भगवन भोलेनाथ के साथ डमरू की कहानी | The Mysterious Story of Damru

 

भगवान शिव शंभू के हाथों में डमरु का  एक रोचक कहानी सृष्टि के शुरू में ही सरस्वती देवी प्रकट  हो गई देवी ने अपनी  वीणा  के स्वर से इस सृष्टि में ध्वन‌ि को जन्म दिया   ठीक उस  वक्त भगवान शिव के नेतृत्व में 14 बार डमरू बजाए और इस  ध्वन‌ि से व्याकरण  एवं संगीत  ताल धन्द का जन्म हुआ

शिव शंकर के डमरु का क्या नाम था

भगवान शिव शंभू के धनुष का नाम पिनाक से जाना जाता था  जिसको विश्वकर्मा ने ऋषि दधीचि की अस्थियों से तैयार किया था इस सृष्टि के आरंभ में ही ब्रह्रानाद  से जब भगवान शिव शंभू  प्रगट हुए तो  उनके  ही साथ  रज, तम और इसके अलावा 7 गुण  उत्पन्न हुए यही तीनों गुण  शिव शंभू के तीन शूल   यानी  त्रिशूल बने थे

डमरु का अर्थ क्या होता है

डमरु एक संस्कृत संज्ञा पुलिंग होती है यह   बजाए जाने वाली एक वस्तु के समान होता है यह एक वाद्ययंत्र है जो बीच में पतला रहता है और दोनों सिरों  पर मोटा  आकार का बना होता है   खास रूप से इस  वाद्य के दोनों सिरे पर चमड़े से मढ़ा हुआ होता है  और इसके बीच से दोनों तरफ  डोरी निकाली हुई होती है

  जिसके दोनों छोर पर  छोटा-छोटा  कौड़ी बनी होती है या फिर कोई गोली बांध देते हैं  फिर इसको बीच में पकड़कर  हिलाया जाता है  हिलाने के बाद दोनों कड़ियां चमड़े पर पड़ती हैं और फिर धनिया निकालना चालू हो जाती हैं जिसको  हाथों से हिला कर बजाया जाता है  शिव पुराण के मुताबिक शिव द्वारा  बाजार जाने वाला वाद्य यंत्र  होता है

डमरु की धोनी  भोलेनाथ को बहुत प्यारा लगता है खेल तमाशा दिखाने वाले बंदर को नचाने वाले इस यंत्र को  अपने साथ लेकर हमेशा रहते हैं


एक प्रकार दंडक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण मैं 32 लघु वर्ण होते हैं जैसे राहत रजत नाग नगर न गज  खल  कलगर  तरल  गरल  धर भिखारी दास जी ने इसी का वर्णन  करके हुए लिखा है कि इसी का नाम  जल हरण बताया है

  डमरु यंत्र क्या है

डमरु एक मधुर संगीत वाद्य यंत्र मना जाता है इसमें एक दूसरे  हिस्से से जुड़े दो छोटे   शंकुमा  हिस्सा बने होते हैं डमरू के बिचोले भाग में एक रस्सी बंधी रहती है जिसके दूसरे  अंत  पर  पत्थर   के दो छोटे-छोटे गोली बने रहते हैं

डमरु बजाने के क्या है फायदे

सच्ची बात  यह है कि डमरू के बीच पकड़कर बजाने पर यह  एक दूसरे खाल को बजाते हैं और इसमें से डम डम की आवाज निकलने लगती है ठीक वही झमरु को डुग डुग की आवाज के नाम से भी जाने जाते हैं ऐसी मानते हैं लोग की डमरु बहुत ही  अद्भुत मंत्रों का उच्चारण होता है इसकी ध्वनि से बहुत सी बीमारी लड़ने की शक्ति प्राप्त हो जाती है

डमरू बजाने के फायदे (damaroo bajaane ke phaayade)

डमरू एक परंपरागत भारतीय मुद्रा है जो शिव जी के आधार पर बनाई गई है। डमरू बजाने के कुछ फायदे निम्नलिखित हैं:

ध्यान और मेधा को बढ़ावा देता है: डमरू बजाने से हमारे मस्तिष्क का स्तर ऊंचा होता है, जिससे हमारा ध्यान और मेधा बढ़ते हैं।

स्पष्टता का अनुभव कराता है: डमरू बजाने से हमें एक शांति का अनुभव होता है, जो हमें स्पष्टता का अनुभव करवाता है।

चेतना को जागृत करता है: डमरू बजाने से हमारी चेतना का स्तर ऊंचा होता है, जो हमें समझने की शक्ति प्रदान करता है।

संगीत का लाभ: डमरू बजाने से संगीत का आनंद लिया जा सकता है, जो हमें शांति और संतुष्टि का अनुभव कराता है।

रोगों के इलाज में मदद करता है: कुछ लोगों को लगता है कि डमरू बजाने से उन्हें अपने शरीर की ऊर्जा का अनुभव होता है और उन्हें उनकी स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में मदद मिलती है।

इसलिए, डमरू बजाने के बहुत सारे फायदे हैं.

शिवजी के डमरू का नाम क्या है (shivajee ke damaroo ka naam kya hai)

शिवजी के डमरू का नाम "उड़ता वाला डमरू" या "ऊँचा डमरू" है। यह डमरू जिसे शिवजी बजाते थे, वह अनेक लोगों के लिए एक अद्भुत संगीत आवाज होता था जिससे सभी को अनुभव होती थी। शिवजी के इस डमरू को उसकी शक्ति का प्रतीक माना जाता है जो संसार के सृष्टि और विनाश का समय बताता है।

भगवान शिव को डमरू किसने दिया था( bhagavaan shiv ko damaroo kisane diya tha)

भगवान शिव को डमरू उनके भक्त और अनुयायी महाकाल ने दिया था। महाकाल को भी एक पौराणिक देवता माना जाता है जो भगवान शिव के स्वरूप में व्यक्त होते हैं। उनके हाथ में डमरू रखने का कारण यह है कि यह उनकी शक्ति और अधिकार का प्रतीक है जो सभी जगह व्याप्त होता है। भगवान शिव को डमरू का विशेष महत्व होता है क्योंकि वह उनकी वाणी या संगीत का एक प्रतीक है, जिससे वे नाद ब्रह्म का संदेश प्रसारित करते हैं।

शिव जी के पास डमरू क्यों है (shiv jee ke paas damaroo kyon hai)

भगवान शिव के पास डमरू के बहुत से महत्वपूर्ण कारण हैं। शिव जी को डमरू उनकी शक्ति और अधिकार का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, डमरू उनकी वाणी का प्रतीक है, जो नाद ब्रह्म का संदेश प्रसारित करती है। इसे सुनने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें शांति और सुख प्राप्त होता है।

डमरू के दोनों तरफ के बाजे दो अलग-अलग धुंए होते हैं, जो अंतरिक्ष में विस्फोट के समान होते हैं और असंतोष का प्रतीक होते हैं। इसके साथ ही, डमरू से उत्पन्न होने वाले धुन से समस्त ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, संरचना और विनाश का वर्णन होता है।

इसलिए, डमरू भगवान शिव के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है और उनकी शक्ति, ज्ञान, संहार और सृष्टि के प्रतीक के रूप में भी काम करता है।

शिव के डमरू में कितनी ध्वनि है (shiv ke damaroo mein kitanee dhvani hai)

शिव के डमरू में कुल मिलाकर १४ ध्वनियां होती हैं, जिससे उन्हें तांत्रिक ध्वनि की जगह भी मिलती है। यह ध्वनियों का महत्वपूर्ण स्रोत होता है और शिव की तांत्रिक साधना में उपयोग किया जाता है।

डमरू क्या दर्शाता है (damaroo kya darshaata hai)

शिव का डमरू उनकी शक्ति और तांत्रिक साधना का प्रतीक होता है। यह एक छोटा सा डमरू होता है जिसमें दो भाग होते हैं और उन्हें एक स्थिर बिंदु से जोड़ा गया होता है। शिव अपने डमरू को बजाकर विभिन्न तांत्रिक ध्वनियों को उत्पन्न करते हैं जो ब्रह्माण्ड के सृष्टि-स्थिति-लय का नाटक दर्शाती हैं। इसके अलावा, डमरू शिव की गुरुता का प्रतीक भी होता है जो हमें उनके ज्ञान का पाठ पढ़ाता है।

डमरू को क्या माना गया है (damaroo ko kya maana gaya hai)

डमरू हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक उपकरण होता है। इसे शिव के अलावा अन्य धार्मिक आस्थाओं में भी उपयोग किया जाता है।

वैदिक संस्कृत में डमरू को 'डुम्बि' या 'डुम्बुक' कहा जाता है जिसका अर्थ होता है 'धुन' या 'ध्वनि'। डमरू शक्ति का प्रतीक होता है जो संसार की सृष्टि और संहार का कारण होती है। इसके अलावा, डमरू को ज्ञान, उपदेश, गुरुता और समय के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। यह उपकरण साधना और ध्यान के दौरान उपयोग किया जाता है जो हमें दुनिया के मायावी मोह से दूर ले जाता है और शिव की तांत्रिक शक्ति को प्राप्त करने में मदद करता है।

क्या डमरू को घर में रखना अच्छा है (kya damaroo ko ghar mein rakhana achchha hai)

डमरू को घर में रखना अच्छा होता है। यह एक प्राचीन आध्यात्मिक उपकरण है जो संसार की सृष्टि और संहार के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। डमरू को घर में रखने से आप अपने घर के ऊर्जा को शुद्ध कर सकते हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं।

इसके अलावा, डमरू ध्यान और मेधा को बढ़ाने में मदद करता है। अगर आप ध्यान योग या तांत्रिक साधना करते हैं तो डमरू आपके लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकता है। यह आपको अपनी साधना में ध्यान केंद्रित करने और तांत्रिक शक्ति को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

यदि आप डमरू को अपने घर में रखना चाहते हैं, तो आप उसे अपने पूजा स्थान पर रख सकते हैं या फिर किसी और उचित स्थान पर रख सकते हैं। यह आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

डमरू का इतिहास (damaroo ka itihaas)

डमरू भारतीय संस्कृति और धर्म का एक प्राचीन आध्यात्मिक उपकरण है। इसका उपयोग ध्यान योग और तांत्रिक साधना में किया जाता है। डमरू का निर्माण लकड़ी, मृदा, धातु या हड्डियों से किया जा सकता है।

डमरू के बारे में प्राचीन तांत्रिक शास्त्रों में उल्लेख किया गया है, जैसे कि तंत्रभागवत, तंत्रशास्त्र और शिव संहिता। शिव को डमरू बजाते हुए दर्शाया जाता है, जो धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसके अलावा, बौद्ध और जैन धर्म में भी डमरू का उल्लेख किया गया है।

आमतौर पर, डमरू का उपयोग भगवान शिव के साथ जोड़कर किया जाता है, जो इसे अपने साथ लेकर गुरुकुल में अपने शिष्यों को देते थे। ध्यान और मेधा को बढ़ाने के लिए उन्हें उसे बजाना सिखाया जाता था।

डमरू भारत के अलावा नेपाल, तिब्बत, चीन और जापान जैसे अन्य देशों में भी उपयोग किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक उपकरण है,

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