एक गाँव में एक किसान रहता था । नाम था उसका बोलू । स्वभाव से भी अत्यन्त भोला - भाला था । उसके पड़ोस में राजगायक तेजसिंह रहता था । वह था तो भोलू का हमउम्र , लेकिन राजगायक होने के घमंड में भोलू से दोस्ती नहीं रखता था । वह नित्यप्रति सुबह - सुबह गाने का अभ्यास किया करता था ।
भोलू के कानों में जब उसके सुरीले गानों में बोल पड़ते , तो उसका दिल करता कि वह भी गाए । लेकिन उसे गाना आता नहीं था । एक दिन उसने सोचा ' क्यों न मैं तेजसिंह से गाना सीख लूँ ? जब भी मैं उदास होऊँगा , गाना गाकर मन बहला लिया करूँगा । '
यह सोचकर वह तेजसिंह के पास गया । बोला- " भाई , तुम बहुत अच्छा गाते हो । मैं भी गाना सीखना चाहता हूँ । क्या तुम मुझे गाना सिखाओगे ? " तेजसिंह उसका मजाक उड़ाते हुए बोला- “ अच्छा , तो तुम एक मामूली किसान होकर गाना सीखना चाहते हो ? "
भोलू उसका व्यंग्य समझ नहीं पाया । बोला- “ हाँ भाई , गाना सीखने की मेरी तमन्ना है । कृपया मुझे सिखा दो । " " तो ऐसा करो भोलू , वह जो तुम ऊपर पहाड़ी पर एक गुफा देख रहे हो , वहीं पर मेरे गुरुजी रहते हैं । उनके पास पाँच वर्ष रहकर मैंने यह विद्या पाई । तुम भी वहीं चले जाओ । "
तेजसिंह ने कहा । भोलू उसकी बात सच मानकर उसी समय गुफा में जाने के लिए पहाड़ी के पास पहुँचा । ऊपर जाने का कोई रास्ता नहीं था । भोलू झाड़ियों के बीच से रास्ता बनाता हुआ , सीधी चढ़ाई चढ़ता हुआ बड़ी मुश्किल से ऊपर पहुँचा । सामने गुफा थी , वह गुफा में चला गया ।
चारों तरफ अंधकार फैला हुआ था । कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । भोलू आवाज लगाने लगा- " गुरु जी ... गुरु जी । " भोलू ने पुकारने लगा परन्तु बार - बार आवाज बाद भी गुफा के अंदर से कोई उत्तर नहीं नहीं मिलने पर। भोलू बहुत परेशान हो चुका था । उसने दुबारा आवाज लगाना सुरु किया " कोई है जो मुझे गाना सिखाएगा ? उसी वक्त गुफा के अंदर एक अलग सा प्रकाश फैल जाता है। भोलू ने उसी प्रकाश में देखा कि सफेद पोसाग पहने हुए , हाथ में वीणा लिए हुए एक दिव्य कन्या उसके सामने प्रकट हो गयी है ।
बोलू से कुछ बोलते नहीं बना । तब वह स्त्री पूछने लगी " कौन हो तुम ? यहाँ कैसे आए ? " “ जी ... मेरा नाम भोलू है । मैं नीचे गाँव में रहता हूँ । मैं गाना सीखना चाहता हूँ , इसीलिए यहाँ आया हूँ । " - भोलू हकलाते हुए बोला । “ लेकिन गाना सीखने के लिए तुम्हें यहाँ किसने भेजा है ? "
वह स्त्री पूछने लगी । " मेरा पड़ोसी मित्र तेजसिंह राजगायक है । उकने मुझे बताया कि इस गुफा में उसके गुरु रहते हैं , जिनसे उसने संगीत विद्या सीखी थी । उसी ने मुझे यहाँ भेजा है । " - भोलू ने डरते - डरते उत्तर दिया ।
वह स्त्री बोली- “ अच्छा , तुम्हारे मित्र ने तुम्हें गाना सीखने के लिए यहाँ भेजा है ! " “ जी हाँ , लेकिन आप कौन हैं ? गुरुजी कहाँ हैं ? ’ ’ - हिम्मत जुटाकर भोलू ने पूछा । " तुम मुझे ही अपना गुरु समझ लो । मैं तुम्हें गाना सिखाऊँगी । " वह स्त्री बोली । " तो आप संगीत की देवी हैं ! मेरा प्रणाम स्वीकार करें । "
ऐसा कहकर भोलू उस स्त्री के चरणों में झुक गया । देवी ने उसे आशीर्वाद दिया । फिर भोलू को लेकर अंदर एक विशाल कक्ष में जा पहुँची । वहाँ बहुत से व्यक्ति बैठे हुए थे । कोई बीणा बजा रहा था , तो कोई इकतारा । कोई गाने का अभ्यास कर रहा था ।
देवी बोली- “ भालू , तुम यहाँ बैठ जाओ और इन सबको गाते - बजाते देखो । " - यह कहकर देवी दूसरे कक्ष में चली गई । भोलू अब प्रतिदिन वहाँ आने लगा । गुफा में पहुँचते ही देवी उपस्थित हो जातीं और भोलू को संगीत कक्ष में ले जातीं । इस तरह एक महीना बीत गया । अगले दिन जब भोलू गुफा में आया , तो देवी भोलू के सिर पर हाथ रखकर बोलीं- " भोलू , तुम्हारी शिक्षा पूरी हुई ।
अब तुम बहुत अच्छे गायक बन गए हो । अब तुम्हें यहाँ आने की कोई जरूरत नहीं है । " भोलू बोला- " लेकिन देवी , मेरे मित्र को तो पाँच वर्ष गाना सीखने में लगे थे । फिर मुझे इतनी जल्दी कैसे आ जायेगा ? " " भोलू , जो मन के अच्छे होते हैं , वे केवल परिश्रम करते हैं , फल की तरफ ध्यान नहीं देते । इसलिए उन्हें हर विद्या का ज्ञान शीघ्र प्राप्त होता है ।
मैंने एक माह में तुम्हें हर तरह से परख लिया है । तुम एक अच्छे गायक बन चुके हो । " यह कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई । गुफा में अंधकार छा गया । भोलू गुफा से बाहर आ गया । अपनी आवाज को परखने के लिए गुनगुनाने लगा । उसे लगा कि वह अच्छा गा रहा है । उसका हौसला बढ़ा । वह खुलकर गाने लगा । गाना गाते - गाते वह अपने घर जा पहुँचा ।
राजगायक तेजसिंह उस समय घर पर ही था । उसे भालू के गाने की आवाज सुनाई पड़ी । सोचने लगा- ' ' इतना सुरीला स्वर इस गाँव में भला किसका हो सकता है ? ' वह घर के बाहर निकला । क्या देखता है कि यह तो भोलू गा रहा है । वह हैरान रह गया ।
भोलू की नजर में भी तेजसिंह पर पड़ी । वह दौड़कर आया और तेजसिंह के पैरों पर गिर पड़ा । तेजसिंह हड़बड़ा गया । पूछने लगा- “ भोलू , क्या हुआ ? " " मित्र , मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ । तुमने मुझे ऐसी जगह बताई कि जहाँ मैं एक महीने में ही गाना सीख गया । ” भोलू विनम्रता से बोला । तेजसिंह कुछ समझा नहीं । हम तो भोलू को बुद्धू बनाकर उस बात को भूल चुका था । हैरानी से पूछने लगा- “ मैंने तुम्हें कौन - सी जगह बताई थी ? "
अरे ! भूल गये तुम ? सामने वाली पहाड़ी पर गुफा की बात तुम्हीं ने तो बताई थी । " - भोलू उसे याद दिलाते हुए बोला । तेजसिंह को अब सारी बात याद आ गई । बात बनाते हुए बोला- " अच्छा- अच्छा , तो तुमने गाना सीख ही लिया हमारे गुरुजी से । "
भोलू बोला- " मित्र , वहाँ गुरुजी तो नहीं थे , लेकिन एक देवी थीं । उन्होंने ही मुझे गाना सिखाया था । " तेजसिंह मन ही मन जल - भुन गया । उसने तो वहाँ की गुफा की बात की थी , लेकिन यह तो वहीं से गाना सीख आया और वह भी इतना अच्छा । वह कुछ बोला नहीं और अपने घर के अंदर चला गया ।
अब भोलू प्रतिदिन सुबह अभ्यास करने लगा । तेजसिंह को उसकी मधुर आवाज के आगे अपनी आवाज फीकी लगने लगी । उसे लगा कि यदि भोलू कहीं राजा के पास पहुँच गया , तो राजा उसे ही राजगायक बना लेंगे । उसने सोचा- " क्यों न मैं भी अगली सुबह में जाकर देवी का आशीर्वाद ले आऊँ ? "
यह सोचकर वह पहाड़ी की ओर चल दिया । ऊपर गुफा में पहुंचकर तेजसिंह ने आवाज लगाई- " संगीत की देवी , मैं गाना सीखना चाहता हूँ । देवी प्रकट हो गईं । पूछने लगी- " कौन हो तुम ? ” “ मेरा नाम तेजसिंह है । मेरे पड़ोसी मित्र भोलू ने मुझे यहाँ भेजा है । वैसे तो मैं राजगायक हूँ
लेकिन मैं भी अपने गाने में भोलू जैसी मधुरता लाना चाहता हूँ । आप मेरी आवाज को भी वैसी ही मीठी बना दीजिए । " - तेजसिंह जल्दी से बोला । देवी समझ गईं कि तेजसिंह वही है जिसने भोलू को धोखा दिया था । वह बोलीं- “ तेजसिंह , तुम्हारी आवाज में तो भोलू जैसी मिठास आ ही नहीं सकती । तुम्हारे मन में तो छल - कपट भरा हुआ है । मन साफ हो , तभी आवाज भी मधुर होती है ।
तुम्हें तो मैं भोलू को धोखा देने के अपराध में दंड देती हूँ कि जो संगीत तुमने इतने वर्ष लगाकर मेहनत से खीखा , वह भी तुम भूल जाओ । " - यह कहकर देवी अदृश्य हो गई । तेजसिंह घबराकर गुफा से बाहर आ गया । उसने गला खंखारकर गाना चाहा । लेकिन यह क्या ! उससे गाया ही नहीं जा रहा था । एकदम बेसुरी आवाज निकल रही थी ।
वह रोता हुआ भोलू के पास पहुँचा । उसे सारी बात बताई । वह बोला मैं अपने करनी पर बहुत शर्मिंदगी हो रही है । भाई कृपया करके मुझे माफी दे दो। ' “ अरे दोस्ती हम कैसे माफ कर सकते है ! माफी तो हम चलकर देवी से माँगते हैं । वह बहुत दयालु हैं , अवश्य माफ कर देंगी ।
चलो , उठो , वहीं चलते हैं । " - भोलू बोला । वे दोनों फिर गुफा में पहुँच गए । तभी देवी उपस्थित हो गई । पूछने लगीं- " कहो भोलू , कैसे आना हुआ ? " देवी को प्रणाम कर बोलू बोला- “ देवी , मेरे मित्र को माफ कर दो । उसे उसकी मधुर आवाज लौटा दो । "
" लेकिन भोलू , इसने तुम्हें बुद्धू बनाया था । " - देवी बोली . ' अब यह अपने किए पर पछता रहा है । " - देवी बोली । ' अच्छा , तुम कहते हो तो मैं इसकी आवाज वापस कर देती हूँ । " यह कहते हुए देवी ने तेजसिंह के सिर पर हाथ रखा । बोलीं " तेजसिंह , विद्या बाँटने से बढ़ती है । छिपाने से और धोखा देने से घटती है । यह बात हमेशा याद रखना । "
“ जी कहते हुए तेजसिंह गायक ने उन देवी के कमल चरणों में गिर गया उसके बाद दोनों मित्र उस गुफा से बाहर आ गए । तेजसिंह गाने का प्रयास किया । अब उसकी आवाज अत्यंत सुरीली हो चुकी थी । यह सब देखकर वह बहुत खुश हुआ । भोलू से बोला- “ भोलू , तुम्हारे कारण मेरी आवाज मुझे वापस मिल गई । मैं तुम्हारा अहसानमंद हूँ । मैं तुम्हें कल ही राजदरबार में ले चलूँगा ।
अब तुम राजगायक बनकर मान - सम्मान पाना । मैं कहीं और चला जाऊँगा । " भोलू बोला- “ मित्र , मैंने राजगायक बनने के लिए गाना नहीं सीखा । मैं तो केवल अपने मन की खुशी के लिए गाना सीखना चाहता था । मैं तो एक किसान हूँ । खेती - बाड़ी में ही मेरा मन रमता है । राजगायक तो तुम ही हो और तुम्हीं रहोगे । "