श्री राम नवमी भगवान श्री राम की पावन धरती पर जन्म हुआ था उस उपलक्ष में उत्साह के रूप में जाती है भगवान विष्णु के सतवे अवतार से जुड़ा हुआ पौराणिक कथा है जिसके के बारे में लगभग बहुत कम लोग जानते होंगे
कुंभकरण और रावण का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने लिया था राम का अवतार और तो और मनु और शतरूपा को दिए वरदान के कारण भगवान विष्णु ने लिया मर्यादा पुरुषोत्तम का जन्म
नारद जी के श्राप का मान रखने के लिए भगवान विष्णु ने धरती पर आए परमेश्वर
रामनवमी का पावन पर्व संपूर्ण भारत में बड़ी उत्साह के साथ मनाया जाता है शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान श्री राम का जन्म हुआ था इस नाते इस पर्व को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भगवान के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है
भगवान श्री राम भगवान विष्णु के 7 वे अवतार माने जाते हैं पद्म पुराण के हिसाब से श्री हरि भगवान विष्णु के धरती पर श्री राम का अवतार लेने की बहुतेरे कहानियां मौजूद पड़ी हुई है
इस श्रष्टि में त्रिदेव तीनों देवों का वास सम्मिलित है ब्रह्मा जिन्होंने सृष्टि का निर्माण कराया श्री हरि भगवान विष्णु जो संसार के पालनहार माने जाते हैं एव भगवान शिव संगहारक जाने गए हैं
यही तीनों देव है जिन्होंने सृष्टि के बुनियाद को कायम किया है अब हम लेखन को आपको बताएंगे संसार के पालनहार भगवान विष्णु ने पावन भूमि धरती पर भगवान राम का अवतार क्यों लिया था आइए हम सब जानते हैं
1 इसलिए लिया था भगवान विष्णु ने राम का अवतार
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सनकादिक ऋषि भगवान विष्णु का दर्शन करने बैकुंठ आए हुए थे उस वक्त जय और विजय नामक दो द्वारपाल वहां पर पहरा दे रहे थे जिस वक्त सनकादिक ऋषि द्वार से हो कर गुजर रहे थे
उस समय जय विजय दोनों ने हंसी उड़ाते हुए उनको रोक लिया था मुनि ने क्रोधित होकर उन्हें 3 जन्मों तक उन दोनों को राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया था बाद में क्षमा मांगने पर सनकादिक मुनि ने 3 जन्मों के बाद तुम दोनों का अंत भगवान विष्णु ही करेंगे इस तरह से 3 जन्मों के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। और तुम्हारा उद्धार होगा
इस नाते से पहले जन्म में जय एम विजय ने हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के रूप धारण कर जन्म लिया और भगवान विष्णु ने नरसिम्हा का अवतार लेकर उनका संहार किया दूसरे जन्म में उन्होंने रावण और कुंभकरण जैसे खतरनाक शक्तिशाली राक्षस के रूप में जन्म लिया था उसमे भी परमेस्वर ने रूप बदल कर आये और पापीओ का बध किया
श्री हरि भगवान विष्णु ने राम का अवतार लेकर उनका भी वध किया तीसरे जन्म में उन दोनों ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म था और भगवान श्री कृष्ण ने उनका भी वध कर डाला था
2 मनु और सतरूपा को दिया था वरदान
वहीं दूसरी तरफ कहानी के अनुसार मनु और शतरूपा को विष्णु भगवान वरदान दिया था ठीक उसी के कारण उन्हें धरती पर राम का अवतार लेना पड़ा पौराणिक कहानियों में मनु और उनकी पत्नी शतरूपा से ही मानव जाति का उत्पत्ति होने लगी
यह दोनों पति और पत्नी स्वभाव के बहुत ही सरल और अच्छे विचार के थे वृद्ध होने के बाद मनु अपने पुत्र को राज्य भार देकर वन की तरफ चल देते है जंगल में जाकर मनु एवं शतरूपा करीब कईयों हजार सालों तक विष्णु भगवान को पसंद करने के लिए कठिन तपस्या किया बताया गया था कि कई हजार सालों तक मनु एवं सतरूपा ने केवल जल ही ग्रहण किया
मनु और शतरूपा के इस कठोर तप से खुश होकर विष्णु भगवान उनके पास प्रकट हो जाते हैं और उनसे मनचाहा वरदान मांगने को कहां मनु और शतरूपा श्रीहरि से कहां की हमें आपके जैसा पुत्र के इच्छुक है उनकी इच्छा श्री हरि ने बताया कि दुनिया भर में मेरे जैसा और कोई नहीं है इस नाते तुम्हारी यह अभिलाषा पूरा करने के लिए मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा इतनी बात कहते ही परमेश्वर अंतर्ध्यान हो गए
और आकाशवाणी होने लगी की कुछ समय बाद आप अयोध्या के राजा दशरथ के रूप में जन्म लेंगे और शतरूपा माता कौशल्या के रूप में आपकी पत्नी रहेंगी ठीक उसी समय मैं श्री हरि आपका पुत्र बनकर आप दोनों की इच्छाओं को पूरा करूंगा इस तरह से मनु एवं शतरूपा को दिए वरदान के नाते विष्णु भगवान ने पावन धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अवतार लिया था
3. नारद मुनि के दिए श्राप के नाते विष्णु को लेना पड़ा धरती पर भगवान श्री राम का अवतार
पौराणिक कथाओं के हिसाब से विष्णु भगवान ने श्री राम का अवतार लिया इसके पीछे रामायण की यह रोचक कहानी मौजूद है कामदेव की माया एवं जाल से मुक्त रहने पर नारद जी को इस बात का भारी अहंकार हो गया था
कि उन्होंने कामदेव पर फतेह हासिल कर लिया है नारद जी ने इसी बातों को बताने लिए शिव जी के पास पहुंचे और उन्होंने पूरी व्याख्या के साथ भगवान शिव को बता दिया इस बात को लेकर शिव जी समझ गए कि नारद मुनि अहंकारी हो गए हैं
भोलेनाथ को लगा की नारद की इस अहंकार की बात अगर भगवान विष्णु को पता चल गई तो नारद मुनि के लिए अच्छा साबित नहीं हो सकता इस नाते भोलेनाथ ने नारद को बताया कि जो बात तुमने हमको बताई है
उस बात को श्री विष्णु को कभी नहीं बताना किंतु नारद को यह बात पचने वाली कहां थी उन्होंने तत्काल छीर सागर की तरफ रवाना हो गए विष्णु भगवान के पास पहुंचकर उन्होंने कामदेव पर फतेह प्राप्त करने की पूरी कहानी भगवान विष्णु जी को सुना डाली फिर होना क्या था
विष्णु भगवान को लगा की अब नारद मुनि को अहंकार सा हो गया है भगवान विष्णु को अपने ही भक्तों की अहंकार सहन करना नामुमकिन था इस नाते विष्णु भगवान ने नारद मुनि को अहंकार से हजारों मील दूर और उससे छुटकारा पाने का एक जुगाड़ सोचा और उसका निदान भी किया
नारद मुनि को अहंकार से छुट्टी दिलाने के लिए श्री प्रभु ने रची माया
जिस समय नारद मुनि बैकुंठ से वापस हो रहे थे तो रास्ते में ही उनको एक सुंदर महल और समृद्ध नगर दिखाई देने लगा जिसे परमेश्वर अपनी माया से बनाया हुआ था नारद मुनि अपनी मस्ती में होने के नाते कुछ समझ नहीं पाए और उस राजमहल में पहुंच जाते हैं
राजमहल में राजा की सुंदर सुंदर पुत्रियों को देखकर हुए मोहित हो गए जब नारद ने उन लड़कियों के हाथों को देखा तो वह चकित रह गए उनकी रेखाएं बहुत ही विचित्र रेखा थी रेखा के अनुसार उनका पति विश्वविजेता और तीनों लोकों का स्वामी बन जाएगा
नारद मुनि यह नजारा देखने के बाद अपनी खुद की बैराग को भूल गए और विवाह की इच्छा लेकर बैकुंठ तरफ रवाना हो गए उन्होंने विष्णु भगवान से खुद अपने को रूपवानसुंदर बनाने की विनती करने लगे सभी बातों को देखते हुए भगवान विष्णु ने कहां की हे हे मुनिवर हम वही करने करेंगे जो तुम्हारे लिए सर्व श्रेष्ठ और अच्छा होगा
श्री नारद जी ने भगवान विष्णु की बातें पर ध्यान ना देते हुए और वह बैकुंठ फिर लौटने के पश्चात सीधे अपनी शादी के लिए स्वयंवर में जा पहुंचे जहां पर लड़की ने नारद मुनि के तरफ एक बार देखा भी नहीं और उसने किसी और लड़के के गले में वरमाला डाल दिया जिससे नारद जी बहुत दुखी और निराश हो गए
तयस में आकर नारद ने विष्णु को दिया श्राप:
नारद जी को लगा कि विष्णु जी मुझे रूपवान तो बनाया फिर भी राजकुमारी ने मुझे देखा तक नहीं यह बात नारद जी को खाए जा रही थी की कहीं विष्णु ने हमारा चेहरा भयानक तो नहीं बना दिया
नारद ने अपना चेहरा जब जाकर पानी में देखा तो वह चकित रह गए उनका चेहरा बंदर के जैसा हो गया था जिसको देखने के बाद नारद जी ने क्रोध से भर गए और फिर से वापिस बैकुंठ पहुंच गए वहां का नजारा देखा तो नारद जी के होश उड़ गए उन्होंने देखा कि वह राजकुमारी भगवान विष्णु के बगल में बैठी हुई है
जिस नाते क्रोध में आकर नारद जी विष्णु भगवान को पहले बुरा भला कहां उसके बाद विष्णु को श्राप भी दे डाला जिस तरह आपने बंदर के जैसा हमारा मुंह बनाकर हमारा अपमान किया है मैं भी आपको श्राप देता हूं की जब धरती पर मानुष के अवतार होगा तो आपको बंदरों का ही सहारा लेना पड़ेगा
क्रोध में मुनिवार रुकने वाले कि नहीं थे उन्होंने यह भी कह डाला जिस तरह से मुझे एक ही स्त्री से दूर रखा है ठीक वैसे ही आपको भी एक स्त्री का वियोग झेलना पड़ेगा नारद मुनि के श्राप के नाते विष्णु भगवान ने पृथ्वी पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के रूप में अवतरित हुए थे दोस्तों यह कहानी थोड़ी छोटी है पढ़ने में जरा सा भी संकोच ना करें पूरा पढ़ने का और जानने का आपका पूरा हक है