परशुराम ने कार्तिवीर्य के हजार भुजाएँ काट डालीं | story of a king

परशुराम और कार्तिवीर्य
सहस्त्रबाहु का असली नाम कार्तवीर्य था। वह बहुत लड़ाकू तथा शूरवीर था। हज़ार भुजाओ के नाते उसे अर्जुन कार्तवीर्य सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना जाता था।


अनूप देश में कीर्तिवीर्य नामक एक अत्यंत शक्तिशाली एवं पराक्रमी राजा राज्य करता था । उस समय कार्तिवीर्य के समान कोई बहादुर योद्धा नहीं था । पृथ्वी के सभी राजा उससे डरते थे । कार्तिवीर्य के एक हजार भुजाएँ थीं । उसने दत्तात्रेय की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया था और उनसे सोने का एक विलक्षण रथ प्राप्त किया था ।

पवन के समान गति वाले इस रथ पर सवार योद्धा को कोई पराजित नहीं कर सकता था । महाशक्तिशाली कार्तिवीर्य इस रथ को पाकर अपने को अजेय समझने लगा । शक्ति के मद में उसने अपनी ही प्रजा को सताना आरंभ कर दिया । धीरे - धीरे उसके अत्याचार बढ़ने लगे । 

देवता , यक्ष , ऋषि , जो भी उसके सम्मुख आता , उसे वह अपने रथ से कुचल डालता । इस तरह सारी पृथ्वी और देवलोक के वासी त्राहि - त्राहि करने लगे । शक्ति के घमंड में चूर कार्तिवीर्य एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुँचा । जमदग्नि ऋषि और उनकी पत्नी रेणुका ने उसका शानदार आतिथ्य सत्कार किया तथा विश्राम करने की व्यवस्था कर दी । 

कार्तिवीर्य अनेक युद्ध जीत कर लौट रहा था । उसने ऋषि के आतिथ्य की उपेक्षा करते हुए दुष्टतापूर्वक आश्रम के अनेक वृक्ष तोड़ डाले । इतना ही नहीं कार्तिवीर्य ने आश्रम की होमधेनु गाय के बछड़े को खोला और अपने साथ ले गया । जमदग्नि ऋषि ने उसे बहुत रोका पर वह नहीं माना । 

परशुराम जी अपने पिता के लिए हवन सामग्री लेने वन गये हुए थे । जब वह लौटकर आये तो उन्होंने सम्पूर्ण आश्रम को उजड़ा हुआ पाया । जगह - जगह टूटे हुए पेड़ थे । उनकी प्रिय होमधेनु भी बछड़े के वियोग में रो रही थी । वह हतप्रभ से माता रेणुका के पास पहुँचे । माता रेणुका रो रही थीं तथा जमदग्नि ऋषि उन्हें धीरज बँधा रहे थे ।

परशुराम को देखकर जमदग्नि ऋषि ने सम्पूर्ण घटना उन्हें कह सुनाई । परशुराम क्रोध से भर उठे । उन्होंने अपना फरसा उठा लिया और अनूप देश की ओर चल पड़े । शीघ्र ही वह कार्तिवीर्य तक जा पहुँचे । कार्तिवीर्य अपनी विशाल सेना के साथ अपने राज्य को लौट रहा था । परशुराम ने उसे देखते ही युद्ध के लिये ललकारा । 

एक ब्राह्मण को इस तरह युद्ध के लिए ललकारते हुए देखकर कार्तिवीर्य ने अट्टहास किया । तभी परशुराम ने पलक झपकते ही उसकी सेना को अपने फरसे काट डाला । कार्तिवीर्य को लगा कि सामने खड़ा क्रोधी ब्राह्मण कोई साधारण व्यक्ति नहीं है , अतः वह भी युद्ध के लिये तैयार हो गया । दोनों में भीषण युद्ध हुआ । परशुराम बड़े क्रोध में थे । 

उन्होंने कार्तिवीर्य का रथ तोड़ डाला तथा एक - एक करके उसकी सभी हजार भुजाएँ काट डालीं । कार्तिवीर्य के मरते ही देवताओं ने स्वयं से परशुराम जी पर फूल बरसाये और उनकी स्तुति की । कार्तिवीर्य के पुत्रों को जब इस बात का पता चला तो वे परशुराम की अनुपस्थिति में जमदग्नि ऋषि के आश्रम पहुँचे और उनकी हत्या कर दी । 

परशुराम जब लौटे तो उन्होंने अपने पिता को मृत पाया । माता रेणुका उनके पास बैठी फूट - फूट कर रो रही थी । माता रेणुका से सारी घटना मालूम होने पर परशुराम पुनः क्रोध से भर उठे । उन्होंने पृथ्वी से सम्पूर्ण हैहयवंशीय क्षत्रियों के विनाश का प्रण किया और फरसा लेकर अनूप देश की ओर पुनः चल पड़े । 

क्रांध से भरे परशुराम ने कार्तिवीर्य के सभी पुत्रों को मार डाला । इतना ही नहीं , जिन क्षत्रियों ने कार्तिवीर्य के पुत्रों का पक्ष लिया , परशुराम ने उनका भी सफाया कर दिया । इस प्रकार उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया । परशुराम क्रोध से भरे हुए पृथ्वी पर विनाश लीला कर रहे थे । 

उनके सामने जाने का साहस किसी में नहीं था । अतः देवताओं ने परशुराम के एक महाप्रतापी पूर्वज ऋचीक के पास जाकर उनसे विनती की । देवताओं के आग्रह पर ऋचीक ने परशुराम को दर्शन दिये तथा इस पाप कर्म को रोकने की आज्ञा दी । परशुराम ने ऋचीक का कहना मान लिया । उन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी ब्राह्मणों को दान की और तप करने के लिए महेन्द्र पर्वत पर चले गए ।


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