मुझे नवग्रह मंदिर कब जाना चाहिए | How to perform Navagraha pooja at home

 नवग्रह पूजा एक प्राचीन हिंदू पूजा पद्धति है जिसमें नवग्रहों की पूजा और आराधना की जाती है। नवग्रहों का मान्यतायां बड़ा महत्व है और वे हिंदू धर्म में विभिन्न शुभ और अशुभ प्रभावों के प्रतीक माने जाते हैं। नवग्रहों के नाम हैं: सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहू और केतु।


नवग्रह पूजा का उद्देश्य नवग्रहों के शुभ प्रभावों को प्राप्त करना होता है और उनके अशुभ प्रभावों से सुरक्षा देना होता है। यह पूजा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक उपाय है जो जीवन में सुख, समृद्धि, शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए की जाती है।

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नवग्रह पूजा को अंग्रेजी में 'Navagraha Puja' कहा जाता है। इस पूजा को करने के लिए विशेष पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है, जैसे कि नवग्रहों की मूर्तियां, फूल, दीपक, धूप, नैवेद्य, पूजा थाली, रोली, अक्षत, जल, धातु के कपड़े, इत्यादि 

नवग्रह मंदिर के बारे में और भी जानिए 

मकर संक्रांति को देशभर के लोग इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया करते है.  इस बीच, मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में प्राचीन नवग्रह मंदिर मकर संक्रांति पर बहुत महत्व रखता है।  यहां मकर संक्रांति पर सूर्य की पहली किरण सूर्य देव की मूर्ति पर पड़ती है।  यह देश का दूसरा ऐसा मंदिर है जहां सूर्य की पहली किरण आती है।  इस मंदिर के चारों ओर नवग्रहों की प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं।  यही वह  कारण है कि पुरे देश से श्रद्धालु यहां पर भगवान के दर्शन के लिए आया करते हैं।


  नवग्रह मंदिर सूर्य किरण प्रवेश -


  मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले ही प्राचीन नवग्रह मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है।  मकर संक्रांति पर सूर्य मंदिर में सूर्य की पहली किरण मंदिर के गुंबद से होकर गुजरती है और भगवान सूर्य की मूर्ति पर पड़ती है।  संक्रांति पर प्राचीन नवग्रह मंदिर में सुबह तीन बजे से ही भीड़ लग जाती है।


  नवग्रह मंदिर खरगोन -


  प्रसिद्ध नवग्रह मंदिर के पुजारी लोकेश जागीरधर का कहना है कि मकर संक्रांति सूर्य के स्वागत का पर्व है।  नवग्रह मंदिर में सूर्य का आधिपत्य है।  यहां गर्भगृह में बीच में सूर्य की मूर्ति विराजमान है, मूर्ति के चारों ओर अन्य ग्रह भी हैं।  माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा की जाए और नवग्रह की कृपा हो जाए तो हमें पूरे साल ग्रह शांति का फल मिलता है।  मंदिर को प्राचीन खगोल विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार डिजाइन किया गया था।


नवग्रह मंदिर खरगोन -


  नवग्रह मंदिर के कारण खरगोन को नवग्रह नगरी के नाम से भी जाना जाता है।  इस मंदिर की स्थापना 600 साल पहले हुई थी।  शेषप्पा सुखवदानी वैरागकर द्वारा स्थापित।  शेषप्पा मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले थे।  वे अष्टम महाविद्या बगलामुखी देवी के भक्त थे।


  नवग्रह मंदिर खरगोन -


  विशेष मंदिर डिजाइन इस मंदिर का निर्माण प्राचीन खगोल विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार किया गया था।  मंदिर में प्रवेश करने के लिए सात सीढ़ियां हैं, जो सात प्रहारों का प्रतीक है।  उसके बाद मां सरस्वती, श्रीराम और पंचमुखी महादेव ब्रह्मा विष्णु के रूप में प्रकट होते हैं।  फिर मंदिर में जाएं, जहां आपको 12 सीढ़ियां उतरनी हैं, जो 12 महीनों का प्रतीक हैं।  मंदिर में नवग्रह देखे जा सकते हैं।  इसके बाद दूसरे मार्ग से पुन: 12 सीढ़ियां चढ़ें, जो कि 12 राशियों के प्रतीक हैं।  तो हमारा जीवन सात काल, 12 महीने, 12 राशियों और नौ ग्रहों के बीच चलता है और इसी आधार पर मंदिर का निर्माण हुआ। 

नवग्रह मंदिर के बारें में और अन्य जानकारियां 

मुझे नवग्रह मंदिर कब जाना चाहिए? (mujhe navagrah mandir kab jaana chaahie)

नवग्रह मंदिर जाने का समय व्यक्ति की धार्मिक आदतों, आस्था और नगर के स्थानीय परंपराओं पर निर्भर करता है। अक्सर, लोग नवग्रह मंदिर विभिन्न पवित्र दिनों और तिथियों पर जाते हैं जब नक्षत्र, ग्रह और नगर के प्रमुख समारोहों का शुभ मुहूर्त होता है। नवग्रह मंदिर जाने के लिए आप निम्नलिखित तिथियों पर जा सकते हैं:

रविवार (सूर्यदेव का दिन)

सोमवार (चंद्रमा का दिन)

बुधवार (बुध का दिन)

शुक्रवार (शुक्र का दिन)

शनिवार (शनि का दिन)

इसके अलावा, किसी विशेष पर्व या नगर के प्रमुख समारोहों के दौरान भी नवग्रह मंदिर जाना शुभ माना जाता है। आप अपने नगर के स्थानीय पुरोहित या मंदिर प्रबंधन से संपर्क करके उनकी सलाह ले सकते हैं और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। वे आपको सही मुहूर्त, दिन और समय के बारे में बता सकेंगे जब नवग्रह मंदिर जाने से आपके लिए सर्वोत्तम फल प्राप्त हो सकते हैं।

नवग्रह देवता कौन है? (navagrah devata kaun hai)

नवग्रह देवताएं हिन्दू ज्योतिष और धार्मिक परंपराओं में प्रमुख ग्रहों को संक्षेप में प्रतिष्ठित करती हैं। नवग्रह देवताएं निम्नलिखित हैं:

सूर्य (Sun): सूर्य ग्रह हमारे सौर मंडल का मुख्य ग्रह है और जीवन का प्रमुख स्रोत है।

चंद्रमा (Moon): चंद्रमा ग्रह हमारी आत्मा और मन को प्रतिष्ठित करता है।

मंगल (Mars): मंगल ग्रह शक्ति, प्रेरणा और साहस का प्रतीक है।

बुध (Mercury): बुध ग्रह बुद्धि, विद्या, वाणी और बुद्धिमत्ता को प्रतिष्ठित करता है।

बृहस्पति (Jupiter): बृहस्पति ग्रह ज्ञान, शिक्षा, धर्म और वृद्धि का प्रतीक है।

शुक्र (Venus): शुक्र ग्रह सौंदर्य, सुख, प्रेम और साम्राज्य का प्रतीक है।

शनि (Saturn): शनि ग्रह कर्म, न्याय, कठोरता और सामरिकता का प्रतीक है।

राहु (Rahu): राहु ग्रह उत्तारफल्गुनी नक्षत्र में स्थित होता है और उपायुक्त फल को प्रदान करता है।

केतु (Ketu): केतु ग्रह पूर्वफल्गुनी नक्षत्र में स्थित होता है और मोक्ष और उपासना के प्रतीक माना जाता हैं.

भारत में कितने नवग्रह मंदिर हैं? (bhaarat mein kitane navagrah mandir hain)

भारत में नवग्रहों के मंदिर विभिन्न भागों में उपस्थित हैं। हालांकि, नवग्रहों के मंदिरों की संख्या का निर्धारण करना कठिन है क्योंकि यहां देशभर में अनेक स्थानों पर ऐसे मंदिर हो सकते हैं जिनकी गिनती कठिन हो सकती है। कुछ मशहूर नवग्रह मंदिरों के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

सूर्य मंदिर, कोंकन (महाराष्ट्र)

चन्द्र मंदिर, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

मंगल मंदिर, नसीक (महाराष्ट्र)

बृहस्पति मंदिर, अलंकुडी (केरल)

शुक्र मंदिर, स्रीकाकुलम (तमिलनाडु)

शनि मंदिर, शान्तिनिकेतन (पश्चिम बंगाल)

राहु मंदिर, थाणे (महाराष्ट्र)

केतु मंदिर, केतु (तमिलनाडु)

बुध मंदिर, नवग्रह द्वारा प्रबंधित ब्रह्मपुरी (उत्तर प्रदेश)

ये केवल कुछ उदाहरण हैं और अन्य स्थानों पर भी नवग्रह मंदिर हो सकते हैं जिनकी जानकारी मुझे नहीं है। नवग्रहों के मंदिर विभिन्न राज्यों में स्थित हो सकते हैं और उनकी संख्या का निर्धारण संभव नही हैं.

नवग्रह के प्रथम देवता कौन है? (navagrah ke pratham devata kaun hai)

नवग्रहों के प्रथम देवता का अर्थ संदर्भ धार्मिक एवं ज्योतिषीय परंपराओं पर निर्भर करता है। हिन्दू धर्म में, नवग्रहों की प्रथम देवी/देवता ब्रह्मा जी होते हैं। ब्रह्मा जी हिन्दू त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) के तीसरे देवता हैं और वे सृष्टि के प्रमुख देवता माने जाते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में, नवग्रहों के प्रथम देवता विष्णु जी होते हैं। नवग्रहों के आधार पर नक्षत्र, ग्रह, राशि आदि का अध्ययन कर ज्योतिष विज्ञान व्यापक रूप से उनकी प्रभावशीलता और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली शुभ और अशुभ प्रभावों को विश्लेषण करता है। इस परंपरा में, विष्णु जी को नवग्रहों के प्रथम देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है।

Navagraha Temple photo,
pic credit: rajkumar_photography__


कृपया ध्यान दें कि यह धार्मिक और ज्योतिषीय विश्वास और परंपराएं हैं और अलग-अलग संस्कृति, परंपराओं, और धार्मिक सम्प्रदायों में भिन्न भिन्न हो सकती हैं।

नवग्रह पूजा करने से क्या लाभ होता है? (navagrah pooja karane se kya laabh hota hai)

नवग्रह पूजा करने का मान्यता से अनुसार, यह माना जाता है कि नवग्रहों के आपसी सम्बन्धों और व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव होता है। नवग्रहों को प्रसन्न करके और उनकी कृपा प्राप्त करके, व्यक्ति इन ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों से बच सकता है और सकारात्मक प्रभावों को बढ़ा सकता है। नवग्रह पूजा के लाभों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव का निवारण: नवग्रह पूजा से, व्यक्ति अनुकूलता और सकारात्मकता को बढ़ा सकता है और नकारात्मक प्रभावों से बच सकता है। यह पूजा उन ग्रहों की कृपा को प्राप्त करने में मदद कर सकती है जो अस्त ग्रहों के कारण समस्याएं या अड़चनें पैदा कर सकते हैं।

सकारात्मकता और सफलता को बढ़ाना: नवग्रह पूजा करने से, व्यक्ति मानसिक तनाव को कम करके अपनी उच्चतम संभावनाओं तक पहुंच सकता है। इसके परिणामस्वरूप, सकारात्मकता, सफलता, और समृद्धि को बढ़ाया जा सकता है।

क्या हम एक दिन में नवग्रह मंदिर देख सकते हैं?(kya ham ek din mein navagrah mandir dekh sakate hain)

नवग्रह मंदिर देखने के लिए, आपके स्थान पर उनकी स्थिति और दूसरे परिसरीय कारकों पर निर्भर करेगा। यदि आपके पास एक स्थान है जहां पांच या उससे कम नवग्रह मंदिर समूह स्थित हैं और आप इसे संभावित हैंगर जिन्हें देखना चाहते हैं, तो आप उन्हें एक दिन में देख सकते हैं।

हालांकि, अधिकांश स्थानों पर नवग्रह मंदिर एक स्थान से अलग होते हैं और इसलिए आपको अलग-अलग स्थानों पर जाना हो सकता है। ऐसे मामलों में, एक दिन में सभी नवग्रह मंदिर देखना कठिन हो सकता है। यह आपके स्थान, यातायात के आवागमन का समय, और मंदिरों के बीच की दूरी पर निर्भर करेगा।

आपको नवग्रह मंदिरों की स्थिति के बारे में स्थानीय पर्यटन अथवा मंदिर प्रशासन से संपर्क करके जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। वे आपको योग्य विवरण, यातायात जानकारी, और दूरी के बारे में सलाह देंगे। आप उन्हें आपकी योजना के अनुसार एक दिन में कितने मंदिर देखना चाहते हैं

नवग्रह की पूजा क्यों की जाती है? (navagrah kee pooja kyon kee jaatee hai)

नवग्रह की पूजा का मूल्यांकन वैदिक ज्योतिष और हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि नवग्रह अपनी गतिविधियों और प्रभावों के माध्यम से मनुष्यों की जीवन पर सामर्थ्य रखते हैं। नवग्रह के आलोक में पूजा करने से लोग उनकी कृपा और आशीर्वाद का अनुभव करने की आशा करते हैं।

नवग्रहों की पूजा को विभिन्न कारणों से की जाती है, जैसे ग्रहों के शान्ति, समृद्धि, शुभ गतिविधियों की प्राप्ति, रोगों और आपदाओं से सुरक्षा, प्रेम और संबंधों में सुख, शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति आदि। नवग्रहों की पूजा करके, लोग अपने जीवन में संतुलन, समृद्धि, शांति, सम्पन्नता और धार्मिक उन्नति को बढ़ाने का प्रयास करते हैं।

यह पूजा विभिन्न तरीकों से की जा सकती है, जैसे मंदिरों में विशेष पूजा, यज्ञ, मंत्र जाप, ध्यान आदि। इसके अलावा, नवग्रह के उपासना रत्नों, रूद्राक्ष, वस्त्र, पूजा पदार्थो से करना चाहिए.

नवग्रह का अर्थ क्या है? (navagrah ka arth kya hai)

नवग्रह शब्द संस्कृत शब्द है, जिसमें "नव" नौ और "ग्रह" ग्रहन का अर्थ होता है। नवग्रह शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "नौ ग्रह" या "नौ अधिपति"। हिंदू धर्म में, नवग्रह देवताएं या प्लेनेट्स के रूप में पहचानी जाती हैं जो ब्रह्मांड में ग्रहण करती हैं।

नवग्रह शास्त्र और ज्योतिष में नव ग्रह निम्नलिखित होते हैं:

सूर्य (Sun)

चंद्रमा (Moon)

मंगल (Mars)

बुध (Mercury)

बृहस्पति (Jupiter)

शुक्र (Venus)

शनि (Saturn)

राहु (Rahu)

केतु (Ketu)

हिंदू ज्योतिष में नवग्रहों को जन्मकुंडली और ग्रहों के स्थान के माध्यम से मान्यता दी जाती है। इन नवग्रहों का मान्यता में बहुत महत्व है और व्यक्ति के जीवन, कर्म, स्वास्थ्य, समृद्धि, प्रेम, विवाह, करियर आदि पर प्रभाव डालते हैं। इसलिए, नवग्रह के प्रभाव को समझने और सम्मान करने के लिए उनकी पूजा और उपासना की जाती है।

नवग्रह की पूजा कैसे की जाती है? (navagrah kee pooja kaise kee jaatee hai)

नवग्रहों की पूजा को विभिन्न तरीकों से की जा सकती है, और यह प्राथमिक रूप से ज्योतिष और धार्मिक प्रथाओं पर निर्भर करेगा। यहां कुछ सामान्य चरण हैं जो नवग्रहों की पूजा के दौरान अनुसरण किए जा सकते हैं:

नवग्रह मंत्र: नवग्रहों के लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जा सकता है। प्रत्येक ग्रह के लिए अपना विशेष मंत्र होता है, जिसका जाप करके उनसे जुड़े शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।

नवग्रह पूजा: नवग्रहों की पूजा के दौरान उनकी मूर्ति या प्रतिमा के सामने धूप, दीप, फूल, वस्त्र आदि की अर्चना की जाती है। पूजा में नवग्रहों के लिए विशेष पूजा सामग्री भी प्रयोग की जाती है।

व्रत और उपवास: नवग्रहों की पूजा के दौरान व्रत और उपवास रखे जा सकते हैं। इसमें निर्धारित खाद्य पदार्थों का त्याग किया जाता है और नवग्रहों की कृपा और आशीर्वाद के लिए उपासना की जाती हैं .

हिंदू धर्म में 9 ग्रह कौन से हैं? (hindoo dharm mein 9 grah kaun se hain)

हिंदू धर्म में नवग्रह निम्नलिखित होते हैं:

सूर्य (Sun): सूर्य ग्रह हमारी आध्यात्मिक और जीवन शक्ति का प्रतीक है। इसे सूर्य देव, आदित्य, विवस्वान भी कहा जाता है।

चंद्रमा (Moon): चंद्रमा ग्रह भावनात्मकता, मनोवृत्ति, भावुकता, मातृत्व और संबंधों को प्रभावित करता है। इसे चंद्रमा देवी भी कहा जाता है।

मंगल (Mars): मंगल ग्रह साहस, उत्साह, शक्ति और वीरता का प्रतीक है। इसे भी मंगल ग्रह या मंगल देव भी कहा जाता है।

बुध (Mercury): बुध ग्रह बुद्धि, बोध, वाणी, विद्या, ब्रह्मज्ञान और कला का प्रतीक है। इसे बुध ग्रह या बुध देव भी कहा जाता है।

बृहस्पति (Jupiter): बृहस्पति ग्रह विद्या, ज्ञान, धर्म, समृद्धि और भाग्य का प्रतीक है। इसे गुरु ग्रह या बृहस्पति देव भी कहा जाता है।

शुक्र (Venus): शुक्र ग्रह सौंदर्य, प्रेम, सुख, कला, और वैभव का प्रतीक है। इसे शुक्र ग्रह या शुक्र देव भी कहा जाता है।

शनि (Saturn): शनि

नवग्रह की लकड़ी कौन कौन सी है? (navagrah kee lakadee kaun kaun see hai)

नवग्रह की लकड़ी (द्रव्य) के विषय में विशेष प्रकार की प्रथाएं हिंदू धर्म में प्रचलित हैं। इन प्रथाओं में नवग्रहों के विभिन्न द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है। यहां नवग्रहों के द्रव्यों की एक सारणी दी गई है:

सूर्य (Sun): सूर्य की लकड़ी के रूप में खस और अर्क द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।

चंद्रमा (Moon): चंद्रमा की लकड़ी के रूप में सीटी, सीता और सफेद चंदन द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।

मंगल (Mars): मंगल की लकड़ी के रूप में खूबानी, गुड़ और लाल चंदन द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।

बुध (Mercury): बुध की लकड़ी के रूप में तगार, सरसों का तेल और लहसुन द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।

बृहस्पति (Jupiter): बृहस्पति की लकड़ी के रूप में पीपल, बन्दरगह, घी और चन्दन द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।

शुक्र (Venus): शुक्र की लकड़ी के रूप में खीर, चावल, गुड़ और कपूर द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।

शनि

नवग्रह पूजा के लिए कौन सा दिन अच्छ है? (navagrah pooja ke lie kaun sa din achchh hai)

नवग्रह पूजा के लिए विभिन्न दिनों का महत्व हिंदू ज्योतिष और पूजा प्रथाओं पर निर्भर करेगा। यहां नवग्रहों की पूजा के लिए सामान्य रूप से सुझाए जाने वाले दिन दिए जा रहे हैं:

सूर्य (Sun): रविवार (शुक्रवार से अलग होता है)।

चंद्रमा (Moon): सोमवार।

मंगल (Mars): मंगलवार।

बुध (Mercury): बुधवार।

बृहस्पति (Jupiter): गुरुवार।

शुक्र (Venus): शुक्रवार।

शनि (Saturn): शनिवार।

राहु (Rahu): आदित्यवार (सोमवार से अलग होता है)।

केतु (Ketu): भूमिवार (मंगलवार से अलग होता है)।

यह सामान्य दिनों की अवधारणा है और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं, ज्योतिषीय निर्धारण और परंपरागत आदतों के आधार पर इसे बदला जा सकता है। आपकी ज्योतिषी या पंडित आपको उचित दिन का सुझाव दे सकते हैं जो आपकी निजी स्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार होता है।

आप नवग्रह पूजा में क्या पहनती हैं? (aap navagrah pooja mein kya pahanatee hain)

नवग्रह पूजा में किसी भी वस्त्र या पहनावे का उपयोग नहीं कर सकती हूँ। हिंदू धर्म में, नवग्रह पूजा में पंडित या पूजारी द्वारा विभिन्न द्रव्य, फूल, दीपक, धूप, पुष्पमाला, अर्क, नवधान्य, आरती और मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। यह पूजा क्रिया नियमों, परंपराओं और स्थानीय आदतों के अनुसार भिन्न हो सकती है।

पूजा करने से पहले, यदि आप नवग्रह पूजा करने की योजना बना रहे हैं, तो अच्छा होगा कि आप अपने स्थानीय पंडित या पूजारी से संपर्क करें और उनसे विवरण और निर्देश प्राप्त करें। वे आपको सही तरीके से पूजा करने में मार्गदर्शन करेंगे और आपके सभी संदेशों का पालन करेंगे।

नवग्रह मंदिर कैसे जाए? (navagrah mandir kaise jae)

नवग्रह मंदिर जाने के लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:

स्थान का चयन करें: नवग्रह मंदिर आपके आसपास कई स्थानों पर उपलब्ध हो सकते हैं। आपके पास एक नवग्रह मंदिर की निर्दिष्ट स्थान सूची हो सकती है, या आप इंटरनेट या स्थानीय संस्थानों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

समय का चयन करें: मंदिर जाने से पहले, आपको यह जानना चाहिए कि मंदिर का समय सुबह और शाम में कब खुलता है और कब बंद होता है। आप नवग्रह पूजा करने के उचित समय को ध्यान में रखें और उसी समय मंदिर जाएं।

समय पर पहुंचें: आप अपने व्यक्तिगत यातायात के अनुसार मंदिर पहुंच सकते हैं, जैसे कि आपके पास गाड़ी, टैक्सी, ऑटोरिक्शा, या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने की सुविधा हो सकती है। यदि आपके पास मंदिर के नजदीक वाला स्थान है, तो आप चलकर भी पहुंच सकते हैं।

यात्रा की तैयारियां: नवग्रह मंदिर की यात्रा पर जाते समय, आप ध्यान दें.

नवग्रह की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए? (navagrah kee kitanee parikrama karanee chaahie)

नवग्रह की परिक्रमा का महत्व हिंदू धर्म में है, लेकिन यह प्रत्येक मंदिर और प्रथा के अनुसार भिन्न हो सकती है। कुछ मंदिरों में, नवग्रह परिक्रमा के लिए एक बार का पथ प्रत्येक ग्रह के लिए प्रदान किया जाता है, जबकि कुछ मंदिरों में एक संपूर्ण नवग्रह परिक्रमा करनी होती है।

अधिकांश नवग्रह मंदिरों में, नवग्रह परिक्रमा नौ आलिंगनाओं के रूप में की जाती है, जहां प्रत्येक ग्रह के समर्पण स्थान पर एक आलिंगन किया जाता है। यह आपकी इच्छा और आपके संदर्भ पर निर्भर करेगा कि आप नवग्रह परिक्रमा किस रूप में करना चाहेंगे।

मैं आपको सलाह देता हूं कि आप अपने स्थानीय पंडित या मंदिर प्रशासन से संपर्क करें और उनसे नवग्रह परिक्रमा के बारे में विवरण प्राप्त करें। वे आपको सही दिशा और प्रक्रिया बता सकते हैं, जिससे आप नवग्रहों की समर्पणा को सही ढंग से कर सकेंगे।

नवग्रह में क्या क्या सामान लगता है? (navagrah mein kya kya saamaan lagata hai)

नवग्रह वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण हैं और इन्हें नवग्रहों के रूप में भी जाना जाता है। नवग्रहों की संख्या एकादश है, और ये निम्नलिखित हैं:

सूर्य (Sun): सूर्य ग्रह हमारे सौरमंडल का मुख्य तारा है और इसका प्रमुख स्थान अपनी राशि सिंह है।

चंद्रमा (Moon): चंद्रमा हमारा एकमात्र नगर ग्रह है और इसका मुख्य स्थान राशि कर्क में होता है।

मंगल (Mars): मंगल ग्रह तेजस्वी और वीरतापूर्ण ग्रह है और इसका मुख्य स्थान मीन राशि में होता है।

बुध (Mercury): बुध ग्रह विद्या, बुद्धि और बाणी का प्रतिष्ठान है और इसका मुख्य स्थान कन्या राशि में होता है।

गुरु (Jupiter): गुरु ग्रह बुद्धिमानी, बृहस्पति, धर्म और धन का प्रतीक है और इसका मुख्य स्थान धनु राशि में होता है।

शुक्र (Venus): शुक्र ग्रह सौंदर्य, कला, सुंदरता और प्रेम का प्रतीक है और इसका मुख्य स्थान वृषभ राशि में होता है।

शनि (Saturn): शनि ग्रह कर्म, उच्चता, अधिकार और कठिन हो सकता हैं.

नवग्रह के पौधे कौन कौन से हैं? (navagrah ke paudhe kaun kaun se hain)

नवग्रहों को पौधों के रूप में देखने की परंपरा वैदिक ज्योतिष में प्रचलित नहीं है, क्योंकि नवग्रह आकारदायी ग्रह हैं जो खेती या पौधों से संबंधित नहीं हैं। यह एक पूर्णत: विचारशील प्रश्न है जिसका जवाब नहीं है।

हालांकि, पौधों की देखभाल और प्रकृति के संरक्षण के लिए ग्रहों का महत्व माना जाता है, और कई लोग नवग्रहों के उपाय करके अच्छी खेती या वृक्षारोपण करते हैं। इसमें पौधों की प्रकृति, मूल्यांकन, ग्राम्य उपयोग, मिट्टी का विश्लेषण, वर्षा का मापन, और पौधों के संचार के लिए पौधों को प्राकृतिक ऊर्जा के संरक्षण के आधार पर नियंत्रित करने की विधियों का उपयोग किया जा सकता है।

इसलिए, विचारशील तरीके से यदि हम नवग्रहों को पौधों से जोड़ना चाहें, तो हम कह सकते हैं कि पौधों की संरचना, विकास और प्रभाव में नवग्रहों की ऊर्जा और गुणवत्ता का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।

कौन सा भगवान नवग्रह को नियंत्रित करता है? (kaun sa bhagavaan navagrah ko niyantrit karata hai)

हिन्दू धर्म में, नवग्रहों को नियंत्रित करने वाले देवताओं की एक सूची है। इस विशेष सूची में निम्नलिखित देवताएं शामिल हैं:

सूर्य (आदित्य) - सूर्य नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

चंद्रमा (सोम) - चंद्रमा नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

मंगल (अंगारक) - मंगल नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

बुध - बुध नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

गुरु (बृहस्पति) - गुरु नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

शुक्र - शुक्र नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

शनि - शनि नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

राहु - राहु नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

केतु - केतु नवग्रह को नियंत्रित करते हैं।

इन नवग्रहों को नियंत्रित करने के लिए विशेष पूजाओं, मंत्रों और उपासना का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न ग्रहों के उपास्य देवताओं की संख्या और नाम विभिन्न पौराणिक ग्रंथों और विधानों में थोड़ी भिन्न हो सकती है।

नवग्रह पूजा के लिए कौन सा मंदिर प्रसिद्ध है? (navagrah pooja ke lie kaun sa mandir
prasiddh hai)

नवग्रह पूजा के लिए भारत में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। यहां कुछ प्रमुख नवग्रह मंदिरों का उल्लेख किया गया है:

श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर, देवघर, झारखंड - राहु की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

श्री सूर्य मंदिर, कोंकण, उत्तर कन्नड़, कर्नाटक - सूर्य नवग्रह की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

श्री चिदंबरम नटराज मंदिर, चिदंबरम, तमिलनाडु - शनि नवग्रह की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

श्री ब्रहस्पति टेंपल, अलंकुदी, थिरुनन्तपुरम, तमिलनाडु - बृहस्पति नवग्रह की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

श्री केतु मंदिर, कुक्के सुब्रह्मण्य, कर्नाटक - केतु नवग्रह की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

श्री शुक्र नवग्रह मंदिर, कांचीपुरम, तमिलनाडु - शुक्र नवग्रह की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

श्री मंगलनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश - मंगल नवग्रह की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

यहां उल्लिखित मंदिरों के अलावा भी देशभर में और भी प्रसिद्ध हैं.

नवग्रह स्तोत्र कितनी बार पढ़ना चाहिए? (navagrah stotr kitanee baar padhana chaahie)

नवग्रह स्तोत्र को पढ़ने के लिए कोई निश्चित संख्या निर्धारित नहीं है। यह आपकी आवश्यकताओं और साधना के अनुसार भिन्न हो सकता है। अधिकांश लोग नवग्रह स्तोत्र को एक या दो बार पढ़ने की प्रथा अपनाते हैं, हालांकि कुछ लोग इसे अधिक बार पढ़ना पसंद करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में संशय और दोष निवारण के लिए नवग्रह स्तोत्र का नियमित जाप किया जा सकता है। ऐसे मामलों में, ज्योतिषाचार्य या पंडित आपको उचित संख्या और जाप की विधि के बारे में सलाह दे सकते हैं।

साधारणतः, अपनी पूजा और साधना के अनुसार नवग्रह स्तोत्र को नियमित रूप से पढ़ने की सिफारिश की जाती है। यह आपके आध्यात्मिक संबंधों को मजबूत करने और नवग्रहों की कृपा प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।

आपको सलाह दी जाती है कि अपने आस-पास के पंडित, ज्योतिषाचार्य या आध्यात्मिक गुरु से संपर्क करें और वे आपको विशेष सलाह दे सकेंगे जो आपके व्यक्तिगत संदर्भ में रहें .

नवग्रह मंदिर किसने बनवाया था ? (navagrah mandir kisane banavaaya tha)

नवग्रह मंदिरों का निर्माण कई शासकों, राजाओं, धार्मिक संगठनों और धार्मिक आदर्शों द्वारा किया गया है। यह भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं और अपार संख्या में मौजूद हैं। इन मंदिरों का निर्माण विशेष श्रद्धा और नवग्रहों के प्रति आदर्शवाद के आधार पर हुआ है।

उदाहरण के रूप में, देवघर मंदिर जो झारखंड राज्य के देवघर शहर में स्थित है, राजा मेधावी ने 16वीं शताब्दी में नवग्रहों की पूजा के लिए बनवाया था।

इसके अलावा, विश्वनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है और इसे नाग वंशी राजा विजय पाल ने 18वीं शताब्दी में नवग्रह पूजा के लिए बनवाया था।

वास्तव में, नवग्रह मंदिरों का निर्माण इतिहास में कई संस्कृति और युगों में हुआ है और उन्हें अपने स्थानीय महत्व के आधार पर सम्मान दिया जाता है। इन मंदिरों को संगठित रूप से संभाला जाता है और लोग इन्हें नवग्रहों की पूजा अर्चना करते हैं.

विष्णु मंदिरों में नवग्रह क्यों नहीं होते हैं? (vishnu mandiron mein navagrah kyon nahin hote hain)

विष्णु मंदिरों में नवग्रहों के प्रतिष्ठान की व्यापक प्रथा नहीं होती है। इसका मुख्य कारण है कि विष्णु मंदिरों के मुख्य उद्देश्य में विष्णु भगवान की पूजा और अर्चना होती है। विष्णु भगवान को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च देवता माना जाता है और उनकी पूजा और भक्ति केंद्रित होती है।

नवग्रह देवताओं की पूजा और अर्चना के लिए अलग स्थान और प्रथा होती है। नवग्रहों की पूजा और उपासना वैदिक ज्योतिष और ग्रहों के प्रभाव पर आधारित होती है। इसलिए, नवग्रहों के प्रतिष्ठान को अलग-थलग रखा जाता है और इनके लिए विशेष मंदिर बनाए जाते हैं जहां उनकी पूजा और उपासना की जाती है।

यद्यपि विष्णु मंदिरों में नवग्रहों की प्रतिमाएं नहीं होती हैं, लेकिन कुछ मंदिरों में नवग्रहों के प्रतिष्ठान के लिए अलग स्थान होता है या उनकी पूजा के लिए विशेष श्रद्धा भाव समर्पित किया जाता है। इसलिए, यह धार्मिक और स्थानीय प्रथा के आधार पर चलता रहता हैं.

नवग्रह में सबसे बड़ा ग्रह कौन है? (navagrah mein sabase bada grah kaun hai)

सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रह जो है, वह है गुरु ग्रह (Jupiter)। गुरु ग्रह सौरमंडल का पंचवां सबसे बड़ा ग्रह है और सौरमंडल में मौजूद सभी ग्रहों की आकार और मास में सबसे बड़ा है। इसका आकार धराती से लगभग 11.2 गुना बड़ा है। गुरु ग्रह एक गैसीय ग्रह है और अपनी विशाल ग्रासपाथ पटली के कारण यह बहुत बड़ा दिखाई देता है। इसका हिंदी नाम "बृहस्पति" भी है।

नवग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह होने के साथ-साथ, गुरु ग्रह को विद्या, ज्ञान, धर्म, उच्च शिक्षा, प्रभावशाली व्यक्ति, प्रबुद्धि, व्यापार, धन, संघटनात्मक क्षेत्रों और बाहरी यात्रा का प्रतीक माना जाता है।

कुंभकोणम में प्रसिद्ध नवग्रह मंदिर कौन सा है? (kumbhakonam mein prasiddh navagrah mandir kaun sa hai)

कुंभकोणम नगर, तमिलनाडु, भारत में स्थित एक प्रसिद्ध नवग्रह मंदिर है जिसका नाम "नवग्रह तेम्पल" है। यह मंदिर नौ ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहू, केतु) को समर्पित है और इसे नवग्रह देवताओं का प्रमुख स्थान माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण तमिल विजयनगर स्तंभों के अनुसार हुआ है और यह विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। नवग्रह तेम्पल में हर ग्रह के लिए एक अलग-थलायां और मूर्ति स्थापित है, जहां भक्तजन उनकी उपासना करते हैं और नवग्रहों की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सभी ग्रहों का राजा कौन है? (sabhee grahon ka raaja kaun hai)

ज्योतिष शास्त्र में, नौ ग्रहों का प्रतिष्ठान और महत्व विभिन्न ग्रहों के लिए अलग-अलग होता है। इनमें से प्रत्येक ग्रह का अपना अधिपति (राजा) होता है जिसे उस ग्रह का नायक कहा जाता है। यहां नौ ग्रहों के अधिपति नाम निम्नलिखित हैं:

सूर्य (Sun): सूर्य ग्रह का अधिपति होता है।

चंद्र (Moon): चंद्रमा ग्रह का अधिपति होता है।

मंगल (Mars): मंगल ग्रह का अधिपति होता है।

बुध (Mercury): बुध ग्रह का अधिपति होता है।

बृहस्पति (Jupiter): बृहस्पति ग्रह का अधिपति होता है।

शुक्र (Venus): शुक्र ग्रह का अधिपति होता है।

शनि (Saturn): शनि ग्रह का अधिपति होता है।

राहू (North Node): राहू ग्रह का अधिपति होता है।

केतु (South Node): केतु ग्रह का अधिपति होता है।

यद्यपि यह ग्रहों के अधिपतियों की एक प्रासंगिक छायाचित्रण है, ज्योतिष के अनुसार यह ग्रहों के अधिपतियों की प्रतिष्ठा को दर्शाता है।

नवग्रह पूजा के लिए कौन सा दिन अच्छा है? (navagrah pooja ke lie kaun sa din achchha hai)

नवग्रह पूजा के लिए व्यक्ति विभिन्न दिनों में अच्छा दिन चुन सकते हैं, यह भी ध्यान देना चाहिए कि नवग्रहों के विभिन्न दिनों की मान्यताएं विभिन्न पंचांग और ज्योतिष ग्रंथों में भी भिन्न हो सकती हैं। हालांकि, निम्नलिखित दिनों को नवग्रह पूजा के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है:

सूर्य (Sun): रविवार (भानुवार)

चंद्र (Moon): सोमवार (सोमवार)

मंगल (Mars): मंगलवार (मंगलवार)

बुध (Mercury): बुधवार (बुधवार)

बृहस्पति (Jupiter): गुरुवार (गुरुवार)

शुक्र (Venus): शुक्रवार (शुक्रवार)

शनि (Saturn): शनिवार (शनिवार)

राहू (North Node): शनिवार (शनिवार)

केतु (South Node): त्रयोदशी (त्रयोदशी)

ध्यान देने योग्य है कि ये मान्यताएं संपूर्णता के साथ संगठित नहीं हैं और भारतीय ज्योतिष और पंचांगों के आधार पर भिन्न-भिन्न स्थानों और परंपराओं में विशेषता हो सकती है। नवग्रह पूजा करने से पहले स्थानीय पंचांग और पंडित या ज्योतिषाचार

घर पर नवग्रह पूजा कैसे करें? (ghar par navagrah pooja kaise karen)

नवग्रह पूजा करने के लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:

पूजा का स्थान तैयार करें: एक शुभ स्थान चुनें जहां आप नवग्रहों की पूजा करना चाहते हैं। आप इसे अपने मंदिर, पूजा कक्ष, या एक विशेष स्थान में कर सकते हैं।

नवग्रहों की मूर्तियों को तैयार करें: नवग्रहों की मूर्तियों, यंत्रों, चित्रों, या प्रतिमाओं को एकत्र करें। यदि आपके पास मूर्तियाँ नहीं हैं, तो आप चित्रों का उपयोग कर सकते हैं।

स्नान करें: पूजा के पहले स्नान करें और शुद्ध हों। यह आपके मन, शरीर, और आत्मा को शुद्ध करेगा।

पूजा सामग्री तैयार करें: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे पुष्प, दीप, धूप, अर्घ्य, चावल, कपूर, सुपारी, नारियल, रक्षासूत्र, रोली, अक्षत, गुड़, गंगाजल, इत्यादि को तैयार करें।

पूजा करें: अपने निवेदन के साथ प्रत्येक नवग्रह को अपने प्रार्थना करते हुए उपचार करें।

नवग्रह पूजा किसे करनी चाहिए? (navagrah pooja kise karanee chaahie)

नवग्रह पूजा हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है और इसे अपने दैनिक जीवन में आनंद और समृद्धि के लिए किया जाता है। नवग्रहों का अधिपति ब्रह्मा, विष्णु और शिव होते हैं और इनकी पूजा ध्यान, मंत्र और विशेष उपासना के माध्यम से की जाती है।

नवग्रहों के नाम हैं:

सूर्य (आदित्य)

चंद्रमा (सोम)

मंगल (अंगारक)

बुध (सौम्य)

बृहस्पति (गुरु)

शुक्र (शुक्र)

शनि (मंडा)

राहु

केतु

नवग्रह पूजा को किसी विशेष व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, जो विद्यार्थी हो, पंडित हो, ज्योतिषाचार्य हो, या पूजा के अनुभवी हो। धार्मिक आदर्शों के अनुसार, ज्योतिषीय नवग्रह परामर्श देने वाले पंडित या ज्योतिषाचार्य के पास जाना भी एक अच्छा विचार हो सकता है।

नवग्रह पूजा करने के लिए विशेष दिन और मुहूर्त होते हैं, इसलिए यह अच्छा होगा कि आप एक ज्योतिषाचार्य या पंडित से संपर्क करें और अपनी स्थिति के अनुसार सम्पर्क करें

नवग्रह की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए? (navagrah kee kitanee parikrama karanee chaahie)

नवग्रह पूजा में परिक्रमा की संख्या को लेकर कोई निश्चित नियम नहीं है। यह आपके आदर्शों, आपके ज्योतिषगण के सुझावों और आपकी संबंधित धार्मिक परंपराओं पर निर्भर करेगा।

कुछ लोग नवग्रह पूजा के दौरान प्रत्येक ग्रह के लिए एक परिक्रमा करते हैं, इसलिए नौ परिक्रमाएं होती हैं। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक ग्रह की प्रतिष्ठा को अलग-अलग स्थानों पर की जाती है और परिक्रमा करने के बाद पूजा की जाती है।

हालांकि, यह आपकी प्राथमिकताओं और समय की उपलब्धता पर भी निर्भर करेगा। कुछ लोग नौ परिक्रमाओं की बजाय एक परिक्रमा करते हैं या फिर विशेष ग्रहों की पूजा और आराधना पर जोर देते हैं। आपके ज्योतिषगण या पूजा मार्गदर्शक आपको सही मार्गदर्शन और संबंधित पूजा प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी दे सकते हैं।

ध्यान दें कि नवग्रह पूजा के लिए स्थान और समय के अनुसार विशेष नियम भी हो सकते हैं, इसलिए आपको स्थानीय पंडित या धार्मिक अनुआइओ से सम्पर्क करना चाहिए.

नवग्रह का रंग क्या है? (navagrah ka rang kya hai)

नवग्रहों के रंग विभिन्न होते हैं। यह रंग आकाशीय ग्रहों के रूप में ज्ञात होते हैं और इनकी प्रकाश की प्रतिफलन क्षमता और उनके आकार के कारण विभिन्न दिखते हैं। नवग्रहों के रंगों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित है:

सूर्य: गहरा पीला रंग होता है।

चंद्रमा: सफेद या हल्के नीले रंग का प्रकाशित होता है।

मंगल: लाल या नारंगी रंग का होता है।

बुध: हल्का पीला या सब्जी हरा रंग होता है।

बृहस्पति: पीला रंग धारण करता है।

शनि: गहरा नीला या भूरे रंग का होता है।

उर्वशी: अस्थिर होने के कारण इसका कोई निश्चित रंग नहीं होता है।

राहु: इसका कोई निश्चित रंग नहीं होता है।

केतु: इसका कोई निश्चित रंग नहीं होता है।

यदि आप ज्योतिष या आध्यात्मिक रूप से इन रंगों के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो आपको ज्योतिष विद्या या अन्य संबंधित स्रोतों की ओर देखना चाहिए।

नवग्रह मंत्र कौन सा है? (navagrah mantr kaun sa hai)

नवग्रहों के लिए विभिन्न मंत्रों का उपयोग किया जाता है जो उनकी शुभता और प्रभाव को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है। ये मंत्र व्यक्तिगत प्रार्थना, पूजा, ध्यान या विधिवत अनुष्ठान के दौरान जापित किए जा सकते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ प्रमुख नवग्रह मंत्र:

सूर्य मंत्र: "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः॥" (Om Hraam Hreem Hroum Sah Suryaya Namah)

चंद्र मंत्र: "ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः॥" (Om Shram Shreem Shroum Sah Chandramase Namah)

मंगल मंत्र: "ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः॥" (Om Kram Kreem Kroum Sah Bhaumaya Namah)

बुध मंत्र: "ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः॥" (Om Bram Breem Broum Sah Budhaya Namah)

बृहस्पति मंत्र: "ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः॥" (Om Gram Greem Groum Sah Gurave Namah)

शनि मंत्र: "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥" (Om Pram Preem Proum Sah Shanaishcharaya Namah)

उर्वशी मंत्र: "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं उर्वश्यै नमः॥" (Om Hreem Shreem Kleem Urvasyai Namah)

राहु मंत्र: "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः॥" (Om

नवग्रह स्तोत्र कितनी बार पढ़ना चाहिए? (navagrah stotr kitanee baar padhana chaahie)

नवग्रह स्तोत्र के पठन की संख्या पर कोई निश्चित नियम नहीं है, यह आपकी भक्ति और साधना के अनुसार भिन्न हो सकती है। व्यक्ति इसे अपनी साधना का हिस्सा बना सकता है और इसे अपने अवधिकालिक अभ्यास में नियमित रूप से पढ़ सकता है।

आप नवग्रह स्तोत्र को रोजाना एक बार या तीन बार पढ़ सकते हैं, या अपनी आवश्यकता और समय के अनुसार इसे अधिक बार पढ़ सकते हैं। कुछ लोग इसे नवग्रहों की दशा में विशेष रूप से पढ़ने की परंपरा को अनुसरण करते हैं, जबकि दूसरे इसे अपने धार्मिक अभ्यास का एक हिस्सा मानते हैं।

महत्वपूर्ण है कि आप इसे संगीत, ध्यान या मनन के साथ पढ़ें ताकि इसका आपके आत्मिक और मानसिक स्तर पर अधिक प्रभाव हो सके। नवग्रह स्तोत्र को श्रद्धापूर्वक पढ़ने और समझने के माध्यम से आप अपनी आंतरिक शांति और समृद्धि को बढ़ा सकते हैं।

नवग्रह मंदिर किसने बनवाया था ? (navagrah mandir kisane banavaaya tha)..

नवग्रह मंदिर भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान हैं। यह मंदिर विभिन्न नवग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहू और केतु) के पूजन और अर्चना के लिए स्थापित किए जाते हैं।

भारत में कई नवग्रह मंदिर हैं और इनका निर्माण विभिन्न समयों में अलग-अलग लोगों द्वारा किया गया है। कुछ मंदिरों का निर्माण विशेष रूप से महाराजाओं, महारानियों, और समाज के धार्मिक नेताओं द्वारा किया गया है।

इसलिए, नवग्रह मंदिरों के निर्माण का सटीक संदर्भ बताने के लिए कृपया किसी विशेष मंदिर का नाम उदाहरण के रूप में प्रदान करें, ताकि मैं आपको उसके बारे में अधिक जानकारी दे सकूँ।

विष्णु मंदिरों में नवग्रह क्यों नहीं होते हैं? (vishnu mandiron mein navagrah kyon nahin hote hain)

विष्णु मंदिरों में नवग्रहों की विधि, अर्चना और पूजा का स्वरूप धार्मिक परंपरा और विश्वासों पर निर्भर करता है। हिन्दू धर्म में, नवग्रहों की पूजा विशेष रूप से नवग्रह मंदिरों या नवग्रह के विशेष मंदिरों में की जाती है।


विष्णु मंदिर विष्णु भगवान की पूजा और अर्चना केंद्रित करने के लिए स्थापित किए जाते हैं। विष्णु भगवान को संसार के पालक और सृजनहार के रूप में माना जाता है, जिसलिए इन मंदिरों में उनके लीलापुरुषों (अवतार) और उनकी पूजा प्राधान्य रखी जाती है। इन मंदिरों में विष्णु भगवान की मूर्ति, प्रतिमा या पार्श्वनाथों के साथ आमतौर पर स्थापित होती है।

नवग्रहों की पूजा विशेष रूप से नवग्रह मंदिरों में आदान-प्रदान की जाती है, जहां प्रत्येक नवग्रह को अलग-अलग मंदिर में स्थापित किया जाता है। यह मंदिर नवग्रहों के उच्चारण, मंत्रों, अर्चना, और उपासना को संरक्षित और विशेष बनाए रखने का कार्य किया जाता है .


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