एक राजा था , शिकार का शौकीन । एक बार शिकार खेलने गया हुआ था । जंगल में जानवर का पीछा करते - करते अपने साथियों से बिछुड़ गया । रात हो गई । भूखा - प्यासा राजा किसी तरह से एक किसान के दरवाजे पर पहुँचा । किसान राजा को नहीं जानते थे ?
लेकिन किसान ने मेहमान समझकर उसे बैठाया , पानी पिलाया। कुछ देर बाद भोजन बनाकर खिलाया । उसके सोने के लिए बिस्तर लगाया । यह सब देख राजा किसान पर बहुत खुश हुए । अगले सुबह जब राजा को जाने को हुआ , तो उन्होंने एक पत्ता निकला। किसान के नाम साठ गाँव लिख दिए ।
यह बात जब किसान को बताया तो वह फूला न समाया । राजा को दरबार चला जाने के बाद । किसान की एक पालतू बकरी । थी वह बकरी वहाँ आई और चट से उस पत्ते को चबा-चबा कर खा गयी । किसान जब तक उसे पकड़ता तबतक , वह पत्ता बिलकुल वह पूरा पत्ता बकरी के पेट में जा चुका था ।
अब किसान करे भी तो क्या करे ? वह किसी तरह रोता -बिलकता-कलपता राजमहल में जा पहुँचा । दरबारी उस गंवार को देखकर भड़क गए उसको अंदर ही नही जाने दें रहे थे । बहुत हाथ - पाँव जोड़ने बाद राजा तक पहुँच पाया । राजा उसको देखते ही पहचान गए ।
राजा कुछ पूछते उसके पहले ही किसान चिल्लाकर बोला- " माई - बाप , मैं बरबाद हो गया । साठ गाँव बकरी ने चबा लिये । " आसपास के लोग हैरान होकर गरीब किसान को देख रहे थे कि क्या बक रहा है ?
लेकिन उस बात को राजा समझ गया । उसने तांबे के टुकड़े पर खुदवाकर उसे दुबारा आदेश - पत्र दे दिया । की किसान को साठ गाँवों का पक्का मालिक बना दिया । उसके बाद से किसी का बड़ा नुकसान होने पर लोग उस किसान की कहावत को दोहराते हैं - ' क्या साठ गाँव बकरी ने चर लिए । '