शारदा माता की कहानी | Story of Maihar Sharda Mata

शारदा माता, भारतीय धर्म की देवी हैं और उन्हें ज्ञान, विद्या, बुद्धि, शक्ति और संसार के संचालन में सहायक माना जाता है। वे संस्कृत में शास्त्री, विद्वान, वाग्वादिनी और विद्याधरा के रूप में पुकारी जाती हैं।

शारदा माता के मंदिर भारत के विभिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं, लेकिन उनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर जम्मू और कश्मीर के स्रीनगर शहर में स्थित है। यह मंदिर कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है और उनके धार्मिक अनुष्ठानों का केंद्र है।

शारदा माता के अभिवादन या पूजा विधि के रूप में लोग उन्हें दिव्य विद्या और ज्ञान का स्रोत मानते हैं, जिससे शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में उनकी कृपा बनी रहे। भारतीय संस्कृति में शारदा माता को विद्या की देवी और ज्ञान की प्रतिष्ठा माना जाता है।

शारदा माता किसका रूप है (Whose form is Sharda Mata)

शारदा माता संस्कृति और विद्या की देवी हैं जो हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में पूजी जाती हैं। वे विद्यार्थियों, शिक्षकों और ज्ञान के देवी के रूप में जानी जाती हैं। शारदा माता को देवनागरी लिपि में "शारदा" और गुरमुखी लिपि में "ਸ਼ਾਰਦਾ" लिखा जाता है। उन्हें सरस्वती देवी के रूप में भी जाना जाता हैं।

मां शारदा की उत्पत्ति कैसे हुई (How was mother Sharda born)

मां शारदा के उत्पत्ति के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, शंकराचार्य ने उन्हें अपनी तपस्या से प्रसन्न होने पर उत्तराखंड के हिमालयी इलाके में उत्तर प्रदेश के शृंगेरी पर्वत पर उत्पन्न किया था। दूसरी कथा के अनुसार, मां दुर्गा ने शारदा माता को उत्पन्न किया था। तीसरी कथा के अनुसार, शंकराचार्य ने शारदा माता को शाकंभरी देवी के रूप में उत्पन्न किया था।

कुल मिलाकर, मां शारदा की उत्पत्ति के बारे में कुछ निश्चित जानकारी नहीं है, लेकिन वे शिक्षा, ज्ञान, संस्कृति और कला के प्रतीक हैं और उन्हें संसार के सभी जगहों पर विद्यार्थियों द्वारा पूजा जाता है।

शारदा मैया में कितनी सीढ़ियां हैं (How many stairs are there in Sharda Maiya)

शारदा माता के मंदिर में सीढ़ियों की कुल संख्या विभिन्न मंदिरों में भिन्न हो सकती है। उनके प्रसिद्ध मंदिरों में से एक उनके आराधना के लिए सबसे प्रसिद्ध है जो जम्मू-कश्मीर के कुल्गाम जिले में स्थित है। यहां पर मां शारदा के मंदिर के लिए दो सीढ़ियां होती हैं। पहली सीढ़ी मंदिर के प्रवेश द्वार से ऊपर जाती है जबकि दूसरी सीढ़ी आराधना स्थल तक पहुंचने के लिए होती है।

कुल्लू के श्रीराघुलिला मंदिर में भी शारदा माता के लिए सीढ़ियां होती हैं, जिनमें एक मुख्य सीढ़ी होती है जो मंदिर के प्रवेश द्वार से ऊपर जाती है और एक छोटी सीढ़ी मंदिर के आराधना स्थल तक पहुंचने के लिए होती है।

इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश में भी कुछ और मंदिर हैं जहां पर शारदा माता के लिए सीढ़ियां हो सकती हैं, लेकिन उनकी संख्या विभिन्न हो सकती है।

शारदा माता की पूजा कैसे की जाती है (How is Sharda Mata worshipped)

शारदा माता की पूजा भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित शारदा पीठ में विशेष रूप से की जाती है। यहां पर पूजा दो तरीकों से की जाती है - एक तो शास्त्रीय तरीका और दूसरा लोकप्रिय तरीका।

शास्त्रीय तरीके में, पूजा ब्राह्मणों द्वारा की जाती है जो वेद, पुराण और तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार कार्य करते हैं। इस पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, फल, फूल, बिल्वपत्र आदि समेत विभिन्न चीजें उपयोग की जाती हैं। पूजा के दौरान वेद मंत्रों का जाप किया जाता है और पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है।

दूसरी तरह की पूजा जो लोकप्रिय है, उसमें धार्मिक गाने और नृत्य के द्वारा मां शारदा की आराधना की जाती है। इस पूजा में बहुत से लोग भाग लेते हैं और इसमें धार्मिक भावों को व्यक्त करने के लिए विभिन्न आयोजन किए जाते हैं, जिसमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। इस पूजा में आरती भी उतारी जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है.

शारदा माता मंदिर (Sharda Mata Temple)

शारदा माता का मंदिर जम्मू-कश्मीर के बांधिपुर जिले में स्थित है। यह मंदिर कश्मीर घाटी से लगभग 140 किलोमीटर दूर है। शारदा माता मंदिर शारदा पीठ के रूप में भी जाना जाता है।

शारदा माता मंदिर को बस्तर और पत्थर से बनाया गया है और इसमें लगभग 9 फीट ऊंची विग्रह स्थापित है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर सौंदर्यपूर्ण नक्काशी की गई है जो इसके साथ-साथ इसके वातावरण को भी खूबसूरत बनाती है।

शारदा माता मंदिर को दुनियाभर से आगंतुकों की भीड़ देखने को मिलती है। यहां पर हर साल शारदा नवरात्रि के दौरान बहुत से श्रद्धालु आते हैं जो मां शारदा को नवरात्रि के दौरान विशेष भक्ति भाव से पूजते हैं।

शारदा माता की कहानी (Sharda Mata Story)

मां शारदा की कहानी पुरानी संस्कृति के अनुसार, एक समय में राजा भारतवर्ष में श्रेष्ठ शिक्षकों के बीच मशहूर था। राजा को अपनी राजधानी में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की इच्छा थी, जो भारत के सभी शिक्षार्थियों को उच्च शिक्षा प्रदान करता। राजा ने अनेक विद्वानों को विश्वविद्यालय में पढ़ाया, लेकिन उनकी इच्छा थी कि कोई एक ऐसा शिक्षक हो जो उनके विश्वविद्यालय के प्रमुख हो सके।

उस समय महाकाली ने राजा को एक स्वप्न दिखाया जिसमें उन्हें एक सुंदर देवी दिखाई दी जो बहुत उज्ज्वल थी और उनके साथ बैठी हुई थी। देवी ने राजा से कहा कि वह उनकी राजधानी में एक विश्वविद्यालय स्थापित करें जिसमें शिक्षा के साथ-साथ धर्म की भी शिक्षा दी जाए। देवी ने उन्हें बताया कि उन्हें एक देवी की मूर्ति प्राप्त करनी चाहिए जो उनके विश्वविद्यालय में आस्था का केंद्र हो।

राजा ने उसी दिन अपने विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए ढेरो सारा धन इक्क्ठा किया और बनवाया था.

शारदा माता मंत्र (Sharda Mata Mantra)

मां शारदा को अर्चना या पूजन करते समय निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ शारदायै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से मां शारदा आपकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और आपको विद्या, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति में सहायता करती हैं।

शारदा माता की आरती (Sharda Mata Aarti)

शारदा माता की आरती के लिए निम्नलिखित श्लोकों का प्रयोग किया जाता है:

जय शारदे माता, मैया जय शारदे माता। सदगुण वृद्ध देवी, ज्योति स्वरूपे जग माता॥

ब्रह्मानंद का धाम निराला, अशेष भक्त आधार। विद्यांद विवेकं देहि मात, विदेह विश्व विख्यात॥

दुर्गे नीत नव दुर्गे नमो नमः। शंकर विश्वनाथ जग जननी जय जय।।

जगत के ज्ञान दात्री, सर्व जगत की श्रद्धा। तुम ही हो जग में माता, सबके हृदय आधार॥

जय शारदे माता, मैया जय शारदे माता॥

आरती माते तुम्हारी, ज्ञान निधि के धाम। ज्ञान निधि के धाम मैया, शरण गहो जनाम॥

तुम बिना विद्या अमोघा, श्रद्धा न होत बलवान। जग के सब विधाता, सदा नमो नमो नमो नमः॥

जय शारदे माता, मैया जय शारदे माता॥

इस प्रकार शारदा माता की आरती का पाठ करने से उनकी कृपा आप पर बनी रहती है और आपके जीवन में बुद्धि, ज्ञान, सफलता और खुशहाली लाती है.

शारदा माता का आल्हा (Sharda Mata Ka Alha)

शारदा माता का आल्हा उनकी महिमा और जीवन का वर्णन करता है। निम्नलिखित हैं शारदा माता के आल्हा के कुछ भाग:


जय शारदा माँ, शक्ति दात्री जग विख्याता। आद्या शक्ति ते ही हमारी, विद्या का स्वरूप व्याप्ता।।

तुमसे ही प्राप्त हुआ हमें ज्ञान, ब्रह्म तथा धर्म का ज्ञान। बसो हम पर हमेशा अपनी कृपा, करो संकट हमारे दूर।।

विद्यादान तुम्हारी दया से मिला, हम नित भव्य विद्यालय में पढ़े। हम बने विद्वान देख, विश्व में होता है तेरा स्मरण।।

दुर्गे जय जय शरण में लिए, समस्त भक्त लोग पुकारें। संकट तेरी देवी दूर कर दे, दया दृष्टि जग को धारें।।

शारदा माँ जी की आल्हा का पाठ करने से उनकी कृपा आप पर बनी रहती है और आपके जीवन में बुद्धि, ज्ञान, सफलता और खुशहाली लाती हैं। 

शारदा माता मंदिर मध्यप्रदेश

मैहर वाली शारदा माता, Sharda Mata of Maihar यह पुरे देश  के तीर्थस्थलों में से कहे जाने वालो में एक ख़ास धाम है यह  मध्यप्रदेश के चित्रकूट के करीब सतना जिले में मैहर शहर में पड़ता है ये करीबन 600 फुट की ऊंपर त्रिकुट पहाड़ी पर मां दुर्गा के शारदीय रूप श्रद्धेय देवी "शारदा माता" का मंदिर स्थिति है, जोकि  मैहर देवी मंदिर के नामो से प्रसिद्ध हुई हैं। यह हिन्दुओं का महत्वपूर्ण धार्मिक एवं आस्थावान स्थान माना जाता है।

 यहां पर  श्रद्धालुजन माँ भावनी का दर्शन करने उसी तरह पहुंचते हैं की जैसे जम्मू में मां वैष्णो देवी का दर्शन करने जाया करते हैं।  मैहर की "शारदा माता मंदिर" तक पहुंचने के लिए एक हजार एक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। महावीर आल्हा-उदल को वरदान देने वाली मां शारदा देवी को पूरे देश में शारदा माता की कहानी के नाम से प्रचलित है। यहां पर रोपवे बन जाने से इस समय श्रद्धालुओं को माता का  दर्शन करने में कोई परेशानी नहीं होती है। बड़े ही आसानी से माता के दर्शन का मौक़ा मिल जाता है 

मैहर में कौन सा मंदिर है

इस मंदिर की उत्पत्ति के पीछे एक बहुत ही प्राचीन पौराणिक कहानी है जिसके चलते महाराजा दक्ष की पुत्री सती, भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन राजा दक्ष शिव को भगवान नहीं, भूतों और अघोरियों का संघी मानते थे और इस विवाह के समर्थन में नहीं थे, उसके बाद भी सती ने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ भगवान भोले नाथ से ब्याह रचा लिया।  कहानी के अनुसार राजा दक्ष ने 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया, जिसमे इस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को भी आमंत्रित किया गया था,

शिव जी का ध्यान

 परन्तु जान-बूझकर उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया। महादेव की पत्नी एवं दक्ष की पुत्री सती इस बात को लेकर बहुत दुखी हुईं और यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से भगवान शिव को आमंत्रित ना किया जाने का वजह पूछा, इस पर दक्ष ने भगवान शिव के बारे में बुरा भला  कह दिया इस अपमान से माता दुखी होकर मौन धारण कर लिया और उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठ गयी और भगवान शिव के चरणों में अपना ध्यान लगा कर योग मार्ग के रास्ते वायु तथा अग्नि तत्व को धारण कर लिया और  अपने शरीर को अपनी ही तेज से भस्म कर दिया, जब शिवजी को इस घटना के बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और यज्ञ कुंड का नाश हो गया। उसके बाद भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती के पार्थिव शरीर को अपने कंधे पर उठा लिया और गुस्से में जगह जगह घूमते रहे।

माता सती के कितने टुकड़े हुए थे?

संसार की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के अंग को 52 हिस्सों में विभाजित कर दिया। जिसके बाद  जहाँ-जहाँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, उस जगह पर उन शक्ति पीठों का निर्माण हो गया। उन्हीं में से एक शक्ति पीठो मेसे  है माँ भावानी मैहर देवी का स्थल, जहां पर माता सती का हार गिरा हुआ था।

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 मैहर का मतलब है, (माँ का हार) यही वह वजह है जिसके कारण इस जगह का नाम मैहर पड़ा। लेकिन यह भी बताया जाता है की उसके बाद पुनः जन्म में सती ने हिमाचल राजा के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तप करने के बाद  शिवजी जी को फिर से पति के रूप में उन्होंने पुनः प्राप्त किया।

एक चरवाहा की रहस्यमय कल्प कथा  

 इस तीर्थस्थल के बारे में दूसरी रोचक कहानिया प्रचलित है। कहते हैं कि आज से बहुत साल पहले मैहर में महाराज दुर्जन राज किया करते थे। उनके राज्य का एक चरवाहा गाय चराने के लिए जंगल में कभी जाया करता था। इस खतरनाक जंगल में दिन में भी रात की तरह  अंधेरा हुआ रहता था। और बात यह भी थी की वहा जंगल के अंदर कई तरह की अजीबो डरावनी आवाजें आया करा करती थीं।


जहां पर चरवाहा रोज गाय चराने जंगल में जाया करता था एक दिन उसने देखा कि उसके ही गाय के साथ और एक सुनहरी गाय  चारा चर  रही  थी और शाम होते ही वह एक ही पल में गायब हो गई बाद में जब वह चरवाह  गाय लेकर पहुंचा तो उसने देखा फिर  वहीं सुनहरी गाय  सभी गायों के साथ  मिलकर चरने  लगी उसने सोचा कि जब शाम होगा तब हम उसके पीछे पीछे जाकर  देखेंगे की यह गाय  कहां से आती है और फिर कहां चली जाती है उसके बाद दूसरा दिन भी होता है  और वह गाय चराने  उसी पहाड़ी पर पहुंच जाता है  

फिर वही होता है जो रोज होता था वह सुनहरी गाय आ जाती है और सब गायों के साथ मिलकर  चरने  लगती है  लेकिन तो आज वह चार वाह बहुत ही सतर्क हुआ था और जब शाम हुआ तो उस गाय का पीछा करते हुए  पहाड़ी के  गुफा के अंदर वह  गाय जा घुसी  और गुफा का द्वार उस गाय को घुस जाने के बाद बंद हो गया बाहर बैठे बैठे वह चरवा उसका इंतजार करने लगा लेकिन तो बात ही है भी था कि उसको  पता ही नहीं था  की  इस गुफा का द्वार  कब खुलेगा लेकिन अधिक समय बीत जाने के बाद उसको एक बूढ़ी मां का  दर्शन हुआ  तब उस चरवाहे ने  बूढ़ी महिला से बोला कि  मां मैं आपके  गाय को चराता हूं   मुझे कुछ खाने के लिए  दे दो हमारी यही इच्छा है 

माँ शारदा की उत्पत्ति कैसे हुई?

 इसलिए  यहां पर हम आए हुए हैं वह बूढ़ी मां गुफा के अंदर जाती हैं  उन्होंने उस चरवाहे को लकड़ी के  सुप में जौ के दाने  उस चरवाहे को दे देती हैं उन्होंने उसको बताया भी की इस जंगल में  तुम कभी अकेले आया करो  लेकिन चरवाहा  कहता है कि  माई हमारा काम ही है  ऐसा की हमको  आना ही पड़ जाता है  उसी वक्त चरवाहा ने माता से  कहां की  आप जंगल में  अकेली ही रहते हो आपको डर भी नहीं लगता है 

तब माता ने  हंसकर उससे कहा कि बेटा यह जंगल ऊंचे ऊंचे पहाड़ मेरा घर है हमारा यही स्थान भी है  इतना बता कर माता गायब हो जाती हैं और वह चरवाहा जब घर आकर वह  माता के दिए हुए जौ की गठरी खोली तो चकित हैरान रह गया  उस गठरी में जाओ के दाने के जगह पर हीरे  मोतियों  चमकते  हुए दिखे  उसने अपने दिल में सोचा कि कल सुबह होते ही मैं इसको  राजा  के दरबार में हाजिर कर दूंगा सुबह होते ही वह चरवाहा क्या के दरबार में पहुंच गया और अपने ऊपर बीती हुई सभी बातें को उसने राजा को बताया  उस चरवाहा की बातों को सुनकर राजा ने वादा किया कि वहां पर चलकर देखेंगे  की क्या कैसे हैं

  शाम होते ही राजा सोने को चले गए पूरी रात हो जाने के बाद राजा को सपना आता है कि चरवाहा द्वारा बताई गई  जगह पर उस बूढ़ी माता का दर्शन होता है उसके बाद राजा को यह बात का विश्वास हो गया की हुआ  की वह कोई और नहीं आदि शक्ति मां शारदा है 


 परंतु बात यह भी है  कि उस सपने में माता ने राजा से वहां पर मूर्ति स्थापित करने का आदेश भी दिया था कि यहां पर मात्र दर्शन से ही  सभी के मनोकामना  की पूर्ति होगी उसके बाद सुबह होते ही  राजा ने आनन फानन उनके बताए हुए हिसाब से सारे काम करवाने लगे उस राजा ने सारे काम करवा दिए उसके बाद वहां पर माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु  दूर-दराज से  आने का तांता लग गया लेकिन साथ में बात यह भी थी की आने वालों की मनोवांछित  मनोकामना पूरी होती रही  उसके  बाद भक्तों ने  मां शारदा भवानी का विशाल मंदिर बनवा दिया

 इस धार्मिक स्थल पर अन्य दंत कथाएं भी खूब प्रचलित है परंपरा के अनुसार दो  वीर कभी हुआ करते थे   जोकि दोनों भाई थे  जिनका नाम आल्हा उदल बताया गया जिन्होंने पृथ्वीराज के साथ भी युद्ध लड़ा था  वह भी शारदा माता के  भक्त हुआ करते थे  यह दोनों चालबाज है इन्होंने घने जंगल में जाकर  पूजा  अर्चना किया करते थे  बाद में आल्हा ने  इस मंदिर में  करीब 12 सालों तक तपस्या किया उसके बाद माता खुश होकर उसको वरदान भी दिया माता उसे अमरत्व का आशीर्वाद दिया था बताते हैं कि यह दोनों भाई माता के भक्ति में  लीन होकर अपनी  जीभ  माता शारदा को  अर्पण कर दिया था जिसे उनकी भक्ति से  पसंद हो कर माता ने उन्हें  उनकी जीभ  वापस कर दी थी 

 आल्हा हमेशा  माता को शारदा माई कहकर पुकारता था  यही वह कारण है कि यह मंदिर शारदा माता  के नाम से प्रसिद्ध हुआ लोगों का यह भी मानना है की सर्वप्रथम आल्हा उदल ही  शारदा माता का दर्शन किए थे माता के मंदिर के पीछे ही नीचे की तरफ एक तालाब है जिसे आज भी आल्हा ऊदल कहा जाता है


उस तालाब के करीब 2 किलोमीटर के आगे जाने के बाद एक अखाड़ा नजर आता है जिसके बारे में हमें बताया जाता है  कि यहां  आल्हा ऊदल कुश्ती किया करते थे उस वक्त मंदिर का कार्य मां शारदा समिति के देखरेख में चल रहा  है इस समिति के अध्यक्ष सतना जिले  के कलेक्टर  हुआ करते थे  मैहर की माता शारदा भवानी मंदिर  का इतिहास और घटनाएं हिस्ट्री ऑफ मैहर में  है जहां पर आप जाकर देख सकते हैं  यहां पर मां शारदा प्रतिष्ठापित मूर्ति चरण  के नीचे प्राचीन शिला लेख  पाया जा सकता है जोकि मूर्ति की  प्राचीन प्रामाणिकता  का गवाही देता है

शारदा माता मंदिर मैहर मध्य प्रदेश

 मैहर नगर के  पश्चिम दिशा   की तरफ चित्रकूट पर्वत मैं श्री आद्य शारदा देवी तथा  और उनके बाई तरफ प्रतिष्ठापित श्री नरसिंह भगवान की पाषाण  मूर्ति की प्रमाण प्रतिष्ठा आज से पहले विक्रमी संवत् 559 शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी,  दिन मंगलवार सन् 502 में तोर मान हूण  के शासनकाल में हुआ था जोकि श्री नुपुल देव द्वारा कराई गई थी।  इस मंदिर में पुराण काल से जानवरों की बलि देने की परंपरा चलती आ रही थी जिसको 1922 ईस्वी में  सतना के महाराजा ब्रजनाथ जूदेव जी ने  इस  चलती  आ रही परंपरा को  प्रतिबंध कर दिया

  शारदा प्रबंध समिति  महाराज जी बताते हैं  की  जनवरी  सन 1997  में  शारदा  माता के दरबार में प्रयागराज के एक भक्त ने  मां को भेट  चढ़ाई थी उस समय  उस बच्चे का  उम्र केवल 10 दिन का ही था बस उन्होंने उस बेजुबान  जानवर को अपने पास ही रख लिया  लेकिन  बात यह भी है वह  कहीं  भी रहे आरती के समय  मां  शारदा के  दरबार में पहुंच जाता है और  आरती की पूरी प्रक्रिया  हो जाने के बाद वह इधर-उधर टहलने लगता है


ग्राम मझियार के माता के एक भक्त बताते हैं  की आज वह बिल्ला उनको अपना दुश्मन मानता है  जो वहां पर  बकरा चढ़ाने आते हैं बताते यह भी हैं कि अगर कोई यहां पर सीढ़ियों पर बकरा लेकर आता है तो  यह बच्चा उन्हें  सीढ़ियां पर चढ़ने नहीं देता है और आगे जा जाकर रोकता ही रहता है  संपूर्ण  देश के  सतना में  मैहर मंदिर माँ शारदा भवानी का एकमात्र मंदिर है  जहां पर पर्वत की चोटी पर माता शारदा के साथ साथ  श्री काल भैरवी,  दुर्गा देवी, श्री गौरी नारायणी, हनुमान जी, देवी काली,  फूलमती माता, शंकर भगवान, शेषनाग, जलपा देवी, और "ब्रह्म देव" इन सभी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है

  • मां शारदा माता मैहर
  • श्रेणी इतिहासिक धार्मिक
  • मैहर में कितनी सीढ़ियां हैं

यह पवित्र मां शारदा मंदिर मध्यप्रदेश के सतना जिले के ग्राम मैहर में  पड़ता है यह जगह सड़क और ट्रेन मार्ग से जुड़ा हुआ है सतना जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर ही पड़ता है यह मंदिर चित्रकूट पर्वत पर  600 फीट ऊंचाई पर स्थित है यह तीर्थ स्थल तक पहुंचने के लिए 1001  सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है मंदिर का प्रबंधन मां शारदा प्रबंधक समिति द्वारा किया जाता है  इस जिला कलेक्टर की अध्यक्षता  कि समिति है जोकि देश भर से तीर्थयात्रियों और भक्तों का बढ़िया सुविधा दिया करती है  इसके अलावा भी यहां अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं यह मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग पहाड़ पर बनाया गया है जिससे वाहनों को वहां चढ़ने में कोई परेशानी ना हो और सुरक्षित मंदिर तक पहुंचा जा सके

  मैहर माता के मंदिर कैसे जाएं

मैहर तक जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर खजुराहो  प्रयागराज माना जाता है इन हवाई अड्डा से आप ट्रेन टैक्सी बस आदि से बड़े आसानी से  मैहर तक आ सकते हैं जबलपुर से मैहर की दूरी लगभग  150 किलोमीटर है वही खजुराहो से मैहर की दूरी  130 किलोमीटर है  और प्रयागराज से  तकरीबन 200 किलोमीटर है

  मैहर ट्रेन से कैसे जाएं

आमतौर पर  मैहर में सभी ट्रेनें  नहीं रुकती हैं लेकिन नवरात्रि के जैसे उत्सव के दौरान  ज्यादातर ट्रेन मैहर   जरूर  रूकती है  सभी ट्रेनों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जंक्शन  सतना स्टेशन है  जो कि वहां से मैहर स्टेशन की दूरी करीब 36 किलोमीटर है वहां से  कटनी स्टेशन की दूरी 55 किलोमीटर  होता है

बस से मैहर कैसे जाये 

  मैहर शहर जाने के लिए राष्ट्रीय  राजमार्ग  7  हैं  और सातों मार्ग मेन सड़क से जुड़े हुए हैं  आप बड़े ही आसानी से निकटतम प्रमुख शहरों से मैहर  शहर के लिए अनगिनत नियमित बसे पा सकते है 


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