जापान में सूरज की सलामी की कहानी | Jaapaan Mein Bhaarat

 

क्यों जापान उगते सूरज की भूमि कहा जाता है?

सूर्योदय होता तो हर देश में है किन्तु सूर्योदय का देश कहते जापान को हैं । वहाँ सूर्य के उदय होने का दृश्य इतना मोहक होता है कि बस देखते ही रहिए । जापान की जो बात सबसे ज्यादा प्रभावित करती है , वहा पर लोग  घुटने झुककर तक झुककर अभिवादन करना । भारत में भी प्रातःकालीन नमस्कार को जापान में अभिवादन करते हैं ‘ ओयासुमिनासाइ ' कहते हैं । वहाँ धन्यवाद का प्रयोग भी किया जाता है । इसे ' अरिगातोओ ' कहते हैं । एक - दूसरे के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए व्यक्ति के नाम के बाद ' सान ' अर्थात् ' जी ' और वस्तु के नाम से पहले ' ओ ' यानि ' बड़ा ' , ' ऊँचा ' लगाया जाता है ।

जैसे शमी सान ' ओ ' हना फूल । घर के मुख्य द्वार पर जूते उतारे जाते हैं । घर के भीतर जूते ले जाना मना है । रेशम , सूत या ऊन के स्लीपर जो दरवाजे पर रखे रहते हैं , पहनकर अंदर जाते हैं ताकि बाहर की धूल - मिट्टी अंदर न जाए | करने से पहले भारत की भाँति भगवान को धन्यवाद -पीना दिया जाता है जिसे ' ईतादाकिमास ' कहते हैं और खाना समाप्त करने के बाद आभार याने ' गोचिसोसमा ' । खाना घर बनाते समय जापान में भी भारत की भाँति भूमि पूजन किया जाता है । 

बांस का मंडप बनाकर पूजा कर चावल के लड्डू बांटे जाते हैं ताकि वह घर शुभ हो और प्रेतात्माओं के प्रकोप से बचा रहे । घर पूरा हो जाने पर एक बार फिर चावल के लड्डू बांटे जाते हैं । छत पर भी डाल दिये जाते हैं ताकि पक्षी भी उन्हें खा सकें । बच्चे का नामकरण जन्म के सातवें दिन किया जाता है । चालीस दिन तक नवजात शिशु के सामने सिगरेट व शराब का सेवन नहीं किया जाता । 

बच्चे के पालन - पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाता है । माँ यदि नौकरी करती है तो पाँच वर्ष के लिए छोड़ देती है ताकि जन्म से ही बच्चे पर पूरा ध्यान दिया जा सके । वह बच्चा जापान का महत्वपूर्ण भावी नागरिक है । इसी तरह सौ दिन के बाद चावल खिलाकर बच्चे का अन्न प्राशन संस्कार किया जाता है । एक वर्ष का होते - होते वह चलने लगता है । उसके सामने किताबें , पेंसिलें , पैसों की थैली , चावल की थैली , तूलिका , सारोबान ( कैल्क्युलेटर ) रख दिया जाता है । बच्चा जिसे भी सबसे पहले उठाता है 

उसी से उसके भावी जीवन का अनुमान लगाया जाता है । यदि वह चावल उठाता है तो वह किसान , तूलिका उठाने से चित्रकार , पुस्तक उठाने से विद्वान , सारोबान उठाने से गणितज्ञ वैज्ञानिक और पैसे उठाने से वह निश्चित रूप से धनी बनेगा । एक वर्ष के बच्चे को ढाई किलो चावल की थैली अपनी पीठ पर उठाकर चलना पड़ता है । उसे यह अहसास कराया जाता है कि बड़ा होने पर उसे अपने कंधों पर ' बोझ ' उठाना है । फर्श पर लगी मेज के इर्द - गिर्द आलथी - पालथी लगाकर भोजन किया जाता है । 

भोजन से पहले गर्म पानी में भीगे तौलिए से हाथ पोंछे जाते हैं । चावल का एक भी दाना जूठा नहीं छोड़ा जाता । सोने के लिए जमीन पर ही गद्दे बिछा दिये जाते हैं । पलंग का जापानी दुनिया में कोई स्थान नहीं है । परीक्षा शुरू होने से पहले विद्या की देवी बेनतेन समा की आराधना की जाती है । शिक्षक , गुरु और प्रोफेसर का बहुत सम्मान किया जाता है । 

नव वर्ष पर बच्चों को अच्छी - खासी रकम जेब खर्च के लिए दी जाती है जैसे हमारे यहाँ लोहड़ी या मकर संक्रान्ति पर । बच्चे भी अपने दादा - दादी के लिए भेंट खरीदकर उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं । इन दिनों सभी डिपार्टमेंट स्टोर बच्चों से भरे रहते हैं । 

जापानी बच्चों की बात करते समय यदि गुड़ियों की चर्चा न की जाए तो बात अधूरी रह जाएगी । गुड़िया भी और गुड़िया का त्यौहार भी । मार्च में होने वाले इस त्यौहार पर हर बच्ची को माता - पिता द्वारा गुड़ियों का एक सेट भेंट किया जाता है जिसे ' ओहिनो समा ' कहते हैं । 

विवाह के बाद बेटी यह सेट अपनी ससुराल ले जाती है और अपनी बेटी को उपहार में देती है । इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी ये गुड़िया सफर करती रहती हैं । इनकी कीमत छह से दस लाख रुपए तक होती है ।  गुड़ियों के त्यौहार के साथ जुड़ा है बर्फ का त्यौहार । बच्चे सर्दी के दिनों में पहले हफ्ते बर्फ का घर बनाते , सजाते , खाना पकाते और अपने दोस्तों और बड़ों का स्वागत करते हैं । 

इन घरों में पाँच से छह लोग आराम से बैठ सकते हैं । यदि पूर्णिमा हो , तो कहना ही क्या । यदि आपको जापान जाने का मौका मिले , तो कभी किसी के घर खाली हाथ मत जाइए । क्योंकि जापानी बच्चों को भेंट देना और भेंट लेना बहुत पसन्द है । फूल या पुस्तक हो , तो सोने में सुहागा । जापानी बच्चे ढेर सारी पुस्तकें पढ़ते , संगीत सुनते और दोस्ती निभाते हैं । वहाँ जाने पर सचमुच ऐसा लगता है जैसा हम भारत की झांकी देख रहे हैं ।


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