भाग है। इसके अलावा राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भी चामुंडा माता के मंदिर हैं, लेकिन गांव के रूप में स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकने वाला कोई गांव नहीं है। चामुंडा माता के मंदिर भारत भर में विभिन्न स्थानों पर मौजूद हैं और यहां यात्री भक्तों के आगमन का स्थल बने हुए हैं। 

चामुंडा माता कुलदेवी किसकी है? (chaamunda maata kuladevee kisakee hai)

चामुण्डा माता कुलदेवी हिंदू धर्म में मान्यता प्राप्त देवी माता की एक संस्कृति है। इसकी अवधारणा के अनुसार, चामुण्डा माता शक्ति की एक रूप हैं और उन्हें दुर्गा देवी की एक अद्वितीय स्वरूप माना जाता है।

चामुण्डा माता को विशेष रूप से माना जाता है उत्तर भारत के हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में। उन्हें मुख्य रूप से भैरवी देवी या विष्णुपत्नी माना जाता है और उनका आराधना विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान की जाती है। चामुण्डा माता की पूजा करने के लिए कई मंदिर भारत भर में स्थापित हैं, जहां उनकी आराधना और भक्ति की जाती है।

चामुंडा देवी का मंदिर किसने बनाया था? (chaamunda devee ka mandir kisane banaaya tha)

चामुंडा माता के मंदिरों का निर्माण अनेक योगदानकर्ताओं द्वारा किया गया है और इसके पीछे कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस द्वारा विपदा में पड़े देवताओं ने माता दुर्गा का आवाहन किया था। माता दुर्गा ने चामुंडा रूप में प्रकट होकर महिषासुर का वध किया था। उसके बाद से चामुंडा माता को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाने लगा।

कई मंदिरों में चामुंडा माता का मंदिर है, जिनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों का निर्माण निम्नलिखित व्यक्तियों ने किया है:

जयपुर में स्थित चामुंडा माता मंदिर को राजा मन सिंह ने बनवाया था।


हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में स्थित चामुंडा देवी मंदिर का निर्माण राजा भवानी सिंग ने करवाया था।

जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में स्थित चामुंडा देवी मंदिर को महाराजा गुलाब सिंह ने बनवाया था।

इसके अलावा भारत भर में अन्य स्थानों पर भी चामुंडा माता के मंद

चामुंडा माता की सवारी कौन सी है? (chaamunda maata kee savaaree kaun see hai)

चामुंडा माता की सवारी (वाहन) व्यापक रूप से व्याख्यात है। चामुंडा माता के प्रमुख वाहनों में निम्नलिखित दो सवारीयों का उल्लेख किया जाता है:

सिंह: चामुंडा माता की प्रमुख सवारी सिंह होता है। सिंह को शक्ति, साहस और संकट के नाश का प्रतीक माना जाता है। माता दुर्गा के रूप में चामुंडा माता भी दुर्गा के रथ पर सवार होती हैं और इस रथ को एक या अधिक सिंहों द्वारा खींचा जाता है।

मोर: कुछ स्थानों पर, चामुंडा माता की दूसरी प्रमुख सवारी मोर होता है। मोर को सौंदर्य, शोभा और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, चामुंडा माता की सवारी में बकरी या भैंस का उपयोग भी किया जाता है, खासकर उत्तर भारतीय क्षेत्रों में।

यह वाहन चामुंडा माता की प्रतिष्ठा और महिमा को दर्शाने वाले हैं और भक्तों को आकर्षित करने में मदद करते हैं।

चामुंडा माता को प्रसन्न कैसे करें? (chaamunda maata ko prasann kaise karen)

चामुंडा माता को प्रसन्न करने के लिए आप निम्नलिखित उपायों का पालन कर सकते हैं:

श्रद्धा और भक्ति: चामुंडा माता को प्रसन्न करने का पहला और मुख्य उपाय है उन्हें श्रद्धा और भक्ति से पूजना। आप नियमित रूप से चामुंडा माता की पूजा, आरती और मंत्र जाप कर सकते हैं।

नित्य पूजा और व्रत: चामुंडा माता की नित्य पूजा करने और उनके व्रत मनाने से आप उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। नवरात्रि, दुर्गाष्टमी और चैत्र नवरात्रि जैसे विशेष पर्वों पर भी चामुंडा माता के व्रत मनाने से आप उनके कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

माता की सेवा: चामुंडा माता की सेवा करना उन्हें प्रसन्न करने का एक अच्छा तरीका है। आप मंदिरों में सेवा कार्यों में योगदान कर सकते हैं, जैसे कि प्रसाद तैयार करना, देवी की मूर्ति की सजावट करना, आरती करना आदि।

दान और सेवा: चामुंडा माता को प्रसन्न करने का एक अन्य तरीका है दान और सेवा करना। आप गरीबों की सहायता कर सकते हैं, 

चामुंडा मां की पूजा कैसे करते हैं? (chaamunda maan kee pooja kaise karate hain)

चामुंडा माता की पूजा करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:

पूजा स्थल की तैयारी: एक साफ़ और शुद्ध स्थान को चुनें जहां आप पूजा करना चाहते हैं। पूजा स्थल को सजाएं और माता की मूर्ति या छवि को स्थापित करें।

स्नान और वस्त्र स्नान: पूजा की शुरुआत में स्नान करें और पवित्रता को बनाए रखने के लिए शुद्ध वस्त्र पहनें।

कलश स्थापना: पूजा स्थल पर एक कलश स्थापित करें। इसमें पानी, सुपारी, सौंफ, दाख, गंगाजल और फूल डालें। कलश के मुख पर एक कपूर रखें।

पूजा सामग्री: चामुंडा माता की पूजा के लिए आपको नीचे दिए गए सामग्री की आवश्यकता होगी:

दीपक, दीपावली

रंगों का तिलक (कुमकुम)

पुष्प (फूल)

धूप, दीपल

पुष्पमाला (माला) 

नारियल 

प्रसाद (मिठाई या फल)

पूजा विधि:

पूजा की शुरुआत करने से पहले, माता को अपने मन में स्थान दें और उनसे आशीर्वाद मांगें।

काली और चामुंडा में क्या अंतर है? (kaalee aur chaamunda mein kya antar hai)

काली (Kali) और चामुंडा (Chamunda) दोनों ही देवी माताओं के प्रमुख स्वरूप हैं और दुर्गा माता के रूप में पूजे जाते हैं। हालांकि, इन दोनों माताओं में कुछ अंतर हैं। नीचे दिए गए हैं:

रूप: काली को अंधकारमय और भयंकर रूप में दिखाया जाता है। उनका त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। वे काली बद्रकाली, महाकाली, चिन्मस्ता, जगदंबा, भवतारिनी, आदि के नाम से भी जानी जाती हैं। चामुंडा, संकटमोचन, वाली, रुद्रानी और कपालिनी आदि के नाम से भी चित्रित होती हैं। चामुंडा का त्योहार नवरात्रि के दूसरे या तीसरे दिन मनाया जाता है।

जीवन परिप्रेक्ष्य: काली को प्राकृतिक शक्ति, शक्तिशाली विनाशकारी और मृत्यु के स्वरूप के रूप में जाना जाता है। वे संसारिक बंधनों को छोड़कर मुक्ति प्रदान करने की शक्ति हैं। चामुंडा को संकटों और विपत्तियों से निजात दिलाने वाली शक्ति माना जाता है। 

क्या भद्रकाली और चामुंडा एक ही है? (kya bhadrakaalee aur chaamunda ek hee
 hai)

भद्रकाली और चामुंडा दो अलग-अलग देवी माताओं के रूप मान्य नहीं किए जाते हैं। मूल रूप से, भद्रकाली और काली एक ही देवी के रूप माने जाते हैं, जो महाकाली के नाम से भी जानी जाती हैं। भद्रकाली और काली दोनों ही भगवती के विभिन्न प्रत्येक रूप हैं, जो महादेव (शिव) की आंशिक रूप से मान्य किए जाते हैं।

चामुंडा, वहीं, दुर्गा माता के एक विशेष रूप को प्रदर्शित करती हैं और वे भगवती की एक विशेष तांत्रिक रूप हैं। चामुंडा का त्योहार नवरात्रि के दूसरे या तीसरे दिन मनाया जाता है और वे मां दुर्गा की सवारी मानी जाती हैं।

कृपया मुझसे गलती के लिए क्षमा करें। धन्यवाद!

चामुंडा का नाम क्या है? (chaamunda ka naam kya hai)

चामुंडा का नाम "चामुंडेश्वरी" (Chamundeshwari) है।

चामुंडा माता का जन्म कब हुआ था? (chaamunda maata ka janm kab hua tha)

चामुंडा माता के जन्म के बारे में खुदाई रिकॉर्ड नहीं है। चामुंडा माता हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध देवी हैं, जिन्हें शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वह माता दुर्गा की एक रूप हैं और अपनी तांत्रिक स्वरूप में पूजी जाती हैं। चामुंडा माता के बारे में कई पुराणों और लोक कथाओं में उल्लेख है, लेकिन उनके जन्म की तारीख के बारे में निश्चित रूप से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

मां चामुंडा की पूजा कैसे की जाती है ? (maan chaamunda kee pooja kaise kee jaatee hai)

मां चामुंडा की पूजा हिंदू धर्म में एक प्रमुख पूजा प्रक्रिया है। यह पूजा अपने संक्रमणकाल में, विशेष तौर पर नवरात्रि के दौरान, की जाती है। निम्नलिखित तरीके से मां चामुंडा की पूजा की जाती है:

स्थान और समय: मां चामुंडा की पूजा को स्थानीय मंदिरों में या व्यक्तिगत रूप से गृह मंदिर में किया जा सकता है। पूजा का समय निर्धारित तिथियों और मुहूर्तों के अनुसार किया जाता है।

पूजा सामग्री: पूजा के लिए आपको कुछ सामग्री की तैयारी करनी होगी जैसे कि मां चामुंडा की मूर्ति, दिये, अगरबत्ती, दुपट्टा, सुपारी, नारियल, फूल, चावल, कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प, और पूजा की थाली।

पूजा प्रक्रिया: पूजा की प्रक्रिया में आपको मां चामुंडा के समक्ष अपने मन को शुद्ध करना होगा। इसके बाद आप मां की मूर्ति के सामने बैठें और ध्यान केंद्रित करें। आप दियों को जलाकर आरती गाएं और मंत्रों का जाप करें, जैसे कि "ॐ ऐं ह्रीं क

चामुंडेश्वरी की कहानी क्या है? (chaamundeshvaree kee kahaanee kya hai)

चामुंडेश्वरी की कई कथाएं हैं, लेकिन यहां मैं एक प्रसिद्ध कथा बता रहा हूँ:

काली और दुर्गा की एक कथा के अनुसार, एक बार देवी दुर्गा ने दैत्य राक्षस महिषासुर के खिलाफ युद्ध किया। महिषासुर एक प्रबल राक्षस था और वह देवताओं के साथ युद्ध करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिव की शक्तियों का आदान-प्रदान कर चुका था। युद्ध के दौरान दुर्गा ने अपनी शक्ति से एक अत्यंत भयंकर रूप धारण किया और महिषासुर को मार गिराया।

इस खतरनाक रूप को देखकर देवताओं ने दुर्गा की पूजा करने का निर्णय लिया। उन्होंने दुर्गा से अपनी शक्तियों को पराक्रमी और विनाशकारी रूप में प्रदर्शित करने का अनुरोध किया। दुर्गा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और एक अद्वितीय रूप में प्रकट हुईं, जिसे चामुंडेश्वरी कहा जाता है।

चामुंडेश्वरी देवी ने देवताओं के लिए अपनी क्रोधावेश रूप से महिषासुर के समर्थन में उठे देवताओं को विजय प्राप्त करने की कठोर तप किया और अपने मकसद में कामयाबी हाशिल किया.

काली और चामुंडा में क्या अंतर है? (kaalee aur chaamunda mein kya antar hai)

काली और चामुंडा दोनों ही माताओं के प्रसिद्ध रूप हैं और दुर्गा की एक अवतार माने जाते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण अंतर बताए जाते हैं:

रूपान्तरण (Transformation): काली की प्रमुख पहचान उनके काली रंग के साथ होती है, जबकि चामुंडा देवी ने दुर्गा की एक अद्वितीय रूप में प्रकट होकर अपना भयंकर रूप दिखाया। चामुंडा देवी को काली की एक रूपांतरण के रूप में भी देखा जा सकता है।

अस्तित्व का क्षेत्र (Realm of Existence): काली देवी का मूल अस्तित्व कोलकाता, पश्चिम बंगाल में माना जाता है, जबकि चामुंडा देवी की पूजा प्रमुखतः हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में स्थित चामुंडा देवी मंदिर में की जाती है।

पूजा प्रक्रिया (Worship Procedure): काली और चामुंडा की पूजा में छोटे-छोटे अंतर हो सकते हैं, जैसे आरती, मंत्रों का जाप और पूजा की पद्धति। इसे लेकर स्थानीय पारंपरिक और क्षेत्रीय आचार्यों की विशेषताएं हो सकती हैं।

नाम और परंपरा (Name and Tradition): काली और चामुंडा,

चामुंडा माता का मेला कब लगता है? (chaamunda maata ka mela kab lagata hai)

काली की एक प्रमुख रूप चामुंडा माता के मेले को चामुंडेश्वरी मेला भी कहा जाता है। यह मेला हर साल नवरात्रि के दौरान लगता है। नवरात्रि हिन्दू धर्म में मां दुर्गा की पूजा का एक प्रमुख त्योहार है और यह आमतौर पर शारदीय नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है। चामुंडेश्वरी मेला भारत के कई भागों में आयोजित होता है, जैसे कि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड आदि। यह मेला आमतौर पर सितंबर और अक्टूबर के महीनों में आयोजित होता है, जब नवरात्रि मनाई जाती है।

यह बताना महत्वपूर्ण है कि भारत में चामुंडा माता के अलावा और भी कई माता के मेले होते हैं जो उनके प्रतिष्ठान मंदिरों के पास आयोजित होते हैं। इन मेलों की तारीखें और स्थान भेदभाव के आधार पर बदल सकती हैं, इसलिए यदि आप किसी विशेष स्थान के चामुंडा मेले की बात कर रहे हैं, तो उसके बारे में अधिक जानकारी के लिए स्थानीय प्राधिकारियों या मंदिर प्रबंधन के संपर्क में रह सकते हैं  

और भी जानकारी माता चामुंडा  मंदिर के बारे में. 

चामुंडा माता का मंदिर जोधपुर राजस्थान (chaamunda maata ka mandir jodhapur raajasthaan)

जोधपुर, राजस्थान में चामुंडा माता का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यह मंदिर जोधपुर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और स्थानीय लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। चामुंडा माता को जगदम्बा, जगत जननी, जगताम्बा, चंडिका, जया और अम्बा जैसे नामों से भी जाना जाता है।

यह मंदिर मेरांगढ़ी हिल के ऊपर स्थित है, जिसे मान्हेर गढ़ भी कहा जाता है। इसे चामुंडा जी का मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर के पास पहुंचने के लिए, यात्रीयों को मान्हेर गढ़ तक ऊँचाई को पार करनी होती है। यहां से चामुंडा माता के मंदिर तक पहुंचने के लिए चढ़ाई या ट्रेक की जा सकती है।

चामुंडा माता मंदिर में मां चामुंडा की मूर्ति स्थापित है और यहां पर विशेष तिथियों पर माता की पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर स्थल पर पर्यटकों और भक्तों के लिए धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल होता है।

चामुंडा माता किसकी कुलदेवी है (chaamunda maata kisakee kuladevee hai)

चामुंडा माता हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की एक रूप हैं। वह देवी दुर्गा की एक अवतारिता स्वरूप हैं, जिन्हें चामुंडेश्वरी, चंडिका और क्रियाशक्ति देवी के नामों से भी जाना जाता है। चामुंडा माता को अन्य माता दुर्गा के अवतारों की तरह शक्ति और संहार की देवी के रूप में पूजा जाता है। वह अपने भक्तों की सुरक्षा करने और उनकी मनोकामनाओं को पूरा करने की कहीं भी विनती पर प्रतिस्थित होती हैं।

राजस्थान में चामुंडा माता का मंदिर कहां है (raajasthaan mein chaamunda maata ka mandir kahaan hai)

राजस्थान में चामुंडा माता का मंदिर विभिन्न स्थानों पर स्थित है, लेकिन जोधपुर में चामुंडा माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर मान्हेर गढ़ (Mehran Garh) पर स्थित है, जिसे चामुंडा जी का मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह जोधपुर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और यहां पर चामुंडा माता की पूजा और अर्चना की जाती है।

चामुंडा माता का इतिहास (chaamunda maata ka itihaas)

चामुंडा माता एक प्रमुख हिंदू देवी हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म में पूजा जाता है। वह दुर्गा माता की एक रूप हैं और उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। चामुंडा माता को चमर्देवी भी कहा जाता हैं, और उनकी मंदिरों में वे चमरों से सजाती हैं।

चामुंडा माता का इतिहास मान्यताओं और पुराणों के माध्यम से प्राप्त हुआ हैं। इन पुराणों के अनुसार, देवी दुर्गा ने रक्तबीज नामक एक राक्षस का वध किया था, जिससे वह विशेष रूप से प्रसन्न हुईं। दुर्गा माता ने इस दुर्गम राक्षस का वध करने के लिए चामुंडा माता के रूप में प्रकट होकर उन्हें मारा था। इसके बाद से चामुंडा माता को उनकी विशेष प्रसन्नता के कारण पूजा जाने लगी।

चामुंडा माता के एक प्रमुख मंदिर हिमाचल प्रदेश के कंगड़ा जिले में स्थित हैं, जिसे चामुंडा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता हैं। यह मंदिर पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध हैं और वार्षिक मेलों का आयोजन किया जाता हैं.

चामुंडा माता का मंत्र (chaamunda maata ka mantr)

चामुंडे जय जय चामुंडे। कालिके जय जय कालिके। सर्वशक्तिकरे जय जय सर्वशक्तिकरे। अहंकारहारिणि जय जय अहंकारहारिणि। सर्वदुष्टदारिणि जय जय सर्वदुष्टदारिणि। त्रिभुवनभयहारिणि जय जय त्रिभुवनभयहारिणि। सर्वभोगदात्रि जय जय सर्वभोगदात्रि। चामुंडे जय जय चामुंडे॥

(Translation: Victory, victory to Chamunda, Victory, victory to Kali, Victory, victory to the embodiment of all powers, Victory, victory to the conqueror of ego, Victory, victory to the destroyer of all evils, Victory, victory to the remover of fear in all three worlds, Victory, victory to the giver of all enjoyments, Victory, victory to Chamunda.)



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