गोरखपुर में स्थापित है बुढ़िया माता मंदिर माँ के दर्शन के लिए देश से काफी मात्रा में लोग आते है साल के चैत्र और शारदीय नवरात्रि के बाद भी पूरे साल इस स्थान पर भक्तों की भीड़ लगी रहती है. इस स्थान पर माता के दो मंदिर बने हुए है. जिसमे एक पुराना मंदिर है और दूसरा नयी मंदिर. दोनों ही मंदिरों पर भक्तों की अधिक मात्रा में भीड़ इक्क्ठा हो जाती हैं. जोकि पुराना मंदिर तक पहुंचने के लिए नाव से एक पोखरे को पार करना पड़ता है.
बताते हैं कि बुढ़िया माता की जो भक्त सच्चे मन से यहां आ के पूजा अर्चना करता है, उसे कभी भी कोई कमी महसूस नहीं होती है माँ समझो खुद उसको मुस्किलो बचाती है. यह भी कहते है की उस ब्यक्ति की कभी आकाल मृत नहीं हो सकती जिनपर मा की शक्ति और साया रहता है बुढ़िया माता का मंदिर गोरखपुर सिटी से 15 किलोमीटर पूरब के कुशमनी जंगल के बीचो बीच में ही माँ का मंदिर बिराजमान है.
बुढ़िया माई की क्या मान्यता हैं.(budhiya maee kee kya maanyata hain)
मान्यताओं का माने तो यहां इस जगह पर बहुत बड़ा जंगल हुआ करता था. जिसमें एक नाला बहा करता था. तुर्रा नाले पर लकड़ी का पुल बना होता यहा है लोग वहा से आते जाते है एक दिन ऐसा भी हुआ जब वहां पर एक बारात आकर नाले के पूरब तरफ रुक जाती है वहि पुल के बगल में सफेद वस्त्र धारण करके एक बूढ़ी महिला बैठी हुयी थी. उन्होंने नाच प्रोग्राम वालो से नाच दिखाने को कहा फिर वहा पर नाच मंडली वालो ने बूढ़ी महिला का मजाक उड़ाते हुए चली जाती, परन्तु जोकर ने झाझ माजरी बजाकर 2 से तीन बार घूमकर महिला को नाच दिखा दिया. उस काम से बूढ़ी माता ने प्रसन्न होकर उस जोकर को पहले से चेताया कि उधर से वापसी में तुम सबके साथ इस पुल पार मत करना इतने में बारात आगे चाली जाती है.
दोनों मंदिर के बीचो बीच है नाला बुढ़िया माता मंदिर
बारात जब वापस लौटी तो वह बूढ़ी महिला पुलिया के दूसरी ओर बैठी हुई मिली. बारात जब बीच पुल पर पहुंची तो पुलिया टूट जाता है पुरी की पूरी बारात उस नाले में डूब गई. पूरे बारात में केवल वहि जोकर बच पाया था जो बारातिओ के साथ पुलिया पार करने के पहले जोकर उतारकर वही रुक जाता है देखते ही देखते वह बूढ़ी माँ देखते ही देखते गायब हो जाती है उसी घटना के बाद से उस नाले के दोनों तरफ बुढ़िया माता के स्थान से जाना जाता रहा है. यहां नाले के दोनों तरफ पूराना और नया दोनों मंदिर है. यही वह मंदिर है जहा पर एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक पहुंचने के लिए नाले को नाव से पार किया जाता है.
चमत्कारी बुजुर्ग महिला के सम्मान में बताया जाता है कि शहर से काफी दूर दराज गोरखपुर-कुशीनगर नेशनल हाईवे के पास कुस्मनी जंगल में स्थापित देवी का मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया रहस्य से बढ़कर कुछ अलग है और वहीं, एक मान्यता यह भी है कि पहले यहां थारू जाति के लोग निवास किया करते थे. वह लोग उस जंगलो में सात पिंडी तैयार करके माता वनदेवी के रूप में पूजा अर्चना किया करते थे.उन सभी थारुओं को कभी कभी इस पिंडी के आसपास एक सफेद पोस में वृद्ध माता दिखाई दिया करती थी देखते ही देखते कुछ ही पल में वह आंखों से ओझल हो जाया करती थी. मान्यताओं के माने तो सफेद लिवाज में दिखने वाली वह महिला जिनसे नाराज हो जाया करती थी, उसका समझो सर्वनाश होना तय हो जाता था और जिन लोगो पर प्रसन्न हो जाती उसकी सभी समस्या हल हो जाता उनकी सभी मनोकामना पूरी हो जाती थी