जादू नगरी से आया जादूगर- रामगढ़ शहर के अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे जब पिकनिक मनाने के लिए शहर से दूर राधा झील के किनारे पर बैठे झील में से उठती लहरों का आनन्द ले रहे थे
तो साथ - साथ इस गाने का भी तो आनन्द आ रहा था ' जादू नगरी से आया कोई जादूगर । ' सब बच्चे मिलकर इस गाने के साथ - साथ नृत्य कर रहे थे । खुशी की यह महफिल और बच्चों का धूम - धड़ाका ...। ऐसा लग रहा था कि जैसे आज जंगल में मंगल हो गया हो ।
बच्चो को स्कूल से बाहर . आकर जब खेलने - कूदने और मौज - मस्ती की आज़ादी मिलती है तो वे एक दम से अपने आप को अपनी दुनियाँ का राजा समझने लगते हैं । वे यह सब भूल जाते हैं कि उनके पीछे भी कोई और दुनियाँ बसती है ।
जादू नगरी से आया है कोई जादूगर प्रीती और राजू दोनों दोस्त थे । इन दोनों का अधिक शोर - शराबा पसंद नहीं था , इसलिए उन दोनों ने यह सोचा कि हम इस जंगल में घूमने चलते हैं । हमारे आने तक यह शोर - शराबा भी समाप्त हो जाएगा । फिर उन्होंने यह भी सुन रखा था कि जंगल में तरह-तरह के जानवर भी रहते हैं ।
उन दोनों को जानवर देखने का बड़ा शौक था । विशेष रूप से बंदर तो उन्हें नाचता हुआ बहुत अच्छा लगता था । बंदर का नाच का दिखाने वाला भैया जब भी उनके स्कूल आता था तो वे दोनों सबसे आगे बैठकर उसका खेल देखते थे ।
कितना मज़ा आता था जब बंदर अपनी रूठी हुई पत्नी ( बंदरिया ) को मनाने के लिए ससुराल जाता था । वह नाचता था । अपनी भाषा में गाना भी गाता था । ऐसे खेल में उनका मन बहुत लगता था । इन जंगलों में ही तो बंदर रहते हैं । बंदरों के साथ - साथ भालू , लोमड़ियाँ , गीदड़ , खरगोशं , हिरण जैसे अनेक जानवर भी तो रहते हैं ।
जंगल का राजा शेर भी तो रहता है । “ शेर ... शेर ...। " शेर का ख्याल आते ही प्रीती का दिल डूबने लगा था । डर के मारे वह काँपने लगी । उसने घबराकर राजू से कहा- " वापस चलो राजू । " " क्यों ? " ' मुझे तो डर लग रहा है । " इसमें डरने की क्या बात है । देखो मैं तुम्हारे साथ हूँ ।
तुम क्या शेर से भी लड़ लोगे ? " हाँ ... हाँ ... मैं शेर तो क्या उसके बाप से भी लड़ सकता हूँ । मैं किसी से नहीं डरता । ' क्या तुम भूत से भी नहीं डरते ? " " नहीं " ' क्या तुमने कभी भूत देखा है ? " " हाँ ... अनेको बार । " फिर भी तुम कैसे बच पाए ? " बचा न होता तो तुम्हारे सामने कैसे खड़ा होता राजू ने उसे कुछ इस अंदाज़ में जवाब दिया था कि वे दोनों ही ज़ोर से हँस पड़े ।
राजू की बातों से प्रीती के मन का डर काफी हद तक कम हो गया था । अब वह बड़े मज़े से चलते हुए जंगली जानवरों को देख रहे थे कि अचानक ! जोरदार धमाका हुआ । जैसे कोई बम फट गया हो । उस धमाके के साथ ही चारों ओर धुँआ ही धुँआ भर गया था ।
काला धुँआ ...। " इसी कारण चारों ओर कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था । डर के मारे सारा वातावरण बोझल हो रहा था । जंगली जानवर भी डर के मारे चीखें मारते हुए इधर - उधर भागने लगे ।
" राजू " " प्रीती ने राजू का हाथ पकड़ा । डर के मारे उसकी आवाज़ काँप रही थी । " " प्रीती ! डरो मत , राजू केवल इतना ही कह सका था कि उससे आगे कहने का साहस नहीं कर सका था । " ‘ चलो राजू भाग चलो । ” “ भागने का रास्ता ही कहाँ है । चारों ओर तो अंधेरा ही अंधेरा है । " " फिर क्या होगा । " होगा वही जो प्रभु को मंजूर होगा ।
अब तो जो भी होगा उसे सहन करना पड़ेगा । अभी राजू अपनी बात पूरी कर ही रहा था कि उस अंधेरे की कोख से एक बहुत लम्बी छाया निकलकर चमकने लगी । ' काला देव ... काला देव ...। " “ तुम कौन हो ? ” ' वह ज़ोर से गुर्राया । " ‘ हम राजू और प्रीती हैं । " " यहाँ क्या करने आए हो ? " " जंगली जानवरों को देखने का हमें बहुत शौक है । '
" हा ... हा ... हा ...। " वह काली छाया ज़ोर - ज़ोर हँसने लगी । हँसते समय उसके लम्बे सफेद दाँत ही नज़र आ रहे थे । उसकी हँसी भी बड़ी भंयकर थी । उसे देखकर बड़े से बड़े दिल वाला भी डर सकता था , किन्तु प्रीती और राजू के सामने तो बचाव का कोई रास्ता ही नहीं था ।
एक ओर छोटे बच्चे और दूसरी ओर यह काला देव इनमें भला क्या मुकाबला था । " एक ओर हाथी दूसरी ओर चीटीं । " " कौन करेगा इनकी तुलना । " काला देव तो उन्हे मार ही ले डालेगा । वे सभी को इस बात की जानकारी हो चुकी थी कि दानव लोग मानव माँस खाने बड़े ही उतावले होते हैं ।
जब इन्हें मानव का माँस खाने को मिलता है तो बड़े ही शौक से खाते हैं । उस दिन तो इनके घर में बहुत बड़ा जश्न मनाया जाता है । जिसमें सब बिरादरी के लोगों को दावत दी जाती है । ‘ मौत ... मौत ...। " इन दोनों की आँखों के आगे मौत का नृत्य हो रहा था । हर मजबूर और बेबस इन्सान कहीं कोई आसरा नहीं पाता तो भगवान को याद करता है । यही सोचा शरण प्रभु दोनों आँखे बंद करके प्रभु को याद करता है ।
उसकी शरण में उसे शांति मिलती है । वही हर दीन - दुःखी का सहारा बनता है । बच्चों ! वह चीखकर बोला । ' जी हाँ ! वे दोनों काँपते स्वर में बोले जैसे उनकी आवाज़ बंद हो रही हो । “ तुम मेरे घर चलोगे ? " क्यों ! हमारा अपना घर भी तो है । ऐसा कुछ नहीं है । अब तुम मेरे राज्य में प्रवेश कर चुके हो और इस देश में जो भी आता है उसे हमारे ही परम्परा का पालन करना पड़ता है ।
नहीं ... नहीं ... आप हमें पकड़ेंगे नहीं और न ही बंद करना । हमसे भूल हो गई है महाराज ! आज के बाद हम आपके राज्य में नहीं आएँगे । काले देव ने किसी को माफ करना नहीं सीखा और फिर मुझे मानव माँस मिलता ही कहाँ है ? मैं तो जंगली जानवरों का माँस खाकर ऊब गया हूँ ।
आज तो कई वर्षों के पश्चात् मानव माँस का जश्न होगा । हमारी रूठी हुई गोरी परी आज मान जाएगी । हमने उसे वचन दिया था जिस दिन भी हम काली देवी को दो बच्चों की नर बली चढ़ाएँगे बस उसी दिन शादी करेंगे । अब तो हमारी शादी हो जाएगी । गोरी परी हमारी पत्नी बनेगी ।
राजू और प्रीती समझ गए थे कि अब तो उनका अंतिम समय आ चुका है । इस खूनी काले देव के चुंगल से तो अब भगवान ही यदि चाहे तो बचा सकते हैं वर्ना मौत तो सामने खड़ी ही है । वह माँ काली की नरबली चढ़ाकर खुश करना चाहता है । सफेद परी ... कौन है ? उस परी से अब तक इसने शादी क्यों नहीं की ? इस देव के सामने परी बेचारी क्या कर सकती है ।
परियाँ बेचारी तो शरीफ होती हैं । उनकी ओर से कभी किसी से लड़ाई - झगड़ा भी नहीं होता और यह देव । इनको तो सिवाए खून - खराबे के और कुछ सूझता ही नहीं । हत्या करना तो इनके लिए खेल है फिर अब मौत का घर उनसे दूर नहीं है । जीवन का अंत होने ही वाला है ।
वे दोनों अपनी इस भूल पर पश्चाताप कर रहे थे और मन ही मन में सोच रहे थे कि न वे लोग अपने साथियों को छोड़कर अकेले आते और न ही वे इस काले देव के चक्कर में फँसते । " चलो " कहाँ " . " मेरे साथ " कुछ क्षणों के अंदर ही बड़े ज़ोर - जोर की आवाजें वहाँ से आने लगी ।
उन्हें ऐसा लगा जैसे धरती काँप रही हो । कोई भूकम्प आ रहा हो । थोड़ी देर के पश्चात उन्हें ऐसा लगा कि वे उड़ रहे हों । धरती से बहुत ऊँचे वे उठकर हवा में उड़ते जा रहे थे ।