दो बिल्लियाँ और बंदर की कहानी | The story of two cats and a monkey

दो बिल्लियाँ और बंदर की कहानी एक लोकप्रिय लोककथा है जो हमें न्याय, धैर्य और दूसरों पर भरोसा करने के बारे में एक महत्वपूर्ण शिक्षा देती है। इसे विस्तार से समझते हैं:

कहानी:

एक गांव में दो बिल्लियाँ रहती थीं। वे दोनों पक्की सहेलियां थीं, लेकिन खाने के मामले में अक्सर झगड़ती थीं। एक दिन, उन्होंने रोटी का एक टुकड़ा पाया। दोनों ही उस रोटी को खाना चाहती थीं, लेकिन यह तय नहीं कर पा रही थीं कि रोटी को कैसे बांटा जाए।

बिल्ली-1 बोली, "यह रोटी मेरी है, क्योंकि मैंने इसे पहले देखा था।"
बिल्ली-2 ने कहा, "नहीं, यह मेरी है, क्योंकि मैंने इसे उठाया था।"

वे दोनों बहस करते-करते थक गईं। तभी उन्हें एक बंदर मिला, जो पास के पेड़ पर बैठा सबकुछ देख रहा था।

बिल्लियों ने बंदर से मदद मांगी, "क्या तुम हमारी रोटी बराबर बांट सकते हो?"
बंदर ने चालाकी से कहा, "हां, मैं यह काम कर सकता हूं।"

बंदर ने रोटी को दो हिस्सों में तोड़ दिया, लेकिन जानबूझकर एक हिस्सा बड़ा और दूसरा छोटा कर दिया। उसने कहा, "अरे! ये हिस्से बराबर नहीं हैं। मैं इन्हें बराबर करता हूं।"

दो बंदर की कहानी (do bandar kee kahaani)

फिर उसने बड़ा हिस्सा तोड़कर उसमें से थोड़ा खा लिया। अब दूसरा हिस्सा बड़ा हो गया। बंदर ने फिर कहा, "अरे! अब दूसरा हिस्सा बड़ा हो गया। इसे ठीक करता हूं।" और उसने उसमें से भी थोड़ा खा लिया।

इस तरह, बंदर बराबर करने के बहाने बार-बार रोटी खाता गया। बिल्लियाँ यह सब देखती रहीं लेकिन कुछ नहीं कर पाईं। अंत में, रोटी का बहुत छोटा टुकड़ा बचा। बंदर ने उसे खाकर कहा, "अब यह इतना छोटा है कि इसे बराबर नहीं किया जा सकता। मैं इसे खा लेता हूं।"

बिल्लियाँ बंदर की चालाकी समझ गईं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रोटी का एक भी टुकड़ा उनके पास नहीं बचा था।

नैतिक शिक्षा:

झगड़ा करने से नुकसान होता है। अगर बिल्लियाँ आपस में समझौता कर लेतीं, तो उन्हें रोटी का आनंद मिल सकता था।

चालाक लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। बंदर ने उनकी स्थिति का फायदा उठाया।

मिलजुलकर समस्याओं का समाधान करना चाहिए।

यह कहानी सिखाती है कि अनावश्यक झगड़ों से बचकर, सहमति और सहयोग से जीवन में बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।

और नया पुराने