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ईमानदारी स्लोगन |
रामपुर में एक लड़के का जनमदिन था । परिवार वालों ने बच्चे का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया वे- जवाहरात के व्यापारी थे सोमनाथ । उनके पोते धूमधाम से मनाया । सोमनाथ ने पोते को हीरे - मोती जड़े जूते उपहार में दिये । शाम के समय बच्चा अपने पिता के साथ सैर को निकला ।
उसके पाँव से एक जूता निकलकर कहीं गिर गया । किसी को कुछ पता न चला । जूता एक नवयुवक को मिला । उसका नाम अजीत था । वह नौकरी की तलाश में जा रहा था । उसने जूता उठाकर देखा तो चकित रह गया । सोचा - ' जूता किसी धनवान का है । कीमती भी बहुत है
इसलिए पहले इसे इसके मालिक तक पहुँचाना होगा । ' इसी उधेड़बुन में वह सड़क के किनारे बड़ी देर तक खड़ा रहा । तभी वहाँ से उसका मित्र भूषण गुजरा । उसने अजीत से पूछने लगा " भाई साहब , इस एकन्त जगह पर तुम खड़े होकर किस सोच डूबे हुए हो ? तुम्हरी चिंता का विषय क्या है " तब जाकर अजीत बोल पड़ा की- " मुझे यहाँ पर एक कीमती जूता पड़ा मिला है , जिसमें हीरे - मोती जड़े हैं । मैं चाहता हूँ कि जिसका यह जूता है , उसे वापस दे सकूँ । "
भूषण ने जूता देखा , तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं । उसके मन में लालच आ गया । बोला- " अजीत भाई , जिसका यह जूता है , उसे मैं जानता हूँ । मैं उसके घर के पास ही जा रहा हूँ । तुम जूता मुझे दे दो । मैं इसे पहुँचा दूँगा । तुम क्यों परेशान हो , निश्चित होकर अपने काम पर जाओ । " अजीत ने उस पर विश्वास कर जूता उसे दे दिया ।
जब भूषण जूता लेकर कुछ दूर चला गया , तो अजीत के मन में शंका हुआ ' कहीं भूषण की नीयत बिगड़ गई तो जूता उसके मालिक को नहीं मिलेगा । इससे तो मैं भी उसके साथ चला जाता । '
यह सोचकर वह शीघ्र उस ओर भागा , जिधर भूषण गया था । दूर उसे भूषण जाता दिखाई दिया । उसने आवाज लगाई- " भूषण ! भूषण ! रुक जाओ , मैं भी तुम्हरे साथ चलूँगा " पर भूषण नहीं रुका । उसने अपनी चाल और तेज कर दी ।
वह झाड़ - छंखाड़ के बीच जाकर गायब हो गया । काफी खोजने के बाद उसे भूषण दिखाई दिया । उसे देखते ही अजीत बोला- " तुम कहाँ चले गये थे ? लाओ , हम उसे उसके मालिक तक पहुँचाऊँगा । " जूता मुझे दे दो । मैं " कौन - सा जूता ! तुमने मुझे कब दिया ! " -
भूषण कहने लगा । " कैसी बात कर रहे हो भाई शाहब ? अभी कुछ ही देर पहले तो हुए है इसी बात को लेकर ... दोनों के बिच झगड़ा होने लगा । भीड़ इकट्ठी हो गई । मामला दरोगा तक पहुँचा । उसने भूषण की तलाशी ली , पर जूता न मिला । दरोगा को भी भूषण पर कुछ शक हुआ । वह दोनों को राजा के पास ले गया और पूरी बात बताई । राजा ने दोनों से सच बोलने को कहा । दोनों अपनी - अपनी बात पर अड़े रहे । अन्त में राजा ने भूषण को छोड़ दिया । वह वहाँ से चला गया ।
यह देख अजीत को बड़ी निराशा हुई । तभी राजा ने कहा- " तुम कुछ देर यहीं ठहरो । " भूषण इस बात से बेखबर था । वह सीधा वहीं पहुँचा , जहाँ झाड़ियों में छुपाया था राजा ने अपने कुछ गुप्तचरों को भूषण के पीछे भेज दिया ।
जब उसे विश्वास हो गया कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा है , तो उसने झाड़ी से जूता ' निकाल लिया , फिर घर की ओर चल दिया । तभी राजा के गुप्तचरों ने उसे पकड़ लिया । उसे दरबार में लाया गया । अजीत तो पहले से ही दरबार में मौजूद था ।
राजा ने भूषण को कारागार में डलवा दिया । जूता अजीत को वापस कर दिया गया । तब अजीत ने कहा- " महाराज , मेरे लिए इस बात का पता लगाना कठिन होगा कि इस जूते का असली मालिक कौन है ? इसलिए इसे आप राजकोष में जमा कर लीजिए । जब इसका मालिक मिल जाए तो उसे लौटा दें । "
राजा अजीत की ईमानदारी पर प्रसन्न हुआ । और बोल पड़े की - " तुम्हारी बातो में हमको 100% सच्चाई दिख रही है । आज हम इसका घोषणा कर देते है और यह (Shoe) जिसका भी है , वह ऐसी ही दूसरा जूता ले आए । " राजा की घोषणा । जब सोमनाथ को हुआ, तो वह भागा - भागा राजा के पास आया । उसने दूसरे पैर का जूता दिखा दिया । राजा ने दोनों जूतों को मिलाया तो दोनों एक जैसे ही थे ।
राजा ने अजीत को भी बुलवा लिया । व्यापारी ने अजीत की ईमानदारी पर खुश होकर इनाम देना चाहा , लेकिन उसने इंकार कर दिया । कहा- " यह तो मेरा कर्तव्य था । मैं तो काम की तलाश में जा रहा था । " व्यापारी ने अपने साथ काम करने के लिए कहा । तभी राजा ने कहा- “ अजीत की नौकरी तो लग चुकी है । "
इस बार सब चौंक उठे । तब राजा ने कहा- " अजीत जैसे ईमानदार व्यक्ति की राज्य को ज्यादा आवश्यकता है । " फिर राजा ने मंत्री से कहा- " अजीत के योग्य नौकरी की बंदोबस्त कर दी जाए । " राजा के इस अनोखे निर्णय पर सब लोग बहुत खुश हो गए । उसके बाद अजीत के खुशी का ठिकाना ना रहा वह खुश इतना हुआ की छिपाए नहीं छिप रही थी ।