ज्वाला देवी की कहानी क्या है | jvaala devi ki utpatti

 

माँ भगवती के 51 शक्तिपीठ में से एक है माता ज्वाला जी का  मंदिर यह काफी मशहूर है। इस मंदिर को जोता वाली मंदिर के नाम से भी समझा जाता है। पौराणिक मान्यताओं को माने तो , यही वह जगह है जहा पर माता सती की जीभ गिरी थी। 

यहां पर  माता ज्वाला के रूप में खुद हमेशा विराजमान रहती हैं और भगवान भोलेनाथ यहां उन्मत भैरव के रूप में  उपस्थित रहते हैं। इस मदिर का चमत्कार यह माना जाता है कि इस जगह पर कोई मूर्ति अथापित नहीं की गयी है यहां पर पृथ्वी के गर्भ से निकलती हुयी 9 ज्वालों की पूजा अचना की जाती है। 

अभी तक इसका रहस्य कोई नहीं जान सका है कि आखिरकार यह ज्वाला यहां से कैसे भभक रही है। अनेक भू-वैज्ञानिक ने लम्बी खुदाई करने के बाद उनको भी यह पता लगना मुश्किल हो गया कि यह प्राकृतिक गैस है या फिर रहस्य्मयी चमत्कार कैसे हो रही है। उसके साथ ही यह भी रहस्य बना हुआ है की अभी तक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं सका है। तो चलिए जानते हैं ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य क्या है, इसके पीछे छुपे धार्मिक या वैज्ञानिक मन्यताएं क्या कहती हैं…

Jwala Devi Temple Himachal Pradesh

ज्वाला जी कौन से स्टेट में है?

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा नामक स्थान में पहाडिओ पर 30 किलोमीटर दूर ज्वाला माता का प्रसिद्ध मंदिर है। जोकि हमारे विनोद कुमार दोस्त है वह वही के निवासी है 

यही हैं मां की 9 ज्वाला

माता ज्वाला देवी के मंदिर में बिना तेल और मोमबत्ती के नौ ज्वाला हमेशा जला करती हैं, जोकि माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। मंदिर में एक सबसे बड़ी ज्वाला है, जो वह ज्वाला माता कहलाती हैं और सभी अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां विध्यवासिनी,मां अन्नपूर्णा,मां महालक्ष्मी, मां चण्डी देवी, मां हिंगलाज माता,मां अम्बिका देवी, मां अंजी, एवं मां सरस्वती देवी हैं।

जानिए ब्रिटिश राज में की गई ऐसी कोशिश

माता ज्वाला देवी का मंदिर निर्माण सर्बप्रथम राजा भूमि चंद ने कर डाला था। इसके उपरांत ईस्वी 1835 में महाराज रणजीत एवं राजा संसार चंद ने इसका फिर से निर्माण करवाया दिया। ब्रिटिश साम्राज्य के वक्त में मंदिर की ज्वाला का राज जानने की कोशिश में जमीन के नीचे दबी ऊर्जा का खोज करने की काफी मसस्कक्त्त उन ब्रिटिशिओ ने की लेकिन नाकाम रहे उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा।

भूगर्भ वैज्ञानिक भी पहुंचे थे ज्वाला मंदिर

देश आजाद होने के बाद भी अनेको भूगर्भ वैज्ञानिको ने भी अपना तंबू गाड़कर बैठ कर ज्वाला माता की जड़ का पता लगाने के लिए जुटे हुए थे किन्तु उनको कोई भी सटीक जानकारी नहीं मिल सकी। यह इस बात को सिद्ध करती हैं कि यह चमत्कारिक ज्वाला जी है। जोकि मंदिर से निकलती ज्वाला माँ का आजतक  भी एक रहस्य का मैटर बना हुआ है।

माता ज्वाला मंदिर को लेकर है एक और पौराणिक कथाए 

ज्वाला महा देवी की ज्वाला से संबंधित एक पौराणिक कहानी भी है। कहानी के अनुसार, भक्त गोरखनाथ माता ज्वाला देवी के सुप्रसिद्ध भक्त माने जाने वालो मेसे एक थे और वे हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहा करते थे। एकबार ऐसा भी हुआ जब गोरखनाथ भूख लगने पर उन्होंने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मीक्षा मांगकर आता हूं। जब गोरखनाथ मिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आये इस अंधकार भरी दुनिया को रास्ता दिखने में जुट गए ।

ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश

 मान्यता है कि यह वही आग है जो मां ज्वाला ने जलाई थी और ठीक इसके कुछ ही दूरी पर बने कुंड के  पानी से आज भी भाप निकलती महसूस होती है। और आज भी इस कुंड को गोरखनाथ बाबा की डिब्बी के नाम से जाना जाता है। मान्यता यह भी है कि कलयुग का अंत होते ही गोरखनाथ बाबा इस मंदिर में जब तक वापस लौटकर नहीं आएंगे तब तक माँ ज्वाला को ऐसे ही जलना ही पड़ेगा।

शासक अकबर ने भी किया था ज्वाला माता को बुझाने की कोशिश

अकबर ने जब ज्वाला मंदिर के चमत्कार की प्रसंशा लोगो से सुना तो उसने अपनी सेना लेकर ज्वाला को बुझाने और नसतो नाबूद करने लिए अनेक बार वहा पर चढ़ाई किया लेकिन हर एक बार  मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं नाकाम रहा उसके बाद भी ज्वाला को नस्ट करने के लिए अनेको चाल चले। उन्हें बुझाने के लिए उसने नहर तक की खुदाई करवाने की कोशिश की किन्तु नाकाम रहा। अभी वह नहर मंदिर आपको की बायीं हाथो की तरफ देखने को मिल जा सकती। अंत में वह माता के कुछ  चमत्कार को देखकर सन्न सा हो गया और सवा मन के सोने का छत्र चढ़ाने पहुंचा लेकिन माता ने उसे स्वीकार नहीं किया क्युकी वह सोना किसी अन्य मंदिरो से जबरदस्ती उठाये गए थे और वह वही पिघलकर किसी अन्य धातु का रूप ले लिया। यह धातु कौन सा चीज में आता है इस बात का अभी तक किसी को खबर नहीं हो पाया है।

हर एक की इच्छा होती है मां ज्वाला के दरबार में पूरी

ज्वाला माँ के मंदिर को लेकर ध्यानू भगत की कहानी भी प्रसिद्ध ही मानी जाती है। इस कथा के अनुसार, ध्यानू भगत ने अपनी भक्ति को सिद्ध करने के लिए अपना शीश मां को काट कर चढ़ा दिया था। मान्यता ऐसी भी है कि जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से माता ज्वाला से जो भी मांगता है, उसकी इच्छा के अनुशार मांगी हुयी बहुत से कार्य पूरी हो जाती है। कोई भी ज्वाला मां के दरबार से खाली नहीं जाता है।

ज्वाला देवी की कहानी क्या है (jvaala devee kee kahaanee kya hai)

ज्वाला देवी भारत की प्रसिद्ध देवी मानी जाती है जो हिमालय की पहाड़ियों में स्थित है। यह देवी पर्वत शिखरों, नदियों और झीलों के साथ घिरी हुई है। इस देवी की कहानी अत्यंत रोमांचक है।

कहते हैं कि एक बार एक समय में हिमालय में दो बड़े शक्तिशाली देव भगवान शिव और देवी पार्वती रहते थे। उन्हें देखते ही हर कोई डर जाता था। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान शिव ने ज्वाला देवी को शिवलिंग के रूप में प्रतिष्ठित किया।

ज्वाला देवी एक बहुत ही शक्तिशाली देवी थी जिसने उनकी मदद की और उन्हें शिवलिंग बनाने में मदद की। लेकिन देवी पार्वती ने शिवलिंग को दहलाया और उसे बिना पूजा के छोड़ दिया। इससे भगवान शिव बहुत नाराज हुए और उन्होंने देवी पार्वती को भगवान विष्णु के पास भेज दिया।

देवी पार्वती ने विष्णु भगवान को अपनी गलती का अहसास कराया और उनसे क्षमा मांगी। उन्होंने उसे शिवलिंग को पुनः प्राप्त हो गया.

ज्वाला मां की उत्पत्ति कैसे हुई (jvaala maan kee utpatti kaise huee)

ज्वाला मां भारतीय पुराणों और कथाओं में देवी के रूप में उपस्थित होती हैं। उनकी उत्पत्ति कथाओं के अनुसार दो अलग-अलग घटनाओं से जुड़ी हुई है।

पहली कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने अपनी बेटी सती की शादी भगवान शिव से करवाई थी। एक दिन, दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ किया था जिसमें वे सभी देवताओं को आमंत्रित कर थे। हालांकि, दक्ष ने भगवान शिव और सती को नहीं आमंत्रित किया था। जब सती ने यह जाना तो वे अपने पिता के घर जाकर उन्हें उनकी गलतियों की चेतावनी देने की कोशिश की। तब दक्ष ने सती को बहुत अपमानित किया था जिससे सती ने अपने शरीर को जलाकर अपनी आत्मा को छोड़ दी। उसके अंतिम संस्कार के समय, भगवान शिव ने सती के शव को अपने कंधों पर ले लिया था। इससे उनके शरीर के विभिन्न भाग झिल्ली, मांस और हड्डियों में टुकड़े हो गए थे। जब भगवान शिव ने सती के शव को अपने कंधों पर उठाया था, 

ज्वाला मां किसकी कुलदेवी है (jvaala maan kisakee kuladevee hai)

ज्वाला मां भारतीय परंपरा में माता दुर्गा की एक रूप रूप में जानी जाती हैं और वे हिमाचल प्रदेश की कुलदेवी हैं। ज्वाला माता मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित हैं और भारत भर में लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक हैं। इस मंदिर में ज्वाला मां की ज्वाला एक अद्भुत रूप है, जो अग्नि के एक जलते हुए धुंधले समूह के रूप में प्रदर्शित होता है। यह ज्वाला हमेशा जलती रहती है और लोग इसे देखने आते हैं और माँ को अपनी प्रार्थनाएं भेंट करते हैं।

ज्वाला देवी कौन से प्रदेश में है (jvaala devee kaun se pradesh mein hai)

ज्वाला मां भारत के हिमाचल प्रदेश में स्थित हैं। ज्वाला मां का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है और यह एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जहां सैकड़ों श्रद्धालु वार्षिक तौर पर भ्रमण करते हैं। इस मंदिर में ज्वाला मां की अद्भुत ज्वाला है, जो हमेशा जलती रहती है।

ज्वाला माता की भविष्यवाणी (jvaala maata kee bhavishyavaanee)

ज्वाला माता की भविष्यवाणी के बारे में कई कहानियां सुनी जाती हैं। एक कथा के अनुसार, जब ज्वाला मां ने अपनी देवी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए महाकाल ने उन्हें पुकारा था, तब उन्होंने कहा था कि वे समस्त वर्षों में वहां जहां उनका मंदिर होगा, वहां अपनी आत्मा रखेंगी और उनकी पूजा सदैव चलती रहेगी।

एक और कथा के अनुसार, जब ज्वाला मां ने शक्ति का प्रदर्शन किया था, तो उन्होंने अपनी आत्मा को अपने शिष्य गोरखनाथ को सौंप दिया था। जब गोरखनाथ ने उनसे पूछा कि उनकी आत्मा कहां रखनी है, तो ज्वाला मां ने कहा था कि उनकी आत्मा वहीं रहेगी जहां उनका मंदिर होगा। वे कहती हैं कि उनकी भविष्यवाणी के अनुसार, जब उनकी ज्वाला बुझ जाएगी, तब भारत अपनी आस्था खो देगा।

यह समझना मुश्किल है कि क्या यह कथाएं सच हैं या नहीं। हालांकि, एक बात स्पष्ट है कि ज्वाला माता के मंदिर में ज्वाला हमेशा जलती रहती है और लाखों भक्त यहां आते हैं.

ज्वाला माता किसकी कुलदेवी है (jvaala maata kisakee kuladevee hai)

ज्वाला माता हिमाचल प्रदेश के कुछ समुदायों की कुलदेवी मानी जाती है। उन समुदायों में से कुछ हैं राजपूत, ब्राह्मण, त्रिवेणी और छत्री समुदाय हैं। इन समुदायों में ज्वाला माता को कुलदेवी मानने का अत्यंत महत्व है और वे इस मान्यता का विशेष आदर रखते हैं।

वैसे तो ज्वाला माता को सभी लोग पूजते हैं और उन्हें अपनी देवी मानते हैं, लेकिन उन्हें कुलदेवी मानने का महत्व विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश में है।

माँ ज्वाला मंत्र (maan jvaala mantr)

ज्वाला माता के लिए निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ ज्वालायै विद्महे महादेव्यै धीमहि तन्नो ज्वाला प्रचोदयात्।

इस मंत्र का नियमित रूप से जप करने से माँ ज्वाला का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह मंत्र साधना के दौरान भी जपा जाता है जो ज्वाला माता के भक्तों द्वारा किया जाता है।

ज्वाला माता का मंदिर कहां है,ज्वाला देवी मंदिर कहाँ है (jvaala devee mandir kahaan hai,jvaala maata ka mandir kahaan hai)

माँ ज्वाला का मंदिर हिमाचल प्रदेश में कंगड़ा जिले के निकट नगर पंचकुला में स्थित है। यह मंदिर ज्वाला देवी के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और इसे देश और विदेश से आने वाले बहुत से भक्त दर्शन करने आते हैं।

यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और इसे देश और विदेश से आने वाले बहुत से भक्त दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में हुई थी और यह एक भव्य भवन है जो हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है।

ज्वाला मां और अकबर की कहानी (jvaala maan aur akabar kee kahaanee)

ज्वाला माता और अकबर के बीच एक प्रसिद्ध कथा है।

कथा के अनुसार, एक दिन मुगल सम्राट अकबर ने सोचा कि वह अपने धर्म की जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी तरह की यात्रा करेंगे। वह अपने दरबार में शामिल होने वाले अलग-अलग धर्मों के लोगों से मिलते रहते थे ताकि उन्हें धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें। अकबर अपनी यात्रा के दौरान ज्वाला माता के मंदिर पहुँचा जहाँ उन्होंने एक पंडित से धर्म के बारे में पूछा।

पंडित ने उन्हें ज्वाला माता के बारे में बताया और उन्हें मंदिर का दर्शन करने के लिए कहा। जब अकबर मंदिर में था, तो उसने देखा कि ज्वाला माता के मंदिर में एक शख्स आसन पर बैठा हुआ था और एक पूजा दीप जला रहा था। अकबर ने उस शख्स से पूछा कि वह पूजा क्यों कर रहा है।

शख्स ने उत्तर दिया, "मैं ज्वाला माता की पूजा कर रहा हूँ जो सबके जीवन में उज्ज्वलता और सुख लाती है।"

ज्वाला देवी कैसे पहुंचे (jvaala devee kaise pahunche)

ज्वाला देवी तक पहुँचने के लिए आपको सबसे पहले हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बैजनाथ या श्रीनगर से जुड़े रास्ते से जाना होगा।

ज्वाला माता का मंदिर ज्वालाजी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है और यह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के ज्वालाजी नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर दिल्ली से लगभग 500 किलोमीटर दूर है।

आप दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस, हिमाचल एक्सप्रेस और जनशताब्दी एक्सप्रेस के माध्यम से पठानकोट जा सकते हैं और फिर ज्वालाजी तक बस या टैक्सी से जाकर पहुँच सकते हैं।

ज्वाला देवी दिल्ली से कैसे पहुंचे

ज्वाला देवी तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले दिल्ली से कांगड़ा जिले के धर्मशाला, जो कि हिमाचल प्रदेश में है, जाना होगा।

धर्मशाला पहुंचने के लिए दिल्ली से दो तरीके हैं। पहला तरीका ट्रेन का है, आप न्यू डिल्ही से जलंधर टक्कर एक्सप्रेस, हिमाचल एक्सप्रेस या जनशताब्दी एक्सप्रेस ले सकते हैं और फिर जलंधर से कांगड़ा जिले के धर्मशाला तक बस या टैक्सी से जा सकते हैं।

दूसरा तरीका एयरपोर्ट का है, आप नई दिल्ली से घुमटी एयरपोर्ट तक उड़ान ले सकते हैं और फिर उसके बाद कांगड़ा जिले के धर्मशाला तक टैक्सी या बस से जा सकते हैं।

ज्वाला माता का मंदिर ज्वालाजी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है और यह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के ज्वालाजी नामक स्थान पर स्थित है। आप धर्मशाला से ज्वालाजी तक बस या टैक्सी से जाकर पहुँच सकते हैं।


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