शेर और भालू की कहानी एक प्रसिद्ध लोक कथा है जो हमें एकता, सहयोग, और समझदारी का संदेश देती है। यह कहानी विभिन्न रूपों में सुनाई जाती है। यहाँ इसका एक विस्तृत संस्करण प्रस्तुत है:
शेर और भालू की मित्रता
एक घने जंगल में एक शेर और एक भालू रहते थे। दोनों बहुत ताकतवर और अपने-अपने इलाकों के राजा माने जाते थे। हालाँकि दोनों में बहुत अंतर था—शेर अपनी शक्ति और शिकार करने की कला पर गर्व करता था, जबकि भालू अपनी चतुराई और धैर्य के लिए प्रसिद्ध था।
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वे एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी थे, पर उनके बीच एक अद्भुत समझदारी थी।
एक दिन, जंगल में एक बड़ा त्योहार मनाया जा रहा था। सारे जानवर खुश थे, पर त्योहार का कारण था जंगल में एक स्वादिष्ट फल का पेड़ लगना। वह फल इतना स्वादिष्ट और दुर्लभ था कि हर कोई उसे खाना चाहता था।
झगड़ा और सबक
शेर और भालू दोनों ने उस पेड़ को देखा और तय किया कि वे उस पर से फल खाएंगे। दोनों के बीच यह तय नहीं हो पा रहा था कि कौन पहले खाए। शेर ने कहा,
"मैं जंगल का राजा हूँ, मुझे पहले अधिकार है।"
भालू ने जवाब दिया,
"शक्ति से ही कोई राजा नहीं होता। मैंने इस पेड़ को पहले देखा, तो पहले खाने का अधिकार मेरा है।"
दोनों में बहस इतनी बढ़ गई कि वे लड़ने लगे। उनकी लड़ाई ने पूरे जंगल को हिला दिया।
खरगोश का बुद्धिमानी भरा सुझाव
उनकी लड़ाई देखकर जंगल के अन्य जानवर डर गए। तभी एक छोटा सा खरगोश वहाँ आया और उसने उन्हें रोकने के लिए कहा,
"आप दोनों इतने ताकतवर हैं, फिर भी एक फल के लिए लड़ रहे हैं? इससे न तो आपकी ताकत बढ़ेगी और न ही आपका सम्मान।"
शेर और भालू ने खरगोश की बात सुनी और सोचा कि वह सही कह रहा है। फिर उन्होंने फैसला किया कि वे मिलकर उस फल का आनंद लेंगे और इसे आपस में बराबर बाँट लेंगे।
साझा खुशी
शेर और भालू ने मिलकर उस फल को खाया और पाया कि जब वे एक-दूसरे की मदद करते हैं, तो चीजें और भी बेहतर हो जाती हैं। इसके बाद वे अच्छे मित्र बन गए और जंगल के अन्य जानवरों के लिए सहयोग और साझा करने की मिसाल बन गए।
सीख
कहानी का संदेश यह है कि ताकत और अधिकार से ज्यादा जरूरी है समझदारी, सहयोग और दूसरों की भावना का सम्मान। साझा करना खुशी को बढ़ाता है और हमें बेहतर इंसान (या जानवर!) बनाता है।