तिब्बत में उन दिनों सामुजलोका नाम का प्रांत था । उस प्रांत में एक घना जंगल था । जंगल में कोई सिद्ध साधु रहते थे । उनकी कुटिया के पास एक झरना था । उसी का पानी साधु जी काम में लाया करते थे । एक दिन कोई प्यासी हिरनी झरने के पास आई । साधु जी के बार बार भगाने पर भी उसने झरने का पानी पी लिया । दस महीने बाद उसने एक सुंदर लड़की को जन्म दिया ।
उस लड़की का नाम सुर्किनीमा था । सामुजलोका का राजा बड़ा दयालु था । सभी लोग उसका आदर करते थे । एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने गया । घूमते - घूमते वह रास्ता भूल गया । साथी बिछुड़ चुके थे । वह परेशान बना जंगल में भटकता रहा । अंत में वह भी उसी झरने के पास पहुँचा । उसे बहुत प्यास लगी थी । वह पानी पीने आगे बढ़ा । " यहाँ का पानी मत पीजिए । " - अचानक राजा के कानों में एक मधुर आवाज पड़ी । राजा ने चौककर इधर - उधर देखा । यह आवाज एक लड़की की थी , जो उसकी पीठ के पीछे खड़ी थी । राजा चकित रह गया । उसने वैसी सुंदर लड़की कभी नहीं देखी थी ।
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यह सुर्किनीमा थी । अपने पिता के साथ आश्रम में रहती थी । राजा उसके साथ उसके घर गया । जी भरकर पानी पी , उसने भोजन किया । रात घिरने लगी थी । अतः राजा वहीं लेट गया । लेकिन रात भर नींद नहीं आ सकी । राजा उस लड़की को भुलाए नहीं भूल सका । उसने मन ही मन कहा - ' मैं उस लड़की से शादी जरूर करूँगा । ' अगले दिन राजा ने लड़की के पिताजी को अपनी इच्छा बताई । उनकी अनुमति ले , राजा सुर्किनीमा को लेकर महल में वापस आ गया ।
सुर्किनीमा न सिर्फ सुंदर थी , बल्कि बहुत नेक और दयालु भी थी । वह हमेशा गरीब लोगों की मदद करती थी । समय - समय पर तरह - तरह की चीजें उनमें बांटती रहती थी ।
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इसलिए सारे देश के लोग उसे प्यार करते थे । राजा भी उसे बहुत चाहता था । राजा की अनेक पत्नियाँ थीं । वे सभी सुर्किनीमा से ईर्ष्या करती थीं । रानियों में एक बहुत ही होशियार और चालाक रानी थी । उसका नाम हाचान था । उसने सुर्किनीमा को रनिवास से निकालने के लिए एक योजना बनाई ।
एक दिन सुर्किनीमा के महल के सामने एक भिखारिन आई , वह जोर - जोर से रो रही थी । रोना सुनकर बहुत - से लोगों ने उसे आ घेरा । सुर्किनीमा भी बाहर आई । उसने पूछा- " क्यों रो रही हो भिखारिन ने बताया की महारानी ! हमारा बच्चा बहुत बीमार है । सिर्फ आप ही मेरी मदद कर सकती हैं । " यह कहते - कहते वह फिर रोने लगी ।
सुर्किनीमा ने पूछा " उसको क्या हुआ ? भिखारिन बोली- " पता नहीं , मगर एक साधु ने कहा है कि सिर्फ आपके तावीज से ही मेरा बच्चा ठीक हो सकता है । " सुनकर सुर्किनीमा चुप हो गई । उसे यह तावीज एक देवी ने दिया था । कहा था कि जब तक वह तावीज उसके पास रहेगा , तब तक उसे कोई हानि नहीं पहुँचेगी ।
सुकिनीमा ने थोड़ी देर तक सोचा । फिर अपने गले से तावीज उतारकर भिखारिन को दे दिया । कुछ दिन बाद सुर्किनीमा बीमार पड़ गई । बीमारी दिन - प्रतिदिन बढ़ती गई । राजा परेशान हो उठा । उसने सुर्किनीमा का इलाज कराने के लिए सारे देश के वैद्यों को बुलाया ।
लेकिन कोई वैद्य इलाज करना तो दूर , यह भी पता नहीं लगा सका कि उसे क्या बीमारी है । उन दिनों सुर्किनीमा माँ बनने वाली थी । इसलिए उसकी बीमारी राजा को और भी परेशान करने वाली बन गई थी । मगर कुछ न हो सका । सुर्किनीमा ने समय पर एक बच्चे को जन्म दिया , लेकिन उसे बच्चा नहीं कहा जा सकता था । उसे देखकर राजा बेहोश हो गया ।
कुछ घंटे बाद राजा होश में आया , तो हाचान उसके सामने खड़ी थी । हाचान ने राजा से कहा- " सब लोग कहते हैं कि सुकिनीमा राक्षसी है । उसे तुरन्त महल से निकाल देना चाहिए । " राजा ने हाचान की बात मान ली । आज्ञा दी कि सुर्किनीमा को महल से निकाल दिया जाए ।
सुकिनीमा बहुत कमजोर थी । लेकिन राजा का हुक्म , सुकिनीमा को सिपाही महल से दूर छोड़ आए । बेचारी सुर्किनीमा कुछ दूर चली , फिर बेहोश होकर गिर पड़ी । जब होश में आई , तब देखा कि वह एक कुटिया में थी ।
उसे एक मठवासी ने बचाया था । कई साल बाद सुर्किनीमा भिक्षुणी बन गई । जगह - जगह जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करने लगी । एक दिन सामुजलोका में पहुँची । मैदान में बैठकर धर्म का प्रचार करने लगी । श्रोताओं में वह भिखारिन भी थी , जिसने कुछ वर्ष पहले सुकिनीमा से तावीज माँगा था ।
अब वह बूढ़ी हो गई थी । सुकिनीमा की बातें सुनकर उसे अपनी गलती का अहसास हुआ । उसने सुकिनीमा को सब सच - सच बता दिया कि उसने सब कुछ रानी हाचान के कहने पर किया था । फिर उसने सुकिनीमा को उसका तावीज भी वापस कर दिया ।
एक दिन राजा सुर्किनीमा से मिलने आया । सुकिनीमा ने राजा को एक दुखी लड़की की कहानी सुनाई । कहानी सुनते - सुनते राजा की आँखों में आँसू आ गये । कहानी खत्म हुई , तो राजा ने पूछा- " कृपया बताइए , वह लड़की अब कहाँ है ? " आप अपने आस - पास ध्यान से देखिए । " - सुकिनीमा ने जवाब दिया । राजा सुर्किनीमा को देखता रहा । देखते - देखते ही वह चीखने लगा- “ सुर्किनीमा , सु .... क्या आप .... " - " हाँ , मैं । " राजा ने सुर्किनीमा को पहचान लिया । महल में जाते ही
राजा ने आज्ञा दी कि हाचान को महल से निकाल दिया जाए । सुर्किनीमा को पता चला , तो उसने अनुरोध किया " कृपया ऐसा न करें । वह भी मेरी बहन है । हमें दूसरों की गलती माफ कर देनी चाहिए । " जब प्रजा ने यह सुना , तो वह सुर्किनीमा की जय जयकार करने लगी ।