मंदबुद्धि राजा की एक कहानी | Raja ki kahani in Hindi

क्या घोड़ा घोड़ा घोड़ा?


कश्मीर के एक भाग में मंदबुद्धि नाम का एक राजा राज्य करता था । राजा सुंदर , सुशिक्षित और कुलीन था , पर बुद्धि में सचमुच तेज नहीं था । शायद इसी कारण उसका नाम मंदबुद्धि था । 

मंदबुद्धि के पास एक काले रंग का घोड़ा था । वह इसी घोड़े पर सवार होकर जंगलों में शिकार खेलने जाता । ऊंची - ऊंची पहाड़ियों पर घुड़सवारी करता और समय आने पर लड़ाईयाँ लड़ने भी इसी घोड़े पर जाया करता था । 

राजा ने घोड़े की देखभाल के लिए दर्जनों नौकर - चाकर रखे थे । वे घोड़े को नहलाते , मालिश करते । कई नौकर उसको खाना खिलाते , तो कई उसके लिए भिन्न - भिन्न प्रकार के चारे का प्रबंध करते । काला घोड़ा देखने में बहुत सुंदर , स्वस्थ , चमकदार और शक्तिशाली था । 

मंदबुद्धि के शासनकाल में राज्य का काम - काज अधिकतर मंत्रीगण ही चलाते थे । एक बार पड़ोस के राजा हींगूमल ने मंदबुद्धि के राज्य पर हमला किया । सारे राज्य में खलबली मच गई । राजा मंदबुद्धि का रक्षामंत्री इस आक्रमण का मुकाबला करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था । 

उसने राजा से कहा- " महाराज , मेरी तो यह राय है कि हम बिना किसी शर्त के राजा हींगूमल के सामने अपने हथियार डाल दें । " - " नहीं , ऐसा कभी नहीं हो सकता । अपने देश की सुरक्षा के लिए हमें हर हालत में लड़ना होगा । " इसके तुरंत बाद राजा मंदबुद्धि ने अपनी सेना की बागडोर संभाली । अपने काले घोड़े पर सवार होकर उसने अपनी सेना का नेतृत्व किया । 

दुश्मन के सैनिकों को कुचलता हुआ , अपने काले घोड़े पर सवार होकर , उसने अपनी सेना में नया जोश भर दिया । अपनी सेना के साथ - साथ बहादुरी से लड़ते हुए राजा मंदबुद्धि ने दुश्मन को वापस खदेड़ दिया । विजय का जश्न सारे राज्य में मनाया गया । मंदबुद्धि अपने रक्षामंत्री से बहुत ही रुष्ट था ।

 उसने रक्षामंत्री को बुलवाया और बोला की आज से ही अपने देश की रक्षा सुरच्छा इस मंत्रालय का पूरा काम - काज यह  काला घोड़ा ही सम्हलेगा। ऐ सब कैसे हो सकता है ? रक्षामंत्री आश्चर्य जी से बोला । यह सुनते ही मंदबुद्धि उस पर बरस पड़ा । कहा- " क्यों नहीं हो सकता ? 

तुमने तो मुझे हींगूमल के सामने बिना किसी शर्त के हथियार डालने की सलाह दी थी , तब मेरा काला घोड़ा दुश्मन से टक्कर लेने के लिए आगे बढ़ा था । " " पर महाराज , आपका घोड़ा बोल नहीं सकता । वह मंत्रालय की देख - रेख का काम कैसे कर सकता है ? वह सभासदों को कैसे सम्बोधित कर सकता है ? " - रक्षामंत्री ने राजा को समझाते हुए कहा । " सब कुछ हो सकता है । मेरे पास इसका भी समाधान है । 

" राजा ने अपनी बात समझाते हुए कहा । - " महाराज के पास इस समस्या का क्या समाधान है ? " " घोड़े को बोलना सिखा दो । " मंदबुद्धि ने सुझाया । " पर कैसे ? " रक्षामंत्री ने पूछा । " इस बारे में मुझे शिक्षामंत्री से बात करनी है । " मंदबुद्धि बोला । अगले ही पल राजा ने शिक्षामंत्री टींचूमल को दरबार में बुलवाया । कहा- “ मैंने निश्चय किया है कि काले घोड़े को अपना रक्षामंत्री बनाऊँ । 

इसके लिए तुम्हें उसे बोलना सिखाना होगा । " " पर राजन् , यह कैसे होगा ? घोड़ा कैसे बोलना सीखेगा ? " टींचूमल चकित होकर बोला । " यह तो तुम्हें हर हालत में करना होगा । यदि तुम ऐसा नहीं करोगे , तो तुम्हें सपरिवार देश से निकाल बाहर किया जाएगा । तुम तीन दिन के अंदर - अंदर मुझे अपना फैसला सुनाओ । " राजा ने गुस्से से कहा । टींचूमल से कुछ उत्तर नहीं बना । वह बहुत चिंतित हुआ । 

यही सोचता रहा - ' घोड़े को कैसे बोलना सिखाऊँ ? ' - इसी विचार में डूबा हुआ वह घर पहुँचा । टींचूमल की पत्नी बहुत बुद्धिमान और होशियार थी । अपने पति को उदास देख , बोली- " आज तुम बहुत उदास लग रहे हो । सब ठीक ठाक तो है ? " " 

आज महाराज ने मुझे एक बड़ी समस्या में उलझा दिया है । " कहते हुए टींचूमल ने पत्नी को सारी बात बता दी । पति की बात सुनकर वह बोली- " बस , इतनी - सी बात ! तुम्हारी समस्या इतनी जटिल नहीं है कि जिसका कोई समाधान ही न हो । मुझे इसका हल कुछ - कुछ मिल गया है । 

" कहकर उसने पति को सारी बात समझा दी । तीन दिन बाद मंदबुद्धि ने टींचूमल को बुला भेजा । उस दिन टींचूमल बहुत खुश था । " महाराज की जय हो । " कहकर वह दरबार में हाजिर हुआ । उसको देखते ही राजा ने पूछा- " तुमने क्या सोचा ? " " महाराज , मुझे आपके काले घोड़े को बोलना सिखाना मंजूर है । " टींचूमल ने बड़े विश्वास के साथ कहा । अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए टींचूमल बोला- " महाराज , वैसे तो यह काम अत्यंत कठिन है , 

लेकिन आपकी इच्छा तो पूरी करनी ही होगी । हाँ , इसमें बहुत पैसा और समय लगेगा । " यह सोचकर कि घोड़ा बोलना सीख , रक्षामंत्री बनेगा , राजा मंदबुद्धि मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ । उसने टींचूमल से पूछा- " मेरा काला घोड़ा कितनी देर में बोलना सीख सकेगा ? " " यही कोई पाँच साल में । " - टींचूमल ने उत्तर दिया- " और महाराज , इसके लिए आपको अपना काला घोड़ा मेरे पास छोड़ना पड़ेगा । पर उसके पालन - पोषण की जिम्मेदारी राज्य की ही होगी । 

" मुझे यह सब मंजूर है । " राजा बोला । सारे राज्य में यह समाचार आग की भाँति फैल गया , राजा अपने काले घोड़े को रक्षामंत्री बनाने जा रहा । चारों ओर इस बात की चर्चा थी कि शिक्षामंत्री टींचूमल ने राजा के काले घोड़े को बोलना सिखाने की जिम्मेदारी ली है । 

राजा के इस फैसले से घोड़े का जीवन स्तर बहुत ऊँचा हो गया । देखते - देखते घोड़ों की कीमतें आसमान छूने लगीं । घोड़े पालने वालों की मौज हो गई । कई लोगों ने यह सोचकर घोड़े खरीदे कि कल को वे भी मंत्री बन सकते हैं । दिन - प्रतिदिन घोड़ों का सम्मान बढ़ता ही गया । 

अब तो कोई भी घोड़ों से बोझा ढोने का काम न कराता । घोड़ों को घुड़सवारी और खेलों में भाग लेने जैसे कामों से भी छुट्टी मिल गई । राजा ने अपने रक्षामंत्री को आदेश दिया कि वह सेना में भी घोड़ों का विशेष ध्यान रखे । उनके पालन - पोषण में किसी तरह से कोई कमी न आने पाए । 

इसी आदेश के अनुसार रक्षामंत्री ने सेना से घोड़ों को हटाकर गधों को लगा दिया । सारे राज्य में घोड़ों की मस्ती हो गई । वे हट्टे कट्टे और आराम पसंद बन गए । 1 इस बात की सूचना पड़ोस के राज्यों में भी फैल गई । राज्य हींगूमल ने अपने मंत्रियों की सभा बुलाई । सभा में निर्णय किया गया कि राजा मंदबुद्धि से पिछली हार का बदला लेने का यह सुनहरा अवसर है 

राजा हींगूमल ने फिर एक बार मंदबुद्धि पर धावा बोल दिया । इस बार मंदबुद्धि की गधों पर लड़ने वाली सेना हींगूमल के तेज घुड़सवारों के सामने नहीं टिक सकी । स्वयं राजा के पास उसका काला घोड़ा नहीं था । इस बार राजा की न केवल करारी हार हुई , बल्कि मंदबुद्धि अपने सैनिकों के साथ लड़ाई में मारा गया । एक सनकी राजा ने अपनी सनक के कारण पूरे राज्य की नष्ट कर दिया ।

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